गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। हिन्दू गं्रथों में सबसे अधिक उल्लेख गंगा का ही मिलता है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने को नदियों में गंगा कहा है। मनुस्मृति में गंगा और कुरुक्षेत्र को सबसे अधिक पवित्र स्थान माना गया है।
पुराणों में गंगा की तीन धाराओं का उल्लेख हैं—स्वर्गगंगा (मन्दाकिनी), भूगंगा (भागीरथी) और पातालगंगा (भोगवती)। पुराणों में भगवान् विष्णु के बाएं चरण के अंगूठे के नख से गंगा का जन्म और भगवान् शंकर की जटाओं में उसका विलयन बताया गया है।
विष्णुपुराण में लिखा है कि गंगा का नाम लेने, सुनने, उसे देखने, उसका जल पीने, स्पर्श करने, उसमें स्नान करने मात्र से सौ योजन से भी गंगा नाम का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य के तीन जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते है। भविष्यपुराण में भी यही कहा है।
मत्स्य, गरूड और पद्मपुराणों के अनुसार हरिद्वार, प्रयाग और गंगा के समुद्रसंगम में स्नान करने से मनुष्य करने पर स्वर्ग पहुंच जाता है और फिर कभी उत्पन्न नहीं होता। उसे निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है। मनुष्य गंगा के महत्व को मानता हो या न मानता हो यदि वह गंगा के समीप लाया जाय और वहीं मृत्यु को प्राप्त हो तो भी वह स्वर्ग को जाता है और नरक नहीं देखता।
वाराहपुराण में गंगा के नाम को गाम् गता (जो पृथ्वी को चली गयी है) के रूप में विवेचित किया गया है। पद्मपुराण के अनुसार गंगा सभी प्रकार के पतितों का उद्धार कर देती है। कहा जाता है कि गंगा में स्नान करते समय व्यक्ति को गंगा के सभी नामों का उच्चारण करना चाहिए। काशीखण्ड में कहा गया है कि जो लोग गंगा के तट पर खड़े होकर दूसरे तीर्थों की प्रशंसा करते हंै और अपने मन में उच्च विचार नहीं रखते, वे नरक में जाते हैं। काशीखण्ड में यह भी कहा गया है कि शुक्ल प्रतिपदा को गंगास्नान नित्यस्नान से सौ गुना, संक्रांति का स्नान सहस्त्र गुना, चन्द्र-सूर्यग्रहण का स्नान लाख गुना लाभदायक है। चन्द्रग्रहण सोमवार को तथा सूर्यग्रहण रविवार को पडऩे पर उस दिन का गंगास्नान असंख्य गुना पुण्यकारक है।
भविष्यपुराण में भी गंगा का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।