संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जाती और आती अमरीकी सरकारों में विरोधाभास को गौर से देखती हुई दुनिया...
20-Nov-2024 12:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जाती और आती अमरीकी सरकारों में विरोधाभास को गौर से देखती हुई दुनिया...

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने कार्यकाल के बचे कुल दो महीनों में एक बड़ा रणनीतिक फैसला लिया, और यूक्रेन को इस बात की अनुमति दी कि वह अमरीका की दी हुई मिसाइलों से रूस के भीतर हमले कर सकता है। लंबी दूरी वाली इन मिसाइलों का इस्तेमाल रूस के खिलाफ शुरू भी हो गया है, और रूस में राष्ट्रपति पुतिन से परे के कुछ सत्तारूढ़ नेताओं ने इसे तीसरे विश्व युद्ध की तरफ एक कदम बढ़ाना करार दिया है। अब तक अमरीका और योरप के देश यूक्रेन को जो फौजी मदद कर रहे हैं, उनमें हथियारों के इस्तेमाल पर उन्होंने कुछ किस्म के प्रतिबंध भी लगाए हुए हैं ताकि रूस उसे उस पर हमला न मान सके, और नाटो देशों से मिले हथियार मोटेतौर पर यूक्रेन अपनी ही खोई हुई जमीन पर काबिज रूसी फौजों पर इस्तेमाल कर पा रहा था। रूसी राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की लगातार पश्चिम के देशों और नाटों सदस्यों पर लगे हुए थे कि उन्हें रूस की सरहद के भीतर हथियारों के इस्तेमाल की छूट मिले क्योंकि रूसी फौजी विमानतलों से यूक्रेन पर लगातार हमलावर विमान आते हैं। लेकिन फौजी तनाव न बढ़े यह सोचकर अब तक अमरीका और नाटो की तरफ से यूक्रेन को उनके दिए हथियारों के सीमित इस्तेमाल की ही शर्त लगाई हुई थी। अमरीकी राष्ट्रपति ने इस तस्वीर को एकदम से बदल दिया है।
 
इस तस्वीर के कई पहलू हैं। यूक्रेन और नाटो के पास आज से कुल 60 दिन है अमरीका के नए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के काम संभालने को। और ट्रम्प इस बात को दर्जनों बार बोल चुके हैं कि वे यूक्रेन की ऐसी मदद जारी नहीं रखने वाले हैं, और न ही वे नाटो के बाकी सदस्य देशों के मुकाबले अमरीका का अधिक फौजी खर्च करने वाले हैं। ट्रम्प ने यह भी कई बार कहा है कि वे यूक्रेन की जंग एक दिन में खत्म करवा देंगे। अब एक दिन में जंग को खत्म करने का काम या तो रूसी राष्ट्रपति कर सकते हैं, या यूक्रेन के राष्ट्रपति, दूसरे पक्ष की शर्तों को मानकर। इसके अलावा ऐसा कोई जाहिर जरिया नहीं दिखता कि अमरीकी राष्ट्रपति इसे एक दिन में रूकवा सकें। फिर भी हम इसे महज बातचीत का एक अंदाज मानते हैं कि ट्रम्प ने चुनाव अभियान के दौरान लापरवाही से इस तरह का बयान दिया होगा। लेकिन आज के अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन आखिरी हफ्तों में यह जो बहुत बड़ा फैसला कर गए हैं, उसके खतरों को भी समझने की जरूरत है। आज सुबह ही रूस के कुछ फौजी विश्लेषकों ने यह कहा है कि कल ही यूक्रेन ने अमरीकी इजाजत मिलते ही लंबी दूरी की मिसाइलों से रूस के भीतर हमला किया है, और इन अमरीकी मिसाइलों से ऐसा हमला अमरीकी मदद के बिना नहीं किया जा सकता था। इन विश्लेषकों का यह भी कहना है कि अमरीका एक किस्म से यूक्रेन की जंग में शामिल हो गया है, और अमरीकी फौजियों ने इस मिसाइल हमले में मदद भी की होगी, और अमरीकी उपग्रहों से मिली जानकारी भी इसमें इस्तेमाल हुई होगी। रूस ने अभी-अभी, यूक्रेन को मिली अमरीकी इजाजत के बाद, अपनी परमाणु नीति में यह बदलाव किया है कि अगर उसके साथ युद्ध में शामिल किसी देश की मदद अगर कोई परमाणु-हथियार शक्ति संपन्न देश करेगा, तो उसे रूस पर परमाणु शक्ति का सीधा हमला माना जाएगा, और ऐसे में रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकेगा। इस पर राष्ट्रपति पुतिन ने अभी दस्तखत किए हैं, और खुद नाटो के भीतर अमरीकी राष्ट्रपति के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। जर्मनी ने इस अमरीकी फैसले पर कहा है कि वे यूक्रेन को रूस के भीतर हमला करने वाली लंबी दूरी की मिसाइलें देने के हिमायती नहीं है क्योंकि इससे कोई समाधान नहीं होगा, बल्कि समस्या बढ़ेगी।
 
