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अदालतों की सीढिय़ों में दम न तोड़ दे घोटालों की जांच?
05-Feb-2025 4:10 PM
अदालतों की सीढिय़ों में दम  न तोड़ दे घोटालों की जांच?

- डॉ. संजय शुक्ला

छत्तीसगढ़ की सियासत और मीडिया में इन दिनों सरकारी भर्ती और  खरीदी संस्थानों में हुए भ्रष्टाचार और घोटालों की सरगर्मियां है। हालिया राज्य सरकार ने पिछले सरकार के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग ‘पीएससी’ के कथित पीएससी परीक्षा घोटाले की जांच का मामला सीबीआई को सौंपा है। सीबीआई जांच में इस परीक्षा से जुड़े घोटालों की तार सीधे तौर पर पीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष एवं अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से जुड़े नजर आ रहे हैं। सीबीआई ने साल 2021 के इस कथित पीएससी घोटाले में फौरी तौर पर आयोग के पूर्व अध्यक्ष सहित सात लोगों को गिरफ्तार किया है आगे कुछ और लोगों के गिरफ्तारी की संभावना है। गौरतलब है कि साल 2023 में इस परीक्षा के रिजल्ट घोषित होने के बाद छत्तीसगढ़ में ही नहीं वरन पूरे देश में रिजल्ट पर उंगलियां उठने लगी थी। पीएससी द्वारा घोषित सूची में राजनेताओं से लेकर खुद पीएससी चेयरमैन, सेक्रेटरी से लेकर अनेक नौकरशाहों के बेटे-बेटियों और नजदीकी रिश्तेदारों का नाम देखकर कड़ी मेहनत करने वाले अभ्यर्थियों और उनके अभिभावकों में काफी तीखी प्रतिक्रिया देखी गई। भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री ननकी राम कंवर सहित 20 अभ्यर्थियों ने इस पूरे मामले को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी।

 हाईकोर्ट ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए 18 चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। दूसरी ओर भाजपा जो उस समय विपक्ष में थी ने बीते विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया तथा अपने संकल्प पत्र में इस कथित घोटाले की सीबीआई जांच कराने का वादा किया था।  राज्य के युवाओं ने भाजपा के इस वादे पर ऐतबार किया तथा अपना वोट भाजपा की झोली में डाल दिया। राज्य की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा ने 'मोदी की गारंटी ' के नाम से प्रचारित अपने इस वादे को पूरा करने में तेजी दिखाई तथा पीएससी घोटाले से जुड़ा मामला सीबीआई को सौंप दिया। जांच से जुड़ी खबरों पर भरोसा करें तो इस परीक्षा में पीएससी के पूर्व अध्यक्ष सहित शीर्ष अधिकारियों ने नियमों को धता बताते हुए परीक्षा से लेकर साक्षात्कार में खुलकर मनमानी किया है। अलबत्ता पीएससी परीक्षा में जिस तरह से आयोग से जुड़े जिम्मेदार लोगों ने परीक्षा की शुचिता और गोपनीयता को तार-तार किया है वह बगैर सत्ता के संरक्षण संभव नहीं है।

राज्य में दूसरे बड़े घोटाले की खबर सरकार अस्पतालों में दवाई से लेकर जांच और उपचार के लिए जरूरी उपकरण, रिएजेंट, किट, ड्रेसिंग मटेरियल की खरीदी सहित स्वास्थ्य विभाग के तमाम भवन निर्माण करने वाली संस्था छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड 'सीजीएम?एससी' से जुड़ी है। गौरतलब है कि यह कॉर्पोरेशन अपने स्थापना के बाद से ही अनेक विवादों में रहा है। हालिया मामला एक दवाई और उपकरण सप्लाई करने वाले एजेंसी 'मोक्षित कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड ' से जुड़ा है जिस पर आरोप है कि उसने पिछली सरकार के दौरान अधिकारियों से मिलीभगत कर  चार सौ करोड़ रूपयों से अधिक का घोटाला किया है। इस मामले की जांच कर रहे आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ‘ ईओडब्ल्यू’ और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ‘सीबी’  की मानें तो सप्लाई एजेंसी ने बिना शासन के अनुमति के 411 करोड़ के रीएजेंट और अन्य सामग्री क?ई गुना ज्यादा कीमत में सप्लाई किया।? ब्लड सैंपल कलेक्शन करने में उपयोग में आने वाली ट्यूब जो बाजार में 8.50 रूपए में उपलब्ध है उसे इस घोटाले में शामिल एजेंसी ने 2 हजार 352 रूपए प्रति नग के दर पर सरकार को बेचा। इसी प्रकार सीजीएम?एससी ने इस दवा सप्लाई एजेंसी को लगभग 200 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए 300 करोड़ रुपए के रीएजेंट प्रदाय करने का आदेश दे दिया जबकि इन स्वास्थ्य केंद्रों में इस रीएजेंट को उपयोग करने वाली सीबीएस मशीन ही नहीं थी।

