सामान्य ज्ञान

डाटदार पुल
09-Oct-2021 9:53 AM
डाटदार पुल

संसार के तीन विशालतम डाटदार पुल 1902-03 ई. में बने। सबसे बड़ा प्लाएन (जर्मनी) में सीरा नदी पर बना, जिसका पाट अंत्याधारों सहित 296 फुट ओर उठान 59 फुट है। इसमें भार घटाने के उद्देश्य से मुख्य डाट के ऊपर लंबाई और चौड़ाई की दिशाओं में अनेक डाटें लगाई गईं हैं। दूसरी लक्जेमबर्ग डाट पाल सेर्जन द्वारा बनवाई गई थी, जिसका पाट अंत्याधारों सहित 278 फुट और उठान 102 फुट है। स्कंध और कूल्हों पर ऊंचे-ऊंचे खंभे और डाटें हैं, जिनके ऊपर सडक़ है। इसमें मुख्य डाट दो समांतर पट्टियों में बनी है। पट्टियों में से प्रत्येक 30 फुट चौड़ी है और बीच में 20 फुट का अंतर है, जिस पर प्रबलित क्रांकीट स्लैब पड़ा है। इससे लगभग एक तिहाई चिनाई की बचत होने के अतिरिक्त एक सुविधा यह भी हुई कि एक- एक डाट, काम के एक एक मौसम में, पूरी कर ली गई और वही ढूला दो बार इस्तेमाल किया जा सका।

तीसरा पुल मार्वेग्नो (इटली) में ग्रेनाइट का रेल-सडक़-पुल है, जिसका मुख्य पाट 230 फुट और  उठान बहुत ही कम, केवल 33 फुट है। भारत में सबसे बड़ी दर की र्इंट की चिनाईवाली डाट का पुल, पंजाब में कांगड़ा जिले में, पठानकोट कल्लू मार्ग के 65वें मील पर है। इसकी एक ही दर 140 फुट की है। डाट की मोटाई 5 फुट और बीच में ऊंचाई 4 फुट है। इसे 1865 ई0 में मेजर ब्राउन ने बनवाया था।

 1900 से 1910 ई. तक पत्थर के डाटदार पुलों का जमाना रहा, जो शीघ्र ही समाप्त भी हो गया, क्योंकि अन्य अधिक सुविधाजनक निर्माण विधियाँ और सामग्रियां प्रकाश में आ चुकी थीं। क्रंाकीट ने एक क्रांति ही ला दी । सादी क्रांकीट भी प्रयुक्त हुई। संसार में सादी क्रांकीट की विशालतम डाट 280 फुट पाट की क्लीवलैंड (ओहायो) में रॉकी नदी पर 1910 ई. में बनी। 19वीं शताब्दी में भारत में भी चूना क्रांकीट की डाटों के पुल बनाए गए, जिनकी दर 50 फुट तक की है। सन 1860 में बने पठानकोट-कुल्लू मार्ग पर 45वें मील पर एक पुल है, जिसमें 40 फुट दर की तीन डाटें हैं। शीघ्र ही प्रबलित क्रांकीट ने सबका स्थान ले लिया। प्रबलित क्रांकीट स्लैब और धरनें बहुतायत से बनीं, किंतु बड़े पाटों के लिए डाटों का इस्तेमाल बंद न हो सका।

 भारत में भी प्रबलित क्रांकीट के अनेक डाटदार पुल बने। कालीकट कनानोर सडक़ के 7वें मील पर कोरांपुजा पुल सन 1938-40 में 3.38 लाख रुपए की लागत से बना। इसमें चार पाट, प्रत्येक 100 फुट के, तीन प्रत्येक 64 फुट 10 इंच के और एक 60 फुट का है। डाटें, उससे लटकी हुई पाटन सहित, प्रत्यंचा गर्डर का रूप ले लेती हैं। 635 फुट लंबा एक अन्य पुल, पाताल गंगा पर, पेन के निकट है। इसमें भी बीच की तीन दरों पर सौ-सौ फुट की प्रत्यंचा गर्डरें हैं। मद्रास में कूनम नदी पर भी प्रबलित प्रत्यंचा गर्डर की पांच दरोंवाला एक पुल है। भारत में उल्लेखनीय पुल मुस्लिम काल में बने। जौनपुर में गोमती नदी का सुंदर डाटदार पुल, जो आज भी चालू है और अनेक अज्ञातपूर्व बाढ़ें झेल चुका है, शेरशाह सूरी ने बनवाया था। फीरोज़शाह का बनवाया हुआ एक पुल करनाल में यमुना नहर पर ग्रांड ट्रंक रोड के 70वें मील पर विद्यमान है। मुगल काल का एक डाटदार पुल चित्तोड़ के पास है। एक अन्य उल्लेखनीय प्राचीन पुल दिल्ली के निकट खुश्क नाला पर  बारहपुला  नामक है, जिस पर से कभी दिल्ली मथुरा रोड गुजरती थी। वास्तव में यह बारह बुर्जी पुल है, क्योंकि इसमें 11 दरें हैं, और मुंडेरों पर दोनों ओर बारह-बारह बुर्जियां हैं। इसकी डाटें कुछ नुकीली हैं और एक डाट को छोडक़र, जो बाद में कभी ईंट की बना दी गई है, सारा पुल अस्तरित, अनगढ़े पत्थरों का है। निर्माण के बाद इसकी ठीक से मरम्मत भी नहीं होती रही।

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