संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तिरुपति के लड्डुओं में गाय और सुअर की चर्बी से उठे सवाल, और हल
20-Sep-2024 1:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : तिरुपति के लड्डुओं में गाय और सुअर की चर्बी  से उठे सवाल, और हल

दुनिया में हिन्दुओं की श्रद्धा के एक सबसे बड़े केन्द्र, आन्ध्रप्रदेश के तिरुपति मंदिर की ताजा खबर दिल दहलाने वाली है। वहां राज्य सरकार ने इस मंदिर में हर दिन बनने वाले तीन लाख लड्डुओं में इस्तेमाल होने वाले कई ट्रक घी को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा, तो पता लगा कि इसमें मछली का तेल, गाय की चर्बी, और सुअर की चर्बी मिली हुई थी। यह घी एक निजी सप्लायर से मंदिर लगातार ले रहा था, जिसके पहले कर्नाटक राज्य के दुग्ध संघ के एक प्रतिष्ठित ब्रांड, नंदिनी का घी मंदिर में इस्तेमाल किया जाता था। यह मंदिर दुनिया में सबसे अधिक कमाई वाला हिन्दू मंदिर है, और यहां रोज करीब पौन लाख दर्शनार्थी भक्त आते हैं। हर दिन करीब साढ़े तीन लाख लड्डू बनते हैं, और राज्य की पिछली जगन मोहन सरकार ने पांच निजी फर्मों को इसके लिए घी सप्लाई करने का ठेका दिया था। अब गुजरात स्थित राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की प्रयोगशाला ने लड्डुओं और घी की जांच करके बताया है कि इसमें मछली-तेल, गाय और सुअर की चर्बी मिली है। घी के कारोबार में यह जानकारी आम है कि उसके दाम कम करने के लिए लोग उसमें जानवरों की चर्बी मिला देते हैं। कर्नाटक दुग्ध संघ ने मंदिर को दिए जा रहे दूध पर लंबे समय से दी जा रही रियायत जारी रखने से मना कर दिया था, और उसके बाद जगन सरकार के मनोनीत मंदिर ट्रस्ट ने खुले बाजार से घी सप्लाई करने के ठेके तय किए थे। खबरें बताती हैं कि मुख्यमंत्री रहते हुए जगन मोहन रेड्डी ने तिरुपति मंदिर के ट्रस्ट में अपने चाचा और दूसरे किसी रिश्तेदार को भी मनोनीत कर दिया था, और उन्हीं के कार्यकाल में यह घी-में-चर्बी कांड सामने आया है। अब जगन मोहन रेड्डी से बहुत खराब रिश्तों वाली चन्द्राबाबू नायडू की सरकार आन्ध्र में है, और गुजरात में भी भाजपा की सरकार है, और एनडीडीबी केन्द्र सरकार के मातहत सहकारी संघ है, जिसकी प्रतिष्ठित प्रयोगशाला ने यह रिपोर्ट दी है। आन्ध्र में पिछली जगन सरकार के रहते आज के मुख्यमंत्री चन्द्राबाबू नायडू से भयानक बदसलूकी की गई थी, और ऐसे में तमाम राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए हो सकता है कि कुछ लोगों को घी की ऐसी जांच रिपोर्ट पर कुछ शक भी हो।

