धरती पर जब भूकम्प आता है तो उसके पीछे धरती के नीचे की टेक्टॉनिक प्लेट खिसकने की वजह रहती है। धरती की ऊपर की सतह बहुत मोटी नहीं रहती, और उसके नीचे ये प्लेट्स किसी पहेली के टुकड़ों की तरह एक-दूसरे पर टिकी रहती हैं, लेकिन वो बीच-बीच में खिसकती भी हैं, और उनकी वजह से भूकम्प आते हैं। ये प्लेट्स अरबों-खरबों बरस से खिसक रही हैं, लेकिन वे जितनी अधिक खिसकती हैं, भूकम्प उतना ही अधिक तगड़ा होता है। कभी-कभी प्लेट्स ऐसी खिसकने की वजह से आए भूकम्प से समंदर में हलचल होती है तो वह सुनामी तक पहुंच सकती है। लेकिन अभी हम भू-गर्भ शास्त्र पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, बल्कि मध्य-पूर्व के देशों में आए भूकम्प पर चर्चा करना चाहते हैं। सीरिया का मामला इतना जटिल है कि उस पर चर्चा शुरू करते समय हमें यह आशंका है कि इसके तमाम पहलुओं को आज इस जगह शायद छू पाना मुमकिन नहीं होगा।
गृहयुद्ध से गुजर रहे सीरिया के घरेलू पहलू भी किसी हीरे की अलग-अलग फलकों की तरह अनगिनत हैं। आधी सदी से वहां एक ही परिवार की तानाशाही चली आ रही थी, और पिछले करीब डेढ़ दशक से वहां हथियारबंद विद्रोह करने वाले कई अलग-अलग समूह अलग-अलग इलाकों में काम कर रहे थे। इसके साथ-साथ पड़ोस के अलग-अलग देश भी सीरिया में या तो वहां की सरकार को बढ़ावा दे रहे थे, या किसी हथियारबंद समूह को। इसके साथ-साथ सीरिया उन इस्लामिक आतंकियों का अड्डा भी बन रहा था जिन्हें 11 सितंबर के बाद से अमरीका मारने पर उतारू था। चूंकि अमरीका सीरिया में आतंकी ठिकानों के नाम पर कई तरह के हवाई हमले कर रहा था, इसलिए रूस सीरिया की सरकार के साथ था। और पड़ोस का ईरान इसलिए सीरिया के साथ था कि इजराइल को परेशान करने के लिए लेबनान में बसे हुए एक और हथियारबंद संगठन हिजबुल्ला को फौजी रसद भेजने के लिए सीरिया जरूरी था। इस तरह सीरिया एक ऐसा मंच बना हुआ था जिस पर कई अलग-अलग देशों के किरदार अपनी-अपनी हरकतें और करतब दिखा रहे थे। ऐसे में वहां के एक सबसे बड़े हथियारबंद विद्रोही संगठन ने पिछले कुछ महीनों में अपनी पकड़ अधिक मजबूत कर ली जब यूक्रेन में जंग छेड़े हुए रूस ने सीरिया से अपनी फौजें वापिस बुला लीं। दूसरी तरफ अमरीका और उसके कई पश्चिमी साथी देश सीरिया की सरकार के खिलाफ फौजी हवाई हमलों को जारी रखे हुए थे। ऐसे में एचटीएस नाम के इस विद्रोही संगठन ने फिलहाल राजधानी दमिश्क से राष्ट्रपति असद को खदेड़ दिया, वे भागकर रूस में शरण ले चुके हैं, और एचटीएस का मुखिया मोहम्मद अल जुलानी आज सीरिया का अघोषित मुखिया बन गया है जिसे असद के प्रधानमंत्री रहे सत्तारूढ़ नेता ने सत्ता का हस्तांतरण कर लिया है। दिलचस्प बात यह है कि अमरीका और उसके साथी देश राष्ट्रपति असद के खिलाफ थे क्योंकि वे ईरान और रूस के दोस्त थे। और अब सीरिया पर काबिज जुलानी के सिर पर अमरीका ने एक करोड़ डॉलर का ईनाम रखा हुआ है, उसका जाने क्या होगा। कुछ लोगों का मानना है कि यह मध्य-पूर्व में अमरीका की दखल की समाप्ति सरीखी है। सीरिया के बगल के इजराइल का मानना है कि सीरिया में आज जो इस्लामिक विद्रोही काबिज हुए उनके हाथ अगर असद की सरकार के हथियार लग जाते हैं, तो वह इजराइल के लिए फौजी खतरा हो सकता है, इसलिए उसने अभी एक हफ्ते में पांच सौ से अधिक हवाई हमले करके सीरिया की नौसेना को खत्म कर दिया, सीरिया के बाकी फौजी ठिकानों के चिथड़े उड़ा दिए।
