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वक्फ क्या है और वक्फ कानून में सरकार क्यों चाहती है बदलाव?
02-Dec-2024 3:01 PM
वक्फ क्या है और वक्फ कानून में  सरकार क्यों चाहती है बदलाव?

भारत में पिछले कुछ महीनों से वक्फ को लेकर विवाद चल रहा है। दरअसल केंद्र सरकार दशकों पुराने वक्फ कानून को बदलना चाहती है। इसका देश में अलग-अलग जगहों पर विरोध हो रहा है।

विरोध करने वालों का कहना है कि सरकार बदलाव के विधेयक के बहाने वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है।

जबकि सरकार की दलील है कि ये विधेयक वक्फ की संपत्तियों के बेहतर इस्तेमाल के लिए है।

प्रस्तावित विधेयक के जिन प्रावधानों पर आपत्ति है, उनमें से एक वक्फ काउंसिल के स्वरूप का भी है।

सेन्ट्रल वक्फ काउंसिल के सभी सदस्यों का मुसलमान होना जरूरी है लेकिन प्रस्तावित विधेयक में दो ग़ैर-मुसलमान सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान भी जोड़ दिया गया है।

इसके साथ ही सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के मुसलमान सदस्यों में भी दो महिला सदस्यों का होना अनिवार्य कर दिया गया है।

नए वक्फ विधेयक के भारी विरोध के बाद, इसे एक संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया।

इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल हैं। अब इस समिति का कार्यकाल अगले साल होने वाले बजट सत्र तक बढ़ा दिया गया है।

तो क्या है वक्फ? क्या हैं वक्फ विधेयक में प्रस्तावित प्रमुख संशोधन? क्यों है इस पर विवाद? सरकार क्यों इस पर इतना मुखर है और ये एक चुनावी मुद्दा कैसे बना हुआ है?

बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूजरूम के डायरेक्टर ऑफ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने वक्फ से जुड़े इन मुद्दों पर चर्चा की।

इस चर्चा में शामिल हुए- किताब ‘शिकवा-ए-हिंद: द पॉलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडियन मुस्लिम’ के लेखक डॉक्टर मुजीबुर्रहमान, अबू धाबी से मौलाना आज़ाद नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जफ़ऱ सरेशवाला, बेंगलुरु से वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी और वकील मुजीबुर्रहमान।

वक्फ क्या है, इसकी शुरुआत कब हुई?

वक्फ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति, अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मकसद या परोपकार के मकसद से दान करता है।

ये संपत्ति परोपकार के मकसद से समाज के लिए दान दी जाती है।

अल्लाह के सिवा न तो इसका कोई मालिक होता है और न हो सकता है। न तो वक़्फ़ संपत्ति की खऱीद-फऱोख़्त की जा सकती है और न ही इन्हें किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है।

वकील मुजीबुर्रहमान का मानना है कि वक्फ ट्रस्ट जैसा होता है। जिस तरह से ट्रस्ट में लोग संपत्ति दान कर देते हैं ठीक उसी तरह से इस्लाम में वक्फ़़ होता है।

मुजीबुर्रहमान कहते हैं, ‘इसमें कोई भी इंसान अपनी निजी संपत्ति को दीन के कामों के लिए या परोपकार के मकसद से वक्फकर देता है। जो भी इंसान संपत्ति वक्फ करते हैं वो अपने हिसाब से मुतवल्ली (वक्फ का ट्रस्टी) चुन सकते हैं।’

मुजीबुर्रहमान के मुताबिक वक्फ के पास 8 लाख 70 हजार ऐसी संपत्तियां हैं जिनकी पहचान हो चुकी हैं। साथ ही वक्फ के पास 9।50 लाख एकड़ ज़मीन है।

मुजीबुर्रहमान का कहना है कि वक्फ की 60 हजार जमीनें ऐसी है, जिन पर विवाद चल रहा है।

मौलाना आज़ाद नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जफर सरेशवाला बताते हैं ‘मोहम्मद पैगंबर मक्का से मदीना गए। इसे हम हिजरत कहते हैं।’

‘तब उन्होंने वहां सबसे पहले जो संस्थाएं क़ायम की वो थीं, पहला, औकाफ यानी वक्फ और दूसरा, बैतूल माल। दोनों का मकसद था कि भविष्य में अनाथों, विधवाओं, गरीबों की मदद की जाए।’

किस बात पर विवाद?

