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ट्रंप के लिए पुतिन ने जो कहा उसके मायने क्या हैं, इसका असर पीएम मोदी पर क्या पड़ेगा?
09-Nov-2024 2:46 PM
ट्रंप के लिए पुतिन ने जो कहा उसके मायने क्या हैं, इसका असर पीएम मोदी पर क्या पड़ेगा?

-रजनीश कुमार

जब अमेरिका को छींक आती है तो दुनिया ज़ुकाम से ग्रसित हो जाती है।

दुनिया भर में अमेरिका के प्रभाव को रेखांकित करने के लिए अक्सर ये लाइन कही जाती है। ऐसे में अमेरिका में जब चुनाव होता है तो पूरी दुनिया की नजऱ होती है कि सबसे शक्तिशाली देश की कमान किस व्यक्ति के पास आएगी और उसका रुख़ क्या होगा।

डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और दुनिया भर में उनकी जीत को संभावनाओं और आशंकाओं के आईने में देखा जा रहा है।

अमेरिकी मीडिया आउटलेट ब्लूमबर्ग ने एक स्टोरी की है, जिसमें बताया गया है कि ट्रंप के आने से दुनिया के कई नेता विजेता की तरह महसूस कर रहे होंगे।

ब्लूमबर्ग ने ट्रंप के आने से जिन्हें विजेता की श्रेणी में रखा है, वे हैं- इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन, उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई।

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने गुरुवार को डोनाल्ड ट्रंप को बधाई दी। अमेरिकी चुनाव पर पुतिन की यह पहली टिप्पणी थी। पुतिन ने ट्रंप के साहस की प्रशंसा की क्योंकि जुलाई महीने में चुनावी कैंपेन के दौरान उन पर जानलेवा हमला हुआ था।

पुतिन ने ट्रंप के लिए क्या कहा?

पुतिन ने ब्लैक सी रिजॉर्ट ऑफ सोची में आयोजित एक इंटरनेशनल फोरम में गुरुवार को कहा, ‘ट्रंप पर जब जानलेवा हमला हुआ तब उनके व्यवहार से मैं काफ़ी प्रभावित था। ट्रंप एक साहसिक व्यक्ति के रूप में उभरे। ट्रंप ने हमले के बाद ख़ुद को बिल्कुल सही रास्ते पर रखा। ट्रंप अगर रूस के साथ संबंध बहाल करने और यूक्रेन संकट को ख़त्म करने में मदद करने की बात कर रहे हैं तो मेरे विचार से यह ध्यान देने लायक है।’

कहा जा रहा है कि ट्रंप का फिर से आना पुतिन के लिए मौक़े की तरह है। पश्चिम के विभाजन का पुतिन दोहन करेंगे और यूक्रेन के मामले में वह फायदा उठाएंगे।

ट्रंप नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो को लेकर हमलावर रहे हैं। ट्रंप को लगता है कि नेटो अमेरिका के लिए आर्थिक बोझ की तरह है।

दूसरी तरफ़ पुतिन भी नेटो से चिढ़े रहते हैं। यूक्रेन पर रूस के एक हमले की वजह ये भी थी कि यूक्रेन नेटो में शामिल होने की तैयारी कर रहा था। पुतिन बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि नेटो रूस के पड़ोसी देशों में अपना विस्तार करे।

ट्रंप अमेरिका फस्र्ट पॉलिसी की वकालत करते हैं और ऐसे में यूक्रेन को रूस से जंग के लिए फंड देंगे या नहीं इस पर संदेह बना हुआ है।

हालांकि कई लोग ट्रंप की अस्थिर सोच को लेकर भी चिंतित रहते हैं।

ब्लूमबर्ग ने लिखा है, ‘रूस में कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि ट्रंप छोटी अवधि के लिए युद्ध को बढ़ा सकते हैं ताकि पुतिन को समझौते के लिए झुकाया जा सके। लेकिन इसके विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं क्योंकि परमाणु टकराव की आशंका बढ़ जाएगी।’

ट्रंप भारत को रूस के मामले में छूट देंगे?

