राष्ट्रीय
भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के इर्द-गिर्द कितने ही विवाद रहे हैं. टेक्टॉनिक प्लेटों की हरकतें इस आग में और घी डालने का काम कर रही हैं.
डॉयचे वैले पर यूलिया फैर्गिन की रिपोर्ट-
भारत और चीन के बीच के विवाद का एक केंद्रीय बिंदु दोनों की साथ लगने वाली सीमा है. इस मुद्दे पर परमाणु शक्ति संपन्न दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले इन पड़ोसी देशों और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच 1962 में युद्ध भी हो चुका है. बीते दशकों में कई बार सशस्त्र संघर्ष हुए हैं.
हाल ही में एक भारतीय मीडिया संस्थान के रिपोर्टर के हवाले से इस सीमा से आई एक रिपोर्ट ने इस बहस को नया रूप दे दिया है. पता चला कि भारत अपनी जमीन खो रहा है और वो जमीन चीन में मिल रही है. इसका कारण है टेक्टॉनिक प्लेटों की गतिविधियां, जो एक प्राकृतिक घटना है और हमेशा चल रही होती है.
क्या होती हैं टेक्टॉनिक प्लेटें?
पृथ्वी की सबसे बाहरी परत, यानी क्रस्ट कई छोटे-छोटे टुकड़ों से बनने वाली पहेली जैसी है. कुछ बहुत बड़े टुकड़े होते हैं, जिन्हें ओशेनिक प्लेट कहते हैं. वहीं, कुछ थोड़े छोटे महाद्वीपीय टुकड़े होते हैं. कुल मिलाकर हमारी धरती के क्रस्ट में ऐसे कितने टुकड़े हैं, इसपर दुनिया भर के वैज्ञानिकों में मतभेद हैं.
ये प्लेटें धरती के कोर, यानी केंद्र में भरे तरल पदार्थ के ऊपर तैरती रहती हैं. जैसे-जैसे मैग्मा फूलता है, धरती की सतह पर कहीं-ना-कहीं कोई दरार आती है. इन दरारों वाली जगहों पर प्लेटें अपनी जगह से हिल जाती हैं. इस तरह हर साल कुछ सेंटीमीटर खिसकते रहना पूरी तरह से एक नैसर्गिक प्रक्रिया है.
ऐसा अरबों सालों से होता आया है. या तो इससे भूखंड एक-दूसरे के पास आते जाते हैं, या दूर होते जाते हैं. नतीजा ये होता है कि इन प्लेटों के ऊपर बसे महाद्वीप कहीं तो एक दूसरे की ओर बढ़ रहे हैं या एक-दूसरे से दूर जा रहे हैं.
इंडियन प्लेट में क्या खास है?
करीब पांच करोड़ साल पहले इंडियन प्लेट की बड़ी यूरेशियन प्लेट से टक्कर हुई थी. चीन इसी यूरेशियन प्लेट पर स्थित है. जर्मनी के पॉट्सडाम में स्थित जियो रिसर्च सेंटर के रिसर्चरों ने सालों पहले इंडियन प्लेट को "टेक्टॉनिक प्लेटों की प्रतियोगिता में सबसे तेज प्रतिभागी" बताया था.
ये घटना तो बहुत पहले से घट रही है. इसके कारण हिमालय पर्वत शृंखला में दोनों प्लेटों के बीच धक्का-मुक्की की स्थिति के कारण पूरे इलाके में बड़े भूकंप आए हैं. साथ ही, अब इस पर चर्चा इसलिए भी हो रही है कि लाखों सालों की टक्कर का असर देखें तो भारत करीब 2,000 किलोमीटर खिसक चुका है.
इस समय भी इंडियन प्लेट हर साल पांच सेंटीमीटर की रफ्तार से यूरेशियन प्लेट की ओर खिसकती जा रही है. इसका मतलब कि भारत की जमीन चीन में मिलती जा रही है.
क्या भारत की जमीन ऐसे ही खोती चली जाएगी?
जियो रिसर्च सेंटर में काम करने वालीं एक भूभौतिकी विशेषज्ञ सबरीना मेत्सगर बताती हैं, "अगर इंडियन प्लेट इसी तरह से यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसकती रही, तो एक दिन भारत पूरा ही गायब हो जाएगा." हालांकि, जैसा कि हर टक्कर के साथ होता है, ये भी कहीं ना कहीं रुक जाएगी.
सबरीना मेत्सगर कहती हैं कि इंडियन प्लेट की यूरेशियन से टकराने की रफ्तार भी लगातार कम होती जाएगी. एक लाख साल पहले ये कहीं ज्यादा तेज थी.
इसीलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि टेक्टॉनिक प्लेटों के कारण चिंता में पड़ने की कोई वजह नहीं है. इससे ज्यादा जमीन भारत हर साल बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण खोता जा रहा है. ऐसा जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है और ये देश के लिए चिंता का कहीं बड़ा कारण होना चाहिए. (dw.com)