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छत्तीसगढ़ एक खोज : छत्तीसवीं कड़ी : हिंदी सिनेमा का नायाब सितारा-किशोर साहू
02-Oct-2021 2:32 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : छत्तीसवीं कड़ी  : हिंदी सिनेमा का नायाब सितारा-किशोर साहू

-रमेश अनुपम

‘दिल अपना और प्रीत पराई’ की अपार सफलता के पश्चात किशोर साहू ने मद्रास (चेन्नई) के सुप्रसिद्ध निर्माता एस.एस.वासन के लिए जैमिनी प्रोडक्शन के बैनर तले ‘गृहस्थी’ नामक अपनी ही पटकथा पर फिल्म का निर्देशन किया।

इस फिल्म के लिए उनके ही सुझाव पर अशोक कुमार और उस समय फिल्मी दुनिया में नए-नए कदम रखे मनोज कुमार को अनुबंधित किया गया। नायिका के लिए उन्होंने मशहूर निर्माता, निर्देशक वी. शांताराम की बेटी राजश्री को लेने का सुझाव वासन को दिया, उसे वासन ने थोड़ा ना-नुकुर करने के बाद आखिरकार राजश्री के लिए हां कर दिया।  

इस फिल्म के अन्य कलाकारों के रूप में किशोर साहू ने फिल्म इंडस्ट्री में नए आए महमूद और शोभा खोटे को लिया।

लगातार नौ महीने तक मद्रास में रहकर ही उन्होंने ‘गृहस्थी’ फिल्म पूरी कर ली। जैमिनी प्रोडक्शन के बैनर तले बनाई गई फिल्म ‘गृहस्थी’ सफलतम फिल्म साबित हुई।

बंबई तथा अनेक शहरों में इस फिल्म ने जुबली मनाई। मनोज कुमार और राजश्री की जोड़ी देखते ही देखते सुपरहिट जोड़ी साबित हुई।

महमूद और शोभा खोटे की जोड़ी भी हिंदी फिल्मों में लोकप्रिय हो गई।

इस फिल्म के बाद तो जैसे हास्य अभिनेता महमूद की गाड़ी चल निकली।

सन् 1963 में किशोर साहू ने एक और फिल्म का निर्देशन किया ‘घर बसा के देखो’। इस फिल्म में बतौर नायक मनोज कुमार तथा नायिका के रूप में उन्होंने दोबारा राजश्री को लिया। यह फिल्म भी बॉक्स आफिस पर सफल रही।

मनोज कुमार और राजश्री इसके बाद हिंदी सिनेमा के जगमगाते सितारों में गिने जाने लगे। किशोर साहू जैसे कमाल के निर्देशक ने उनके भीतर की अभिनय प्रतिभा को तराश कर एक नया रूप दे दिया था।

एस.एस. वासन ने जिस राजश्री के लिए ठिगनी और सांवली लडक़ी कहकर ‘गृहस्थी’ की हीरोइन के रूप में नापसंद किया था, जिसे किशोर साहू के समझाने के बाद उन्हें लेना पड़ा था, वह लडक़ी हिंदी सिनेमा के लाखों दर्शकों की नायिका बन चुकी थी। किशोर साहू की आंखें अभिनय प्रतिभा को दूर से देखकर ही पहचान लेती थी।

सन् 1965 में ‘पूनम की रात’ फिल्म का निर्देशन किशोर साहू ने किया। इस फिल्म में भी उन्होंने हीरो के रूप में मनोज कुमार को ही लिया। तब तक मनोज कुमार और किशोर साहू अच्छे दोस्त बन चुके थे।

‘पूनम की रात’ में उन्होंने एक नई हीरोइन कुमुद छुगानी को अनुबंधित किया। यह फिल्म भी सफल रही।

सन् 1966 में किशोर साहू ने ‘हरे कांच की चूडिय़ां’ फिल्म का निर्माण और निर्देशन किया। इस फिल्म के लिए उन्होंने पहले से ही विश्वजीत का नाम तय कर रखा था। नायिका के लिए वे किसी नई लडक़ी की तलाश में थे। दिल्ली और बंबई की कई लड़कियों का वे इंटरव्यू भी ले चुके थे, पर इस फिल्म के अनुरूप उनमें से कोई भी उन्हें नहीं जची थी।