अब लगे हाथों यह भी समझ लेना जरूरी है कि फिलीस्तीन के गाजा पर मनमाने हमलों से इजराइल ने 45 हजार लोगों को तो मार ही डाला, वहां के हथियारबंद संगठन हमास की भी कमर तोड़ दी है, जिसे ईरान से मदद मिलने की बात कही जाती है। इसके साथ-साथ लेबनान के हथियारबंद संगठन हिजबुल्ला पर हवाई हमलों से इजराइल ने उसकी सारी लीडरशिप खत्म कर दी, और अब इन दोनों के बीच एक युद्धविराम स्थापित हुआ है। इस बीच इजराइल ने ईरान पर बड़े हमले किए, और यह जाहिर है कि ईरान कोई जवाबी कार्रवाई नहीं कर पाया है। कुल मिलाकर पिछले दो-चार हफ्तों के भीतर ही मध्य-पूर्व का शक्ति संतुलन पूरी तरह से इजराइल के पक्ष में हो गया है, और उसके सारे विरोधी बुरी शिकस्त पाकर बैठे हैं। रूस की मौजूदगी यूक्रेन मोर्चे की वजह से इस इलाके से खत्म हो गई है, और ईरान अब तक सीरिया में राष्ट्रपति असद के साथ था, इसलिए रातों-रात इस्लामी विद्रोहियों से उसका भाईचारा होना भी आसान नहीं दिख रहा है। एक दिलचस्प उत्सुकता यह भी हवा में है कि क्या इजराइल सीरिया के आज के शासक बन रहे एचटीएस-विद्रोहियों के साथ संपर्क या संबंध रखकर ईरान के खिलाफ अपनी स्थिति और मजबूत करना चाहेगा? लेकिन ऐसी ही उत्सुकता आसपास के कई देशों के साथ है कि वे सीरिया के साथ अपनी कैसी नीति रखेंगे। और सबसे बड़ी उत्सुकता तो यह है कि खुद सीरिया की नई एचटीएस सरकार की नीतियां क्या होंगी? अफगानिस्तान के तालिबान के महिला विरोधी रूख से परे सीरिया के एचटीएस के विद्रोही नेता अपने आपको उदारवादी दिखा तो रहे हैं, और उन्होंने साफ-साफ कहा है कि महिलाओं के लिए वे किसी तरह की पोशाक लादने नहीं जा रहे हैं, साथ ही यह भी कहा है कि वे देश में हर तबके को साथ लेकर चलेंगे, और उनकी सरकार जनता की प्रतिनिधि सरकार रहेगी। लेकिन लोगों को अभी तालिबान का तजुर्बा भूला नहीं है जिन्होंने तीन बरस पहले अफगानिस्तान में अमरीका के छोडक़र भाग जाने के बाद कई तरह की उदार बातें कही थीं, और वे पहले से भी अधिक कट्टर सरकार चला रहे हैं। आने वाला वक्त यह भी बताएगा कि तालिबान सीरिया के एचटीएस को कुछ सिखाएगा, या उससे कुछ सीखेगा।
देश-विदेश की नीतियों से परे एक बड़ा मुद्दा सीरिया में यह है कि वहां पिछले बरसों के गृह युद्ध के चलते करीब सवा करोड़ लोग बेदखल हुए हैं जो कि देश के दूसरे हिस्सों में, पड़ोसी देशों में, और दूर-दूर के देशों में पड़े हैं। नब्बे फीसदी से अधिक सीरियाई लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं। पूरा देश भारी बेरोजगारी, महंगाई, और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। सडक़, पुल, स्कूल, अस्पताल तबाह हो चुके हैं। स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत खराब हालत में और बंद सरीखी हैं। सीरिया दुनिया के दस सबसे भुखमरी से शिकार देशों में से एक है। देश में महिलाओं और ट्रांसजेंडरों पर अनगिनत हमले होते हैं, और बच्चों के जुल्म के मामले में सीरिया सबसे भयानक देशों में से एक है। और ऐसी हालत में इस देश की लीडरशिप कल तक के ऐसे विद्रोहियों के हाथ में है जिन्हें सरकार का कोई तर्जुबा नहीं है। साथ-साथ ऐसी नई सरकार के प्रति संयुक्त राष्ट्र और बाकी अंतरराष्ट्रीय संगठनों का रूख इसकी अपनी नीतियों से तय होगा, और तब तक इसके हाथ में जिंदा रहने लायक भी कुछ नहीं है। अफगानिस्तान में तालिबान की नीतियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय रूख सबका देखा हुआ है।
मध्य-पूर्व की धरती के नीचे तो नहीं, धरती के ऊपर ही टेक्टॉनिक प्लेट्स इस रफ्तार से खिसकी हैं, और खिसकना जारी है कि अभी किसी को समझ नहीं पड़ रहा है कि सीरिया किन देशों से कैसे रिश्ते रखेगा, और कौन से देश सीरिया से कैसे रिश्ते रखेंगे। इसके साथ-साथ यह भी साफ नहीं है कि सीरिया के भीतर पड़ोस के अलग-अलग देशों के समर्थन से चलने वाले अलग-अलग विद्रोही समूहों का अब क्या होगा? इस भूकम्प के थम जाने के बाद समझ आएगा कि मध्य-पूर्व को लेकर रूस, अमरीका, और इस इलाके के देशों में से कौन कहां खड़े हैं।