विचार / लेख
-सौतिक बिस्वास
अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग के अनुसार, सितंबर महीने में समाप्त हुए अमेरिकी वित्तीय वर्ष 2024 में, चार्टर्ड और कॉमर्शियल उड़ानों के ज़रिए एक हज़ार से ज़्यादा भारतीय नागरिकों को अमेरिका से भारत वापस भेजा गया है।
अक्तूबर 2020 से अमेरिकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा (सीपीबी) के अधिकारियों ने उत्तर और दक्षिण दोनों सीमाओं पर अवैध तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने का प्रयास करने वाले करीब 1 लाख 70 हज़ार भारतीयों को हिरासत में लिया है।
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को लेकर सख़्त नीति अपनाने का वादा किया है। ट्रंप 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति का पद संभालने वाले हैं।
अमेरिका में अवैध तरीके से प्रवेश करने के कई जोखिम हैं। चाहे कजऱ् लेकर भारत छोडऩा हो, ख़तरनाक सफऱ में जान गंवाने का ख़तरा हो या फिर अमेरिका में क़ानून का सामना करना हो। फिर भी बड़ी संख्या में भारत के लोग यह जोखिम उठाने से पीछे नहीं हटते हैं।
इसी अक्तूबर महीने में अमेरिका के इमिग्रेशन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) विभाग ने भारतीय नागरिकों को वापस घर भेजने के लिए एक चार्टर्ड विमान भेजा। जिससे अमेरिका से लोगों को वापस भारत में निर्वासित करने के बढ़ते ट्रेंड का संकेत मिलता है।
यह कोई सामान्य फ़्लाइट नहीं थी। यह इस साल बड़े पैमाने पर रवाना की जाने वाली ‘निष्कासन उड़ानों’ में से एक थी, जिनमें से हर फ़्लाइट में आमतौर पर 100 से अधिक लोग सवार थे।
ये उड़ानें उन भारतीय प्रवासियों को वापस ला रही थीं, जिनके पास ‘अमेरिका में रहने के लिए कोई कानूनी अधिकार नहीं था।’
अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक़, वयस्क पुरुषों और महिलाओं को लेकर आने वाली सबसे ताज़ा उड़ान पंजाब के लिए रवाना हुई, जो कई निर्वासित लोगों के मूल निवास के कऱीब है। हालाँकि इनके मूल निवास के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी गई।
अवैध भारतीयों की बड़ी तादाद
इस वित्तीय वर्ष में अमेरिका से भारत भेजे गए अवैध प्रवासियों के बारे में अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग के सहायक सचिव रॉयस बर्नस्टीन मरे ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, ‘यह पिछले कुछ साल में अमेरिका से भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने में लगातार हो रही बढ़ोतरी का हिस्सा है, जो पिछले कुछ साल में भारतीय नागरिकों के साथ हुई मुठभेड़ों में हो रही सामान्य बढ़ोतरी के मुताबिक़ है।’
यहां मुठभेड़ का मतलब उन घटनाओं से है, जिसमें लोगों को मेक्सिको या कनाडा की तरफ से अमेरिकी सीमा को अवैध तरीके से पार करने की कोशिश के दौरान अमेरिकी अधिकारी रोकते हैं।
जैसे-जैसे अमेरिका भारतीय नागरिकों की वापसी को बढ़ा रहा है, इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इमिग्रेशन नीतियों का इस पर क्या असर होगा।
ट्रंप ने पहले ही अमेरिका के इतिहास में प्रवासियों के सबसे बड़े निर्वासन का वादा किया है।
वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक निस्केनन सेंटर के इमिग्रेशन विश्लेषक गिल गुएरा और स्नेहा पुरी कहते हैं, ‘भारतीयों की संख्या हालांकि लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों से आने वाले लोगों की तुलना में कम है, लेकिन पिछले चार साल में सीपीबी का सामना जिन लोगों से हुआ है उनमें पश्चिमी गोलार्ध के बाहर से आने वाले प्रवासियों में भारतीय नागरिक सबसे ज़्यादा हैं।’
