विचार / लेख
-मोहम्मद हनीफ
वैसे कहने को तो पाकिस्तान में बहुत सारी समस्याएं हैं। बहुत सारे घाटे हैं। हमारा खज़़ाना अक्सर ख़ाली रहता है।
हमें अपने ख़र्चों को पूरा करने के लिए कभी आईएमएफ तो कभी चीन और सऊदी अरब जैसे देशों के पास जाना पड़ता है। हमारे कोई दो-ढाई करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने कभी स्कूल की शक्ल भी नहीं देखी है।
अगर कोई काम करने वाला मज़दूर बीमार पड़ जाए तो उसे अपना इलाज कराने के लिए उसे अपनी मोटरसाइकिल बेचनी पड़ती है।
वैसे तो हम एक समृद्ध देश हैं लेकिन कभी गेहूं की कमी हो जाती है तो कभी चीनी बाहर से मंगवानी पड़ती है।
ये सारे घाटे हमारे अंदर हैं लेकिन एक मामले में अल्लाह की बड़ी मेहरबानी है कि पाकिस्तान में मुफ़्तियों और मौलवियों की कमी नहीं है।
यहां आपको हर मिज़ाज, हर हुलिये का आलिम-ए-दीन मिलेगा। यहां आपको मधुर और सुरीले मौलवी मिलेंगे साथ ही बक-बक करने वाले और अपशब्द बोलने वाले मौलवी भी यहां मिल जाएंगे ।
मुफ़्तियों, मौलवियों का ‘ओलंपिक’ और पाकिस्तान
यहां आपको ऐसे मौलवी भी मिलेंगे जो आपका गला काटने का फ़तवा देंगे। उस फ़तवा देने वाले का भी फ़तवा देने वाले मौलवी मिल जाएंगे। कुछ ऐसे भी हैं जो ख़ुद से गला काटने की बात करते हैं।
अब गऱीब का बच्चा अगर स्कूल नहीं जाएगा तो शायद मदरसे में चला जाए। उस बेचारे ने तो फिर वहां से मौलवी बनकर ही बाहर निकलना है। लेकिन यहां संपन्न मध्यम वर्ग के लोग भी अपने बेटे को कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी भेजते हैं।
और दो साल बाद वह मुफ़्ती बन जाता है और घर आकर अपनी मां और बहन को इस्लाम में पर्दा करने के मुद्दे पर लेक्चर देता है।
अगर दुनिया में कहीं मुफ़्तियों या मौलवियों का ओलंपिक होता तो मुझे यक़ीन है कि सारे मेडल पाकिस्तान ने जीत लेने थे और हमारी हर गली में एक अरशद नदीम घूम रहा होता।
अब इस माहौल में पता नहीं हमारी सरकार को ऐसा क्यों लगा कि हम लोगों को रोटी, शिक्षा और बिजली तो नहीं दे सकते, लेकिन हमें उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय मौलवी तो देना ही चाहिए।
हुकूमत ने जनाब ज़ाकिर नाइक साहब को एक महीने के लिए पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया है।
वे हमारे मेहमान हैं। वेलकम। उनकी प्रसिद्धि यह है कि एक तो वे कोट-पैंट पहनते हैं और दूसरी यह कि वे ‘काफिऱों’ को मुसलमान बनाते जा रहे हैं।
‘ज़ाकिर साहब पाकिस्तान में किसे मुसलमान बनाना चाहते हैं’
सुना है कि उन्होंने लाखों काफिऱों को मुसलमान बनाया है। आते ही उन्होंने इस बात की पुष्टि भी कर दी कि मुझे भारत से इसलिए निकल दिया गया है क्योंकि हिंदू मेरी बातें सुन-सुन कर मुसलमान बनने लगे थे।
अब पता नहीं कि वे पाकिस्तान में किसे मुसलमान बनाना चाहते हैं। हमारे पास तो काफिऱ बचे ही बहुत कम थे।
इसीलिए हमने ख़ुद ही प्रोडक्शन शुरू कर दी है कि अच्छे भले कलमा पढऩे वाले मुसलमानों को हम कभी काफिऱ बनाकर मार देते हैं और कभी उन पर फ़तवा थोप देते हैं।
शायद सरकार सोचती है कि हमारे ही पगड़ी वाले मौलवियों ने हमारा धर्म थोड़ा खऱाब कर दिया है।
इसलिए यह सूटेड-बूटेड आलिम हमें आकर सीधा कर देगा। इसलिए हमारी स्थापना का यह पुराना तरीक़ा रहा है कि जब चीज़ें हाथ से बाहर हो जाती हैं तो मौलवियों को सडक़ों पर उतार देते हैं और उनसे फ़तवा जारी करवाते हैं ।
अब शायद उन्होंने यह सोचा होगा कि देशी मर्दों को जऱकाने के लिए इस कोट-पैंट वाले मौलवी को इम्पोर्ट किया जाए।
ज़ाकिर नाइक साहब हमारे बड़े -बड़े नेताओं और मुफ़्ितयों से मिल रहे हैं। वे मीठी-मीठी बातें करते हैं ।
पिछले दिनों एक अनाथालय में मेहमान-ए-ख़ुसूसी थे। वहां सिर से पैर तक पर्दा किए हुए अनाथ लड़कियों से टकराव हुआ और वे यह कहते हुए मंच से भाग गए कि यह तो अशोभनीय है।
अब पाकिस्तान में लगभग 12-13 करोड़ मुस्लिम लड़कियाँ और महिलाएँ हैं। उनका ईमान पता नहीं कौन ठीक करेगा।
वैसे भी जो मुसलमान पर्दानशीन अनाथ लड़कियों को देखकर अपने आप पर काबू नहीं रख पाता, वे पता नहीं हमारे आदमियों और ख़ासकर हमारे मौलवियों के ईमान को कैसे कायम रखेगा।
आपने देखा होगा कि बसों में या कभी-कभी लॉरी स्टेशन पर एक बोर्ड लगा होता है कि यात्री को अपने सामान की सुरक्षा ख़ुद करनी चाहिए।
और ज़ाकिर नाइक साहब हमारे मेहमान हैं इसलिए फिर से वेलकम लेकिन डर है कि कहीं हमारा कोई देशी मौलवी उनके कोट-पैंट पर ही फ़तवा न दे दे।
इसलिए ज़ाकिर नाइक साहब वेलकम, लेकिन अपने ईमान की पाकिस्तान में रक्षा ख़ुद करें । हम अपना ख़ुद ही देख लेंगे । रब राखा!