विचार / लेख
एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि उष्णकटिबंधीय तूफानों से लंबी अवधि में होने वाली मौतों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से लगभग 300 गुना अधिक हो सकती है.
पिछले हफ्ते दक्षिण-पूर्वी अमेरिका में आए चक्रवातीय तूफान हेलेन ने कम से कम 155 लोगों की जान ले ली। उससे पहले ‘जॉन’ नाम के तूफान ने पिछले सप्ताह मेक्सिको में कम से कम 16 लोगों की जान ली। ताइवान में क्राथोन नाम के तूफान का कहर अब तक दो लोगों की जान ले चुका है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन उष्णकटिबंधीय तूफानों के दौरान दर्ज की गई तात्कालिक मौतें उनके असली प्रभाव का केवल एक छोटा सा हिस्सा दिखाती हैं। नए शोध के अनुसार, तूफान के गुजरने के कई वर्षों बाद तक इनका असली असर जीवन पर पड़ता है।
साथ ही, मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन से इन उष्णकटिबंधीय तूफानों के और भी तीव्र होने की संभावना है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कहा कि इन प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को अधिक सहायता की जरूरत है। कई शोध बता चुके हैं कि समुद्री तूफान और ज्यादा प्रचंड हो रहे हैं।
501 तूफानों का अध्ययन
यह शोध ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन की प्रमुख लेखिका रेचल यंग ने एएफपी को बताया कि यह पहली बार है जब सांख्यिकी मॉडलिंग तकनीक का उपयोग करके यह अनुमान लगाया गया है कि लंबे समय तक तूफानों का मौतों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
शोधकर्ताओं ने 1930 से 2015 के बीच अमेरिकी मुख्य भूमि पर आए 501 उष्णकटिबंधीय तूफानों की जांच की और उन क्षेत्रों में तूफान के 15 साल बाद तक सभी कारणों से हुई अतिरिक्त मौतों की संख्या का विश्लेषण किया।
हर तूफान के दौरान औसतन 24 मौतें आधिकारिक तौर पर दर्ज की गईं। लेकिन अध्ययन के अनुसार अगर तूफान के बाद के वर्षों में अप्रत्यक्ष मौतों की गिनती की जाए, तो प्रति तूफान औसतन 7,000 से 11,000 मौतें हो सकती हैं, जो सरकारी आंकड़ों से लगभग 300 गुना अधिक है।
इसका मतलब यह होगा कि 85 वर्षों में अमेरिकी अटलांटिक तट के प्रभावित क्षेत्रों में हुई कुल मौतों में से तीन से पांच प्रतिशत मौतें उष्णकटिबंधीय तूफानों से संबंधित हो सकती हैं और कुल मौतों की संख्या 50 लाख तक हो सकती है। शोध के मुताबिक इसका मतलब है कि उष्णकटिबंधीय तूफानों ने कार दुर्घटनाओं, संक्रामक बीमारियों या युद्ध में हुई मौतों से भी अधिक लोगों की जान ली है।
क्यों हुआ ऐसा, स्पष्ट नहीं
यंग कहती हैं कि जब शोधकर्ताओं ने देखा कि तूफानों का विनाशकारी प्रभाव कितने लंबे समय तक समुदायों पर बना रहता है, जो इतनी बड़ी संख्या का कारण था, तो वे ‘बहुत हैरान और बहुत सशंकित’ थे।
बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की शोधकर्ता यंग ने कहा कि ‘किसी को भी यह नहीं पता था कि ऐसा हो रहा है।’
यंग और स्टैन्फर्ड विश्वविद्यालय के सोलोमन हसियांग ने इन आंकड़ों के अन्य संभावित कारणों को समझने के लिए कई साल बिताए, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। अध्ययन यह नहीं दिखा पाया कि कोई विशेष तूफान किसी भी अतिरिक्त मौत का सीधा कारण कैसे बना।
यंग ने इन परिणामों की तुलना इस बात से की कि कैसे महामारी के दौरान दुनिया में प्रत्यक्ष कोविड-19 से होने वाली मौतों की तुलना में कहीं अधिक अतिरिक्त मौतें दर्ज की गईं। लेकिन शोधकर्ताओं ने इस बात के कुछ सिद्धांत पेश किए कि कैसे तूफानों ने वर्षों में इतनी ज्यादा मौतों में भूमिका निभाई हो सकती है। इनमें आर्थिक संकट, बुनियादी ढांचे की क्षति, बढ़ता प्रदूषण और तनाव, और कामकाजी उम्र के लोगों का पलायन शामिल हैं।
यंग ने एक उदाहरण दिया कि कोई व्यक्ति जो रिटायरमेंट की बचत का इस्तेमाल अपने घर की मरम्मत के लिए करता है, वह जीवन के बाद के वर्षों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए पैसे की कमी से जूझ सकता है।
यंग ने कहा कि पिछले शोधों ने यह भी दिखाया है कि तूफान प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय और राज्य सरकारों का बजट कम होता है, जिससे इन समुदायों को और अधिक वंचित कर दिया जाता है।
कई लोग इस बात से अनजान हैं कि तूफान के बाद उनके स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। यह बात भी कुछ शोधों में सामने आई है कि आपदाओं में जान बच भी जाए तो संपत्ति का नुकसान बहुत ज्यादा होता है।
तूफानों से जुड़े अतिरिक्त खतरे
अध्ययन में पाया गया कि तूफान प्रभावित क्षेत्रों में पांच से दस साल बाद पैदा हुए बच्चों में जल्दी मरने का जोखिम काफी अधिक था। अश्वेत लोगों में भी जल्दी मरने का जोखिम बहुत अधिक था। अध्ययन ने अनुमान लगाया कि अन्य कारकों को जोडऩे के बाद भी, 1930 से 2015 के बीच अश्वेत लोगों की सभी मौतों में से 15.6 प्रतिशत तूफान प्रभावित क्षेत्रों में रहने के कारण हुईं।
इन प्राकृति आपदाओं के कारण राज्यवार मृत्यु दर अलग-अलग थी। फ्लोरिडा में 13 फीसदी, उत्तरी कैरोलाइना में 11 फीसदी, दक्षिणी कैरोलाइना में 9 फीसदी और लुइजियाना में 8 फीसदी मौतों को तूफानों से जोड़ा जा सकता है।
यंग ने चेतावनी दी कि जिन राज्यों में अधिक तूफान आते हैं, जैसे फ्लोरिडा, वहां लोग समय के साथ अधिक लचीले हो गए हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन अगर नए क्षेत्रों की ओर तूफानों को धकेलता है, तो इन क्षेत्रों में मौतों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय के महामारी विशेषज्ञ स्टीफन बर्जेस, जो इस शोध में शामिल नहीं थे, ने एएफपी को बताया कि इस शोध की कार्यप्रणाली सही थी लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया हमेशा से उष्णकटिबंधीय तूफानों का सामना करती आई है।
उन्होंने कहा, ‘लेखक यह सवाल पूछ रहे हैं: अगर उष्णकटिबंधीय तूफान नहीं होते तो क्या होता? लेकिन यह एक ऐसा कारक नहीं है जिसे हम बदल सकते हैं।’