-अनिल जैन
अगर सोशल मीडिया नहीं होता और लोगों के हाथों में स्मार्ट फोन नहीं होते तो कुंभ में मची भगदड़ के बारे में प्रधानमंत्री से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनका पूरा प्रशासनिक अमले की ओर से यही बताया जाता जो उत्तर प्रदेश पुलिस के एक अधिकारी ने बताया- ‘कोई भगदड़ नहीं हुई, भीड़ भाड़ के कारण कुछ श्रद्धालु घायल हो गए हैं।’ या फिर यह दिया जाता कि इतने बड़े आयोजन और भीड़ में छोटी-मोटी घटनाएं तो होती रहती हैं, जैसा कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मत्स्य पालन मंत्री संजय निषाद ने कहा।
कथित मुख्यधारा के मीडिया से तो अपेक्षा की ही नहीं जा सकती कि वह सरकारी खबर से अलग कुछ दिखाए। उसे सख्त हिदायत दी गई थी कि वही दिखाए और छापे जो प्रशासन कह रहा है। एकाध अपवाद को छोड़ कर लगभग समूचे मीडिया ने आज्ञाकारी बालक की तरह वैसा ही किया।
यह तो भला हो उन यूट्यूब पत्रकारों का जिनकी वजह से हादसे के कई घंटों बाद राज्य सरकार और मीडिया को यह बताने के लिए मजबूर होना पड़ा कि 30 लोगों की मौत हुई है और 90 लोग घायल हुए हैं। हालांकि ये आंकड़े भी हकीकत से परे हैं, क्योंकि विभिन्न माध्यमों से घटनास्थल के जो वीडियो आ रहे हैं, वे दिल दहला देने वाले हैं।
उन वीडियो में जिस तरह लोग मृत और घायल अवस्था में जमीन पर पड़े हुए हैं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हताहतों की संख्या सरकार और मीडिया के बताए आंकड़े से कहीं ज्यादा है। इलाहाबाद निवासी कुछ पत्रकार मित्रों ने भी अपने प्रशासनिक सूत्रों के हवाले से बताया कि सैकड़ों लोग मारे गए हैं।
यह आंकड़ा भी सिर्फ संगम पर हुई भगदड़ का है। जी हाँ, सिर्फ संगम पर हुई भगदड़ का! इस भगदड़ के कुछ घंटों बाद एक भगदड़ और भी हुई, जिस पर प्रशासन और पालतू मीडिया ने आपराधिक चुप्पी साध रखी है।
यह दूसरी भगदड़ संगम से करीब दो किलोमीटर मीटर दूर झूंसी इलाके में हुई, जिसमें भी प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक कई लोग मारे गए हैं और बेहिसाब लोग बुरी तरह घायल हुए हैं।
उस भगदड़ स्थल के दृश्य भी विचलित कर देने वाले हैं। वहां भारी मात्रा में बिखरे लोगों के कपड़े-लत्ते, चप्पल-जूते और अन्य सामान को जेसीबी से साफ़ किया जा रहा है।