‘एसीबी’ की जांच जैसे -जैसे आगे बढ़ रही है अनेक चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं जो स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विभाग के लिहाज से बहुत ही अफसोसजनक है। जांच एजेंसियों ने सप्लाई एजेंसी के डायरेक्टर को गिरफ्तार कर लिया है तथा आगे कुछ और लोगों के गिरफ्तार होने और उनसे इस घोटाले में अनेक अहम तथ्य सामने आने की संभावना है। बिलाशक इस घोटाले में अधिकारियों और अनेक रसूखदारों की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। अलबत्ता पिछली सरकार के दौरान भर्ती और खरीदी में हुए घोटालों और भ्रष्टाचार की खबरों ने राज्य के लोगों को भौंचक्का कर दिया है। विचारणीय है कि जिस बड़े पैमाने पर इन दोनों संस्थानों पर भर्ती और मेडिकल खरीदी पर घोटाले का आरोप लग रहे हैं वह छत्तीसगढ़ जैसे विकासशील राज्य के साथ ही युवाओं और जनस्वास्थ्य के लिहाज से चिंताजनक है।

 विडंबना है कि छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य जहां विकास की अपार संभावनाएं है उसके दामन में पिछले वर्षों में भ्रष्टाचार के दाग लगातार लगे हैं। पिछले सरकार के दौरान कथित तौर पर हुए कोयला, शराब और नान घोटाले की आंच सत्ता के गलियारे में धमक रखने वाले नेताओं और वरिष्ठ नौकरशाहों तक पहुंची वहीं यह पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रमुख विपक्षी दल भाजपा का अचूक राजनीतिक हथियार भी बना जिसके चलते कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल गई।बहरहाल बात पीएससी की करें तो इस संस्थान द्वारा साल 2003 में ली गई सिविल सर्विसेज भर्ती परीक्षा भी विवादों में रही है। देश में साल 2005 में सूचना का अधिकार कानून लागू होने के बाद जब इस परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों ने इस कानून के तहत जानकारी मांगी तब पूरे राज्य में तहलका मच गया।? प्रारंभिक परीक्षा में गड़बड़ी पता चलने के बाद मामला हाईकोर्ट में गया जहां से कोर्ट ने चयन सूची और नियुक्ति को निरस्त करने तथा न?ए सिरे से स्केलिंग कर मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के इस आदेश को चयनित अभ्यर्थियों जो कि तब तक राज्य प्रशासनिक सेवा के विभिन्न पदों पर नियुक्त हो चुके थे ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और आदेश के अमल पर स्थगनादेश ले लिया। आज दो दशक बाद भी मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 

अलबत्ता छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद मेडिकल कॉलेज में दाखिले और विभिन्न सरकारी नौकरियों में धांधलियों और भ्रष्टाचार के तमाम मामले उजागर होने के बावजूद अब तक किसी भी मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हुई है फलस्वरूप लोगों का भरोसा परीक्षा संस्थानों से लगातार उठ रहा है। दरअसल राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के कारण भर्ती परीक्षाओं में संलिप्त गिरोहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होने के कारण यह गोरखधंधा खूब फल-फूल रहा है। विडंबना यह कि भर्ती परीक्षाओं में जारी भ्रष्टाचार, भाई - भतीजावाद और सिफारिश का सबसे ज्यादा खामियाजा मेहनती और मेधावी प्रतिभाओं को भोगना पड़ रहा है। मामलों पर गौर करें तो भर्ती घोटालों के पीछे एक संगठित रैकेट काम करता है जिसमें चयन संस्थानों के ओहदेदारों के साथ परीक्षा प्रश्नपत्र तैयार करने और साक्षात्कार लेने वाले सदस्य लिप्त रहते हैं । परीक्षा माफियाओं को मिल रहे राजनीतिक और प्रशासनिक प्रश्रय का परिणाम है कि देश के करोड़ों युवाओं का करियर दांव में लग रहा है तथा उनके सालों के मेहनत पर पानी फेर रहा है। भर्ती परीक्षाओं में धांधलियों का सबसे ज्यादा असर उन गरीब और मेधावी विद्यार्थियों पर पड़ता है जिनके अभिभावक अपने बच्चे के भविष्य गढऩे के लिए अपना पेट काटकर या कर्ज लेकर उन्हें मोटी फीस वाली कोचिंग दिलाते हैं।

बहरहाल सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली भर्ती परीक्षाओं में भ्रष्टाचार और भाई - भतीजावाद का असर हमारे प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था में परिलक्षित हो रहा है। विचारणीय है कि ऐसे आवेदक जो सिफारिश या मोटी रिश्वत के बलबूते दाखिला या नौकरी पाते हैं आखिरकार वह अपनी नौकरी और पेशे में कितना काबिल और ईमानदार होगा? इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। दरअसल देश में भ्रष्टाचार और व्यवसायिक लूट की बुनियाद दरअसल ये भर्ती परीक्षाएं बन रही है जिसमें अपात्र लोगों का चयन धनबल या पहुंच के जरिए हो जाता है।

अलबत्ता प्रदेश के वर्तमान विष्णु देव सरकार ने सत्ता संभालते ही प्रदेशवासियों को भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाएगी। सरकार के इस घोषणा का असर पीएससी के सिविल सेवा परीक्षा 2023 के रिजल्ट में परिलक्षित हुआ है।? इस परीक्षा के चयन सूची पर गौर करें तो इसमें अधिकांश अभ्यर्थी ग्रामीण या सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के हैं लिहाजा युवाओं का भरोसा राज्य सरकार के दावों  के प्रति जागा है। बहरहाल इस भरोसे के परिप्रेक्ष्य में पीएससी समेत सभी घोटालों की जांच को अंजाम तक पहुंचाना होगा अन्यथा यह जांच भी अदालतों की सीढिय़ों में दम न तोड़ दे लिहाजा सरकार और जांच एजेंसियों को इस दिशा में दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित करनी होगी।

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