अगर ट्रंप और पुतिन के बीच संबंध बेहतर होते हैं तो यह भारत के लिए भी अच्छा होगा। भारत और रूस की दोस्ती से अमेरिका चिढ़ा रहता है। बाइडन प्रशासन का दबाव था कि भारत रूस से तेल आयात न बढ़ाए और रूस के खिलाफ पश्चिम के प्रतिबंधों में शामिल हो जाए। अमेरिका ये भी चाहता है कि भारत का रूस से रक्षा संबंध सीमित हो।

लेकिन ट्रंप के आने के बाद इस तरह के दबाव ख़त्म होने की बात कही जा रही है। रूस में भारत के राजदूत रहे और भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल मानते हैं कि पुतिन को लेकर बाइडन जैसा सोचते हैं, ट्रंप वैसा नहीं सोचते हैं लेकिन बात केवल राष्ट्रपति की सोच की नहीं है।

कंवल सिब्बल ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ‘मैं भी मानता हूँ कि रूस से संबंध में भारत पर बाइडन प्रशासन की तरह ट्रंप का दबाव नहीं होगा। लेकिन ट्रंप के आने बाद भी रूस पर पश्चिम का प्रतिबंध आसानी से नहीं हटेगा। ऐसे में भारत के लिए पेमेंट की मुश्किलें बनी रहेंगी।’

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर संजय कुमार पांडे भी मानते हैं कि ट्रंप के आने को रूस और भारत के संबंधों के लिहाज से सकारात्मक रूप में देख सकते हैं।

प्रोफेसर पांडे कहते हैं, ‘लेकिन इसे थोड़ा उल्टा करके सोचिए कि अगर पुतिन को लेकर ट्रंप भी सख़्त हो जाते हैं और तय करते हैं कि प्रतिबंध भारत को भी मानना होगा तब क्या होगा? मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में भारत के लिए थोड़ी असहज स्थिति होगी। ट्रंप सोच के स्तर पर अस्थिर और अप्रत्याशित हैं। ऐसे में संभावनाएं और आशंकाएं दोनों हैं।’

भारत पर रूस से संबंधों को सीमित करने का दबाव यूक्रेन में युद्ध के बाद से बढ़ा है। ट्रंप युद्ध खत्म कराने की बात कर रहे हैं। अगर ऐसा होता है कि भारत पर रूस को लेकर अमेरिका का दबाव कम होगा।

ट्रंप वाकई जंग खत्म करा पाएंगे?

लेकिन क्या ट्रंप यूक्रेन और रूस की जंग खत्म करा सकते हैं?

कंवल सिब्बल कहते हैं, ‘ट्रंप ने कहा था कि अगर वो राष्ट्रपति होते तो जंग शुरू ही नहीं होती। संभव है कि ट्रंप इसे शुरू नहीं होने देते। लेकिन अब पुतिन को ट्रंप युद्ध बंद करने के लिए कैसे मनाएंगे? ट्रंप ने कोई आधार बताया नहीं है। पुतिन अब चाहेंगे कि फरवरी 2022 के बाद उन्होंने यूक्रेन के जितने हिस्से को अपने नियंत्रण में ले लिया है, उसे यूक्रेन का ना दें।’

सिब्बल कहते हैं, ‘इसके अलावा पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन के संविधान में इस बात का जिक्र हो वो कभी नेटो में शामिल नहीं होगा। यूक्रेन की सेना को सीमित किया जाए और नेटो का विस्तार उसके पड़ोस में ना हो। मुझे नहीं लगता है कि ट्रंप इन मांगों को मान लेंगे।’

‘बात केवल ट्रंप के मानने की नहीं है। नेटो का संविधान कहता है कि नए सदस्यों के लिए उसके दरवाज़े खुले हैं। केवल ट्रंप के चाहने से नेटो का नियम नहीं बदल जाएगा। यूक्रेन के संविधान में क्या लिखा जाए इसे ट्रंप नहीं तय कर सकते हैं। रिपब्लिकन पार्टी के लोग ही इसके लिए तैयार नहीं होंगे। अमेरिका ने कांग्रेस के ज़रिए यूक्रेन को अरबों डॉलर का फंड दिया है और इसका समर्थन रिपब्लिकन पार्टी ने भी किया था।’

