photo credit Tripod Stories
देश में खदानों और खनिजों की आवाजाही से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए खनिज रायल्टी का एक हिस्सा संबंधित जिलों को देने की एक नीति देश में चल रही है। इसके तहत खदान वाले जिले, और आसपास के प्रभावित होने वाले दूसरे जिलों के बीच खनिज रायल्टी का जिला खनिज निधि के तहत निर्धारित हिस्सा बंटता है, और इसका मुख्य मकसद यह रहा है कि पर्यावरण, इंसानों और पशुओं को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके। इसे स्थानीय स्तर पर तय करने के लिए कलेक्टरों को अधिकृत किया गया, और राज्यों ने अपने हिसाब से इसमें थोड़े-बहुत फेरबदल भी किए। जिला खनिज निधि के तहत क्या-क्या काम हो सकते हैं, यह केन्द्र सरकार ने भी तय किया, और राज्य संबंधित जिलों की स्थानीय जरूरतों को देखते हुए उसमें कुछ छूट भी लेते रहे। यहां तक तो बात बड़ी सुहावनी लगती है, लेकिन जब बारीकियों में जाएं तो समझ पड़ता है कि कुछ खनिज-जिलों में सैकड़ों करोड़ रूपए सालाना का डीएमएफ बजट कलेक्टरों की मर्जी पर उनके पॉकेटमनी की तरह खर्च होता रहा, और जिन प्रदेशों में मुख्यमंत्री की पकड़ असंवैधानिक हद तक मजबूत रही, वहां पर डीएमएफ का पैसा मुख्यमंत्री की मनमर्जी से खर्च होते रहा।
अभी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के जाने के बाद भाजपा की सरकार पहले से ईडी और आईटी के बनाए हुए मामलों की जांच खुद भी कर रही है। इसे सीधे-सीधे पिछली सरकार के खिलाफ मौजूदा सरकार की दुर्भावना मान लेने से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि ईडी और आईटी द्वारा किसी जुर्म का मामला बनाने पर भी उनके अधिकार उनके विभागों से संबंधित कानूनों तक सीमित रहते हैं। दूसरी तरफ राज्यों में जब इन जुर्मों से संबंधित मामलों में सरकारी अधिकारी भी जुड़े रहते हैं, तो उन पर राज्य के अलग-अलग कानून भी लागू होते हैं। छत्तीसगढ़ में आज यही हो रहा है। बीते बरसों से ईडी और आईटी के जो मामले चल रहे थे, वे अब राज्य सरकार की एजेंसियों के दायरे में भी जांच का सामना कर रहे हैं। इसी में डीएमएफ की जांच भी हो रही है, और खनिज संपन्न जिलों में ईडी ने छापे मारकर डीएमएफ के घोटाले पकड़े थे, और अब राज्य की जांच एजेंसी खुद भी केस दर्ज करके उस मामले को आगे बढ़ा रही है। शुरूआती जांच में ही यह पता लग रहा है कि डीएमएफ की रकम की बड़े पैमाने पर बंदरबांट हुई है। राज्य में पिछली कांग्रेस सरकार के रहते हुए भी यह जानकारी बड़ी आम थी कि जिलों में डीएमएफ की रकम से मनमाने काम करवाने, उन्हें मनमाने ठेकेदारों और सप्लायरों को दिलवाने का काम राज्य के कुछ चुनिंदा अफसर करते थे, जो कि राज्य को एक मुजरिम गिरोह की तरह चलाते-चलाते आज कई-कई मामलों में जेल में पड़े हुए हैं। जिन अफसरों की पेशाब से पिछली सरकार में चिराग जला करते थे, आज वे जेल में दूसरे कैदियों के साथ एक ही पखाना इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं (अगर उन्हें जेल में सहूलियतें खरीदने की आम परंपरा का फायदा न मिल रहा हो तो)।