थिंकटैंक प्यू रिसर्च सेंटर के शोध के नए आंकड़े बताते हैं कि अनुमान के मुताबिक़ साल 2022 तक अमेरिका में सवा 7 लाख ऐसे भारतीय थे, जिनके पास वहाँ रहने के लिए वैध दस्तावेज़ नहीं थे। यह मेक्सिको और अल सल्वाडोर के नागरिकों के बाद तीसरी सबसे बड़ी तादाद है।
कुल मिलाकर अवैध प्रवासी अमेरिका की कुल आबादी का 3 फ़ीसदी और विदेश में जन्मे अमेरिकी लोगों की आबादी का 22 फ़ीसदी हिस्सा हैं।
आंकड़ों पर गौर करें तो गुएरा और पुरी ने भारतीय नागरिकों के अवैध रूप से सीमा पार करने की कोशिशों में बढ़ोतरी के ट्रेंड को जानने की कोशिश की है।
अवैध तरीका अपनाने की वजह
पहली वजह
ऐसे प्रवासी जो अवैध तरीक़े से अमेरिका में बसना चाहते हैं वो निम्न आय वर्ग से नहीं आते, लेकिन वो अक्सर कम शिक्षा या अंग्रेज़ी में बात नहीं कर पाने की वजह से अमेरिका के लिए पर्यटक या छात्र वीज़ा हासिल नहीं कर पाते।
इसके बजाय ऐसे लोग उन एजेंसियों पर निर्भर रहते हैं जो एक लाख डॉलर तक पैसे वसूलते हैं और कभी-कभी सीमा की निगरानी करने वालों को चकमा देने के लिए बनाए गए लंबे और मुश्किल रास्तों का इस्तेमाल करते हैं।
इस रकम के लिए कई लोग अपने खेत भी बेच देते हैं या कजऱ् ले लेते हैं। यह हैरानी की बात नहीं है कि साल 2024 में अमेरिकी इमिग्रेशन अदालतों के आंकड़ों से पता चलता है कि ज़्यादातर अवैध भारतीय प्रवासी 18-34 साल के पुरुष थे।
दूसरी वजह
इस मामले से जुड़ी दूसरी बात यह है कि उत्तरी सीमा पर कनाडा जाना भारतीयों के लिए अमेरिका में प्रवेश के लिहाज से ज़्यादा आसान है, जहां विजि़टर्स वीज़ा के प्रोसेस का समय 76 दिन का है, जबकि भारत में अमेरिकी वीज़ा के लिए एक साल तक का समय लगता है।
स्वैंटन सेक्टर अमेरिका के उत्तर-पूर्व में मौजूद वर्मोंट राज्यों, न्यूयॉर्क और न्यू हैंपशर की काउंटियों को कवर करता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि इस साल की शुरुआत से ही इन इलाक़ों में सीमा पर मौजूद अधिकारियों का भारतीय नागरिकों के साथ सामना होने की घटना में अचानक बढ़ोतरी हुई है। यह जून महीने में 2715 तक पहुंच गई।
इससे पहले ज़्यादातर अनियमित भारतीय प्रवासी अल सल्वाडोर या निकारागुआ के रास्ते से मेक्सिको के साथ व्यस्त दक्षिणी सीमा से अमेरिका में प्रवेश करते थे। ये दोनों ही प्रवास को सुविधाजनक बनाते थे।
पिछले साल नवंबर तक भारतीय नागरिकों को अल सल्वाडोर में वीज़ा-मुक्त यात्रा की सुविधा मिल रही थी।
गुएरा और पुरी कहते हैं, ‘अमेरिका-कनाडा सीमा, अमेरिका-मेक्सिको सीमा से भी ज़्यादा लंबी और कम निगरानी वाली है। हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि यह रूट ज़्यादा सुरक्षित हो, लेकिन यहां आपराधिक समूहों की मौजूदगी उतनी नहीं है, जितनी दक्षिण और मध्य अमेरिका के रूट पर है।’
रोजग़ार की तलाश
ऐसा लगता है कि अमेरिका में अधिकांश प्रवासी सिख-बहुल राज्य पंजाब और पड़ोसी हरियाणा से आते हैं। इन राज्यों के लोग पारंपरिक रूप से विदेश जाते रहे हैं। ऐसे लोगों का दूसरा मूल स्रोत गुजरात है, जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है।
तीसरी वजह
पंजाब राज्य जहां से अनियमित भारतीय प्रवासियों की एक बड़ी संख्या आती है। यह राज्य बेरोजग़ारी के बढ़ते स्तर, कृषि संकट और नशीले पदार्थों के सेवन की बढ़ती समस्या सहित आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
पंजाबियों में प्रवास भी लंबे समय से आम बात रही है और राज्य के ग्रामीण युवा आज भी विदेश जाने के लिए उत्सुक रहते हैं।
