महाकुंभ के लिए प्रयागराज जाने वाले रेल मुसाफिरों की भीड़ में भगदड़ मचने से बीती रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर करीब डेढ़ दर्जन लोगों की मौत हो गई है। पहले तो रात घंटों तक मौतों को अफवाह बताया जाता रहा, ठीक उसी तरह जैसे कि कुंभ में जब आधी रात बाद और सुबह के पहले हुई भगदड़ में 30 लोग मारे गए थे, लेकिन राज्य सरकार ने 24 घंटे तक मौतों का कोई जिक्र ही नहीं किया, और चारों तरफ यही अपील की जाती रही कि लोग अफवाह न फैलाएं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी अपने वीडियो बयान में अफवाहों का खूब जिक्र किया, लेकिन मौतों का नाम भी नहीं लिया। सरकारों के स्तर पर यह एक बड़ी अजीब बात है कि तथ्यों को जनता के सामने साफ-साफ रखने के बजाय सामने पड़ी लाशों को भी छुपाया जाए। खैर, कल नई दिल्ली स्टेशन पर जैसी भीड़ थी वैसी वहां के कुलियों ने छठ पूजा के लिए बिहार जाने वाली भीड़ के दौरान भी नहीं देखी थी। इस अभूतपूर्व और असाधारण भीड़ के नजारे सोशल मीडिया पर वीडियो में दिख रहे थे, और इसके बाद जब वहां कुछ गाडिय़ों के रद्द होने और कुछ के प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा हुई, तो सब कुछ तहस-नहस हो गया। जब दसियों हजार लोग किसी पैदल-पुल से प्लेटफॉर्म बदलते हों, और वहां पर ट्रेन तक पहुंचने की हड़बड़ी भी हो, तो बेकाबू भगदड़ में इतनी कम मौतें कैसे हुईं, यही हैरानी की बात है। यह एक अलग बात है कि मौतों के आंकड़े सीमित रहने के पीछे सरकार के किसी इंतजाम का हाथ नहीं है, दसियों हजार लोगों के बीच जब स्टेशन पर चलने-फिरने की जगह भी नहीं थी, तब वहां तकरीबन नामौजूद रेलवे या दीगर किस्म की पुलिस के रहने से भी बहुत फर्क नहीं पड़ सकता था, क्योंकि किसी भी कीमत पर ट्रेन में चढऩे पर आमादा ऐसी बेतहाशा भीड़ पर काबू पाना शायद फौज के लिए भी आसान नहीं रहता।
जब से कुंभ शुरू हुआ है तब से जिस तरह की भीड़ रेलगाडिय़ों में दिख रही है, वह हैरान करती है कि आस्थावान लोग क्या सोचकर इतना खतरा उठा रहे हैं। कई स्टेशनों के वीडियो देखने मिले हैं कि लोग बांस और बल्लियों से बंद डिब्बों के कांच फोड़-फोडक़र भीतर घुस रहे हैं, और भीतर-बाहर के मुसाफिरों के बीच खुला टकराव चल रहा है। यूपी सरकार हर दिन करोड़-दो करोड़ लोगों के पहुंचने के आंकड़े जारी कर रही है, रेलगाडिय़ां कहीं चल रही हैं, कहीं रद्द हो रही हैं, और सडक़ों का हाल यह है कि किसी-किसी तरफ तो ढाई-तीन सौ किलोमीटर तक सडक़ें जाम हैं। कारें दो-दो दिन अपनी जगह पर फंसी हुई हैं, और उनमें कई जगह बूढ़े लोग, बच्चे, और महिलाएं फंसे हुए हैं। यूपी से दूर मध्यप्रदेश के भीतर सैकड़ों किलोमीटर परे सरकार घोषणा कर रही है कि लोग आगे न जाएं, मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि सरकार और भाजपा के लोग, दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता लोगों की मदद करें।
