विचार / लेख
@RAJNATHSINGH/ भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन (दाएं)
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद मतगणना पूरा हो चुका है, और डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं।
ट्रंप 2017 से 2021 तक अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति रह चुके हैं। उनकी नीतियां पूरी दुनिया जानती है और भारत की नरेंद्र मोदी सरकार के पास ट्रंप से कई मोर्चों पर डील करने का अनुभव है।
इस बार फिर ट्रंप जीतते हैं तो भारत पर क्या असर होगा?
नरेंद्र मोदी को ट्रंप कई बार अपना दोस्त बता चुके हैं लेकिन इसके साथ ही भारत की नीतियों पर हमला भी बोलते रहे हैं। इस चुनाव में ट्रंप कई बार पीएम मोदी का नाम ले चुके हैं।
क्या ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत को लेकर राष्ट्रपति बाइडन की जो नीतियां थीं, वो बदल जाएंगी?
आर्थिक और कारोबारी रिश्ते
माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप जीते तो उनकी आर्थिक नीतियां ‘अमेरिका फस्र्ट’ पर केंद्रित होगी।
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण देने की नीति अपनाई थी। उन्होंने चीन और भारत समेत कई देशों के आयात पर भारी टैरिफ़ लगाया था।
मिसाल के तौर पर भारत से अमेरिकी हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर टैरिफ हटाने या घटाने को कहा था।
ट्रंप ने अमेरिका फस्र्ट का नारा दिया है और वो अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं के आयात पर ज़्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। भारत भी इसके घेरे में आ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नजऱ रखने वाले पत्रकार शशांक मट्टू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है, ‘ट्रंप की नजर में भारत कारोबारी नियमों का बहुत ज्यादा उल्लंघन करता है। वो अमेरिकी चीज़ों पर भारत का बहुत ज़्यादा टैरिफ लगाना पसंद नहीं करते। ट्रंप चाहते हैं कि उनके देश से आयात होने वाली चीजों पर 20 फीसदी तक ही टैरिफ लगे।’
वो लिखते हैं, ‘कुछ अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर ट्रंप के टैरिफ नियम लागू हुए तो 2028 तक भारत की जीडीपी में 0.1 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। भारत और अमेरिका के बीच 200 अरब डॉलर का कारोबार होता है। अगर ट्रंप ने टैरिफ की दरें ज्यादा बढ़ाईं तो भारत को काफी नुकसान हो सकता है।’
ट्रंप की कारोबारी नीतियों से भारत का आयात महंगा हो सकता है। ये महंगाई दर को बढ़ाएगा और इसे ब्याज दरों में ज्यादा कटौती नहीं हो पाएगी। इससे उपभोक्ताओं ख़ास कर मध्य वर्ग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि उनकी ईएमआई बढ़ सकती हैं।
रक्षा संबंध
डोनाल्ड ट्रंप चीन के कट्टर विरोधी माने जाते हैं। उनके पहले कार्यकाल में अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी खराब हो गए थे।
ये स्थिति भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधों को और मज़बूत करेगी। अपने पहले कार्यकाल के दौरान वो क्वाड को मज़बूती देने के लिए काफ़ी सक्रिय दिखे थे। क्वाड एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान का गठजोड़ है।
ट्रंप राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत के साथ हथियारों के निर्यात, संयुक्त सैन्य अभ्यास और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में दोनों देशों के बीच ज़्यादा अच्छा तालमेल दिख सकता है। ये चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भारत की स्थिति ज्यादा मजबूत कर सकता है।
अमेरिकी थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो पैसिफिक के एनालिस्ट डेरेक ग्रॉसमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘अगर ट्रंप जीते तो भारत और अमेरिका की मौजूदा रणनीति जारी रहेगी। इसमें ज्यादा मूल्यों को बात नहीं होगी। कुल मिलाकर ट्रंप राष्ट्रपति बनते हैं तो इस मामले में भारत फायदे में रहेगा।’
