अमरीकी वोटरों ने एक सनकी तानाशाह को राष्ट्रपति बनाकर पूरी दुनिया को इतने बड़े खतरे में डाल दिया है कि डोनल्ड ट्रम्प का चार बरस का कार्यकाल पूरा होते-होते अमरीकी अपने चुनावी फैसले पर अफसोस करते रह सकते हैं, या फिर यह भी हो सकता है कि वे ट्रम्प के हिंसक तौर-तरीकों के प्रशंसक बनकर आगे फिर इसी किस्म के तानाशाह को चुन सकते हैं जो कि तमाम अंतरराष्ट्रीय नियम-कानून के खिलाफ जाकर दुनिया में अमरीका को एक माफिया के अंदाज में सबसे ताकतवर बना सके, और बाकी पूरी दुनिया पर अमरीकी मनमानी कर सके। पिछले दो दिनों से ट्रम्प ने दुनिया के अधिकतर देशों को असहज कर रखा है जब उन्होंने फिलीस्तीन के गाजा पर पूरा कब्जा करने की घोषणा की है, और वहां पर एक पर्यटन केन्द्र बनाने का इरादा जाहिर किया है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ बातचीत के बाद ट्रम्प ने इस सदी का दुनिया का सबसे हिंसक इरादा जाहिर किया है कि फिलीस्तीनियों को उनके ही घर से बेदखल किया जाएगा, उन्हें बगल के मिस्र और जॉर्डन जैसे देशों में बसाया जाएगा। 23 लाख लोगों को अपने देश और अपने घर से बेदखल करने का ट्रम्प का यह इरादा और उनकी मुनादी एक भूमाफिया का तौर-तरीका है जिसमें गरीबों की बस्ती को उनके हक की जमीन से हटाकर कोई बिल्डर अपनी इमारत खड़ी करता है। ट्रम्प ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के पहले से यह फतवा देना चालू किया था कि कनाडा अमरीका का राज्य बन जाए। वे ग्रीनलैंड को कब्जा करना चाहते हैं, और पनामा नहर को कब्जा करने के लिए फौजी कार्रवाई तक का इरादा जाहिर कर चुके हैं। इजराइल का साथ देने के लिए, और मध्य-पूर्व में अपनी फौजी गुंडागर्दी कायम करने के लिए ट्रम्प ने जो हमलावर तेवर दिखाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों के खिलाफ हैं, और मध्य-पूर्व के देशों ने इसका विरोध करना भी शुरू कर दिया है।
ट्रम्प ने जिस अंदाज में जलवायु के पेरिस समझौते को तोड़ा, जिस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन को मदद खत्म की, जिस तरह अमरीकी सरकार से दुनिया भर के कार्यक्रमों को मिलने वाली मदद खत्म की, कनाडा, मैक्सिको, और चीन से अमरीका आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाया, जिस तरह यूरोपीय संघ को टैरिफ लगाने की धमकी दी, वह सब कुछ बहुत ही भयानक है। इससे विश्व स्वास्थ्य संगठन का दुनिया भर में चलने वाला कार्यक्रम ठप्प हो जाएगा। जलवायु बचाने की कोशिशों को ट्रम्प दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीनफ्रॉड कहता है, और योरप के देशों के साथ नाटो संगठन को तरह-तरह की धमकी दे रहा है। जिस अंदाज में ट्रम्प ने वहां भारत के अवैध बसे हुए लोगों को हथकड़ी-बेड़ी लगाकर फौजी विमान से लाकर हिन्दुस्तान में पटका है, और लाखों बकाया हिन्दुस्तानियों पर तलवार टंगी हुई है, इन सबसे हिन्दुस्तान के उन हवनबाजों की आंखें खुलनी चाहिए जो कि ट्रम्प की जीत के लिए हवन करने में जुट जाते हैं, या गोली से उसका कान जख्मी होने पर हिन्दुस्तानी सडक़ किनारे मंदिरों में हवन-पूजन करने लगते हैं। हिन्दुस्तान के लोग अगर अमरीका में अवैध बसे हुए थे, तो उन्हें वापिस भेजना तो जायज था, लेकिन क्या हथकड़ी-बेड़ी में जकडक़र उन्हें पेशेवर खतरनाक मुजरिम की तरह पेश करना भी जरूरी था?
