अमेरिका से राष्ट्रपति जो बाइडन की विदाई होने जा रही है और 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति की कमान संभालने जा रहे हैं।
इस चलाचली के समय बाइडन प्रशासन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भारत के दौरे पर आए थे और उन्होंने एक अहम घोषणा की। इस घोषणा को भारत के लिए काफ़ी ख़ास माना जा रहा है।
सोमवार को जेक सुलिवन ने नई दिल्ली में कहा कि अमेरिका जल्द ही इंडियन साइंटिफिक एंड न्यूक्लियर एंटिटीज को प्रतिबंधित लिस्ट से बाहर कर देगा।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने जिस नागरिक परमाणु समझौते पर मुहर लगाई थी, उसी के तहत जेक सुलिवन ने यह घोषणा की है।
जेक सुलिवन ने दिल्ली स्थित आईआईटी में कहा कि अमेरिका और भारत के बीच न्यूक्लियर सेक्टर में सहयोग बहुत ही मज़बूत स्तर पर पहुँच गया है।
अमेरिकी एनएसए ने क्या-क्या कहा?
जेक सुलिवन ने कहा, ‘मैं आज घोषणा कर सकता हूँ कि अमेरिका अब उन ज़रूरी क़दमों को उठाने जा रहा है, जिनसे नागरिक परमाणु सहयोग में दोनों देशों की कंपनियों के बीच जो बाधाएं थीं, उन्हें ख़त्म किया जा सके। इस पर अंतिम फ़ैसला जल्द ही होगा।’
अब भारत की कंपनियों पर परमाणु सहयोग के लिए अमेरिका का कोई प्रतिबंध नहीं होगा। कहा जा रहा है कि भारतीय कंपनियों के लिए यह बड़ी घोषणा है।
जेक सुलिवन ने कहा कि अमेरिका के निजी क्षेत्र, वैज्ञानिक और टेक्नोलॉजिस्ट भारतीय कंपनियों के साथ अब मिलकर काम कर सकते हैं। सुलिवन ने कहा कि दोनों देशों के बीच नागरिक परमाणु सहयोग अब बढ़ेगा।
जेक सुलिवन ने कहा, ‘हालांकि जॉर्ज बुश और मनमोहन सिंह ने 20 साल पहले नागरिक परमाणु सहयोग की मज़बूत बुनियाद रख दी थी।’
जेक सुलिवन जब ये बातें कह रहे थे तो उनके साथ भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी थे। जयशंकर ने कहा, ‘भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक रणनीतिक साझेदारी नई ऊंचाई पर पहुँच गई है। इनमें तकनीक, रक्षा, अंतरिक्ष, बायोटेक्नॉलजी और एआई भी शामिल हैं।’
सुलिवन के दौरे की अहमियत
जेक सुलिवन ने एनएसए के तौर पर अपने आखिरी दौरे में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी मुलाकात की।
जेक सुलिवन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुलाकात की थी और इसे असामान्य माना जा रहा है।
दरअसल जेक सुलिवन अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के एक अधिकारी की हैसियत रखते हैं और उनकी मुलाक़ात पीएम मोदी से हुई।
अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मुक्तदर खान ने पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ कमर चीमा से बातचीत में कहा, ‘मैं सोचता हूं कि मोदी ने जेक सुलिवन से मुलाकात क्यों की? अमेरिका में एनएसए का ओहदा एक अधिकारी से ज़्यादा नहीं होता है। आप सोचिए कि अजित डोभाल अमेरिका जाते हैं तो क्या बाइडन से मुलाकात होगी? असंभव है।’
मुक्तदर खान कहते हैं, ‘एक बड़ी प्रगति ज़रूर हुई है। भारत के जो निजी क्षेत्र के परमाणु प्रतिष्ठान थे, उन्हें अमेरिका ने परमाणु अप्रसार की सूची से निकाल दिया है। भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। इसका असर यह होगा कि भारत का प्राइवेट सेक्टर अब परमाणु और मिसाइल के मामलों में अमेरिकी कंपनियों से सीधे डील कर पाएगा। अब भारत की कंपनियां वहाँ जाकर रिसर्च भी कर सकती हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तान को देखिए तो अमेरिका ने उनके मिसाइल प्रोग्राम पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं भारत को प्रतिबंध की लिस्ट से बाहर निकाल दिया है।’
मुक्तदर खान ने कहा, ‘व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर जाइए तो जेक सुलिवन के दौरे को इस रूप में बताया जा रहा है कि पिछले चार सालों में दोनों देशों के बीच सहयोग को अंतिम रूप दिया जा रहा है। बाइडन प्रशासन ने एक रोडमैप तैयार कर दिया है। दोनों देश सेमीकंडक्टर और एआई पर फोकस कर रहे हैं। इसे इस रूप में भी देख सकते हैं कि भारत का माइंड और अमेरिका का कैपिटल साथ मिलकर काम करेगा। बाइडन प्रशासन में दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग बढ़ा है।’
