-हिमांशु दुबे और अभय सिंह
कनाडा चर्चा में है। कारण हैं वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो। उन्होंने सोमवार (स्थानीय समय के मुताबिक़) को सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नेता पद और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
ट्रूडो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने इस्तीफ़े की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वो पार्टी के नेता के तौर पर इस्तीफ़ा देते हैं और अगला नेता चुने जाने के बाद वो पीएम पद छोड़ देंगे।
वैसे पीएम जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफ़ा देने का भारत पर क्या असर पड़ेगा? क्या भारत को इससे ख़ुश होना चाहिए? लिबरल पार्टी का नया नेता भारत के लिए कैसा साबित होगा?
ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए बीबीसी हिंदी ने अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मामलों के जानकारों से बातचीत की। विशेषज्ञ मानते हैं कि जस्टिन ट्रूडो के हटने से संबंध बेहतर होने की उम्मीद है।
क्या भारत को ख़ुश होना चाहिए?
ये बिलकुल स्पष्ट था कि जब तक ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहेंगे, तब तक भारत-कनाडा के संबंधों में नया मोड़ जिसकी ज़रूरत है, वो नहीं आ पाएगा।’
यह कहना है प्रोफ़ेसर हर्ष वी। पंत का, जो नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं।
उन्होंने कहा, ‘ट्रूडो ने इसे निजी तौर पर ले लिया था और जिस तरह की संजीदगी इस मुद्दे पर चाहिए थी, वो नहीं दिखा रहे थे। उससे दोनों देशों के बीच के संबंधों में काफ़ी नुक़सान हुआ।’
दरअसल, जस्टिन ट्रूडो पिछले कुछ समय से भारत विरोधी बयानबाज़ी कर रहे थे। इस बीच, कनाडा ने स्टूडेंट वीज़ा से जुड़ा एक फ़ैसला लिया था, जिससे भारतीय स्टूडेंट्स की दिक्कतें बढ़ गई थीं।
यही वजह है कि भारत और कनाडा के बीच तनाव देखने को मिल रहा है।
वॉशिंगटन डीसी के विल्सन सेंटर थिंक टैंक में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन भी भारत और कनाडा के संबंधों को लेकर यही राय रखते हैं।
उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘ट्रूडो का इस्तीफ़ा भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंधों को स्थिर करने का मौका दे सकता है।’
‘नई दिल्ली ने द्विपक्षीय संबंधों में गहराई तक फैली समस्याओं के लिए सीधे तौर पर ट्रूडो को जि़म्मेदार ठहराया है। हाल के वर्षों में कनाडा एकमात्र पश्चिमी देश है, जिसके भारत के साथ संबंध लगातार खऱाब हुए हैं।’
क्या अब बदलेंगे कूटनीतिक संबंध?
तो क्या अब बदल जाएंगे भारत और कनाडा के कूटनीतिक संबंध? इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं कि जब भी इस तरह का बदलाव होता है, तो बदलाव की उम्मीद तो होती है।
उन्होंने कहा, ‘जब नया प्रशासन आएगा, वो नई शुरुआत करेगा। और नए प्रधानमंत्री और नए प्रशासन से एक नई उम्मीद तो रहती है। लेकिन, यह ज़रूर है कि लिबरल पार्टी की भी अपनी चुनौतियाँ हैं।’
‘अक्टूबर में चुनाव होने हैं। तो चुनावों में तो काफ़ी समय है। और लिबरल पार्टी की जो सीटें हैं, उसमें भी कई ऐसे नेता हैं, जो सिख कम्युनिटी से आते हैं।’
‘और जो रेडिकल सिख कम्युनिटी बिहेवियर को सपोर्ट करते रहे हैं। तो मुझे लगता है कि कोई इतनी बड़ी उम्मीद करना, थोड़ा अस्वाभाविक बात होगी।’
‘जब तक चुनाव नहीं हो जाते, तब तक मुझे लगता है कि यह समस्या बनी रहेगी। क्योंकि, लिबरल पार्टी को तो अपनी सीटों को बनाकर रखना पड़ेगा, फिर चाहे ट्रूडो लीड करे या कोई और लीड करे।’
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल की राय भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘ट्रूडो ने अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया, जो अच्छी बात है।’
‘उन्होंने अपनी ग़ैर-जि़म्मेदार नीतियों से भारत-कनाडा संबंधों को नुक़सान पहुंचाया। लेकिन, कनाडा में सिख उग्रवाद की समस्या ख़त्म नहीं होगी, क्योंकि इन तत्वों ने कनाडा की राजनीतिक प्रणाली में गहरी पैठ बना ली है।’
क्या कंजर्वेटिव के आने से बेहतर होंगे रिश्ते?
