संपादकीय
छत्तीसगढ़ का एक ताजा जुर्म स्तब्ध कर देने वाला है। सरगुजा इलाके के एक नए जिले मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) में एक स्कूल के शिक्षक ने छात्रा का अश्लील वीडियो बना लिया, और उसे इसे उजागर करने की धमकी देकर स्कूल के प्रिंसिपल, दो शिक्षकों, और बलात्कार के लिए घर मुहैया कराने वाले एक डिप्टी रेंजर ने इस नाबालिग छात्रा के साथ कई दिन तक बलात्कार किया। उसे अलग-अलग जगहों पर ले जाकर बलात्कार किया, सामूहिक बलात्कार किया। अब छात्रा की मां की शिकायत पर पुलिस ने इन लोगों को गिरफ्तार किया है। इस छात्रा को यह बात उजागर करने पर जान से मारने की धमकी भी दी जा रही थी, और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देने की भी। 55 बरस का प्रिंसिपल, और 50 बरस का व्याख्याता, 48 बरस का हेडमास्टर गिरोह बनाकर स्कूल की एक नाबालिग और आदिवासी छात्रा को ब्लैकमेल करके, मारने की धमकी देकर हफ्ते भर लगातार सामूहिक बलात्कार करें, तो लोग किस भरोसे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढऩे भेजेंगे? अगर वे दूसरे स्कूल की छात्रा के साथ ऐसा कर सकते हैं तो अपने स्कूल की छात्राओं से भी ऐसा कर सकते हैं।
छत्तीसगढ़ का एक तजुर्बा यह भी है कि आदिवासी इलाकों में जगह-जगह आश्रम-छात्रावास जैसी स्कूलें रहती हैं जहां गरीब-आदिवासी बच्चे मां-बाप से दूर आश्रम और स्कूल के कर्मचारियों और अधिकारियों के मोहताज हुए पड़े रहते हैं, और दूर-दूर के गांवों में रहने वाले मां-बाप बच्चों से लगातार संपर्क में भी नहीं रहते। बस्तर के इलाके में दसियों हजार बच्चे आश्रम-छात्रावासों में रह रहे हैं। आदिवासी इलाकों से देह-शोषण की शिकायतें तो निकलकर बाहर आ भी नहीं पातीं, और जब कभी बड़े पैमाने पर यौन-शोषण होता है तो विस्फोट की तरह वह घटना सामने आती है, इक्का-दुक्का घटनाएं बाहर पता भी नहीं लगतीं। कुछ मामलों में तो छात्राएं गर्भवती हो जाती हैं, और संतान को जन्म देती हैं, तब पता लगता है कि उनके साथ किसी ने ज्यादती की थी। बस्तर में इलाका बहुत बड़ा है, और स्कूलें या आश्रम-छात्रावास बहुत दूर-दूर के इलाकों में हैं, इसलिए वहां तक शासन-प्रशासन की नजर भी अधिक नहीं जाती है। लेकिन सरगुजा के जिस जिले में यह मामला हुआ है वह तो नया बना हुआ छोटा जिला है जहां पर कलेक्टर और एसपी तैनात हैं। इसके बाद भी अगर इस किस्म का संगठित और गिरोहबंदी का भयानक जुर्म वहां हुआ है, तो पुलिस और प्रशासन पर कई सवाल भी खड़े होते हैं। क्या जिलों को छोटा-छोटा करने के बाद भी वहां अफसरों की निगरानी इतनी कमजोर रहती है?