पंजाब में नवजोत कौर, गगनप्रीत कौर और लवजीत कौर ने 120 लोगों पर किए एक हालिया सर्वे में पाया कि 18-28 साल के 56त्न लोग आमतौर पर माध्यमिक शिक्षा के बाद प्रवास कर गए।
कई लोग कजऱ् लेकर विदेश में बस गए और बाद में अपने परिवार को पैसे भेजे।
उसके बाद राज्य में अलगाववादी सिख आंदोलन की वजह से तनाव बढ़ गया है, जो सिखों के लिए एक आज़ाद देश बनाना चाहता है।
पुरी कहती हैं, ‘इससे भारत के कुछ सिखों में यह डर पैदा हो गया कि उन्हें अधिकारी या नेता ग़लत तरीके से निशाना बना सकते हैं। यह डर उत्पीडऩ के दावों के लिए एक विश्वसनीय आधार भी मुहैया कर सकता है, जो उन्हें शरण मांगने की वजह देता है, चाहे वह सच हो या नहीं।’ हालाँकि भारतीयों के पलायन के पीछे पक्की वजहों का पता लगाना आसान नहीं है।
पुरी कहती हैं, ‘लोगों के लिए विदेश में बसने की इच्छा के पीछे अलग-अलग वजहें हैं, लेकिन आर्थिक तौर पर विदेशों में ज़्यादा मौक़े मिलना इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है। साथ ही समाज में अमेरिका में 'बसने' की गर्व की भावना भी अहम है।’
बेहतर अवसर और ख़तरा
शोधकर्ताओं ने पाया कि विदेशों में बसने की वजह यह है कि सीमा पर भारतीय नागरिकों के स्वरूप में बदलाव आया है।
ज़्यादातर परिवार सीमा पार करने की कोशिश कर रहे हैं। साल 2021 में दोनों सीमाओं पर अकेले वयस्कों को बड़ी संख्या में हिरासत में लिया गया था। अब दोनों सीमाओं पर हिरासत में लिए गए लोगों में से 16-18 फीसदी परिवार के साथ पाए गए।
इससे कई बार इस तरह के रास्तों से सीमा पार करने के दुखद नतीजे भी सामने आए हैं।
जनवरी 2022 में चार लोगों का एक भारतीय परिवार अमेरिका में प्रवेश करने का प्रयास करते समय कनाडा में अमेरिकी सीमा से महज़ 12 मीटर की दूरी पर ठंड से मारे गए। ये गुजरात से आए 11 लोगों के एक ग्रुप का हिस्सा थे।
वर्मोंट विश्वविद्यालय में इमिग्रेशन और शहरी मामलों पर अध्ययन करने वाले पाब्लो बोस कहते हैं कि भारतीय लोग बड़े आर्थिक मौक़ों और ‘अमेरिकी शहरों की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में जगह पाने की अधिक क्षमता’ के कारण बड़ी संख्या में अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे लोग ख़ासतौर पर न्यूयॉर्क या बोस्टन जैसे बड़े शहरों में प्रवेश पाने की कोशिश करते हैं।
पाब्लो बोस ने बीबीसी को बताया, ‘मैं जो कुछ भी जानता हूँ और लोगों से जो बातचीत मैंने की है, उनसे पता चलता है कि ज़्यादातर भारतीय वर्मोंट या अपस्टेट न्यूयॉर्क जैसे ज़्यादा ग्रामीण इलाकों में नहीं रह रहे हैं, बल्कि जितनी जल्दी हो सके शहरों की ओर जा रहे हैं।’
उनके मुताबिक़ वहाँ वे ज़्यादातर अनौपचारिक नौकरियाँ कर रहे हैं, जैसे घर और रेस्टोरेंट में काम करना।
अमेरिका में जल्द ही हालात और भी मुश्किल हो सकते हैं। अनुभवी इमिग्रेशन अधिकारी टॉम होमन जो जनवरी में ट्रंप के राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद देश की सीमाओं के प्रभारी होंगे।
उन्होंने कहा है कि कनाडा के साथ उत्तरी सीमा उनकी एक प्राथमिकता है क्योंकि इस क्षेत्र में अवैध प्रवास एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है।
अमेरिका में आगे क्या होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है।
पुरी कहती हैं, ‘यह देखना अभी बाक़ी है कि कनाडा अपनी सीमाओं से अमेरिका में आने वाले लोगों को रोकने के लिए ऐसी ही नीतियाँ लागू करेगा या नहीं। अगर ऐसा होता है, तो हम सीमा पर भारतीय नागरिकों की हिरासत में कमी की उम्मीद कर सकते हैं।’
जो भी हो हज़ारों हताश भारतीयों के अमेरिका में बेहतर जीवन की तलाश के सपने फीके पडऩे वाले नहीं हैं, भले ही आगे का रास्ता और अधिक खतरनाक हो। (bbc.com/hindi)