राज्य में कुछेक ऐसी योजनाएं रहती हैं जो प्रदेश के बजट से परे की रहती हैं, और जिनमें आने वाला पैसा जेब खर्च जैसा मान लिया जाता है। राज्य में किसी भी योजना के लिए अगर पेड़ काटे जाते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत उसकी भरपाई के लिए नए वृक्षारोपण को ऐसे राज्यों को कटाई के अनुपात में भरपाई मिलती है। छत्तीसगढ़ को ऐसे हजारों करोड़ रूपए मिलते हैं, और वन विभाग के कुख्यात अफसर राज्य शासन हांकने वाले अपनी टक्कर के कुख्यात अफसरों के साथ मिलकर पूरे कैम्पा-मद को पॉकेटमनी की तरह खर्च करते आए हैं। अगर पिछली कांग्रेस सरकार के दौर के कैम्पा-मद के खर्च की बारीकी से जांच की जाए, तो सैकड़ों या हजारों करोड़ का भ्रष्टाचार उजागर होगा। सरकार में यह जानकारी आम रहती थी कि कैम्पा-फंड से क्या-क्या गलत काम हो रहा है, लेकिन जब शासन गले-गले तक ऐसे ही धंधों में डूबा हुआ था, तो कैम्पा वन विभाग का डीएमएफ सरीखा हो गया था। हजारों करोड़ रूपए सालाना के ऐसे मनमर्जी से खर्चने वाले फंड ने ऐसा भयानक भ्रष्टाचार खड़ा किया हुआ था कि उससे राज्य सरकार में घटिया सामान सप्लाई करने, घटिया काम करने, और गैरजरूरी खर्च करने का खून सरकारी मशीनरी के मुंह लग गया था। आज जांच एजेंसियां जितने किस्म के मामले उजागर कर चुकी हैं, वे सब एक किस्म से मौजूदा सरकार, भावी सरकारों, और दूसरे प्रदेशों की सरकारों, सबके लिए सबक की तरह भी हैं कि सरकार में रहते हुए क्या-क्या करने से जेल जाने की नौबत आती है। पता नहीं जेल में बैठे हुए अफसरों के कमाए हुए सैकड़ों करोड़ उनको जमानत के इंतजार में बरसों गुजारने, और फिर शायद बरसों की कैद काटने से अधिक महत्वपूर्ण लगते हैं या नहीं। फिलहाल यह बात तो साफ है कि जब शासन-प्रशासन के अच्छी तरह स्थापित, और संवैधानिक ढांचे से परे जब कुछ गिने-चुने अफसर और सत्ता के दलाल पूरे राज्य को खच्चर की तरह हांकते हैं, तो वे राज्य को तो बर्बाद करते ही हैं, वे खुद की बर्बादी की भी गारंटी करते हैं। इसमें कुछ देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं, कुल मिलाकर जेल में चक्की तो पीसना ही पड़ता है।
केन्द्र और राज्य की जांच एजेंसियां छत्तीसगढ़ को लेकर जितने तरह के मामले सामने रख चुकी हैं, उससे इस प्रदेश के राजनीतिक और सरकारी अमलों को जुर्म से दूर रहने की एक नसीहत मिलती है। ऐसा भी नहीं है कि ये अमले पूरी तरह भ्रष्ट और मुजरिम रहते हों, इनमें भी कुछ लोग तो हमेशा ही भले रहते हैं। ऐसा लगता है कि पीएससी, और यूपीएससी को अपने छांटे हुए लोगों के लिए छत्तीसगढ़ में रिफ्रेशर कोर्स चलाने चाहिए कि सरकार कैसे-कैसे नहीं चलानी चाहिए। जिस डीएमएफ और कैम्पा जैसे फंड का इस्तेमाल पर्यावरण को हो चुके नुकसान की भरपाई के लिए किया जाना चाहिए था, उन्हें नेताओं और अफसरों ने अपने पॉकेटमनी की तरह इस्तेमाल किया। डीएमएफ की तो जांच छत्तीसगढ़ की नई सरकार को ईडी की तरफ से विरासत में मिली है, लेकिन वन विभाग के कैम्पा फंड में तो अभी झांका भी नहीं गया है। सरकार को तुरंत ही कैम्पा के हजारों करोड़ का स्पेशल ऑडिट करवाना चाहिए ताकि अब आगे सत्ता के सभी भागीदार सावधान हो सकें, और जेल के बाहर अपने परिवारों सहित सुख से रह सकें।