वक्फ बोर्ड को नियंत्रित करने वाले कानून में प्रस्तावित संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश कर दिया गया है। इसके बाद कई विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इस पर नियंत्रण करना चाहती है।

सरकार ने इसमें कई बदलाव की बात कही है। प्रस्तावित संशोधन के तहत वक्फ की जमीन का सर्वे करने के अधिकार अतिरिक्त कमिश्नर के पास मौजूद होता है, इसे अब जिला कलेक्टर या डिप्टी कमिश्नर को दे दिए गए हैं।

वक्फ बोर्ड में दो गैर मुसलमान प्रतिनिधि रखने का प्रावधान किया गया है। साथ ही दो महिला सदस्यों को भी शामिल करने की बात की गई है।

इस बिल के प्रावधान के अनुसार, वही व्यक्ति दान कर सकता है जिसने लगातार पांच साल तक इस्लाम का पालन किया हो यानी वो मुस्लिम हो और दान की जा रही संपत्ति का मालिकाना हक़ रखता हो।

पिछले दिनों केरल और कर्नाटक में वक्फ की संपत्तियों पर विवाद हुआ था। क्या इन दोनों राज्यों में ये मुद्दा सच में संवेदनशील है या राजनीतिक रूप से ज्य़ादा सक्रिय हुआ है?

वरिष्ठ पत्रकार इमरान कुरैशी का मानना है कि ये मामला राजनीतिक रूप से सक्रिय हुआ था। ऐसा इसलिए क्योंकि केरल और कर्नाटक दोनों ही जगह उपचुनाव हो रहे थे।

वो कहते हैं कि किसानों को जो नोटिस भेजा गया वो सिर्फ कांग्रेस की सरकार में नहीं गए हैं, बल्कि बीजेपी की सरकार के समय में भी नोटिस भेजे गए थे।

वक्फ संपत्ति छिन जाने का डर

प्रस्तावित संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश होने का बाद से ही लोगों में इस बात का डर है कि सरकार उनकी जमीन को अपने कब्ज़े में लेना चाहती है।

लेकिन सरकार का दावा है कि इस बिल के आने से वक्फ संबंधित विवादों के निपटारे में आसानी होगी।

तो, क्या इस बिल से सरकार मुसलमानों के मामलों में अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहती है?

इस पर ‘शिकवा-ए-हिंद’ द पॉलिटिकल फ्य़ूचर ऑफ़ इंडियन मुस्लिम’ के लेखक डॉक्टर मुजीबुर्रहमान का मानना है कि वक्फ में सुधार की ज़रूरत है।

मुजीबुर्रहमान का कहना है, ‘अगर मुस्लिम संपत्ति प्रबंधन में गैर-मुसलमान रह सकते हैं तो गैर-मुसलमानों के संपत्ति प्रबंधन में भी मुसलमानों को रहने की इजाजत होनी चाहिए।’

‘क्योंकि हिन्दुस्तान एक सेक्युलर देश है और यहां पर सबकी जिम्मेदारी है कि वो सभी चीज़ों की देखभाल करें।’

वकील मुजीबुर्रहमान का मानना है कि अगर वक्फ पर सरकार का नियंत्रण रहेगा तो फिर वो चीज कभी मुसलमानों के लिए इस्तेमाल नहीं होगी। बल्कि सरकार अपना नुमाइंदा नियुक्त करके उन पर कब्ज़ा करेगी और अपने हिसाब से लोगों को जमीन देगी।

वो कहते हैं, ‘वक्फ को राजनीति से बाहर निकालना होगा, मुसलमानों को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरह एक कमेटी बनानी होगी।’

‘वक्फ  के सीईओ को सरकार को नहीं चुनना चाहिए, बल्कि वक्फ के खर्च पर इसके लिए चुनाव हो। ऐसा करने से ये राजनीति से बाहर होगा और मुसलमानों का इस पर नियंत्रण रहेगा।’

मुजीबुर्रहमान कहते हैं, ‘ये मामला पैसों का है, चाहे कोई भी सरकार हो हर कोई चाहती है उस चीज़ पर उनका कब्जा हो। डीएम सरकार का एक नुमाइंदा होता है। अगर उसको उस संपत्ति में एक फ़ीसदी भी विवाद नजऱ आएगा तो फिर वो संपत्ति सरकार की हो जाएगी।’

वहीं मौलाना आज़ाद नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जफऱ सरेशवाला इस पर कहते हैं कि वक्फ के पास इतनी संपत्ति है कि इसका इस्तेमाल सही से किया गया होता तो सिर्फ मुसलमान ही नहीं इस देश का हिंदू भी गऱीब नहीं रहता।

वो कहते हैं, ‘उनका कहना है कि हज़ार करोड़ की संपत्ति संभालने के लिए ऐसे लोग बैठे हैं जिन्होंने कभी दस लाख की संपत्ति कभी न खऱीदी है और न कभी बेची है।’

‘हमें जरूरत है कि वहां ऐसे लोगों को बैठाया जाए जो बेहतर तरीक़े से इन संपत्तियों का ख्याल रख सकें।’

वक्फ कैसे बना चुनावी मुद्दा?

