अमरीका के नए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की बरसों से चली आ रही घोषणा के मुताबिक उन्होंने अमरीका में रह रहे दूसरे देशों के अवैध घुसपैठियों, और आप्रवासियों को निकालना शुरू किया है। इसके तहत कुछ दूसरे देशों में भी वहां के नागरिकों को ले जाकर छोड़ा गया है, और अब से कुछ देर बाद भारत के सौ से अधिक लोगों को अमृतसर में उतारा जाएगा। पहली बार दूसरे देशों के लोगों को अमरीकी वायुसेना का विमान छोडऩे जा रहा है, और भारत लाए जा रहे लोगों की तस्वीरें बताती हैं कि उन्हें हथकडिय़ों और बेडिय़ों से बांधकर लाया जा रहा है। भारत सरकार ने अमरीकी राष्ट्रपति के इस फैसले से सहमति जताई है कि जो भारतीय वहां गैरकानूनी तरीके से घुसे हैं, या रह रहे हैं, उन्हें भारत वापिस लेगा। यूपीए सरकार में भारत के विदेश राज्यमंत्री रहे हुए, और आज के कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा है कि पिछले बरस भी पिछले अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले से 11 सौ हिन्दुस्तानियों को अमरीका से भारत पहुंचाया गया था। शशि थरूर का कहना है कि अमरीका में बिना कानूनी कागजात के सवा सात लाख भारतीय वहां से निकाले जाने के लायक हैं। उन्होंने कल अमरीकी विमान आने की खबरों के बीच यह कहा कि पिछले चार बरस में अमरीकी अधिकारियों ने मैक्सिको और कनाडा की सरहद पर अमरीका घुसने की कोशिश करते दो लाख हिन्दुस्तानियों को गिरफ्तार किया है। शशि थरूर ने कहा कि अगर ये भारतीय नागरिक हैं, तो भारत सरकार की जिम्मेदारी है उन्हें वापिस लेना, इस बारे में कोई बहस नहीं हो सकती। यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि शशि थरूर ने दशकों तक संयुक्त राष्ट्र संघ में काम किया है, और वे अंतरराष्ट्रीय नियमों के खासे जानकार भी हैं। साथ ही भारतीय विदेश राज्यमंत्री रहते हुए वे इस बारे में भारत की नीति से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। अब यह भारत के लिए कितनी राहत की बात है, या कितनी फिक्र की बात है, यह तो भारत सरकार को समझना होगा, और चूंकि अभी संसद का सत्र चल रहा है, तो उसे वहां भी बताना होगा, या कम से कम हमारी उम्मीद है कि उसे इस बारे में संसद में बयान देना चाहिए।
यह सब उस वक्त हो रहा है जब भारत में भी यहां दूसरे देशों से, खासकर पड़ोस के लगे हुए देशों से आकर बस गए अवैध घुसपैठियों या आप्रवासियों को निकालने की सरकारी मुहिम भी चल रही है, लेकिन वह बहुत काम नहीं कर पा रही है। कल ही सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर असम और केन्द्र सरकार को फटकार लगाई है कि जिन लोगों को विदेशी घोषित किया जा चुका है, उन्हें देश से निकाला क्यों नहीं जा रहा है, और उन्हें अनिश्चितकाल तक हिरासत केन्द्रों में क्यों रखा जा रहा है? अदालत ने असम सरकार से पूछा कि क्या वह इन्हें निकालने के किसी मुहूर्त का इंतजार कर रही है? सुप्रीम कोर्ट ने इस राज्य सरकार से कहा है कि इन लोगों को दो हफ्ते में निकालना शुरू किया जाए क्योंकि ऐसे कैम्पों में अनिश्चितकालीन हिरासत लोगों के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है। दिलचस्प बात यह सामने आई कि असम सरकार ने यह तर्क दिया है कि इनका निर्वासन संभव नहीं है क्योंकि अवैध