विचार / लेख

सांप के काटने से मौतों की संख्या बढ़ी
08-Oct-2021 5:30 PM
सांप के काटने से मौतों की संख्या बढ़ी

  भारत में निष्प्रभावी होता एन्टीवेनम   

-संदीप पौराणिक

सांप ही एक ऐसा सरीसृप है कि जिससे मनुष्य सबसे ज्यादा डरता है। संसार में सांप की लगभग 2500 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से लगभग 216 प्रजातियंासांप भारत में पाये जाते हैं। सामान्यतः सांपों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। विषहीन और विषैले, भारत में प्रतिवर्ष 2 लाख से अधिक व्यक्तियों को विषैले सापों द्वारा डसा जाता है, जिसमें लगभग 70 हजार व्यक्ति इनके विष के प्रभाव से दम तोड़ देते हैं। इस मृत्युदर की तुलना यदि हम संसार के दूसरे देशों से करें तो भारत में यह काफी अधिक है। हम अगर अफ्रीका की ही बात करें तो यहां पर संसार के सबसे ज्यादा विषैले सांप पाये जाते हैं, लेकिन उनके द्वारा डसे गये अधिकांश लोगों को बचा लिया जाता है। इसका सबसे प्रमुख कारण वहां के लोगों में जागरूकता एवं वहां की प्रभावी एन्टीवेनम है।

भारत में लगभग 14 प्रजातियांे के जहरीले सांप पाये जाते हैं, जबकि एन्टीवेनम सिर्फ चार प्रजाति के सांपों से ही निर्मित हैं। ये चार प्रजातियां निम्न हैं, नाग या कोबरा इसे हम चश्मे वाला कोबरा नाजा-नाजा भी कहते हैं। दूसरा कामन करेत बंगारस केरूलस., रसेल वाइपर डेबोइया रसेली और सा स्केल्ड वाइपर या इचिस। भारत में पॉलीवेलेन्ट एन्टीवेनम की उपलब्धता के बावजूद, यहां के ग्रामीण एवं कृषि समुदायों में सर्पदंश एक गंभीर समस्या बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में सर्पदंश एवं उससे होने वाली मौतों का प्रतिशत अन्य देशेां की तुलना में  बहुत ज्यादा है।

हाल के वर्षों में भारत सरकार एवं विश्व समुदाय ने इस गंभीर समस्या पर ध्यान देना शुरू किया तथा लगभग 6000 वर्ग किलोमीटर के सर्पों के उन रहवास क्षेत्रों व उनकी प्रजातियों तथा उनके भोजन व उनके दुश्मन जो कि सापों को खाते हैं, इनका अध्ययन करवाया तो जो तथ्य सामने आये थे बेहद ही चौकाने वाले हैं। जैसे भारत का प्रमुख जहरीला सांप नाग, जिसे भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेवार माना जाता है, इससे नाग के 6000 किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र का वृहद अध्ययन किया गया, इसमें सांप प्रजाति के जहर की संरचना और उसके कार्य की विशेषता बनाई गयी है, जिसमें इस प्रजाति के सांपों की अब तक की सबसे व्यापक प्रोटिओनिम और प्रोफाइल तैयार की गई। हमारे वैज्ञानिकों ने इन विट्रो और विवो प्रयोगों के परिणामों ने विष रचनाओं, सहक्रियात्मक औषधि प्रभावों एवं विषों की विवों शक्ति में नाटकीय अंतर पाया। वैज्ञानिकों ने यह भी देखा कि देश के विभिन्न हिस्सों में प्राप्त जहरों को बेअसर करने के लिए प्रमुख एन्टीवेनम की प्रभावशीलता का इस भिन्नता पर अलग-अलग कम या ज्यादा प्रभाव परिलक्षित होता है। वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारा वर्तमान में एन्टीवेनम देश के समूचे क्षेत्रों में एक जैसा प्रभाव नहीं रखता। अतः अब पुनः नये एन्टीवेनम बनाने की आवश्यकता है।

वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि जैव भौगोलिक विष परिवर्तनशीलता, सर्पदंश चिकित्सा के उपचार पर नकारात्मक असर डालती है। भारत में सर्पदंश के उपचार के लिए एन्टीवेनम का निर्माण तमिलनाडु के सांपों की आबादी बिग फोर-नाग, कैरेत, वाइपर, सा स्केल्ड वाइपर के जहर से निर्मित की जाती है। वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि यदि इस एंटीवेनम को नाग द्वारा डसे गये आंध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु के तटीय निवासियों को सिर्फ (0.80 मिलीग्राम) एम.एल जहर की विपणन चिकित्सा शक्ति की तुलना में इसकी एक खुराक ही जहर को बेअसर कर देती है। यही एंटीवेनम, गंगा के मैदान, अर्धशुष्क क्षेत्र, डक्कन के पठार में इसकी ज्यादा या बहुत ज्यादा खुराक या डोज की आवश्यकता पड़ती हैं और यही एंटीवेनम, रेगिस्तान क्षेत्र में अपना प्रभाव लगभग खो चुका है । अर्थात यदि राजस्थान में किसी व्यक्ति को बिग फोर सर्प में से किसी ने डसा है तो उस पर इस दवा एंटी वेनम का प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ रहा है। अतः भारत के इन क्षेत्रों में मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। वैज्ञानिक इस बात पर बल दे रहे हैं कि फिर से देशव्यापी या रिजनल एंटी वेनम का निर्माण हो ताकि देश के सुदूर प्रान्तों के लोगों को इसका समुचित लाभ मिल सके और उनकी जान बचाई जा सके।
 
