दोनों पार्टियां देख रही हैं, गांठ के पूरे
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस, और भाजपा में मेयर-पार्षद प्रत्याशियों के नामों पर मंथन चल रहा है। कांग्रेस ने सभी निकायों में पर्यवेक्षक भेजे हैं, जो कि स्थानीय संगठन, विधायक या पराजित प्रत्याशियों से चर्चा कर दावेदारों के नामों पर चर्चा कर रहे हैं।
कांग्रेस पर्यवेक्षक दावेदारों से एक सवाल जरूर कर रहे हैं कि आप कितना खर्च कर सकेंगे? साथ ही उन्हें बता दे रहे हैं कि पार्टी किसी तरह आर्थिक मदद नहीं करेगी, उन्हें चुनाव खर्च खुद करना होगा। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की चर्चा हो रही है।
भाजपा में मेयर टिकट के दावेदारों से सामाजिक, और राजनीतिक समीकरण के अलावा उनकी आर्थिक ताकत को लेकर भी जानकारी ली जा रही है। संकेत साफ है कि कांग्रेस, और भाजपा में जो भी चुनाव मैदान में उतरेंगे वो आर्थिक रूप से मजबूत होंगे।
दिलचस्प बात यह है कि पार्षद प्रत्याशी के लिए खर्च की कोई सीमा नहीं है। जबकि मेयर प्रत्याशी अधिकतम 10 लाख, नगर पालिका अध्यक्ष पांच लाख, और नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी तीन लाख तक ही खर्च कर सकेंगे। ये अलग बात है कि चुनाव में निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च होता है।
इतने रेट में ऐसाइच मिलेंगा
सरकार के निर्माण विभागों में रोजाना घपले-घोटाले के प्रकरण सामने आ रहे हैं। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की मुख्य वजह भी यही रही है। मुकेश चंद्राकर ने पीडब्ल्यूडी के सडक़ निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। जानकार लोग घटिया निर्माण के लिए सरकार की पॉलिसी को भी काफी हद तक जिम्मेदार मान रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सरकारी ठेकों में प्रतिस्पर्धा काफी ज्यादा है। हाल यह है कि ठेकेदार एसओआर रेट से 30-35 फीसदी तक कम में काम करने के लिए तैयार रहते हैं। इस वजह से निर्माण कार्यों में गुणवत्ता नहीं रह जा रही है। इससे परे ओडिशा सरकार ने नियम बना दिया है कि एसओआर दर से 15 फीसदी कम रेट नहीं भरे जा सकेंगे। टेंडर हासिल करने के लिए इससे ज्यादा कम रेट भरा नहीं जा सकता है। बराबर रेट भरे होने की दशा में लॉटरी निकालकर टेंडर दिए जा सकते हैं।
वेतन आयोग और 7 राज्यों के चुनाव
बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने उम्मीद से विपरीत आठवें वेतन आयोग के गठन का फैसला किया। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया थाकि यह कैबिनेट का निर्धारित एजेंडे में नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलग से यह प्रस्ताव रखा। यह केंद्र और राज्य सरकारों के करोड़ों कार्मिकों के लिए नए वर्ष की शुरूआत में ही खुशखबरी रही। मगर जिस प्रधानमंत्री ने दो वर्ष पहले यह कह दिया हो कि अब नया वेतन आयोग नहीं बनेगा। उसका ऐसा न्यू ईयर गिफ्ट , बिना रिटर्न गिफ्ट के मिले यह संभव नहीं। यह रिटर्न गिफ्ट कार्मिकों को वोट के रूप में देना होगा। इसलिए तो घोषणा की । इस वर्ष केंद्र सरकार के नजरिए से दो अहम राज्यों पहले दिल्ली और फिर बिहार के चुनाव होने हैं। जाहिर हैं वोट बैंक ये कर्मचारी ही होंगे। पहले नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली इलाकों में बड़ी संख्या में मतदाताओं पर पडऩे वाला है। ये सरकारी कर्मचारी मध्य और दक्षिण दिल्ली में चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। ऐसा ही गणित बिहार में भी है । झारखण्ड गंवाने के बाद सुशासन बाबू (नीतिश कुमार)की दलबदलू वाली नकारात्मक छवि से निपटने वेतन आयोग ही कारगर हो सकता है?। और अगले वर्ष 2026 में आयोग की रिपोर्ट आने के दौरान केरल,पुडुचेरी ,तमिलनाडु, असम के बाद पश्चिम बंगाल में भी चुनावी खेला होना है।यह उसी की तैयारी है। नए वेतन आयोग से हजारों कर्मचारियों, पेंशनभोगियों और रक्षा कर्मियों को लाभ होगा।
