संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चुनावी दबावमुक्त काम करने के लगातार 3 बरस, सरकार कुछ कर दिखाए
12-Feb-2025 4:23 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  चुनावी दबावमुक्त काम करने के लगातार 3 बरस, सरकार कुछ कर दिखाए

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’

देश में वन नेशन-वन इलेक्शन लागू करने की केन्द्र सरकार की पूरी तैयारी है, लेकिन संसद और अलग-अलग विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ करवाने में कई तरह की संवैधानिक दिक्कतें आएंगी, कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल कम करना पड़ेगा, कुछ का कार्यकाल पूरा हो जाने पर या तो वही सरकार जारी रखनी होगी, या फिर कुछ महीनों का राष्ट्रपति शासन लगाना होगा, ऐसे कई संवैधानिक फेरबदल जरूरी होंगे। हमने बड़े लंबे समय से चुनावों को एक साथ करवाने की वकालत की है। इसके पीछे चुनावी खर्च में कमी का तर्क नहीं है, बल्कि बड़ा मुद्दा यह है कि अलग-अलग चुनाव होते रहने से देश-प्रदेश की सरकारें हर कुछ बरस में तनाव में रहती हैं कि मतदाताओं को कैसे खुश रखा जाए, कौन से ऐसे जरूरी सरकारी कदम न उठाए जाएं जिनसे लोग नाराज हो सकते हैं। अब छत्तीसगढ़ इसकी एक मिसाल है जहां पर विधानसभा चुनावों के छह महीने बाद लोकसभा के चुनाव होते हैं, और उनके करीब छह महीने बाद पंचायत और म्युनिसिपल के। ये तीनों चुनाव सवा साल से अधिक समय तक चलते रहते हैं, और इनमें आधे समय तो आचार संहिता ही लगी रहती है जिससे काम और कारोबार दोनों ही बहुत बुरी तरह प्रभावित होते हैं। लोगों को यह अंदाज नहीं है कि ढाई महीने तक चली लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के दौरान जब राजनीतिक दलों और राजनेताओं वाले, सरकारी या राजकीय कार्यक्रमों के न होने पर कितने किस्म के कारोबार बहुत बुरी तरह प्रभावित होते हैं। खुद अखबारों में सरकार के और राजनीतिक कार्यक्रमों के इश्तहार छपना बंद हो जाता है, और जो अखबार पार्टियों और उम्मीदवारों से वसूली-उगाही नहीं करते हैं, वे और अधिक मुसीबत में आ जाते हैं। ऐसे में अब जब छत्तीसगढ़ इन तीनों चुनावों को निपटाने के करीब है, और सरकार के सवा साल हो चुके हैं, तब चुनाव मुक्त आगे के कार्यकाल की जमकर तैयारी करनी चाहिए। आखिरी का एक साल फिर चुनावी दबावों का रहता है कि उस वक्त कोई कड़ाई नहीं बरती जा सकती, इसलिए सरकार को ये चुनावमुक्त करीब ढाई बरस जमकर इस्तेमाल करने चाहिए।

जैसे किसी खेल के मैदान पर होता है, सामने के खिलाडिय़ों के बीच से रास्ता निकालकर गेंद आगे बढ़ाई जाती है, उसी तरह राज्य सरकारों को यह चुनावमुक्त गलियारा तेजी से आगे बढऩे के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, और इसके लिए तुरंत भिडऩा चाहिए। मुख्यमंत्री की तमाम घोषणाओं के बावजूद सडक़ सुरक्षा के लिए कुछ नहीं हो पा रहा है, पुलिस के पास चुनावों का एक बहाना भी रहता है कि पुलिस बल उसमें उलझ जाता है इसलिए ट्रैफिक सुधारने की गुंजाइश नहीं रहती। अब चुनावों से आजादी है, और प्रदेश में एक काबिल डीजीपी भी काम संभाल चुके हैं। अरूणदेव गौतम इस कुर्सी पर आने के पहले भी सडक़ सुरक्षा के मामले में राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश होते आए हैं, या वहां जवाब दाखिल करने के जिम्मेदार रहे हैं, इसलिए वे इस बात को बेहतर समझेंगे कि सुप्रीम कोर्ट सडक़ सुरक्षा को लेकर कितना गंभीर है। अगर सरकार एक ईमानदार इच्छाशक्ति दिखाए तो इतनी ही पुलिस से वह हर महीने करोड़ों रूपए का जुर्माना वसूल सकती है, और हर बरस सैकड़ों जिंदगियां बचा सकती है। सरकार को बंधी-बंधाई लीक से हटकर यह इंतजाम करना चाहिए कि ट्रैफिक जुर्माने लायक सूचना अगर जनता देती है, तो जुर्माना वसूली के बाद उसका एक हिस्सा उसे भी मिलना चाहिए, और इस जुर्माने की पूरी रकम सीधे-सीधे ट्रैफिक सुधार के लिए दे देनी चाहिए। वोटरों के नाराज हो जाने के खौफ से सत्तारूढ़ नेता कभी सडक़ों पर कड़ाई बरतना नहीं चाहते, लेकिन अब उन्हें यह हिम्मत दिखाना चाहिए कि अगले ढाई-तीन बरस वोटरों को नाराजगी दिखाने का कोई मौका नहीं आने वाला है, और ऐसे में अगर ट्रैफिक को सुधारकर जिंदगियां बचाना दिखाया जा सकेगा, तो अगले विधानसभा चुनाव तक राज्य सरकार की वैसे भी बड़ी वाहवाही होगी।

