संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सीरियल-रेपिस्ट भारतवंशी से धर्म, पार्टी, और देश को मिली बदनामी से कैसे बचें?
10-Mar-2025 4:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सीरियल-रेपिस्ट भारतवंशी से धर्म, पार्टी, और देश को मिली बदनामी से कैसे बचें?

ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय से बसे हुए एक भारतवंशी बालेश धनखड़ को साजिश के साथ पांच महिलाओं को नौकरी के नाम पर फंसाकर, नशीली दवा देकर बलात्कार करने के जुर्म में 40 बरस की कैद सुनाई गई है। अदालत ने इस जुर्म को इतना गंभीर माना है कि इन 40 बरसों में से पहले 30 बरस तो कोई पैरोल भी नहीं मिलेगी। अदालत ने लिखा है- बालेश धनखड़ ने पहले से योजना बनाकर, बेहद हिंसा और चालाकी भरे इरादे के साथ हर पीडि़त महिला के प्रति बेरहमी के साथ अपनी यौन इच्छा पूरी करने के लिए यह हमले सरीखा बर्ताव किया गया। अदालत ने कहा कि ये पांच युवा और कमजोर महिलाओं के खिलाफ लंबे वक्त में बारीकी से योजना बनाकर किया गया हमला है। अदालत में पेश सुबूतों में इस आदमी के कम्प्यूटर रिकॉर्ड भी शामिल हैं जिनमें वह नौकरी के फर्जी विज्ञापन देकर आवेदन करने वाली हर महिला को उसकी खूबसूरती, और स्मार्टनेस के लिए पैमानों पर रखता था, अपनी योजना में उस महिला का इस्तेमाल लिखता था, महिला की कमजोरियां लिखता था। ऑस्ट्रेलियाई पुलिस को इस मामले में बलात्कार की खुद की गई वीडियो रिकॉर्डिंग भी मिली है, और नशे से बेहोश करने की दवाएं भी मिली हैं। भारत की समाचार एजेंसी पीटीआई ने लिखा है कि 2018 में जब धनखड़ को गिरफ्तार किया गया, वे भाजपा से गहराई से जुड़े हुए थे, और ऑस्ट्रेलिया के भारतवंशी समुदाय में उन्हें अच्छी पहचान मिली हुई थी। इसके साथ वे हिन्दू कौंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया के अधिकृत प्रवक्ता भी थे। कांग्रेस ने बीजेपी का दुपट्टा पहने हुए धनखड़ की तस्वीरें पोस्ट की हैं जिनमें वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा के कई नेताओं के साथ एकदम करीबी व्यक्ति दिख रहे हैं।

किसी दूसरे देश में बसे हुए, और भारत के अलग-अलग तबकों के प्रवक्ता या प्रतिनिधि बने हुए आदमी का यह जुर्म देश के ऊपर भी आंच लाता है, और इन संगठनों पर तो आंच लाता ही है। यह बात जरूर है कि बलात्कार जैसे जुर्म में पहली बार फंसने के पहले तक किसी के बारे में यह अंदाज लगाना मुश्किल रहता है कि वे बलात्कारी हो सकते हंै। लेकिन जब कोई व्यक्ति सिलसिलेवार तरीके से साजिश के तहत ऐसा भयानक जुर्म करे, तो उससे जुड़े हुए लोगों को भी बदनामी तो झेलनी ही पड़ती है। इसके पहले भी पश्चिम के देशों में भारत के कुछ योग गुरूओं के इसी तरह के बलात्कार-प्रकरण सामने आए थे जिसमें उन्होंने कई-कई शिष्याओं से बलात्कार किया था। अब भारत के भीतर ही अपने आपको संत और बापू कहने वाले पाखंडी धार्मिक पुरूषों की कैद जारी ही है, और बलात्कार उनके लिए लंबे सिलसिले की एक कड़ी जैसा ही रहा है। ऑस्ट्रेलिया में इस कामयाब भारतवंशी के जुर्म देखकर यह समझ आता है कि कोई बेरोजगार हो, नशेड़ी हो, या पैसे या ओहदे की ताकत का बाहुबली हो, सबके भीतर बलात्कारी होने का खतरा एक बराबर रहता है। कुछ लोग नशे में बलात्कार करते हैं, और बालेश धनखड़ जैसे लोग सारी कामयाबी और शोहरत मिलने के बाद भी दुनिया के उस हिस्से में लंबी साजिश करके बेकसूर महिलाओं को फंसाकर बलात्कार करते हैं, जिस हिस्से में वे अपने पैसों से आसानी से सेक्स खरीद सकते थे।

