छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जहां हमारे अखबार का दफ्तर है, वहां सवा साल से नगाड़े ही नगाड़े सुनाई पड़ रहे हैं। ठीक सामने भाजपा का दफ्तर है, और विधानसभा चुनाव से जो शुरूआत हुई, वह लोकसभा चुनाव से होते हुए अब म्युनिसिपल चुनावों तक जारी है, और कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भाजपा लगातार हर सत्ता पर काबिज हो रही है। पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा में भाजपा को उसकी खुद की उम्मीद से बहुत अधिक सीटें मिलीं, और जो कांग्रेस उम्मीद से थी, उसकी बड़ी शर्मनाक हार हुई। लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास पहले से दो सीटें थीं, वे घटकर एक रह गई, और श्रीमती ज्योत्सना महंत ने डबल इंजन की ताकत से डॉ.चरणदास महंत के साथ मिलकर इस प्रदेश में कांग्रेस की नाक बचा ली, वरना लोकसभा में छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के कोई नामलेवा नहीं रहते। अब पंचायत और म्युनिसिपल चुनाव की मतगणना चल रही है तो प्रदेश के सभी दस नगर निगमों में महापौर पद पर भाजपा का कब्जा तकरीबन तय दिख रहा है। 49 नगरपालिकाओं में इस पल 36 पर भाजपा, 8 पर कांग्रेस, और 5 पर अन्य उम्मीदवार पालिका अध्यक्ष बनते दिख रहे हैं। इसी तरह 114 नगर पंचायतों में से 84 के मुखिया भाजपा के लोग बन रहे हैं, 20 पर कांग्रेस के, और 10 पर अन्य। वार्डों में भी बहुत बड़ा बहमुत भाजपा के उम्मीदवारों के साथ है। कांग्रेस अपनी हार मान चुकी है।
अब प्रदेश में अधिकतर जगहों पर म्युनिसिपल के मुखिया भाजपा के रहेंगे, और अधिकतर वार्डों में पार्षद भी। दिल्ली में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है, और विधानसभा चुनावों में भाजपा अपनी जीत के बाद लोकसभा में डबल इंजन के नाम पर वोट मांग रही थी। म्युनिसिपल चुनावों में भाजपा ने तीन इंजन के नाम पर वोट मांगे, और वार्डों में जहां भाजपा है वहां तो पीएम से पार्षद तक सारी सत्ता भाजपा के पास रहेगी, और चार इंजन की सरकार ऐसे वार्डों में रहेगी। जिस वार्ड की रेलगाड़ी में चार-चार इंजन लगे हों, वहां चूक के खतरे भी बढ़ जाते हैं। आज नगाड़ों के बीच नसीहत का मौका नहीं है, लेकिन बधाई देने की औपचारिकता तो आम लोग कर ही रहे हैं, हमारे सरीखे फिक्रमंद लोग पटाखों के बीच भी कुछ तेज आवाज में सावधानी बरतने की नसीहत देते रहते हैं। भाजपा को नगरीय शासन के म्युनिसिपल और वार्डों में मिले भारी बहुमत के साथ-साथ उतनी ही भारी सावधानी भी बरतनी चाहिए। पंचायत और म्युनिसिपल चुनावों में आमतौर पर अधिकतर लोग बार-बार नहीं जीतते क्योंकि एक कार्यकाल पूरा होते-होते या तो लोगों की नाराजगी उनके खिलाफ हो जाती है, या उनके भ्रष्टाचार के किस्से प्रचलन में आ जाते हैं, या अगर पार्षद और महापौर-अध्यक्ष जरूरत से अधिक ईमानदार और कड़े रहते हैं, तो उससे भी लोग खफा हो जाते हैं। कुल मिलाकर चुनाव जितना छोटा रहता है, उतना ही खतरनाक रहता है। छत्तीसगढ़ की इसी राजधानी रायपुर में तरूण चटर्जी विधानसभा का चुनाव बार-बार जीतने के लिए जाने जाते थे, महापौर भी बनते थे, लेकिन जब वार्ड का चुनाव लड़ा, तो अपने घर से ही हार गए थे। इसलिए जब राज्य शासन के नगरीय प्रशासन विभाग से सहूलियत और सुरक्षा हासिल रहेगी, जब महापौर और अध्यक्ष भाजपा के रहेंगे, तब पार्षद भी भाजपा के रहें तो चार इंजनों की यह रेलगाड़ी समझदारी की पटरी से न उतरे इसका ख्याल भी भाजपा को रखना होगा।