एक दूसरा मुद्दा यह है कि प्रदेश में होने वाले बलात्कारों में उनकी शिकार लड़कियों में आदिवासियों का अनुपात बहुत अधिक है। क्या समाज के लोग आदिवासियों को इतना कमजोर पाते हैं कि उनसे बलात्कार करते हुए उन्हें फंसने का डर नहीं रहता? क्या बलात्कारियों को यह लगता है कि आदिवासी लडक़ी की तो जुबान ही नहीं होती है, और उसकी बात सुनने के लिए पुलिस-प्रशासन के कान नहीं होते? जो भी हो, बलात्कार के बहुत से मामलों में आदिवासी लड़कियों का शिकार होना बहुत फिक्र की बात है, और यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि आदिवासी इलाकों की बहुत सी स्कूलें, और छात्रावास शिक्षा विभाग के न होकर आदिम जाति कल्याण विभाग के होते हैं, और यह किस तरह का कल्याण हो रहा है इस पर सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह भी रहना चाहिए।
हमारा यह भी मानना है कि सामने आने वाले ऐसे हर मामले के मुकाबले दर्जनों मामले तो उजागर ही नहीं होते होंगे। हर किसी का इतना हौसला नहीं होता है कि वे पुलिस तक जा सकें , क्योंकि पुलिस और अदालत आमतौर पर संवेदनाशून्य रहती हैं, और बलात्कार की शिकार होकर वहां पहुंचना हिकारत और शोषण के एक नए जाल में लड़कियों को फंसा देता है। चाहे शिक्षा विभाग हो, चाहे आदिम जाति कल्याण विभाग हो, राज्य में सरकारी स्कूलों की हालत खराब है। शिक्षक जगह-जगह दारू पिये पड़े रहते हैं, यहां तक कि राजधानी रायपुर की एक सबसे प्रमुख स्कूल में वहां का शिक्षक छात्रा को अश्लील संदेश भेज-भेजकर परेशान करता रहा, और आखिर में जाकर गिरफ्तार हुआ। ऐसा लगता है कि छात्र-छात्राओं में जागरूकता और हौसला बढ़ाने के लिए पूरे प्रदेश में एक अभियान छेडऩे की जरूरत है, और स्कूलों में अनिवार्य रूप से शिकायत पेटी लगाने, उसे स्कूल के बाहर के लोगों द्वारा खोलने का इंतजाम करना चाहिए, और इन तमाम शिकायतों को गंभीरता से लेना चाहिए। किसी शिक्षक या कर्मचारी की यौन शोषण की हिम्मत रातों-रात नहीं होती, पहले वे कई किस्म की हरकतें करके छात्राओं की कमजोरी को तौल चुके रहते हैं, और तब जाकर वे देह-शोषण या बलात्कार पर उतरते हैं। अगर सरकार की निगरानी व्यवस्था चौकस रहे, अगर लड़कियों से स्कूल के बाहर की कोई दूसरी संवेदनशील महिला समय-समय पर बात करती रहे, तो हो सकता है कि लड़कियां वक्त रहते अपनी शिकायत दर्ज करा सकें, और बलात्कार की नौबत के पहले बच सकें। यह पूरा का पूरा मामला सरकार के जिम्मे का है, और समाज की लड़कियों पर यह खतरा बहुत नया भी नहीं है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय से लेकर अब तक हर दौर में ऐसे मामले सामने आए हैं, लेकिन इसी आधार पर इसकी गंभीरता को अनदेखा करना बहुत बड़ी गैरजिम्मेदारी होगी। छात्राओं के प्रति, और आदिवासियों के प्रति सरकार को अतिरिक्त संवेदनशील होना चाहिए। इस तरह का शोषण समाज में दूसरी हजारों लड़कियों के आगे बढऩे की राह में रोड़ा बन जाता है। ऐसे एक हादसे के बाद हजारों मां-बाप अपनी बच्चियों को पढऩे, खेलने, या किसी और मुकाबले के लिए बाहर भेजने से कतराने लगते हैं। इसलिए महज बलात्कार की शिकार लड़कियां ही इस जुर्म का शिकार नहीं होतीं, ऐसी हर घटना के बाद हजारों दूसरी लड़कियों से उनकी संभावनाएं छीन ली जाती हैं, और उन्हें घर पर सुरक्षित रहने को कह दिया जाता है। सरकार को छात्राओं के मामले में अपने निगरानी तंत्र को मजबूत करना पड़ेगा। हमारा यह भी ख्याल है कि लड़कियों और महिलाओं की जिम्मेदारी जिन पर रहती है, वे ही अगर बलात्कार जैसे जुर्म करने लगते हैं, तो उनके लिए राज्य को एक अलग कड़ी सजा बनानी चाहिए। अभी एक डीएफओ पर उसकी मातहत आदिवासी अधिकारी ने धमकी देकर लगातार यौन-शोषण की रिपोर्ट दर्ज कराई है। छात्रा से बलात्कार करने वाले शिक्षक अगर उसी की स्कूल के हैं, तो उनको भी आम बलात्कार के मुकाबले अधिक सजा मिलनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)