किसी भी राजनीतिक दल या संगठन के लिए, किसी देश के नागरिकों के एक तबके के लिए यह बड़ी दुविधा की नौबत रहती है कि वे किसी को अपना प्रतिनिधि, प्रवक्ता, या नेता बनाने के पहले उसे कितना ठोकें-बजाएं? और जब ऐसे जुर्म का सुबूतों सहित भांडाफोड़ होता है, तो जुड़े हुए तमाम लोगों को इसका नुकसान झेलना ही पड़ता है। ऐसे मामलों में पार्टियों और संगठनों से यह उम्मीद तो की जाती है कि ऐसी पहली शिकायत सामने आते ही इन सबको ऐसे आरोपी से दूरी बना लेनी चाहिए, लेकिन संगठन दुनिया में कहीं भी हों, वे आमतौर पर अपने सबसे बुरे सदस्यों को बचाने में लग जाते हैं। भारत में हमने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर इस देश की महिला पहलवान खिलाडिय़ों के लगाए गए यौन शोषण के आरोपों पर सरकार और भाजपा का यही रूख देखा था। और भी बहुत सी पार्टियां, बहुत सी सरकारें अपने सबसे बुरे लोगों को बचाने में लग जाती है। और तो और हिन्दुस्तान के इतिहास का एक सबसे कलंकित अध्याय है सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का उन्हीं पर लगे यौन शोषण के आरोपों की सुनवाई में खुद ही अदालती बेंच का मुखिया बनकर बैठना। पाठकों को याद होगा कि हमने जस्टिस रंजन गोगोई की इस हरकत के खिलाफ खुलकर लिखा था, और दो बरस बाद जाकर राज्यसभा सदस्य की हैसियत से रंजन गोगोई ने जब अपनी किताब लिखी, तो अपने इस फैसले को गलत माना था। वरना वे खुद पर लगी यौन शोषण की तोहमतों को सुप्रीम कोर्ट को अस्थिर करने की साजिश ठीक उसी तरह करार देते रहे जिस तरह इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाते हुए उस दौर को देश को अस्थिर सा करने की साजिश करार दिया था।

यह तो ऑस्ट्रेलिया की न्याय व्यवस्था राजनीतिक दबावों और खरीद-बिक्री से परे है, इसलिए इस आदमी धनखड़ को इतनी लंबी सजा हो पाई। वरना इसके पहले भी कई देशों में प्रमुख भारतवंशी यौन शोषण के मामलों में फंसते आए हैं। अमरीका में विक्रम योग नाम से अपनी एक योग पद्धति फैलाने वाले विक्रम चौधरी पर यौन हमलों और यौन शोषण के कितने ही मामले दर्ज हुए, जिनमें शिष्याओं को ढूंढने और फांसने में इस योग गुरू के करीबी लोग उसकी मदद करते थे, और इसे अदालत से कई मिलियन डॉलर जुर्माना सुनाया गया था। किसी भी भारतवंशी की ऐसी हरकतें देश को बदनाम करती हैं, और देश के भीतर के, और बाहर बसे हुए भारतवंशियों को ऐसे लोगों से सावधान भी रहना चाहिए, और इन्हें बढ़ावा नहीं देना चाहिए। धर्म, आध्यात्म, या योग के गुरूओं के साथ दिक्कत यह भी रहती है कि उनके भक्त और अनुयायी उन पर अंधविश्वास करते हैं, और उन्हें यह सब करने का एक मौका देते हैं। लेकिन बालेश धनखड़ जैसे लोग तो भक्त पाने के किसी सहूलियत से लैस भी नहीं थे, और उनसे बचने-बचाने की कोई गुंजाइश भी नहीं थी, इसलिए उनसे बदनामी मिलनी ही मिलनी थी।

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