इसके साथ-साथ अब भाजपा अगले करीब चार बरस में अगले विधानसभा चुनाव तक एक कड़ी चुनौती को न्यौता दे चुकी है। अब देश, प्रदेश, शहर, और वार्ड इन तमाम जगहों पर भाजपा के लोगों की ही बहुतायत होने से किसी काम के न होने का कोई बहाना भी नहीं चलेगा, और न ही कोई सफाई दी जा सकेगी। ऐसे दिखने लायक और असरदार काम करना पहले दिन से भाजपा के निर्वाचित नेताओं के सामने चुनौती रहेगी। इस नौबत में संभावनाएं भी खूब हैं, और ताकत के एक ही पार्टी में इकट्ठा हो जाने के खतरे भी रहेंगे। भाजपा के नेता प्रदेश की अधिकतर जगहों पर किसी को किसी काम के लिए मना नहीं कर पाएंगे, और भाजपा के अपने लोगों के किसी गलत काम को रोकने की नौबत भी नहीं रहेगी। जब ताकत बहुत अधिक आ जाती है, तो कई किस्म की गलतियां होने का खतरा भी रहता है। हमने राजीव गांधी की सरकार को ऐतिहासिक संसदीय बाहुबल के चलते शाहबानो जैसा भयानक गलत काम करते देखा है। और यूपीए-1 सरकार जो कि बाहरी वामपंथी समर्थन से चल रही थी उसे ठीक काम करते देखा है, और जब यूपीए-2 सरकार को समर्थन की जरूरत नहीं रह गई, तब उसमें होने वाले बड़े-बड़े भ्रष्टाचार भी देखे हैं।
लेकिन यह मौका भाजपा के देश के सबसे कामयाब ब्राँड बन जाने का एक और सुबूत है। कमल छाप की पैकिंग में कई कमजोर उम्मीदवार भी जनता के बीच चल जा रहे हैं। पार्टी ने उम्मीदवार छांटने से लेकर आखिरी वोट डलवाने तक के पूरे सिलसिले पर जैसी मजबूत पकड़ बनाई है, वह देखने लायक है। देश में ऐसी मजबूत चुनावी मशीनरी कभी किसी दूसरी पार्टी के पास नहीं रही, और जो राजनीतिक दल भाजपा से सहमत नहीं होते, उन्हें भी उससे दर्जनों चीजें सीखने की जरूरत है। लोकतंत्र में चुनाव जीतकर ही कोई पार्टी अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू कर सकती है, इसलिए अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव जीतने का अपना महत्व रहता है। लगातार चुनाव हारने पर भी चैन से घर बैठने का हुनर लोग कांग्रेस से सीख सकते हैं, और एक चुनाव जीतते ही अगला चुनाव चाहे जितना भी दूर हो, उसकी तैयारी में लग जाने की जीवट सोच लोग भाजपा से सीख सकते हैं। यह बात ठीक है कि म्युनिसिपल और पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को कुछ फायदा हो सकता है क्योंकि लोगों को लगता है कि सत्ता के साथ जाने से ही उनके इलाकों में काम हो पाएगा, लेकिन सवा साल पहले के विधानसभा चुनाव के वक्त तो प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी बड़ी मजबूत थी, और संपन्न भी थी, लेकिन वह बुरी तरह निपट भी गई। इसलिए सत्ता की ताकत हर चुनाव में काम आए यह भी जरूरी नहीं है। एक बेकाबू और बेहद ताकत सत्ता को किस तरह बेदखल कर देती है, यह छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में देखा हुआ है, और इसलिए अब इस प्रदेश में भाजपा को राज्य सरकार से लेकर म्युनिसिपलों तक सावधानी से काम करना चाहिए। छत्तीसगढ़ में भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार के सवा साल के कार्यकाल को कम नहीं आंकना चाहिए क्योंकि महतारी वंदन सरीखी कई योजनाओं का असर लोकसभा में भी दिखा, और अभी म्युनिसिपल में भी। इसके साथ-साथ पांच बरस के कांग्रेस कार्यकाल के भ्रष्टाचारों से अभी तक जांच एजेंसियों, अदालतों से आने वाली खबरें तकरीबन रोज ही मीडिया में छाई रहती हैं, और उस कार्यकाल की छाया जनता के दिमाग से हटी नहीं है।
आखिर में अब पंचायत के सामने खड़े हुए मतदान को देखें तो लगता है कि म्युनिसिपल चुनावों के नतीजों का उस पर असर पड़ेगा, और वहां भी हो सकता है कि भाजपा के चुने हुए उम्मीदवारों को बहुमत मिल जाए। प्रदेश में हर स्तर पर एक निर्बाध ताकत भाजपा के लिए एक अंदरुनी चुनौती भी रहेगी, लेकिन सफलता से बहस नहीं होती, इसलिए बाकी सरकारों की तरह शहर सरकारों को भी हंड्रेड-डे-हनीमून का हक है।
और चलते-चलते यह चर्चा भी जरूरी है कि प्रदेश का हर चुनाव बुरी तरह हरवाने के बाद अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज की बिदाई का वक्त है, और कांग्रेस देश भर में अपने संगठन में बदलाव कर रही है, छत्तीसगढ़ के सबसे ताकतवर कांग्रेस नेता भूपेश बघेल को पंजाब का प्रभारी बनाकर दिल्ली बुलाया गया है, और यह मौका इस राज्य में कांग्रेस को अपना घर सुधारने का भी है। शायद टी.एस.सिंहदेव को इसके लायक समझा जाए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)