उन्हीं दिनों नयना जो हॉस्टल में रहकर अपना ग्रेजुएशन का कोर्स कर रही थी, घर आई हुई थी।  

पिता ने पुत्री को देखा और लगा कि जिसकी तलाश में वे भटक रहे थे वह तो अपने घर पर ही मौजूद है। किशोर साहू को लगा कि ‘हरे कांच की चूडिय़ां’ की नायिका की जो कल्पना उन्होंने की थी वह तो हू-ब-हू नयना ही है, उसकी अपनी प्यारी और खूबसूरत बेटी।

पिता ने पुत्री से पूछा- ‘पिक्चर में काम करोगी’ ?

पुत्री ने थोड़ा आश्चर्य के साथ अपने पिता से पूछा- ‘कौन मैं’?

पिता ने कहा- ‘हां तुम’

पुत्री ने पूछा- ‘कौन से पिक्चर में’ ?

पिता ने कहा- ‘हरे कांच की चूडिय़ां’ में।

बेटी ने पूछा- ‘कौन सा रोल’ ?

पिता ने अपनी बेटी से कहा- ‘हीरोइन का रोल’।

बेटी के लिए यह सब कुछ अप्रत्याशित है। वह अपने पिता से डरी सहमी से पूछती है- ‘क्या यह रोल मैं कर सकूंगी’ ?

पिता आश्वस्त होकर बेटी से कहते हैं- ‘क्यों नही’।

‘हरे कांच की चूडिय़ां’ का निर्माण प्रारंभ हो जाता है। पिता निर्माता, निर्देशक हैं और उनकी प्यारी बिटिया इस फिल्म की नायिका।

अद्भुत है यह प्रसंग। हिंदी सिनेमा जगत के लिए भी यादगार। कोई पिता अपनी ही सुपुत्री को नायिका के रूप में अपनी ही किसी फिल्म में डायरेक्ट करे, यह शायद हिंदी फिल्म में अकेली घटना है।

बहरहाल यह खूबसूरत फिल्म 4 मई सन् 1967 को बंबई की लिबर्टी में रिलीज हुई। यह फिल्म सफल रही। एक कुंवारी लडक़ी की मां बनने की कहानी वाली इस लीक से अलग हटकर बनाई गई फिल्म को दर्शकों ने बेहद पसंद किया।

विश्वजीत और नयना साहू के अभिनय का जादू लोगों के सिर चढक़र बोलने लगा।

इस फिल्म के गाने हर जुबान पर थिरकने लगे। खासकर ‘धानी चुनरी पहन, सज के बन के दुल्हन, जाऊंगी उनके घर, जिनसे लागी लगन, आएंगे जब सजन, देखने मेरा मन, कुछ न बोलूंगी मैं, मुख न खोलूंगी मैं, बज उठेंगी हरे कांच की चूडिय़ां’।

शैलेंद्र के इस खूबसूरत गीत को संगीत से संवारा था शंकर जयकिशन ने और इसे वाणी दी थी अप्रतिम गायिका आशा भोसले ने।
 
बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने नयना साहू को सन् 1967 की श्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब दिया। उत्तरप्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने भी नयना साहू को उत्कृष्ट अभिनय के लिए पुरस्कृत और सम्मानित किया।

किशोर साहू की यह खूबसूरत हीरोइन बेटी किशोर साहू जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने 22 अक्टूबर 2016 में राजनांदगांव आई थी।

23 अक्टूबर को उनके सम्मान में उनकी फिल्म ‘हरे कांच की चूडिय़ां’ का प्रदर्शन राजनांदगांव में किया गया।

छत्तीसगढ़ ने अपने लाडले सपूत किशोर साहू की इस सुंदर और प्रतिभाशालिनी बिटिया को भरपूर मान सम्मान और दुलार दिया।

22 जनवरी 2017 को हमारी यह खूबसूरत नायिका सदा-सदा के लिए हम सबसे दूर चली गई।
(बाकी अगले हफ्ते)

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