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जस्टिस चंद्रचूड़ ने रिटायर होने से पहले पीएम मोदी को घर बुलाने के सवाल पर रखा अपना पक्ष
05-Nov-2024 4:13 PM
जस्टिस चंद्रचूड़ ने रिटायर होने से पहले पीएम मोदी को घर बुलाने के सवाल पर रखा अपना पक्ष

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने घर पर गणेश चतुर्थी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूजा में शामिल होने पर प्रतिक्रिया दी है।

अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के एक कार्यक्रम में इस संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री उनके घर पर एक निजी इवेंट में आए थे। ये कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं था।

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि इस मुलाक़ात में कुछ भी ग़लत नहीं है क्योंकि ये न्यायपालिका और कार्यपालिका बीच सामान्य मुलाक़ात है, भले ही ये सामाजिक स्तर पर क्यों न हो।’

चीफ जस्टिस डीवीआई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर होंगे। वो भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश हैं। जस्टिस संजीव खन्ना भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे।

इस साल 11 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीफ़ जस्टिस डीवीआई चंद्रचूड़ के घर गणेश चतुर्थी की पूजा में शामिल हुए थे।

लेकिन कई जाने-माने वकीलों, राजनीतिक दलों और उसके नेताओं ने इसकी आलोचना की थी। हालांकि जाने-माने वकीलों के एक वर्ग ने कहा था कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।

‘हम वहाँ कोई सौदा करने के लिए नहीं थे’

प्रधानमंत्री से अपने घर में मुलाक़ात के सवाल पर चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अदालत के कामों के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बातचीत एक सामान्य अनिवार्यता है।’

उन्होंने कहा, ‘लोगों को ये समझना चाहिए सौदे (समझौते) इस तरह नहीं होते। इसलिए प्लीज, हमारा भरोसा कीजिए। हम वहाँ सौदा करने लिए नहीं थे।’

जस्टिस चंद्रचूड़ से पूछा गया कि प्रधानमंत्री के साथ उनकी जो तस्वीरें आईं उसमें वो क्या दूसरे जजों या विपक्ष के नेताओं को शामिल करना पसंद करते। इस पर उन्होंने कहा, ‘तब ये एक सेलेक्शन कमिटी की तरह लगता।’

उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में इसका जबाव देते हुए कहा, ‘मैं विपक्ष के नेता को शामिल नहीं करता क्योंकि ये कोई केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए सेलेक्शन कमिटी की बैठक नहीं थी।’

हमने ‘ए’ से ‘जेड’ तक सबको बेल दी

कई मामलों में अदालत की ओर से बेल न दिए जाने के सवाल पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ये गंभीर चिंता का विषय है। बेल नियम है और इसे अपवाद की तरह नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन ये संदेश निचली अदालतों तक नहीं पहुँचा है। ऐसे में ये अदालतें ज़मानत देने में हिचकिचाती हैं।’

उन्होंने कहा, ‘जहाँ तक मेरा सवाल है तो मैंने सबको बेल दिया है- ए से जेड तक यानी अर्नब से लेकर ज़ुबैर तक। यही मेरा फलसफ़ा है।’

उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश के उनके दो साल के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में ज़मानत के 21 हज़ार केस दर्ज हुए जबकि ज़मानत के 21358 केस निपटाए गए।

उनसे पूछा गया कि इससे पहले उन्होंने कहा था कि जनता की अदालतों पर विपक्ष की भूमिका अपनाने का दबाव है। इसका क्या मतलब है।

इस पर उन्होंने कहा, ‘अपना हित चाहने वाले समूहों, प्रेशर ग्रुप और कुछ समूहों की ओर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस्तेमाल करके कुछ ख़ास नतीजों पर पहुंचने के लिए अदालत पर दबाव डालने की कोशिश की जा रही है।’

‘स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ फैसला देना नहीं’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब ये नहीं होता कि अदालत हमेशा सरकार के खिलाफ फैसला दे।

उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कार्यपालिका से आज़ादी के तौर पर पारिभाषित किया जाता है। अब न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब ये भी लगाया जाता है कि ये सरकार के प्रभाव से आज़ाद रहे। लेकिन सिफऱ् इन्हीं चीज़ों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पारिभाषित नहीं होती।’

उन्होंने कहा, ‘देखिए, आप लगातार ये देख रहे होंगे कि ऐसे समूहों के कई हिस्से कहते हैं कि अगर आप हमारे पक्ष में फ़ैसला देते हैं तो आप स्वतंत्र हैं। अगर आप हमारे पक्ष में फ़ैसला नहीं देते हैं तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। मुझे इस पर आपत्ति है।’

जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम-सरकार टकराव पर क्या बोले

न्यायपालिका में नियुक्तियों (जजों की नियुक्ति) के सवाल पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि कॉलेजियम ने अपने हिस्से का काम कर दिया है। अब सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों को मंज़ूरी देनी है।

इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘कॉलेजियम की ओर भेजे गए कुछ नामों को अभी तक अनुमति नहीं मिली है। आपने उनमें से कुछ नाम लिए हैं। उम्मीद है कि सरकार उन्हें मंज़ूरी दे देगी। सुप्रीम कोर्ट के अधिकार के दायरे में जो आता है वो हमने कर दिया है। हमने ये सुनिश्चित किया है कि संवैधानिक प्रक्रिया (जजों की नियुक्ति के संबंध में) का अपना हिस्सा पूरा कर दें। हम नामों का मूल्यांकन करते हैं। उन पर विचार करते हैं और फिर उन्हें सरकार को भेज देते हैं।’

उनसे पूछा गया कि क्या जजों की नियुक्ति में देरी करने का मतलब ये है कि सरकार को वीटो की ताक़त मिली हुई है। इस पर उन्होंने कहा कि कॉलेजियम भी वीटो का इस्तेमाल करता है।

उन्होंने कहा, ‘सिफऱ् सरकार ही वीटो का इस्तेमाल नहीं करती। वीटो एक ऐसी चीज़ है, जिसका कॉलेजियम भी इस्तेमाल करता है। जब तक हम मंज़ूरी ना दे दें तब तक कोई नियुक्ति नहीं हो सकती।’

कॉलेजियम को नाम भेजने में राज्य सरकार की क्या भूमिका है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘जब हम देखते हैं के कोई ख़ास उम्मीदवार नियुक्ति के लायक नहीं है तो हम वीटो लगाते हैं। भारत सरकार उस उम्मीदवार की नियुक्ति नहीं कर सकती। हमारा मानना है कि जो व्यक्ति योग्य नहीं है, उसे जज के तौर पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।’

एक प्रमुख के तौर पर कॉलेजियम के अब तक के रिकॉर्ड पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 लोगों की सिफ़ारिश की थी। उनकी नियुक्ति हो चुकी है।

चीफ़ जस्टिस के पद के लिए जिन 42 नामों की सिफ़ारिश की गई थी। उनमें से 40 नियुक्त हो चुके हैं। हाई कोर्ट के जजों के लिए 164 नामों की सिफ़ारिश की गई थी, उनमें से 137 की नियुक्ति हो चुकी है। 27 नाम अब भी सरकार के पास लंबित हैं।

सीनियर वकीलों ने चंद्रचूड़ को लेकर क्या कहा

 

11 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के मुख्य न्यायाधीश के घर जाना ख़ासा विवाद का विषय बन गया था।

वकीलों, राजनीतिक नेताओं और जानी-मानी हस्तियों ने भारत के संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलग-अलग होने और उनकी स्वतंत्रता को लेकर राय ज़ाहिर की थी।

उस समय सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख दुष्यंत दवे प्रधानमंत्री और जस्टिस चंद्रचूड़ दोनों को ग़लत ठहराया था।

दवे ने एक बार फिर इसके लिए दोनों को दोषी ठहराया है। डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘द वायर’ को दिए एक इंटरव्यू में दवे ने कहा कि प्रधानमंत्री को अपने घर पर साथ आरती करने के लिए बुलाकर और ये अयोध्या जजमेंट लिखने के दैवीय प्रेरणा मिलने की बात कर सीजेआई चंद्रचूड़ ने ख़ुद को ‘एक्सपोज’ कर दिया। इस तरह से उन्होंने अपने न्यायिक नज़रिये का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जो व्याख्या से परे है।

जाने-माने पत्रकार करण थापर ने दुष्यंत दवे से पूछा कि इतिहास में जस्टिस चंद्रचूड़ को कैसे देखा जाएगा? इस सवाल के जवाब में दवे ने कहा, ‘मैं आशा करता हूँ कि जस्टिस चंद्रचूड़ को इतिहास याद नहीं रखेगा। मुझे उम्मीद है कि जस्टिस चंद्रचूड़ की विरासत को लोग जल्द ही भूल जाएंगे। मैं ये बात बहुत जि़म्मेदारी से कह रहा हूँ।’

दवे ने कहा कि डीवाई चंद्रचूड़ ने राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मामलों पर कोई फैसला नहीं दिया। वो नागरिकता संशोधन क़ानून को दी गई क़ानूनी चुनौती, ‘लव जिहाद’ और हिजाब बैन जैसे जुड़े संवेदनशील मामलों पर बैठे रहे।

चीफ़ जस्टिस चंद्रचूड़ और उनके अब तक के अहम फ़ैसले

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश हैं। इस साल 10 नवंबर को वो रिटायर हो जाएंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना अदालती करियर बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत से शुरू किया था।

1998 से 2000 तक वो भारत के एडिशनल सॉलिसीटर जनरल भी रहे। 29 मार्च 2000 से 30 अक्टूबर 2013 तक वह बॉम्बे हाई कोर्ट के जज रहे।

31 अक्टूबर को वो इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बने। 13 मई 2016 से सात नवंबर 2022 तक वो सुप्रीम कोर्ट जज रहे और फिर 9 नवंबर 2022 से अभी तक वो भारत के चीफ जस्टिस बने हुए हैं।

उनके कुछ प्रमुख फैसले इस तरह हैं-

राइट टु प्रिवेसी

माइनिंग टैक्स रिकवरी का मामला

अनुच्छेद 370 हटाने का केस

जीएसटी काउंसिल की सिफारिश का केस

गर्भपात के अधिकार का केस

आधार एक्ट

(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूजरूम की ओर से प्रकाशित) (bbc.com/hindi)

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