ऐसे में सवाल उठता है कि कनाडा में अगर कंजर्वेटिव पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनता है तो क्या उसका व्यवहार भारत के लिए अलग होगा?
प्रोफेसर पंत कहते हैं, ‘बिल्कुल, मुझे लगता है कि ऐसा होगा। क्योंकि, ट्रूडो से पहले आप स्टीफन हार्पर की बात करें, जो एक कंज़र्वेटिव कार्यकाल था, तब भारत-कनाडा के संबंधों ने एक नया आयाम लिया था।’
‘ट्रूडो के आने से बिल्कुल पहले, प्रधानमंत्री मोदी वहां गए थे। तब स्टीफन हार्पर वहां के प्रधानमंत्री थे। और दोनों देशों के बीच एक बहुत बड़ी साझेदारी का खाका तैयार किया गया था।’
‘फिर ट्रूडो आए। उन्होंने अपने हिसाब से चीज़ें कीं, जिसका नुकसान भारत-कनाडा संबंधों को हुआ। मुझे लगता है कि कंजर्वेटिव आते हैं, तो भारत-कनाडा के संबंधों को फायदा होना चाहिए।’
हालांकि, प्रोफे़सर पंत का यह भी कहना है कि ऐसा मानना कि जो समस्याएं हैं, उनको पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाएगा, तो ऐसा नहीं होगा।
उन्होंने कहा, ‘ये समस्याएं तो बनी रहेंगी। लेकिन, उस समस्या को किस तरह से हैंडल किया जाता है, वो महत्वपूर्ण है। खासतौर पर उन देशों के लिए, जो खुद को स्ट्रेटेजिक पार्टनर कहते हैं।’
क्या ट्रूडो की विदेश नीति ने खेल बिगाड़ा?
क्या ट्रूडो की विदेश नीति उन पर भारी पड़ गई? इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर पंत ने कहा कि देखिए, इनका (ट्रूडो) जो राजनीतिक पतन हुआ, वो अंदरूनी कारणों से ही होता है।
उन्होंने कहा, ‘यह जरूर है कि जब इनको लगा कि मैं राजनीति में कमजोर हो रहा हूं, तो इन्होंने कोशिश की कि विदेश नीति में कुछ नया किया जाए। जैसे- पहले इन्होंने भारत के साथ तनातनी की।’
‘फिर हाल ही में इन्होंने कहा कि मैं ट्रंप से मिलूंगा। कोशिश करूंगा कि ये टैरिफ कम हो जाएं। तो उसका नतीजा भी हमको देखने को मिला कि किस तरह से यह उन पर भारी पड़ा।’
पंत ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि ट्रूडो जिस तरह से विदेश नीति के मामले में फ़ेल हुए, इस बात ने कनाडा के मतदाताओं को यह सोचने पर मजबूर किया कि फिलहाल ये नेतृत्व और प्रधानमंत्री हमारे लिए सही नहीं हैं।’
पिछले कुछ समय से जस्टिन ट्रूडो को कनाडा में विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ अपनी पार्टी के नेताओं से भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
इसका एक प्रमाण कनाडा की उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड का प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से टकराव के बाद पद छोडऩा भी माना जा सकता है।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी भी जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे को लेकर कुछ ऐसी ही राय रखते हैं।
उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘कनाडा की तीन अहम दिक्कतें ‘टी’ से शुरू होती हैं- ट्रूडो, टेररिज़्म (जिसका सबसे बड़ा उदाहरण एयर इंडिया बम विस्फोट है), और टैरिफ़।’
‘अब ट्रंप के टैरिफ़ की धमकी ने लगभग एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद ट्रूडो को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया है।’
इस्तीफा देने के बाद क्या बोले ट्रूडो?
जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफ़ा देने के बाद कहा, ‘प्रधानमंत्री के रूप में हर एक दिन सेवा करना मेरे लिए गर्व की बात रही। हमने महामारी के दौरान सेवा की, मज़बूत लोकतंत्र के लिए काम किया, बेहतर कारोबार के लिए काम किया। आप सभी को पता है कि मैं फाइटर हूं।’
उन्होंने कहा, ‘2015 में जब से मैं प्रधानमंत्री बना, तब से कनाडा और इसके हितों की रक्षा के लिए काम कर रहा हूँ। मैंने मध्य वर्ग को मज़बूत करने के लिए काम किया। देश को महामारी के दौरान एक दूसरे का समर्थन करते देखा।’
हालांकि, प्रोफे़सर पंत ने कहा कि यह तो कई समय से चल रहा था कि ट्रूडो को जाना पड़ेगा। यह लिबरल पार्टी के लिए ज़रूरी था। यह कनाडाई राजनीति के लिए ज़रूरी था।
उन्होंने कहा, ‘वहां (कनाडा में) एक तरह से असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। मुझे लगता है कि भारत और कनाडा के संबंधों के लिए भी यह ज़रूरी था।’
‘क्योंकि यह माना जा रहा था कि जितने लंबे समय तक ट्रूडो सत्ता में बने रहेंगे, तो भारत और कनाडा के संबंधों में बदलाव नहीं आ सकता।’
‘उनके जाने के बाद देखना होगा कि भारत और कनाडा के संबंधों में बदलाव कितने जल्दी आते हैं।’
कैसे बिगड़े भारत-कनाडा के रिश्ते?
जून 2023 में 45 साल के ख़ालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा के वैंकूवर के पास बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस हत्या के पीछे भारत का हाथ होने का आरोप लगाया था। इसके बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव बढ़ता चला गया।
फिर अमेरिकी अख़बार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ ने सूत्रों के हवाले से लिखा था कि भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कनाडा में सिख अलगाववादियों के खिलाफ अभियान के ऑर्डर दिए थे।
29 अक्टूबर, 2024 को कनाडा की सरकार के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने देश की नागरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी को बताया कि भारत सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने कनाडाई नागरिकों को धमकी देने या उनकी हत्या के अभियान को मंजूरी दी थी। इसके बाद यह मामला और भी ज़्यादा बिगड़ गया था।
दरअसल, कनाडा में ख़ालिस्तान समर्थकों की ओर से भारत विरोधी प्रदर्शनों का होना और खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव लगातार बढ़ा है।
कनाडा का आरोप है कि ख़ालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है, जबकि भारत इससे इनकार करता रहा है।
भारत और कनाडा के बीच का कारोबार
भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष (2023-2024) में 31 मार्च तक कनाडा और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 8।4 अरब डॉलर का था।
भारत विशेष तौर पर कनाडा में रत्न, ज्वेलरी, महंगे पत्थर, दवाइयां, रेडीमेड कपड़े, ऑर्गेनिक केमिकल और लाइट इंजीनियरिंग गुड्स निर्यात करता है।
वहीं, कनाडा से भारत दाल, न्यूज़प्रिंट, वुड पल्प, एस्बेस्टस, पोटाश, आइरन स्क्रैप, कॉपर और इंडस्ट्रियल केमिकल आयात करता है।
नेशनल इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन एजेंसी (इन्वेस्ट इंडिया) के अनुसार, भारत में विदेशी निवेशकों में कनाडा 18वें नंबर पर है।
2020-21 से 2022-23 में कनाडा का भारत में कुल निवेश 3।31 अरब डॉलर था। वैसे, कनाडा का यह निवेश भारत के कुल एफड़ीआई का आधा प्रतिशत ही है। (bbc.com/hindi)