मुकतदर खान कहते हैं, ‘मेरे लिए यह पहेली की तरह है कि भारत के मामले को ब्लिंकन के बदले जेक सुलिवन क्यों डील कर रहे हैं? ब्लिंकन दक्षिण कोरिया गए लेकिन भारत नहीं आए। मेरा मानना है कि दुनिया में अभी तीन सबसे अहम देश हैं। अमेरिका, चीन और भारत। ट्रंप का रुख भी भारत के लिए सकारात्मक ही रहेगा। बाइडन ने तो जाते-जाते जापान को झटका दे दिया है। नीपॉन स्टील को जिस तरह टारगेट किया है, वह चौंकाने वाला है। जेक सुलिवन कोई डिप्लोमैट नहीं हैं लेकिन भारत को वही हैंडल कर रहे हैं।’
भारत और अमेरिका का पुराना कऱार
समाचार एजेंसी रॉयर्टस ने लिखा है कि 2000 के दशक से ही भारत अमेरिकी न्यूक्लियर रिएक्टर की आपूर्ति के लिए बातचीत कर रहा था।
भारत को भविष्य में ऊर्जा की जरूरतें और बढ़ेंगी। मनमोहन सिंह और जॉर्ज बुश ने 2007 में असैन्य परमाणु कऱार किया था और इसका लक्ष्य यही था कि अमेरिकी न्यूक्लियर रिएक्टर की सप्लाई हो।
दोनों देशों के बीच बाधा इस बात पर थी कि वैश्विक नियमों की कसौटी पर भारत के समझौते को कैसे कसा जाए। इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी कि अगर कोई परमाणु दुर्घटना होती है तो उसकी जवाबदेही ऑपरेटर की होगी या न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने वाले की। अगर ऑपरेटर पर होगी तो इसकी जि़म्मेदारी भारत पर आएगी और न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने वाले की होगी तो अमेरिका की होगी।
हालांकि अब भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि दुर्घटना की स्थिति में जवाबदेही किसकी होगी। जेक सुलिवन ने कहा है कि इस संदर्भ में औपचारिकताएं जल्द ही पूरी कर ली जाएंगी।
रॉयटर्स के अनुसार, 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया था तब अमेरिका ने भारत की 200 से अधिक कंपनियों पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन समय के साथ कई कंपनियों से पाबंदी हटा दी गई थी।
अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय की सूची में अब भी भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग से जुड़ी चार एंटीटीज़ और कुछ भारतीय परमाणु रिएक्टर के साथ ही परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर पाबंदी हैं।
रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है कि परमाणु हादसों के लिए मुआवज़ों को लेकर भारत में कड़े क़ानून हैं। इसने अतीत में कई विदेशी पावर प्लांट बिल्डर्स के साथ भारत के सौदों को नुक़सान पहुंचाया है। ये रिपोर्ट कहती है कि भारत ने साल 2020 तक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से अतिरिक्त 20 हज़ार मेगावॉट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा था, जिसे अब 2030 तक के लिए टाल दिया गया है।
साल 2019 में भारत और अमेरिका के बीच भारत में छह अमेरिकी परमाणु संयंत्र लगाने पर रज़ामंदी हुई थी। इसके बाद वर्ष 2022 में दोनों देशों ने सेमीकंडक्टर उत्पादन और आर्टिफि़शियल इंटेलिजेंस पर काम करने के लिए भी एक तकनीकी पहल शुरू की थी।
इस समझौते ने अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक और भारत के हिंदुस्तान एरोनोटिक्स के बीच भारत में जेट इंजन बनाने के लिए हुई साझेदारी में अहम भूमिका निभाई।
ऐसा माना जा रहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से निपटने के लिए भारत और अमेरिका के बीच करीबी पिछले कुछ समय में बढ़ी है। बीते साल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राजकीय भोज का आयोजन किया था।
लेकिन एक साल पहले अमेरिका ने सिख नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजि़श में भारत के अधिकारियों के शामिल होने के आरोप लगाए और इस मामले में एक भारतीय नागरिक को गिरफ़्तार भी किया। इसकी वजह से दोनों देशों के संबंधों में थोड़ा तनाव भी दिखा। (bbc.com/hindi)