छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले एमसीबी (मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-बैकुंठपुर) की खबर है कि वहां जनकपुर सरकारी स्कूल में एक शिक्षक 19 बच्चियों से गंदी बातें और अश्लील हरकत करते आ रहा था। बच्चियों ने यह बात महिला प्रधान पाठक को बताई लेकिन वह इसे दबाती रही। अब जब बच्चियों ने बाल संरक्षण अधिकारियों से टोल फ्री नंबर पर इसकी जानकारी दी तो जांच कमेटी बनी, और जांच में शिकायत सही मिलने पर शिक्षक और प्रधान पाठक के खिलाफ जुर्म दर्ज किया गया, और दोनों फरार हो गए हैं। शिक्षक सुमन कुमार रवि और प्रधान पाठक अनिता बेक को जांच कमेटी ने लंबे समय से ऐसी हरकत और उसे बचाने का दोषी पाया है। स्कूल में कुछ अरसा पहले जिला बाल संरक्षण अधिकारी ने एक जागरूकता शिविर लगाया था जिसमें बच्चियों को अच्छे और बुरे स्पर्श की जानकारी दी थी, और उसी के बाद बच्चियों ने सहायता नंबर पर फोन लगाकर शिकायत दर्ज कराई थी। अभी हफ्ता भर भी नहीं गुजरा है छत्तीसगढ़ में ही एक दूसरे स्कूल के प्रिंसिपल, हेडमास्टर और शिक्षक ने एक दूसरी स्कूल की नाबालिग आदिवासी छात्रा के साथ गैंगरेप किया था। इन्होंने इस छात्रा का कोई अश्लील वीडियो बना लिया था, और उसे ब्लैकमेल करके वीडियो फैला देने की धमकी देकर कई दिन तक बलात्कार करते रहे। एक हफ्ते के भीतर यह दूसरा मामला बताता है कि प्रदेश के आदिवासी इलाकों में छात्राएं स्कूलों में बहुत सुरक्षित नहीं हैं। यह समझने की जरूरत है कि जब 19 छात्राएं शिक्षक की अश्लील हरकत के बारे में शिकायत कर रही हैं, तो फिर 18 लोगों से ऐसी हरकत तक तो सब लड़कियां बर्दाश्त ही कर रही थीं।
इस मामले में इस बात की तरफ ध्यान देने की जरूरत है कि बाल संरक्षण के लिए तय किए गए टोल फ्री नंबर पर फोन करने से इन बच्चियों को मदद मिली, और इस मामले का भांडाफोड़ हुआ। सरकार का स्कूल चलाने वाला विभाग अगर इस नौबत को आने से रोक नहीं पाया था, तो सरकार का दूसरा विभाग बच्चों के अधिकारों को बचाने में कुछ हद तक कामयाब हुआ। हम ऐसे मामलों को बहुत खुलासे से इसलिए लिखते हैं कि सरकार में बैठे लोगों को अपनी खामियों, और अपनी खूबियों को बारीकी से समझना चाहिए। हफ्ते भर में स्कूलों की इन दो घटनाओं में गिरफ्तारी हो जाना ही काफी नहीं होगा, इनसे सबक लेकर सरकारी अमले को पूरे प्रदेश में संवेदनशील बनाना पड़ेगा, सरकारी इंतजाम की जो खामियां हैं, उन्हें दूर करना होगा, और जो खूबियां हैं उन्हें बाकी जगहों पर भी अमल में लाना पड़ेगा। प्रदेश में स्कूलें चलाने वाले दो सरकारी विभाग हैं, स्कूल शिक्षा विभाग तो है ही, आदिवासी इलाकों में आदिम जाति कल्याण विभाग भी स्कूल और छात्रावास चलाता है। ये घटनाएं आदिवासी इलाकों से अधिक आ रही हैं, अब वहां पर ये किस विभाग के तहत की स्कूलों में हो रही हैं, इसे सरकार को देखना चाहिए। अब छत्तीसगढ़ में बहुत छोटे-छोटे जिले बन गए हैं, और हर जिले में अधिकारी बढ़ते चले गए हैं। इसलिए अब लापरवाही और जुर्म की अनदेखी की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। वैसे भी प्रदेश में सरकारी नौकरी के लिए नौजवानों की कतारें इतनी लंबी हैं कि जरा भी गड़बड़ी