छत्तीसगढ़ का नागलोक -
छत्तीसगढ़ में जशपुर जिले में स्थित नागलोक भी इंसानों को इन सर्पों द्वारा डसे जाने के लिए कुख्यात है। वैसे तो समूचे छत्तीसगढ़ में नाग तथा करैत की मौजूदगी है तथा यहां की आबोहवा भी इन सरीसृप के लिए काफी अनुकूल है। हाल के अध्ययन में ज्ञात हुआ है कि छत्तीसगढ़ में विश्व के सबसे जहरीले सांपों में से एक किंग कोबरा भी यहां के जंगलों में मौजूद है। यह ज्यादातर सघन वनों या ज्यादा बारिश वाले इलाकों में ही पाया जाता है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ में करैत की ही प्रजाति का बेन्डेड करैत भी पाया जाता है, जिसे यहां की भाषा में अहिराज कहा जाता है, जबकि अहिराज किंग कोबरा का भी नाम है। इसमें नाग की तुलना में 16 प्रतिशत ज्यादा विष पाया जाता है, किन्तु इसके अभी तक किसी मनुष्य को काटने की कोई पुष्टि नहीं हुई है। मैंने स्वयं इसे रायगढ़ जिले के कई स्थानों पर लोगों व बच्चों के गले में लपेटे देखा है। इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी बहुत मांग है इसके कारण ही छत्तीसगढ़ से तस्करी के मामले भी सामने आए हैं। अतः राज्य सरकार व केन्द्र सरकार को चाहिए कि छत्तीसगढ़ के तपकरा क्षेत्र में शीघ्र एक सर्प उद्यान व राष्ट्रीय स्तर का सरीसृप अध्ययन केन्द्रच खोला जाए।

छत्तीसगढ़ में भी सैकड़ों लोग सांपों द्वारा डसे जाने पर मारे जाते हैं। इसका प्रमुख कारण लोगों की अज्ञानता व झाड़फूंक को माना जाता है। यदि सांप द्वारा डसे जाने के दो-तीन घंटे के भीतर व्यक्ति को एंटीवेनम मिल जाता है तो उसके बचने की संभावना बढ़ जाती है। छत्तीसगढ़ में सांपों द्वारा डसे व्यक्तियों की मौत का एक प्रमुख कारण जमीन पर सोना भी है। व्यक्ति जमीन पर धान का पुआल इत्यादि बिछाकर उस पर सोता है तथा सांप भी गर्म खून का होने के कारण तथा ठंड व बारिश से बचने लोगों के बिस्तरों में घुस जाता है। छत्तीसगढ़ में आश्रम छात्रावासों मे रहने वाले दर्जनों बच्चों की भी सर्पदंश के कारण असमय मृत्यु हो रही है।

शासन से अनुरोध है कि सरकार छत्तीसगढ़ के उन ग्रामीण इलाकों का सर्वे करवाकर आदिवासी, किसानों, ग्रामीणों को खाट या लोहे के पलंग दें तथा उन्हें उस पर ही सोने के लिए प्रेरित करें। छत्तीसगढ़ के नागलोक के ग्रामीणों से जब मैंने पूछा कि वे खाट का उपयोग क्यों नहीं करते तो उन्होंने कहा कि चूंकि हमारे समाज में जब कोई व्यक्ति मर जाता है तभी उसे हम खाट पर लिटाकर ले जाते हैं। अतः जिंदा व्यक्ति का खाट पर सोना सामाजिक व धार्मिक रूप से निषिद्ध है। पर अब यह परंपरा टूट रही है। भुक्तभोगी परिवार अब खाट या पलंग पर सो रहे हैं। मेरा छत्तीसगढ़ सरकार से अनुरोध है कि वह भी वर्तमान में प्रचलित एंटीवेनम का छत्तीसगढ़ प्रदेश पर कितना असर है, इसका परीक्षण जरूर करवाएं तथा यहां सर्पदंश से हो रही असमय मौतों को रोकने का प्रबंध करें तथा आश्रमों,छज्ञत्रावासों में भी पलंग की व्यवस्था करे ताकि बच्चों की जान सुरक्षित रह सके।

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