अब अमरीकी राष्ट्रपति के इस ताजा फैसले को इस हिसाब से भी समझने की जरूरत है कि अमरीका चाहे नाटो (नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) का सदस्य है, और यूक्रेन को मदद देने में सबसे आगे है, लेकिन अगर कोई नौबत रूसी परमाणु हथियारों तक पहुंचती है, और तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराता है, तो अमरीका नाटो के अधिकतर यूरोपीय सदस्यों के बाहर के इक्का-दुक्का देशों में से है, और रूसी हमले की सीमा से दूर भी है। इसलिए तकरीबन तमाम यूरोपीय देशों वाले नाटो की अपनी हिफाजत अमरीका की हिफाजत से कुछ अलग भी है। और अमरीका में यह अपने आपमें एक बहुत बड़े फेरबदल का दौर है जिसमें कुछ हफ्तों के भीतर देश की विदेश नीति, और फौजी रणनीति दोनों में जमीन आसमान का फर्क आ सकता है। इसलिए आज बिदाई की बेला में पहुंचे हुए राष्ट्रपति बाइडन के दूरगामी नतीजों वाले ऐसे फैसले को लेकर योरप में बेचैनी बढ़ रही है। खुद ट्रम्प के सलाहकार और सहयोगी इस फैसले के खिलाफ बोल रहे हैं, और ऐसा लगता है कि काम संभालते ही ट्रम्प पहला फैसला यूक्रेन से हाथ खींचने का ले सकते हैं। और शायद यही एक वजह है कि मौजूदा राष्ट्रपति बाइडन इन दो महीनों में रूस के खिलाफ यूक्रेन को एक बेहतर और मजबूत नौबत में पहुंचा देना चाहते हैं।
 
यह बात हर देश की अपनी लोकतांत्रिक और संसदीय परंपराओं पर निर्भर करती है कि जाती हुई सरकार कितने दूर तक के फैसले ले। हमारा अपना सोचना यह है कि जब अगली निर्वाचित सरकार अपनी नीति-रणनीति साफ कर चुकी है, तो उसे काम सौंपने के दो महीने पहले ऐसा फैसला लेना जायज नहीं है जिसका असर आने वाले बरसों तक रहेगा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ट्रम्प का कार्यकाल शुरू होने पर राहत की सांस लेंगे क्योंकि यूक्रेन को अमरीकी मदद तकरीबन बंद हो सकती है। उस हालत में रूसी फौजें यूक्रेन की जितनी जमीन पर कब्जा कर चुकी हैं, वह कब्जा जारी रख सकती हैं। शायद ऐसे ही कब्जे को अगले दो महीने में छुड़ाने के हिसाब से बाइडन यूक्रेन की मदद कर रहे हैं।
 
ट्रम्प के आते ही अमरीका के योरप के साथ रिश्ते एक बार फिर कसौटी पर चढ़ेंगे, और ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति परवान चढ़ेगी। आज भी योरप के नेताओं में यह फिक्र चल ही रही है कि क्या अमरीका योरप में बने सामानों पर कोई टैरिफ लगा सकता है? जब योरप के देश अपने खुद के पेट पर लात पडऩे की आशंका से जूझ रहे हों, तो अमरीका के साथ उनके रिश्ते कैसे रहेंगे, और अमरीका की यूक्रेन-नीति का नाटो कितना समर्थन या विरोध कर सकेगा, ऐसी कई बातें अभी परेशानी और दुविधा खड़ी कर रही हैं। अमरीकी व्हाइट हाऊस में सत्ता का यह हस्तांतरण बिना हिंसा के तो होने जा रहा है, लेकिन नीतियों के भूचाल के बिना नहीं। आने वाले कुछ महीने जाती हुई सरकार के जायज या नाजायज दीर्घकालीन फैसलों को देखने के रहेंगे, और अगली सरकार की नीतियों, और उन पर अमल की रफ्तार दोनों को बारीकी से देखने के भी रहेंगे। आगे-आगे देखें, होता है क्या। 

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