विचार / लेख

अपने ही बच्चों के बारे में सोचने लायक नहीं बचे?
02-Nov-2024 10:20 PM
अपने ही बच्चों के बारे में सोचने लायक नहीं बचे?

-कृष्ण कांत
रात को तीन बजने को हैं। अब पटाखों की आवाज थम गई है। कुछ देर पहले तक कान पर कहर बरपा है। अब चारों तरफ सिर्फ धुआं है। घर से बाहर आते ही पटाखे जलने की गंध नाक में भर रही है। ्रक्तढ्ढ नापने से पहले अंदाजा लग रहा है कि कल क्या रिपोर्ट आने वाली है।

परिवार का ही एक बच्चा दिवाली से पहले बाहर ले जाया गया है क्योंकि उसके नाजुक फेफड़े यह जहर नहीं झेल सकते। कुछ साल पहले उसे सांस की तकलीफ हुई। डॉक्टर ने कहा कि दिल्ली की हवा का स्तर ये नहीं झेल सकता। इसके हिसाब से ्रक्तढ्ढ खतरनाक है। बाहर ले जाओ। पिछले कुछ सालों से वह हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच बाहर जाता है। माता पिता को अपने काम के साथ समझौता करना पड़ता है।

ऐसे हजारों बच्चे होंगे जिनके लिए दिल्ली हृष्टक्र की हवा जहर हो चुकी है। तमाम सांस के मरीज, तमाम बीमार, तमाम कमजोर लोग, इसे झेलते हैं।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ पटाखों से ही प्रदूषण हो रहा है। करोड़ों वाहन, हजारों हजार निर्माण कार्य, हजारों फैक्ट्रियां रोजमर्रा के प्रदूषक हैं। इस सीजन में पराली और पटाखे इसे अति खतरनाक बना देते हैं।

भारत में 2019 में वायु प्रदूषण से 24 लाख मौतें हुई थीं। यानी रोजाना 6500 मौतें। 2021 में भारत में वायु प्रदूषण से 21 लाख मौतें हुईं। इनमें 169000 पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे। अकेले दिल्ली में प्रतिवर्ष 12000 से ज्यादा मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं।

दिवाली बहुत सुन्दर त्यौहार है। बचपन में मुझे भी पटाखों का शौक लगता था। बच्चे खास आकर्षित होते हैं। लेकिन क्या पटाखों के बगैर दिवाली कम सुंदर होगी? जैसे ही कोई कहता है कि पटाखे नुकसान पहुंचाते हैं, उसकी बात को हिन्दू विरोध के रूप में देखा जाता है।

फर्ज कीजिए कि आप भी पटाखों पर किसी भी सलाह को हिन्दू विरोधी कह देते हैं। किसी दिन आपके बच्चे की सांस अटकने लगे और डॉक्टर कहे कि इसे यहां से बाहर ले जाओ तो आप बच्चे की जान बचाएंगे या ‘पटाखा छुड़ाकर हिन्दू बचाने वाली सनक’ का प्रदर्शन करेंगे?

क्या हम सामूहिक रूप से ऐसा सनक गए हैं कि अपने ही बच्चों के बारे में सोचने लायक नहीं बचे?

यकीन मानिए, इस समय मैं अपने दरवाजे के बाहर की हवा में घुला जहर महसूस कर रहा हूं और हमारे आपके बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों के बारे में सोच रहा हूं।

अगर सामूहिक रूप से हमें जहर पसंद है, अगर बहुमत इस जहरीली हवा का ही समर्थक है, तो इसी हवा में दो चार सांसें और एक मौत अपनी भी है। मेरा किसी से कोई विरोध नहीं, बस चाहता हूं कि आप भी सोचना शुरू करें।

ईश्वर आपको अंधेरे से प्रकाश को ओर, और मौत से जीवन की ओर ले जाएं। दिवाली फिर से मुबारक!

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