हाल में हुए दो राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ कई राज्यों की विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में वक्फ का मुद्दा गूंजता दिखाई दिया। भारतीय जनता पार्टी इस दौरान इस मुद्दे को उठाती रही।

कर्नाटक में वक़्फ़ का मुद्दा हावी होने के बाद यहां की तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में सभी पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की।

इमरान क़ुरैशी कहते हैं, ‘शायद इससे पहले कर्नाटक में मुतवल्लियों का चुनाव इस तरह से नहीं हुआ। इस चुनाव के लिए आज तक किसी भी मंत्री ने प्रचार नहीं किया था।’

‘लेकिन मंत्री जमीर अहमद खान ने हर तरफ जाकर प्रचार किया। इस दौरान वक्फ की ज़मीन का मुद्दा उठाया। इसकी वजह से बीजेपी ने इस मुद्दे को और भी उछाला।’

इमरान क़ुरैशी कहते हैं, ‘उपचुनाव में भी ये मुद्दा ज़ोर-शोर से चला, जिसके कारण जो हिंदू वोट एक होने वाला था वो नहीं होकर मुस्लिम, दलित और ओबीसी के वोट एक हो गए।’

‘इसी वजह से कांग्रेस तीनों सीटों पर जीत गई। लेकिन ये मामला अभी ख़त्म नहीं होगा ये आगे भी चलेगा।’

सरकार को क्या करने की ज़रूरत

वक्फ को लेकर लोगों के अलग-अलग दावे होते रहते हैं। जिसके बाद सरकार के लिए ये बड़ी चुनौती हो जाती है कि वो लोगों को कैसे भरोसा दिलाए कि वो जो दलील दे रही है वो सही है।

इस पर डॉक्टर मुजीबुर्रहमान कहते हैं, ‘मुसलमानों में भी कई लोग ऐसे हैं जिन्हें वक़्फ़ की संपत्ति को लेकर क्या हो रहा है इसकी जानकारी नहीं है। क्यों मीडिया में इस खबर को सनसनीखेज़ बनाया जा रहा है।’

वो कहते हैं, ‘वक्फ में बहुत संपत्तियां विवादित हैं, तो बहुत सारी वैध भी हैं। इन सबको सामने लाने के लिए सुधार की ज़रूरत है। सरकार को एक वेबसाइट बनाकर लोगों तक सारी जानकारी पहुंचानी चाहिए।’

‘क्योंकि अयोध्या जजमेंट के बाद और बुलडोजऱ जस्टिस जिस तरह से चल रहा है, इससे कौम को ऐसा लग रहा है कि सरकार हमारी नहीं है, वो हमारी चीज़ें छीन रही है।’

‘इस सोच को कम करने के लिए सरकार को सक्रिय होकर सारी जानकारी इन लोगों को देनी होगी।’

लोगों के नज़रिए को बदलने के लिए वक्फ को क्या कदम उठाने चाहिए?

इस पर वकील मुजीबुर्रहमान कहते हैं कि जो फंड आ रहा है उसको लेकर सारी जानकारी पारदर्शी होनी चाहिए। ताकि लोग ये देख सके कि पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है।

वो कहते हैं, ‘ये लोगों की निजी संपत्तियां है, इस कारण जब तक कमेटी न चाहे, सरकार अपनी मर्जी से इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती।’

‘आज की तारीख़ में जो वक्फ बोर्ड है वो राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं क्योंकि सरकार ही उनके नुमाइंदों को नियुक्त करती है। इस कारण जैसी सरकार होगी बोर्ड उसके हिसाब से काम करेगा।’

‘वक्फ जो भी करता है वो मुलसमानों के लिए करता है, लेकिन अगर उस संपत्ति से सराय, हॉस्टल या कुछ और बना दिया जाए तो वो गैर-मुसलमान के लिए भी काम में आएगी।’ (bbc.com/hindi)

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