नयी दिल्ली, 10 फरवरी। उच्चतम न्यायालय बिहार के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाले दिव्यांग छात्र को पाठ्यक्रम के लिए अयोग्य घोषित करने संबंधी आदेश के खिलाफ उसकी याचिका पर सुनवाई करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया।
न्यायमूर्ति बी.आर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने याचिका पर दो हफ्तों के अंदर जवाब मांगते हुए बिहार के बेतिया स्थित मेडिकल कॉलेज और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) सहित अन्य को नोटिस जारी किया है।
न्यायालय ने आदेश दिया कि तब तक, याचिकाकर्ता के दाखिले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाए।
याचिकाकर्ता, पैरों से 58 प्रतिशत दिव्यांग है। उसने शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून और एनएमसी दिशानिर्देशों के अनुरूप मेडिकल की पढ़ाई करने की अपनी (शारीरिक) क्षमता का नये सिरे से आकलन किये जाने का आग्रह किया है।
अधिवक्ता मयंक सपरा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता पहले ही दिव्यांगता के लिए दो बार आकलन करा चुका है, जिसके परिणामस्वरूप 24 जून 2022 और 31 अगस्त 2024 को वैध दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी किए गए।’’
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को फिर से आकलन कराने का निर्देश दिया गया था, जिससे उसे अनावश्यक कठिनाई और वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ रहा है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि छात्र ने एनएमसी के सभी मानदंडों का पालन किया है और दो बार आकलन की प्रक्रिया से गुजरा है, जिसमें उसे एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए योग्य पाया गया है।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातक (नीट-यूजी) 2024 का सफल उम्मीदवार है। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को मेडिकल पाठ्यक्रम के लिए योग्य घोषित किया गया था और उसने कॉलेज में कक्षाएं लेनी भी शुरू कर दी हैं।
इसमें कहा गया है कि कॉलेज जाना शुरू करने के लगभग दो महीने बाद, दिसंबर 2024 में एक कार्यालय आदेश जारी किया गया, जिसमें याचिकाकर्ता सहित चार छात्रों को पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) में उनकी दिव्यांगताओं के सत्यापन के बाद एक नया दिव्यांगता प्रमाण पत्र जमा करने का निर्देश दिया गया।
याचिका में कहा गया है कि उसके कॉलेज ने 24 जनवरी को एक आदेश जारी किया जिसमें उसे मेडिकल पाठ्यक्रम के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।
उक्त आदेश को रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध करते हुए, छात्र ने आईजीआईएमएस, पटना द्वारा किए गए ‘‘मनमाने चिकित्सा आकलन’’ से हुए वित्तीय नुकसान को लेकर उचित मुआवजे की मांग भी की है। (भाषा)