कुछ दिनों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका जाने का कार्यक्रम है, और उसका अकेला मकसद नए राष्ट्रपति ट्रम्प के इस दूसरे कार्यकाल में उनसे मुलाकात है। हम यह उम्मीद ही कर सकते हैं कि हिन्दुस्तानियों के साथ ट्रम्प के सुलूक के बारे में मोदी जरूर ही विरोध दर्ज करेंगे, और फिलीस्तीन पर फिलीस्तीनियों के कब्जे के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी का आमसभा का भाषण वे अच्छी तरह सुनकर जाएंगे जिसमें उन्होंने दो देशों के सिद्धांत और अपनी जमीन पर फिलीस्तीनियों के कब्जे की बात खुलकर कही थी, जोर देकर उन्होंने कहा था कि किसी की जमीन पर कब्जा कर लेने वाले को उसका हक नहीं दिया जा सकता, और जब भारत को ऐसी बात अपने बारे में मंजूर नहीं है, तो फिर वह फिलीस्तीनियों, और इजराइलियों के बारे में कैसे मंजूर होगी। अटलजी ने उन्हीं बातों को दोहराया था जो आजादी के पहले से गांधी अपने अखबार में लिखते आ रहे थे, और जो नेहरू से लेकर इंदिरा तक तमाम प्रधानमंत्रियों ने दुहराया भी था। खुद वाजपेयी ने अपने भाषण में मोरारजी देसाई के इसी रूख का हवाला देते हुए फिलीस्तीनियों का समर्थन किया था। हमें पूरी उम्मीद है कि मोदी भारत की विदेश नीति के इतिहास को देखते हुए दुनिया के इस सबसे बड़े मवाली के साथ अपनी मुलाकात में इंसाफ का साथ देंगे, और फिलीस्तीनियों को भगाकर वहां कोई ट्रम्प टॉवर बनाने की हिंसक योजना का विरोध करेंगे। लोगों को याद रखना चाहिए कि दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देश हैं जिन्होंने इजराइल के खिलाफ जमकर कहा, और गाजा पर उसके हमले का विरोध किया। लोग अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट तक गए, और इजराइल के खिलाफ वहां से हुक्म करवाया। इन बहुत से देशों का फिलीस्तीन से कोई सीधा लेना-देना नहीं था, और न ही इजराइल से उनकी कोई सीधी दुश्मनी थी। लेकिन यह बात याद रखनी चाहिए कि दुनिया के इतिहास में उन्हीं देशों और नेताओं को दर्ज किया जाता है जो कि स्वार्थ से परे जाकर इंसानियत और इंसाफ के साथ खड़े रहते हैं। मोदी के सामने यह एक बड़ा मौका रहेगा कि वे एक कारोबारी-प्रधानमंत्री बनकर ट्रम्प से मिलें, या फिर दुनिया के एक इंसाफपसंद इतिहास वाले महान हिन्दुस्तान के उस प्रधानमंत्री की हैसियत से जिससे भविष्य इंसाफ की उम्मीद भी करेगा। आज अगर फिलीस्तीन को गरीब की जमीन के टुकड़े की तरह ट्रम्प नाम का भूमाफिया अपने इजराइली गुंडों के साथ मिलकर कब्जा कर लेता है, और मालिक को ही बेदखल कर देता है, तो दुनिया के बाकी देशों को याद रखना चाहिए कि ट्रम्प के हमलावर तेवर सिर्फ गाजा पर नहीं थमेंगे, वे आगे चारों तरफ बढ़ेंगे, और दुनिया के कोई मुल्क महफूज नहीं रह जाएंगे।
हिन्दुस्तान को तो इंदिरा गांधी का इतिहास भी याद है जिसने अमरीकी सरकार के सारे दबाव के खिलाफ जाकर पाकिस्तान को तोडक़र दो टुकड़े कर दिए थे, और बांग्लादेश बनवा दिया था। उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने भी संसद के भीतर और बाहर इस बात के लिए इंदिरा की जमकर तारीफ की थी। उस वक्त भी अमरीका ने भारत को धमकाने के लिए अपनी नौसेना का सातवां बेड़ा भेज दिया था जिसने आकर लंगर डाला था। लेकिन इंदिरा गांधी ने फौलादी तेवर दिखाए थे। गांधी, नेहरू, इंदिरा, वाजपेयी, इन सबने फिलीस्तीन के बारे में बहुत साफ-साफ नजरिया रखा था, और साफ जुबान सार्वजनिक रूप से बोली थी। दुनिया का इतिहास साफगोई से लिखा जाता है, और लोगों को चुनावी कामयाबी से परे इंसाफ की फिक्र भी करनी चाहिए, और दुनिया के इतिहास में बेहतर तरीके से अपने जिक्र की भी।
फिलहाल ट्रम्प अपने अपनी ही किस्म के सनकी और तानाशाह बेदिमाग और बददिमाग साथियों के साथ पूरी दुनिया पर हमला कर रहा है, और यह हमला जाने कब थम पाएगा। अमरीका में ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी पता नहीं आज फिक्रमंद होगी या नहीं, लेकिन पूरी दुनिया में ट्रम्प ने जो उथल-पुथल मचा रखी है, उसी की कल्पना करके किसी ने बहुत पहले यह लाईन लिखी होगी कि चीनी मिट्टी के बर्तनों की दुकान में बिफरे हुए सांड की की गई तोडफ़ोड़। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)