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मानवाधिकार परिषद में अमेरिका की वापसी, भारत फिर चुना गया
17-Oct-2021 9:41 PM
मानवाधिकार परिषद में अमेरिका की वापसी, भारत फिर चुना गया

भारत ने भारी बहुमत से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सीट जीत ली है. इसके अलावा अमेरिका की भी वापसी हुई है जो पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान काउंसिल छोड़ गया था.

(dw.com)

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकार परिषद के 18 सदस्यों को चुन लिया है. वे सभी सदस्य चुने गए जिनकी पांच क्षेत्रीय समूहों ने सिफारिश की थी. इसके साथ ही अमेरिका की परिषद में वापसी हो गई है. पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने परिषद की सदस्यता यह कते हुए छोड़ दी थी कि जिन देशों का मानवाधिकार रिकॉर्ड खराब है उन्हें भी सदस्यता दी जा रही है.

जिन 18 देशों को चुना गया है, उनमें कुल 193 में से सबसे ज्यादा 189 वोट बेनिन को मिले. गांबिया को 186, अमेरिका को 168 और इरीट्रिया को 144 सबसे कम वोट मिले.

भारत का चुनाव

संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में से 184 ने भारत की सदस्यता के लिए वोट किया. बहुमत के लिए 97 वोटों की जरूरत होती है. चुनाव के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन ने ट्वीट कर सूचना जारी की.

उसने लिखा, "भारत को परिषद में छठे कार्यकाल के लिए विशाल बहुमत से चुन लिया गया है. भारत में भरोसा जताने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को दिल से धन्यवाद.”

यूएन में भारत के दूत टीएस त्रिमूर्ति ने मीडिया को बताया, "भारत को परिषद में चुनाव के लिए मिले भारी समर्थन से मैं बेहद खुश हूं. यह हमारे यहां लोकतंत्र की गहरी जड़ों, बहुलतावाद और हमारे संविधान में सुनिश्चित मानवाधिकारों को भारी समर्थन है."

आलोचना

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने सदस्यों के चुनाव और प्रक्रिया की आलोचना की है. संस्था के यूएन निदेश लुइस शारबोनो ने कहा, "इस साल मानवाधिकार परिषद में कोई प्रतिद्वन्द्वी ही नहीं था, जो चुनाव शब्द का मजाक है. कैमरून, इरीट्रिया और यूएई जैसे मानवाधिकारों के हनन करने वालों का चुनाव एक बहुत बुरा संकेत देता है कि यूएन के सदस्य मानवाधिकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं.”

शारबोनो ने कहा कि कैमरून की सरकार ने विपक्ष और असहमित की आवाज को कुचला और एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय को यातनाएं दीं, इरीट्रिया के सैनिकों ने इथियोपिया के टिग्रे इलाके में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया और यूएई में मानवाधिकारों की स्थिति लगातार गंभीर बनी हुई है. उन्होंने कहा, "जानेमाने मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर अब भी जेल में हैं और उन्हें एक बिस्तर तक उपलब्ध नहीं कराया गया है.”

47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद के नियमों के तहत सदस्य क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर चुने जाते हैं. जेनेवा स्थित मावाधिकार काउंसिल की स्थापना 2006 में हुई थी.

अमेरिका की वापसी

इस संस्था की स्थापना इसलिए की गई थी क्यों कि पहले से जारी मानवाधिकार आयोग की विश्वसनीयता ऐसे सदस्यों की वजह से खत्म हो गई थी, जिनका मानवाधिकार रिकॉर्ड अच्छा नहीं था. ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका ने परिषद में ऐसे सदस्यों के चुनाव की आलोचना की थी और जून 2018 में परिषद को विदा कह दिया था.

फरवरी में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने घोषणा की थी कि उनका देश फिर से परिषद के साथ आएगा. उन्होंने कहा था कि ट्रंप के परिषद छोड़ने के फैसले से "मानीखेज बदलाव के लिए कुछ नहीं किया गया, बस अमेरिका के नेतृत्व में एक खालीपन पैदा हो गया, जिसका फायदा अधिकारवादी देशों ने अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए उठाया.”

गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों का धन्यवाद करते हुए ब्लिंकेन ने कहा कि अमेरिका अन्य देशों के साथ मिलकर "मानवाधिकार परिषद की स्थापना के उद्देश्यों से भटकाने की कोशिशों का विरोध करेगा.”

उन्होंने कहा, "इसके अंदर कई गंभीर कमियां हैं जैसे कि इस्राएल की ओर जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया जाता है और संदिग्ध मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों को सदस्यता मिल जाती है.”

बाद में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि बाइडेन सरकार पूरी कोशिश करेगी कि इस्राएल की ओर जरूरत से ज्यादा ध्यान न दिया जाए.

जो 18 सदस्य तीन साल के लिए चुने गए हैं उनका कार्यकाल आगामी 1 जनवरी से शुरू होगा. इनमें अफ्रीका से बेनिन, गांबिया, कैमरून, सोमालिया और इरीट्रिया, एशिया से भारत, कजाखस्तान, मलेशिया, कतर और यूएई, पूर्वी यूरोप से लिथुआनिया और मोंटेनीग्रो, दक्षिण अमेरिका व कैरेबिया से पराग्वे, अर्जेंटीना और होंडुरास और पश्चिमी देशों से फिनलैंड, लग्जमबर्ग और अमेरिका शामिल हैं. (dw.com)

वीके/एए (एएफपी, एपी)

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