आप्रवासियों के मूल देशों का पता नहीं है। भारत में ऐसे बसे हुए अधिकतर लोग बांग्लादेश से आए हुए हैं, जो कि कुछ पीढ़ी पहले भी आए हैं, और उसके बाद से लगातार आना जारी रहा है। इनमें पाकिस्तान से भारत आकर वापिस न लौटने वाले लोग भी हैं, म्यांमार से जान बचाकर भागे हुए रोहिंग्या भी हैं, और हो सकता है कि कम संख्या में श्रीलंका या नेपाल जैसे देशों से आए हुए लोग भी यहां पर हों। भारत में नेपाल और तिब्बत के लोगों के लिए एक खास दर्जा यहां रखा है, लेकिन भारत की शरणार्थी नीति पर अधिक चर्चा करना आज का मकसद नहीं है, आज का मुद्दा तो अमरीका ही है।
अब अमरीकी सरकार की नजर से देखें, तो उसने वहां अवैध रूप से रह रहे सभी देशों के लोगों को निकालना शुरू किया है। इनमें लाखों ऐसे लोग हैं जो अमरीकी जेलों में कैद हैं, और वहां उन पर सरकार का खर्च हो रहा है। आज ही सुबह की खबर है कि अमरीका आसपास के कुछ दूसरे देशों से यह चर्चा भी कर रहा है कि अमरीकी जेलों के कैदियों को वे देश अपने यहां रखें। इससे हो सकता है कि अमरीका का खर्च घट जाए, और उन देशों को कुछ रोजगार और कमाई मिलने लगे। एक सेंट्रल अमरीकी देश अल सल्वाडोर ने अभी अमरीकी विदेशी मंत्री से बातचीत में यह सहमति दिखाई है कि वह अमरीका में गैरकानूनी रूप से बसे अपने लोगों को तो वापिस लेगा ही इसके साथ-साथ वह दुनिया के किसी भी देश के अमरीका में बंद मुजरिमों को भी अपनी जेलों में रखने के लिए तैयार है। इसमें अमरीकी नागरिक भी हो सकते हैं जो कि खूंखार और भयानक जुर्म की सजा काट रहे हैं। यह दुनिया में पहला मौका होगा कि कोई देश दूसरे देश के वहां के मुजरिमों को अपनी जेल में रखने को इस तरह खुशी-खुशी तैयार हुआ हो। हालांकि आज का अमरीका का कानून इस बात की इजाजत नहीं देता कि वह अपने नागरिकों को किसी भी तरह देश के बाहर भेजे, चाहे वे सजा काट रहे मुजरिम ही क्यों न हों। अब अल सल्वाडोर एक भुगतान के एवज में किसी भी किस्म के अमरीकी कैदियों को अपनी जेलों में रखने को तैयार है, और वह उम्मीद करता है कि अमरीका से मिलने वाले भुगतान से उसकी जेलें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाएंगी।
डोनल्ड ट्रम्प की अंधड़ की तरह लागू की जा रही नीतियों से पूरी दुनिया के पैर उखड़े हुए हैं। दुनिया भर के शेयर बाजार औंधेमुंह पड़े हैं कि ट्रम्प किसी देश से होने वाले आयात पर टैरिफ लगा देगा। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में भूकम्प आया हुआ है। ऐसे में जब बहुत से देशों में अमरीका से उसके नागरिक लौटेंगे, तो वे वहां पर एक अलग किस्म की समस्या भी रहेंगे। अवैध आप्रवासियों की नागरिकता वाले देश कहां से इतने लोगों के लिए रोजगार-कारोबार लाएंगे, या अमरीका में उनकी गैरकानूनी घुसपैठ या बसाहट पर उनके देशों में क्या कार्रवाई होगी? भारत के सवा सात लाख लोग अगर अमरीका से बेदखल होंगे, तो इतने कामगारों के लिए देश में कैसी जगह बन पाएगी? ऐसे बहुत से सवाल अमरीकी राष्ट्रपति के रातों-रात अमल में लाए जा रहे सनकी फैसलों से उठ रहे हैं, और सच तो यह है कि कल तक अमरीका के दोस्त रहे देशों के पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं है कि ट्रम्प की सनक इन दोस्त-देशों को किस तरह प्रभावित या बर्बाद करेगी। आगे-आगे देखें, होता है क्या।