विशेष रिपोर्ट

कैंसर रोधी दवा के रूप में संजीवनी चावल का ट्रायल शुरू
27-Dec-2024 1:45 PM
कैंसर रोधी दवा के रूप में संजीवनी चावल का ट्रायल शुरू

 टाटा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टरों की सलाह पर डॉक्टर दंपति कौंदकेरा पहुंचा

 महासमुंद के किसान ने खेतों में बोया था

-उत्तरा विदानी

महासमुंद, 27 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कैंसर रोधी दवा के रूप में संजीवनी चावल का उपयोग अब शुरू हो चुका है। एक हफ्ते पहले रायुपर से महासमुंद पहुंचे एक डॉक्टर दंपति से इसकी शुरुआत हुई है। संजीवनी चावल की प्रजाति की खोज इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय रायपुर में हुई है और कौंदकेरा के किसान योगेश्वर चंद्राकर ने इसे अपने खेत के थोड़े से हिस्से में उगाने की शुरुआत की है। हाल ही में संजीवनी कैंसर अस्पताल रायपुर के डॉक्टरों की सुझाव पर डॉक्टर दंपति ने इसे दवा के रूप में शुरू किया है।

नाम न छापने की शर्त पर डॉक्टर दंपति ने बताया कि देशी-विदेशी की दवाईयां खाते-खाते लाखों खर्च हो गए, लेकिन मर्ज पूरी तरह ठीक नहीं हो रहा था। एलोपैथी इलाज से आराम तो मिलता था लेकिन कुछ दिनों के बाद समस्या फिर से उठ खड़ी होती थी। अब उन्होंने संजीवनी चावल की शुरुआत की है। यदि यह उनकी बीमारी ठीक करता है तो विश्व में यह पहली खोज होगी, जो कैंसर को जड़ से खत्म करेगा।

मालूम हो कि ‘छत्तीसगढ़’ ने पहले ही संजीवनी चावल की खेती के बारे में खबर प्रकाशित की थी। योगेश्वर चंद्राकर ने कौंदकेरा स्थित अपने खेत में इसे बोया था। इस खेती को देखने विदेश से कुछ वैज्ञानिक कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिकों के साथ कौंदकेरा पहुंचे थे। एक महीने पहले ही संजीवनी धान पककर तैयार हुआ तो योगेश्वर चंद्राकर ने इसके बीजों को सहेजकर अपने घर में रख लिया।

अभी एक हफ्ते पहले ही यहां रायपुर निवासी एक डॉक्टर दंपति पहुंचे और चावल खरीदा। डॉक्टर दंपत्ति ने पहचान गुप्त रखने की बात कहते बताया-पत्नी को 4 साल पहले ओवेरियन कैंसर का पता चला। दो साल तक संजीवनी अस्पताल रायपुर से उच्च स्तरीय इलाज चला। एलोपैथी दवाईयां दी गई। आराम भी मिला, लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर से लिंफनोड में कैंसर का लक्षण दिखने लगा। इसके बाद एम्स में मौखिक सलाह ली।

न्यूयार्क के डाक्टरों से भी लगातार सलाह लेते रहे। इससे पहले छत्तीसगढ़ केरिजनल और सेंटर डीके अस्पताल में इलाज जारी रहा। कीमो चलाकर देखा। एक साल तक ऐसा चला। कोई रिजल्ट नहीं आया। संजीवनी अस्पताल रायपुर से रंगीन सिटी स्केन में  पता चला कि मर्ज घटने के बजाय बढ़ रहा है। तब जाकर संजीवनी अस्पताल के डॉक्टरों ने सलाह दी कि संजीवनी चावल का उपयोग दवा के  रूप में लेने से कैंसर को जड़ से खत्म किया जा सकता है। इसके बीज राज्य के कुछ किसानों को उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से दिया गया है। वहां से चावल उपलब्ध हो सकता है।

 इसके बाद डॉक्टर दंपति ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय जाकर इसकी पूरी जानकारी ली। उन्होंने बताया कि  ‘छत्तीसगढ़’ अखबार में कौंदकेरा में इसकी खेती के बारे में पढ़ा था, इसलिए गांव को ढूंढते वहां गया और किसान योगेश्वर चंद्राकर से मुलाकात की। उनसे पैकेट बंद 100-100 ग्राम चावल के तीन पैकेट लिए और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डाक्टरों से डोज के बारे में जानकारी ली।

  उन्होंने बताया कि टाटा मेमोरियल अस्पताल के डॉक्टरों ने भाभा रिसर्च सेंटर की सलाह पर बताया है कि मरीज को लगातार दस दिनों तक 10-10 ग्राम चावल लेना है। चावल को पकाना नहीं हैं बल्कि इसे उबलते हुए पानी में भिगाना मात्र है। जब यह पूरी तरह भीग जाए तो इसे दो-दो चम्मच रोज कच्चा ही चबाकर खाना है। दस दिन तक लगातार इसे खाने के बाद अगले बीस दिन तक कोई दवा नहीं लेना है और बीस दिन बाद फिर से दस दिन ऐसा करना है। यह प्रक्रिया तीन महीने तक जारी रखना है। इस बीच कोई दवाई नहीं लेना है।

उन्होंने बताया कि यह केवल एक्सपेरीमेंट है। यदि इसका रिजल्ट वैज्ञानिकों के  उम्मीद अनुसार आता है तो यह विश्व का पहला खोज होगा, जो कैंसर रोगियों के लिए वरदान साबित होगा।

इस मामले में इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर कॉलेज रायपुर का कहना है कि संजीवनी चावल अभी ट्रायल में है। हमने इसके पेटेंट का सोचा है। टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई में भी इसका पैकेट जा रहा है।

  कैैंदकेरा के किसान योगेश्वर चंद्राकर ने बताया कि मुझे खेती किसानी के भिन्न-भिन्न तरीके का बदलाव पसंद है। संजीवनी धान के बारे में भाभा रिसर्च सेंटर का पढ़ा तो इंदिरा गांधी कृषि केन्द्र रायपुर जाकर इसकी पूरी जानकारी ली। वहां के वैज्ञानिकों से सलाह लेकर बीज अपने साथ लाया और इस साल खेत में बो दिया। अभी नया बीज तैयार है। थोड़े से रकबे ही बोया था। इसका चावल मशीन से नहीं निकाला जाता, बल्कि मूसल आदि से कूटकर निकाला जाता है ताकि चावल का बाहरी आवरण बिल्कुल भी नष्ट न हो। इसके बाद इसे 100-100 ग्राम के पैकेट में बंद करके रख लिया और पहला किस्त अभी-अभी जारी किया हूं। यह अभी तो पूरी तरह नि:शुल्क है। यदि रिजल्ट अच्छा आता है आगे एक एकड़ में इसकी बोनी करने की इच्छा है। वास्तव में यदि सक्सेज होता है तो विश्व का पहला खोज होगा जो कैंसर रोधी है।

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