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अधिग्रहण के समय लागू नीति के आधार पर रोजगार व पुनर्वास का लाभ दे एसईसीएल-हाईकोर्ट
13-Mar-2025 12:48 PM
अधिग्रहण के समय लागू नीति के आधार पर रोजगार व पुनर्वास का लाभ दे एसईसीएल-हाईकोर्ट

विस्थापितों ने कहा समय सीमा पर मांग पूरी नहीं हुई तो मुख्यालय में करेंगे प्रदर्शन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता 
कोरबा, 13 मार्च।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के बदले रोजगार की मांग कर रहे विस्थापित बेरोजगारों के पक्ष में फैसला सुनाया है। यह निर्णय सरईपाली और दीपका परियोजनाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान लिया गया। इस आदेश में हाईकोर्ट ने एसईसीएल को छोटे भू-स्वामियों और भूमि अधिग्रहण के बाद जन्मे उम्मीदवारों को अधिग्रहण के समय लागू नीति के आधार पर रोजगार व पुनर्वास का लाभ देने कहा है।

ऊर्जाधानी भूमि विस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष सपूरण कुलदीप ने हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया और एसईसीएल से जल्द से जल्द कोर्ट के आदेश का पालन करने की मांग की। उन्होंने बताया कि 2007 में कोरबा क्षेत्र की सरायपाली ओपन कास्ट माइन के लिए राज्य सरकार ने ग्राम बुडबुड के 856 खाताधारकों की भूमि का अधिग्रहण किया था। उस समय की मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ पुनर्वास नीति के तहत प्रत्येक खाताधारक के एक उत्तराधिकारी को रोजगार देने की सहमति बनी थी। लेकिन 2012 में लागू हुई कोल इंडिया नीति के अनुसार, दो एकड़ पर एक नौकरी का नियम लागू कर दिया गया, जिससे छोटे खाताधारकों को रोजगार से वंचित कर दिया गया। इस अन्याय के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई और अंतत: हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पुराने पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति के आधार पर सभी खाताधारकों को 45 दिनों के भीतर रोजगार देने का आदेश दिया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिग्रहण के समय लागू नीति के आधार पर ही विस्थापितों के अधिकार तय होंगे और बाद में बदली गई नीति के आधार पर उनके अधिकार समाप्त नहीं किए जा सकते। विस्थापितों को पुनर्वास और रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है। इसी तरह, दीपका परियोजना के मामले में भी हाईकोर्ट ने पाया कि 1984-85 में भूमि अधिग्रहण के बावजूद एसईसीएल ने रोजगार देने की प्रक्रिया नहीं अपनाई थी और केवल 2015-16 में आंदोलन के बाद रोजगार देने का प्रस्ताव रखा।

कुलदीप ने एसईसीएल पर आरोप लगाया कि वह विस्थापितों के रोजगार, मुआवजा और पुनर्वास मामलों को वर्षों तक लटकाए रखता है, जिससे विस्थापितों को आंदोलनों के लिए मजबूर होना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि 30 वर्षों से लंबित इन मामलों में अब तक रोजगार नहीं दिया गया है, जिससे विस्थापित अपने अधिकारों के लिए भटक रहे हैं। एसईसीएल मनमाने ढंग से अपनी नीतियों को लागू करता है और किसानों के साथ अन्याय करता है।

अब विस्थापितों ने फैसला किया है कि वे हाईकोर्ट के आदेश के पालन, पुनर्वास नीति को समान रूप से लागू करने और मुआवजा कटौती को रोकने की मांग को लेकर मार्च के अंत में बिलासपुर स्थित एसईसीएल मुख्यालय का घेराव करेंगे। इस विरोध प्रदर्शन में एसईसीएल के सभी प्रभावित क्षेत्रों के हजारों विस्थापित शामिल होंगे।

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