प्रोफेसर संजय पांडे भी मानते हैं कि अब चीज़ें ज़्यादा जटिल हो गई हैं।

प्रोफेसर पांडे कहते हैं, ‘फरवरी 2022 में हमले से पहले रूस इतने पर तैयार था कि यूक्रेन को नेटो से दूर रखा जाए और उसका विस्तार रूस के पड़ोस में ना हो। अब रूस ने फरवरी 2022 के बाद यूक्रेन की जितनी जमीन पर कब्जा कर लिया है, उसे शायद ही छोड़े।’

ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान स्पष्ट कर दिया था कि नेटो सदस्य देश जब तक अपनी जीडीपी का दो प्रतिशत डिफेंस पर खर्च नहीं करेंगे तक ट्रीटी की बाध्यताओं के बावजूद सदस्य देशों की रक्षा नहीं करेंगे। लेकिन इस साल नेटो के केवल दो तिहाई सदस्य ही इस दो प्रतिशत की सीमा तक पहुँच पाएंगे।

यूरोप को लेकर ट्रंप और पुतिन की सोच

जुलाई 2018 में ट्रंप ने सीएनबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि अगर रूसी राष्ट्रपति पुतिन से समझौते की उनकी कोशिश नाकाम रहती है तो वह पुतिन से सबसे बड़े दुश्मन होंगे।

ट्रंप ने कहा था, ‘मैं उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल बन जाऊंगा लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इसकी ज़रूरत पड़ेगी। असल में मैं सोचता हूँ कि दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हों। रूस को लेकर मैं जितना सख्त रहा हूँ, उतना अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति नहीं रहा है। लेकिन मेरा मानना है कि राष्ट्रपति पुतिन और रूस के साथ होना सकारात्मक है न कि नकारात्मक।’

ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) में यूरोप के बड़े देश फ्ऱांस, जर्मनी और ब्रिटेन असहज दिखे थे। यहां तक कि पड़ोसी देश कनाडा को लेकर भी ट्रंप का रुख काफी कड़ा रहा था। ट्रंप नहीं चाहते हैं कि अमेरिका किसी भी ऐसे समझौते में रहे जिससे उसका नुकसान हो रहा है। पुतिन भी यूरोप को लेकर काफ़ी सख्त रवैया रखते हैं।

गुरुवार को ही पुतिन ने सोची में यूरोप को लेकर कहा, ‘मैंने अपने सहकर्मियों और विशेषज्ञों से पूछा कि यूरोप में अभी क्या कमी है? उनका जवाब था कि दिमाग की कमी है।’

जॉर्ज रॉबर्टसन ब्रिटेन के पूर्व रक्षा मंत्री हैं और वह 1999 से 2003 के बीच नेटो के महासचिव थे। उन्होंने पिछले साल नवंबर महीने में कहा था कि पुतिन रूस को शुरुआत में नेटो में शामिल करना चाहते थे लेकिन वह इसमें शामिल होने की सामान्य प्रक्रिया को नहीं अपनाना चाहते थे।

जॉर्ज रॉबर्टसन ने कहा था, ‘पुतिन समृद्ध, स्थिर और संपन्न पश्चिम का हिस्सा बनना चाहते थे।’

पुतिन 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने थे। जॉर्ज रॉबर्टसन ने पुतिन से शुरुआती मुलाकात को याद करते हुए बताया है, ‘पुतिन ने कहा- आप हमें नेटो में शामिल होने के लिए कब आमंत्रित करने जा रहे हैं? मैंने जवाब में कहा- हम नेटो में शामिल होने के लिए लोगों को बुलाते नहीं हैं। जो इसमें शामिल होना चाहते हैं, वे आवेदन करते हैं। इसके जवाब में पुतिन ने कहा- मैं उन देशों में नहीं हूँ कि इसमें शामिल होने के लिए आवेदन करूं।’

इसके बाद नेटो के विस्तार को लेकर पुतिन का ग़ुस्सा बढ़ता गया। मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, एस्टोनिया और लिथुआनिया भी 2004 में नेटो में शामिल हो गए थे। क्रोएशिया और अल्बानिया भी 2009 में शामिल हो गए। जॉर्जिया और यूक्रेन को भी 2008 में सदस्यता मिलने वाली थी लेकिन दोनों अब भी बाहर हैं। (bbc.com/hindi)

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