एक दूसरा मुद्दा जो कि ऐसे ही लंबे चुनावमुक्त दौर में हो सकता है, वह शहरों को सुधारने का है। लोगों को अब याद नहीं होगा कि कुछ दशक पहले महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में चन्द्रशेखर नाम के एक आईएएस अफसर म्युनिसिपल कमिश्नर बने, और उन्होंने बिना किसी भेदभाव के एक साथ पूरे शहर के सडक़ किनारे के कब्जे और अवैध निर्माण हटा दिए, और चौड़ी सडक़ों के किनारे फुटपाथ बन गए, बीच में डिवाइडर बन गए, और नागपुर कुछ महीनों के भीतर ही एक बहुत अधिक सहूलियत वाला, और खूबसूरत शहर हो गया। छत्तीसगढ़ में भी हमने कई दशक पहले एक एडीएम और एक सीएसपी को मिलकर शहर के अवैध कब्जे आसानी से हटाते हुए देखा है। आज पूरे प्रदेश में शहरों में अवैध कब्जे और अवैध निर्माण मिलकर सडक़ों को खत्म कर चुके हैं। जहां-जहां सरकार करोड़ों रूपए लगाकर सडक़ चौड़ी भी करती है, वह भी पूरी की पूरी कारोबारी पार्किंग में खत्म हो जाती है, उससे सरकार को कुछ नहीं मिलता। अब सरकार को दिल कड़ा करके शहरों को सुधारना चाहिए क्योंकि अगर वोटरों को उसके इस कार्यकाल में शहरी सहूलियतें और सुंदरता दिखने लगेंगी, तो उसे अगला चुनाव जीतने से कोई नहीं रोक पाएंगे। शहरों के अलावा कस्बों में, और गांवों में भी अवैध कब्जों से जहां-जहां जनजीवन में दिक्कत आती है, उसे बिना भेदभाव अगर हटाया जाए, तो जनता भी सरकार का साथ देगी। इसी राजधानी रायपुर में जब आर.पी.मंडल पीडब्ल्यूडी सचिव थे, और बिना इस्तेमाल वाली नहर को पाटकर केनाल रोड बनाना था, तो उन्होंने जाकर मुख्य सचिव से अनुरोध करके उनके बंगले का एक हिस्सा तोडक़र सडक़ की चौड़ाई जारी रखी थी। जब कोई भेदभाव नहीं किया जाता, तो जनता भी साथ देने लगती है, और सरकार के भीतर से भी कोई विरोध नहीं होता।

हम अभी सिर्फ उन्हीं व्यापक मुद्दों की चर्चा कर रहे हैं जिनसे जनता बड़े पैमाने पर प्रभावित होने जा रही है, शुरू में कुछ लोग नाराज होंगे, लेकिन फिर सार्वजनिक सहूलियत देखकर उनकी भी नाराजगी जाती रहेगी। सत्तारूढ़ पार्टी को अपने लोगों को भी इस बात के लिए तैयार करना चाहिए कि वे ट्रैफिक, सडक़, और शहरी सुधार में हाथ बंटाएं, न कि अड़ंगा डालें। पंचायत और म्युनिसिपल चुनावों में जो नए जनप्रतिनिधि जीतकर आएंगे, उन्हें भी शुरू से ही समझ आना चाहिए कि उनका काम गैरकानूनी चीजों को बढ़ावा देने का नहीं है, बल्कि स्थानीय सुधार, विकास, और सडक़ सुरक्षा जैसे व्यापक महत्व के काम उनकी जिम्मेदारी है। राज्य सरकार को कड़ाई से सुधार करने के लिए बड़ी तैयारी करनी चाहिए, और मतदाताओं की फिक्र किए बिना काम करने का यह एक बड़ा मौका है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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