विचार / लेख
-डॉ आर के पालीवाल
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ की रफ्तार रिवर्स गियर में आ गई। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक ने डबल इंजन सरकार के जुमले को सिरे से नकार दिया।यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा था। यह घोषणा गृह मंत्री अमित शाह ने खुद चुनाव पूर्व सार्वजनिक सभा में जोर शोर से की थी, इसलिए इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार और उनके तथाकथित चमत्कार की ढलान माना जा सकता है। इसका दो तरफा असर होने की संभावना है, एक, इससे विपक्ष को यह विश्वास होगा कि केन्द्र में भी भारतीय जनता पार्टी को तगड़ा झटका दिया जा सकता है। दूसरे भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी नरेंद्र मोदी की अजेय छवि टूटेगी और उनसे नाखुश लॉबी इसका लाभ उठाने की कोशिश करेगी।
कर्नाटक ने बजरंग दल के रूप में प्रस्तुत कट्टर हिंदुत्व को भी नकार दिया। भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी ने बजरंग दल को बजरंग बली का प्रतिनिधि बना कर चुनावी सभाओं में लाभ उठाना चाहा था जो फ्लॉप रहा। राहुल गांधी की पदयात्रा को कर्नाटक में काफी समर्थन मिला था। इन चुनावों में कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं के साथ राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की सामूहिक मेहनत का असर भी साफ दिखाई देता है।कर्नाटक के विधानसभा चुनाव नतीजों ने एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का परिचय दिया है। उन्होंने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत देकर हॉर्स ट्रेडिंग, सामूहिक दल बदल और सत्ता के भूखे गठबंधन की गुंजाइश खत्म कर दी। जनता दल को जिस तरह से हंग असेंबली में किंगमेकर की संभावित भूमिका में दिखाया जा रहा था उसे भी कर्नाटक के मतदाताओं ने सिरे से नकार दिया।
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार, आपसी आंतरिक खींचतान और प्रशासनिक अक्षमता के तीन कारणों से काफी अलोकप्रिय हो गई थी। दक्षिण भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कर्नाटक काफी प्रगतिशील राज्य माना जाता है जहां के मतदाता भावनात्मक मुद्दों में कम बहते हैं। कर्नाटक हाथ से निकलने से कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा खुद दक्षिण भारत से सत्ता मुक्त हो गई।भले ही भारतीय जनता पार्टी अपनी हार के ऊल जलूल कारण बताने की कोशिश करे लेकिन कर्नाटक के बाद अन्य राज्यों के चुनावों में उसका सफ़र निश्चित रूप से कठिन होगा। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भी कांग्रेस की सरकार बनने से कांग्रेस के सूखते वृक्ष में नई कोपलें फूटी हैं जो निश्चित तौर पर उसकी हौसला अफजाई करेंगी, हालांकि कांग्रेस के लिए अभी भी केंद्र सरकार की गद्दी काफी दूर है।
हमारे देश की जनता में लाख़ कमियां हों लेकिन कुछ मामलों में उसकी अच्छाईयां कमियों पर भारी पड़ती हैं। भारतीय जनता ने आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस आदि कई नेताओं को सर आंखों पर बिठाया था क्योंकि उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था। आजादी के बाद भी उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई और नरेंद्र मोदी पर वैसा ही विश्वास जताया था। जिस इंदिरा गांधी को जनता ने जबरदस्त सफलता दी थी उसी जनता ने आपातकाल की एक बड़ी गलती से इंदिरा गांधी को शिकस्त देकर जय प्रकाश नारायण को हीरो बना दिया था। कालांतर में जनता ने कुछ वैसा ही सम्मान अन्ना हजारे को भी दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आगामी एक साल बहुत कड़ी अग्नि परीक्षा का है। पश्चिम बंगाल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में उन्हें पूरी भागदौड़ के बावजूद नकार दिया। यह उनकी लोकप्रियता के लिए खतरे की घंटी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे इसे सुनकर अपनी सरकारी और चुनावी रणनीतियों में सकारात्मक बदलाव करेंगे।