करने वाले कर्मचारियों-अधिकारियों की नौकरी खत्म करनी चाहिए, और उनकी जगह नए लोगों को मौका मिलना चाहिए। आज जब आम जनता को सरकारी राशन के अनाज की वजह से दो वक्त का खाना नसीब होता है, तब अगर सरकारी नौकरी मिलने के बाद अगर लोगों को रिश्वत लेने, बदसलूकी करने, अश्लील हरकत करने, या दारू पीकर स्कूल में पड़े रहने से फुर्सत नहीं है, तो ऐसे सरकारी कर्मचारियों को अधिक वक्त तक नहीं ढोना चाहिए। सरकार का कार्रवाई न करना बहुत से जुर्म करने वाले लोगों के लिए हौसला अफजाई हो जाता है। और ऐसे मामलों में बच्चों के यौन शोषण के आरोपों से घिरे लोगों को तो पहली जांच रिपोर्ट मिलते ही नौकरी से हटाना चाहिए, अदालती फैसले तो जब आते हैं तब आते हैं।
बच्चियों के यौन शोषण के मामले खतरनाक इसलिए हैं कि ऐसी हर घटना के बाद बाकी बच्चियों के मां-बाप भी उन्हें स्कूल या कहीं और भेजने से हिचकने लगते हैं। किसी भी सभ्य समाज में लड़कियों को लडक़ों के बराबर ही मौके और हिफाजत मिलने चाहिए। संस्थानों में शोषण की एक घटना संस्थानों की साख भी खत्म करती है, चाहे वह स्कूल रहे, चाहे वह कुश्ती संघ रहे, और वहां पढऩे या खेलने वाली सभी बच्चियों के सामने साख का संकट आता है। देश का सबसे भयानक मामला, अजमेर सेक्सकांड जिसमें सैकड़ों लड़कियों के साथ संगठित रूप से सिलसिलेवार और लगातार बलात्कार होते रहा, उससे एक वक्त ऐसा आ गया था कि अजमेर की उस पीढ़ी की लड़कियों की शादी में दिक्कत होने लगी थी। इसलिए स्कूल, खेलकूद, एनसीसी, या ऐसी किसी भी गतिविधि और जगह की साख को बनाए रखना महिला सशक्तिकरण के लिए भी जरूरी है।
इस ताजा घटना से पता लगता है कि लड़कियों का हौसला बढ़ाया जाए तो वे शिकायत दर्ज कराती हैं। शिकायत के ऐसे नंबरों की जानकारी और अधिक फैलानी चाहिए, और स्कूलों में लडक़े-लड़कियों को अच्छे और बुरे स्पर्श की बेहतर समझ देनी चाहिए। इन दिनों नाबालिग लडक़े बलात्कार के मामलों में चारों तरफ पकड़ा रहे हैं, स्कूल-कॉलेज के लडक़ों को भी यह समझाने की जरूरत है कि वे लड़कियों के साथ कैसा बर्ताव नहीं कर सकते, और कैसा बर्ताव करने पर कितनी कैद होती है, जिंदगी किस तरह बर्बाद हो जाती है। स्कूलों में यौन शोषण के मामलों को सिर्फ पुलिस और अदालत के लायक मान लेना गलत होगा। समाज के स्तर पर भी लडक़े-लड़कियों के बीच एक बेहतर जागरूकता जरूरी है। एक स्कूल के एक शिक्षक की 19 छात्राओं से अश्लील हरकतों पर भी वहां की प्रधान पाठिका ने महिला होते हुए भी सब कुछ दबाने की जो कोशिश की, वह बहुत निराश करती है। बहुत सी जगहों पर तो महिला अधिकारी और कर्मचारी को रखा इसीलिए जाता है कि वे बच्चों और लड़कियों के मामलों में कुछ अधिक संवेदनशील रहेंगी। ऐसा लगता है कि सरकारी कामकाज इस महिला की संवेदनशीलता खत्म कर गया था, सरकार को इस बारे में भी सोचना चाहिए। बल्कि लगे हाथों हम यह भी सलाह देंगे कि सरकार को अपने तमाम अमले को धर्म और जाति के आधार पर, औरत-मर्द के आधार पर, लडक़े-लडक़ी के आधार पर, विकलांगता के आधार पर, गरीबी के आधार पर भेदभाव के खिलाफ जागरूक करना चाहिए, और संवेदनशील बनाना चाहिए, इससे भी कई किस्म के जुर्म कम होंगे, और लोगों को बुनियादी हक मिलेंगे।