ऐसा भी नहीं कि कुंभ इसके पहले कभी हुआ नहीं है। इस बार के कुंभ को 144 बरस में आया हुआ बताकर जिस तरह से उसका प्रचार किया गया है, उससे बहुत से लोगों को लगा कि अगर यह मौका चूका तो उनकी जिंदगी में दुबारा यह बारी नहीं आएगी। अपनी धार्मिक आस्था के चलते जितने लोग वहां पहुंचे रहते, वे पहुंचे रहते, लेकिन इस बार कुंभ का रिकॉर्ड बनाने के लिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने हफ्तों या महीनों पहले से जिस तरह का विज्ञापन अभियान शुरू किया था, उससे लोगों के बीच आस्था की एक उत्तेजना बढ़ती चली गई, और लोगों न इंतजाम देखा, न खतरा देखा, और न अपनी ताकत देखी, वे बस उठे और कुंभ के लिए रवाना हो गए। नतीजा यह निकला कि जिस तरह भगदड़ के वक्त कुंभ में करोड़ों लोग इकट्ठा बताए जा रहे हैं, वे वहां किसी सुरक्षा इंतजाम के तहत नहीं थे, वे बस वहां पहुंचे हुए थे। इस किस्म की भीड़ को बढ़ावा देना किसी भी सरकार के लिए उसकी क्षमता से कई गुना बड़ी चुनौती थी, और कुंभ में अब तक यही चल भी रहा है। सिर्फ नई दिल्ली ही नहीं, देश के बहुत से रेलवे स्टेशनों पर कुंभ जाते लोगों की भीड़ और उसकी हिंसा के शिकार आरक्षित सीटों के दूसरे मुसाफिरों की कहानियां भयानक हैं।
अब 144 बरस में एक बार आया यह दुर्लभ मौका बताकर जितने अधिक तीर्थयात्री यूपी में जुटाए गए हैं, वे किसी तरह की हिफाजत का दावा नहीं कर सकते। वे असंभव किस्म की गिनती में वहां पहुंचे हुए हैं, और सरकारी सार्वजनिक न्यौतों के बावजूद उनकी अपनी अक्ल किनारे रखने की उम्मीद उनसे नहीं की जाती है। जो दो बड़े हादसे कुंभ और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सामने आए हैं, उनसे कई गुना अधिक बड़ा खतरा मंडरा रहा था, और अभी भी मंडरा रहा है। किसी भी जिम्मेदार सरकार के लिए ऐसी बेकाबू और बेतहाशा भीड़ जुटाने की कोशिश, सार्वजनिक रूप से रात-दिन दुहराए जा रहे न्यौते किसी समझदारी का काम नहीं थे। केन्द्र सरकार और यूपी सरकार दोनों कुंभ को लेकर टक्कर के उत्साह में थीं, और सडक़ों से लेकर पटरियों तक किसी की भी क्षमता ऐसे उत्साह के लायक नहीं थी। महाकुंभ का यह डेढ़ महीने का आयोजन बहुत कुछ गुजर चुका है, इसलिए अब इसमें किसी तरह के पुनर्विचार की कोई चर्चा फिजूल है। लेकिन हम लोगों के लिए अपनी यह सलाह जरूर सामने रख रहे हैं कि ठोस इंतजाम रहते हुए भी उन्हें ऐसे मौके पर कुंभ जाने के पहले कई बार सोचना चाहिए क्योंकि वहां बिना इंतजाम पहुंचने वाली भीड़ के बीच उनका अपना इंतजाम जाने कितना कायम रह पाएगा। केन्द्र और राज्य सरकारों की मिलीजुली क्षमता और योजना शायद आस्थावानों की सामान्य भीड़ का इंतजाम कर पाती, लेकिन न्यौता देकर बढ़ाई गई भीड़ ने यह साबित कर दिया है कि सरकारों के इंतजाम निहायत नाकाफी रहे, और जनता अगर किसी बड़े हादसे से बची है, तो वह महज एक संयोग है, सरकारी इंतजाम किसी खतरे को टालने लायक बिल्कुल नहीं थे।