इससे पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व.मनमोहन सिंह ने 2014 में भी लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले फरवरी में सातवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उस आयोग ने 2.57 गुना फिटमेंट फैक्टर की सिफारिश की थी। और वेतन मैट्रिक्स 1 में वेतन 7000 रुपये से बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति माह किया गया था। वर्तमान सरकार आने वाले हफ्तों में थोड़ी अधिक बढ़ोतरी कर सकती है। आम तौर पर वेतन पैनल का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जिसमें सेवानिवृत्त सचिव और वरिष्ठ अर्थशास्त्री इसके सदस्य होते हैं। सातवें वेतन आयोग के कारण 2016-17 के दौरान एक लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हुआ।
बाघों के लिए बचाएं जंगल
वन्यप्राणियों, विशेषकर बाघों के संदर्भ में छत्तीसगढ़ में कुछ असामान्य गतिविधियां दिख रही हैं। बारनवापारा में एक बाघ कहीं से आ गया। यहां तेंदुआ तो हैं, पर बाघ पहली बार देखा गया। उसे बाद में गुरु घासीदास अभयारण्य में ले जाकर छोड़ दिया गया। इसके बाद करीब एक पखवाड़े तक मरवाही वन मंडल और अचानकमार अभयारण्य में एक गर्भवती बाघिन विचरण कर रही थी। वह घूमते, फिरते भटकते भनवारटंक के पास आ गई, जो उसलापुर-कटनी रेल मार्ग में पड़ता है। यह बाघिन कुछ दिन बाद अमरकंटक की तराई में दिखी। फिर उसे कटनी मार्ग पर ही शहडोल के पास देखा गया। अभी उसका कुछ पता नहीं है। अब एक बाघ को साजा के रिहायशी इलाके में पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे के फार्म हाउस के पास पाया गया। बाघ किसी को नजर नहीं आया लेकिन पंजों के निशान से वन विभाग ने बाघ की पुष्टि की है। जिला प्रशासन और वन विभाग ने अलर्ट भी जारी किया है।
ये खबरें उसी दौरान आ रही हैं जब दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में जंगल का 3 प्रतिशत विस्तार हो गया है। यह विस्तार हुआ है तो बाघ-बाघिनों को इतना भटकना क्यों पड़ रहा है? विस्तार के दावे को कई पर्यावरण प्रेमियों ने तथ्यों के साथ नकारा भी है। बाघों का मनुष्यों की आबादी के बीच दिखना कौतूहल और सनसनी की बात जरूर हो सकती है लेकिन इन जीवों को किस तरह से अपना अस्तित्व बचाने की चिंता सता रही है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। सुकून भरा घना जंगल मिले, जहां इनके लिए पर्याप्त आहार हों, तो ये शायद हमें नहीं दिखेंगे। बाघ एक शीर्ष मांसाहारी जीव है। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उनका होना बहुत जरूरी है। जिस जंगल में बाघ होते हैं, माना जाता है कि वह तस्करों से सुरक्षित रहता है। पर जब ये ही जंगल छोड़ रहे हों तो गहरी चिंता होनी चाहिए। विडंबना है, जंगल बचाने वाले बाघों के लिए जंगल नहीं बच रहे।
भविष्य ही जोखिम भरा, जान की क्या परवाह..
बीएड प्रशिक्षित विरोध कर रहे हैं, जब उन्हें राजधानी रायपुर के तूता स्थित धरनास्थल से उठाकर ले जाया जा रहा है। अदालती आदेश के बाद इनकी नौकरी छिन गई है। नौकरी देने के बाद 2900 लोग हटा दिए गए हैं। हजारों पद शिक्षकों के खाली है, समायोजन की मांग कर रहे हैं। अपनी कोई राय नहीं। बस, तस्वीर देख लीजिए।