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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 9 नवंबर। छत्तीसगढ़ में चल रही इंटर सिटी और सिटी बसों की खस्ता हालत को लेकर सुनवाई के दौरान शुक्रवार को हाईकोर्ट ने शासन के रवैये पर नाराजगी जाहिर की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने पूछा कि जनहित के मुद्दों पर इतनी देरी क्यों हो रही है। पहले शासन ने प्रकरण को विधि विभाग भेजने की बात कही थी, लेकिन अब कैबिनेट बैठक की योजना बताई जा रही है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह मसला 15 दिनों में निपटाया जाए, ताकि प्रदेश के नागरिकों को आवागमन में हो रही परेशानी से राहत मिल सके।
अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और जल्द ही कैबिनेट की बैठक में इंटर सिटी और सिटी बसों के संचालन पर निर्णय लिया जाएगा। इसके जवाब में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि शासन द्वारा समय पर निर्णय न लेना जनहित के प्रति लापरवाही दर्शाता है। अदालत ने शासन को अल्टीमेटम दिया है कि इसे 15 दिनों में निर्धारित करें, ताकि प्रदेश भर के यात्रियों को सुविधा मिल सके।
हाईकोर्ट ने प्रदेश में सिटी बसों की दयनीय हालत और अंतर नगरीय बस सेवा को लेकर जनहित याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी। कोर्ट ने पूछा था कि खटारा बसों के सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इस पर शासन ने बताया कि केंद्र से स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत पीएमई बसें जल्द ही आ रही हैं और दिसंबर माह से इनका संचालन बिलासपुर में भी होगा, जिससे खस्ताहाल बसों की समस्या समाप्त हो जाएगी। इसके अलावा, सरकार ने इलेक्ट्रिक बसें चलाने की योजना का जिक्र किया, जिसे इसी वर्ष के अंत तक लागू किया जाएगा।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में कुल 4,604 बसों को स्थायी परमिट जारी किया गया है। कोर्ट ने पूछा कि क्या ये बसें वास्तव में चल रही हैं या केवल कागजों पर ही मौजूद हैं। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने सभी रूट्स पर किराया डिस्प्ले करने का निर्देश भी दिया ताकि यात्रियों को जानकारी मिल सके कि बसें किस रूट पर चल रही हैं और किराया कितना है।