किसी धर्मस्थल पर कुछ सप्लाई करते हुए, या धर्मस्थल की सम्पत्ति में घपला करते हुए किसी को कोई परहेज रहता हो, ऐसा हमें बिल्कुल ही नहीं लगता। हम अपने चारों तरफ मठ-मंदिर, चर्च, मस्जिद, और दूसरे धर्मस्थानों की जमीनों का अवैध कारोबार देखते हैं। अधिकतर धार्मिक स्थानों के ट्रस्टी वहां की जमीनें बेच खाते हैं, प्रतिमाओं के गहने बेच देते हैं, संपत्ति की अफरा-तफरी करते हैं। अगर ईश्वर पर ही उनका भरोसा होता, तो ऐसा करते हुए वे अपने लिए नर्क की गारंटी मान लेते, और इससे दूर रहते। लेकिन उन्हें मालूम है कि ऊपर किसी तरह का कोई नर्क नहीं है, और स्वर्ग की धारणा इसी जमीन पर हकीकत है, अगर ईश्वर के नाम पर जमा पैसा चुराया जाए। फिर अभी तिरुपति में जो नया चर्बीकांड सामने आया है, वह मामूली भ्रष्टाचार से बहुत आगे बढक़र है। इससे तो उन शाकाहारियों की आस्था पर भी चोट लगी है जो कि अपनी धार्मिक या दूसरी किस्म की मान्यताओं के चलते मांसाहार से दूर रहते हैं, यहां तक कि बहुत से लोग अंडे भी नहीं खाते। अब अगर इन बरसों में ऐसे लोगों ने तिरुपति का प्रसाद खाया होगा, तो आज उनके दिल पर क्या गुजर रही होगी? लोग किसी के जन्मदिन के केक को भी यह मानकर छोड़ देते हैं कि उसमें शायद अंडा मिला होगा, अब ऐसे लोग आज अपने बदन के साथ आराम से रह नहीं पाएंगे क्योंकि उसमें गाय और सुअर की चर्बी घुस चुकी है। यह मामला सिर्फ ट्रस्ट को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का भ्रष्टाचार नहीं है, यह करोड़ों लोगों की धार्मिक और शाकाहार की भावनाओं को जख्मी करने का भी है। अगर इस पूरे सिलसिले के पीछे कोई राजनीतिक साजिश नहीं है, और अगर ये सैम्पल किसी दूसरी प्रतिष्ठित प्रयोगशाला में भी चर्बी ही साबित करते हैं, तो ऐसे कारोबारियों, और भ्रष्ट ट्रस्टी-अधिकारियों पर बहुत कड़े कानूनों के तहत मुकदमा चलना चाहिए। लोग तो तिरुपति जाकर लौटते हैं, तो वहां का प्रसाद अधिक से अधिक लोगों में बांटते हैं कि इससे उन्हें और अधिक पुण्य मिलेगा। चर्बी का ऐसा कारोबार तो लोगों की आस्था को हिलाकर रख देगा, और इससे बाजार में प्रचलित घी के बहुत से ब्रांड भी नुकसान झेलेंगे। देश में एक चर्चित और विवादास्पद आयुर्वेद ब्रांड भी अपना घी इस दाम पर बेचता है जिस पर घी बनाने की लागत भी नहीं निकल सकती। कई लोगों का शक है कि यह ब्रांड भी इस दाम पर खालिस घी नहीं बेच सकता। तिरुपति से निकला हुआ संदेश तो यही है कि बाजार में मौजूद हर ब्रांड को ठीक से परखा जाए ताकि लोगों की धार्मिक और शाकाहारी भावनाओं की हत्या न हो। फिर इस बात को समझने की जरूरत है कि मांसाहारी लोगों में भी एक बड़ी आबादी ऐसी है जो गाय की चर्बी की कल्पना नहीं कर सकती, दूसरी तरफ एक दूसरे धर्म से जुड़ी हुई आबादी है जो कि सुअर को छूने की भी कल्पना नहीं कर सकती। इस तरह घी के कारोबार में चर्बी को बर्दाश्त करना मुमकिन नहीं है। यह भी समझने की जरूरत है कि जब दुनिया के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए चर्बी खपाई जा रही थी, तो फिर बाजार में घी की बड़ी खपत वाले बिस्किट और केक के कारखाने, खानपान की दूसरी चीजों के कारखाने, रेस्त्रां, और फास्ट फूड के कारोबारी पता नहीं क्या-क्या इस्तेमाल करते होंगे।

हम एक बार फिर तिरुपति पर लौटें, तो यह पूरा मामला धर्म के मामले में सरकार चला रहे नेताओं के मनोनीत ट्रस्टियों का मामला है। धर्म और राजनीति का घालमेल बड़ा खतरनाक होता है, और इन दोनों का मेल जानलेवा भी हो सकता है। इससे लोकतंत्र पर भी चोट पहुंचती है, और लोगों के खान पान की आस्था पर भी। धर्म और राजनीति का मेल बहुत किस्म के जुर्म करने की ताकत और मिसाल रखता है, हम अपने आसपास के धार्मिक ट्रस्टों पर काबिज राजनेताओं को देखते हैं, तो उनके लिए ईश्वर के नाम पर हर तरह का जुर्म बड़ा आसान लगता है। हम मंदिर के लड्डुओं में गाय और सुअर की चर्बी को धार्मिक मामले से अधिक शाकाहार का मामला मानना चाहते हैं। धार्मिक आस्था तो कई तरह के जुर्म के साथ-साथ भी चलती है, लेकिन शाकाहार की भावना किसी भी तरह के धार्मिक जुर्म से परे रहती है। तिरुपति के इस मामले में जिम्मेदार लोगों को बहुत कड़ी सजा मिलनी चाहिए, और शाकाहारियों की किसी संस्था को तिरुपति मंदिर ट्रस्ट की तरफ से उन तमाम लड्डुओं के दाम दान में देने चाहिए जो कि इन घी सप्लायरों से आए घी से बनकर बिके हुए लड्डुओं से कमाए गए थे। तिरुपति मंदिर लड्डुओं को बेचता भी है, उसकी रसीद कटती है, सप्लाई का ठेका शुरू होने से अब तक का हिसाब पल भर में निकल आएगा, और उस जुर्माने से शाकाहार की धारणा को बढ़ाया जा सकता है।

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