शशांक मट्टू लिखते हैं,‘ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते हुए भारत के साथ बड़े रक्षा समझौते किए थे। उन्होंंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे संबंध बनाए और चीन के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया।’
ट्रंप की वीजा नीति
ट्रंप की नीतियां प्रवासियों के लिए काफी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। ट्रंप इस मामले में काफी मुखर हैं और यह अमेरिकी चुनाव का अहम मुद्दा है।
ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजने का वादा किया है। उनका कहना है कि अवैध प्रवासी अमेरिका के लोगों के रोजग़ार खा रहे हैं।
बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका के टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करते हैं और वो वहाँ एच-1 बी वीजा पर जाते हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल एच-1बी वीजा नियमों पर सख्ती दिखाई थी।
इसका भारतीय पेशेवरों और टेक्नोलॉजी कंपनियों पर असर दिखा था।
अगर ये नीति जारी रही भारतीयों के लिए अमेरिका में नौकरियों के अवसर कम होंगे।
कड़ी प्रवास नीति भारतीय टेक्नोलॉजी कंपनियों को अमेरिका को छोडक़र दूसरे देशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
मानवाधिकार का मुद्दा
ट्रंप ने भारत में मानवाधिकार के रिकॉर्ड पर अब तक कुछ नहीं कहा है। ये भारत की मोदी सरकार के लिए अनुकूल स्थिति है।
कश्मीर में पुलवामा अटैक के दौरान भी ट्रंप ने भारत के ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ का समर्थन किया था।
हालांकि बाइडन प्रशासन मानवाधिकार और लोकतंत्र के सवाल पर भारत के खिलाफ ज्यादा मुखर रहा है।
कमला हैरिस ने 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा था, ‘अपने-अपने देशों में हम लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थानों की रक्षा करें ये जरूरी है।’
डेमोक्रेटिक पार्टी के शासन में लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दे पर ज्यादा जोर रहा है। ट्रंप की तुलना में डेमोक्रेटिक राष्ट्रपतियों के लिए ये ज्यादा प्राथमिकता वाले मुद्दे रहे हैं।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर क्या करेंगे ट्रंप
कमला हैरिस और ट्रंप दोनों चीन को रोकना चाहेंगे और इसके लिए एशिया में उसका सबसे मुफीद पार्टनर भारत है।
ट्रंप जीतते हैं तो चीन के खिलाफ भारत के साथ उनका रणनीतिक सहयोग और मजबूत होगा। लेकिन ट्रंप अमेरिका के सहयोगी देशों के खिलाफ भी झगड़ते दिखे हैं।
शशांक मट्टू इस मामले में ट्रंप के शासन में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ रिश्तों में तनाव की याद दिलाते हैं।
वो लिखते हैं, ‘ये भी साफ नहीं है कि वो चीन की खिलाफ ताइवान का बचाव करेंगे कि नहीं। इस तरह के रुख से एशिया में अमेरिका का गठबंधन कमजोर होगा। इससे चीन की स्थिति मजबूत होगी, जो भारत के पक्ष में नहीं है।’
‘उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का भी प्रस्ताव दिया था,जो भारत को पसंद नहीं आया था। उन्होंने तालिबान से समझौता कर अफग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों को बुला लिया। अमेरिका का ये दांव दक्षिण एशिया में भारत के हितों के खिलाफ पड़ा।’
बांग्लादेश के सवाल पर ट्रंप ने खुलकर भारत का साथ दिया है। ट्रंप ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाया था।
हाल ही में उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा था, ‘मैं बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा और भीड़ की लूट की कड़ी निंदा करता हूं। इस समय बांग्लादेश में पूरी तरह अराजकता की स्थिति है।’
उन्होंने लिखा, ‘अगर मैं राष्ट्रपति रहता तो ऐसा कतई नहीं होता। कमला और जो बाइडन ने पूरी दुनिया और अमेरिका में हिंदुओं की अनदेखी की है। इसराइल से लेकर यूक्रेन तक उनकी नीति भयावह रही है। लेकिन हम अमेरिका को एक बार फिर मजबूत बनाएंगे और शांति लाएंगे।’
उन्होंने आगे लिखा, ‘हम रेडिकल लेफ्ट के धर्म विरोधी एजेंडे से हिंदू अमेरिकी को बचाएंगे। अपने शासन में मैं भारत और दोस्त नरेंद्र मोदी के साथ संबंधों को और मज़बूत करूंगा।’
जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है तो विशेषज्ञों की नजर में अमेरिका इंडो-पैसिफिक नीति में इसे लेकर वो असमंजस की स्थिति में नजर आता है।
थिंक टैंक ‘द विल्सन सेंटर’ के दक्षिण एशियाई निदेशक माइकल कुगलमैन ने लिखा है, ‘अमेरिकी अधिकारी इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं। अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति में पाकिस्तान की जगह कहाँ है? पाकिस्तान चीन का दोस्त है और अमेरिका अब अफग़ानिस्तान को अपनी रणनीति का हिस्सा नहीं मानता है, क्योंकि वहाँ तालिबान है।’
माइकल कुगलमैन से जब भारत और रूस के रिश्तों पर अमेरिकी नज़रिये के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ट्रंप रूस और भारत के रिश्तों के प्रति ज़्यादा उदार हो सकते हैं। लेकिन भारत के साथ कारोबार और टैरिफ के मुद्दे पर वो कड़ा रुख अपना सकते हैं।
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है,
‘बाइडन प्रशासन के साथ भारत के नए तनावों ने उस पुरानी थिअरी को फिर से जिंदा कर दिया है कि रिपब्लिकन पार्टी के शासन में भारत अमेरिकी संबंध ज़्यादा अच्छे रहते हैं। लेकिन अमेरिका का चुनाव कोई भी जीते इसमें भारत कनेक्शन तो रहेगा। कमला हैरिस पहली भारतीय मूल की अमेरिकी राष्ट्रपति होंगी तो रिपब्लिकन पार्टी के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार जेडी वेन्स की पत्नी उषा वेन्स भारतीय अमेरिकी महिला हैं।’
ट्रंप का कश्मीर पर रुख
ट्रंप का रुख पाकिस्तान को लेकर क्या होगा, इससे भी भारत के हित जुड़े हैं। 2019 के जुलाई महीने में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिका के दौरे पर थे।
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस में इमरान खान की अगवानी कर रहे थे।
उसी दौरान ट्रंप ने कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही थी। ट्रंप ने यहाँ तक दावा कर दिया था कि पीएम मोदी भी चाहते हैं कि वो कश्मीर पर मध्यस्थता करें।
भारत ने ट्रंप के दावे को ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि पीएम मोदी ने ट्रंप से ऐसा कुछ भी नहीं कहा था।
ऐसा दशकों बाद हुआ था, जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति ने कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही थी। पाकिस्तान ने ट्रंप के इस बयान का स्वागत किया था जबकि भारत के लिए यह असहज करने वाला था।भारत की आधिकारिक लाइन है कि कश्मीर पर किसी की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा।
पाकिस्तान के सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद मानते हैं कि ट्रंप का आना पाकिस्तान के हक में होगा। उन्होंने द इंडिपेंडेंट उर्दू से कहा, ‘मेरे हिसाब से ट्रंप पाकिस्तान के लिए बेहतर होंगे। इसराइल के मामले में कोई फर्क नहीं होगा। ट्रंप नई जंग शुरू नहीं करेंगे। अफग़़ानिस्तान से उन्होंने अपने सैनिकों को बुला लिया। ये काम न ओबामा कर सकते थे और न ही बाइडन। यूक्रेन की जंग भी ट्रंप ख़त्म करेंगे। ट्रंप पिछले 25 सालों में पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही। इसके पहले विल क्लिंटन ने कश्मीर का जिक्र किया था।’
हुसैन ने कहा, ‘अतीत में भी रिपब्लिकन पार्टी पाकिस्तान के कऱीब रही है। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की सरकार पाकिस्तान के साथ हमेशा से रही है। इंदिरा गांधी बांग्लादेश अलग करने के बाद पाकिस्तान पर भी हमला करना चाहती थीं लेकिन राष्ट्रपति निक्सन ने ऐसा नहीं होने दिया था। हम अमेरिका से अपने फायदे के लिए सही से तोलमोल नहीं कर पा रहे हैं। अमेरिका ने इस इलाके में दो अहम फैसले किए हैं। एक यह कि उनका बेहतरीन साथी और रणनीतिक साझेदार भारत है और दूसरा ये कि उनका दुश्मन चीन है। ऐसे में हमें फैसला करना है कि क्या करना है। चीन हमारे साथ चट्टान के साथ खड़ा है लेकिन अमेरिका को जब हमारी जरूरत पड़ती है तो सशर्त साथ आता है।’ (bbc.com/hindi)