सामान्य ज्ञान
दुनिया में कपास के पौधों की लगभग 20 किस्में मिलती हैं, जिनमें से केवल चार किस्मों की खेती की जाती है। रूई के उत्पादन में प्रथम स्थान चीन का है, द्वितीय स्थान रूस और तृतीय स्थान अमरीका का है। इसके अतिरिक्त भारत, पेरू, ब्राजील, मिस्र, पाकिस्तान और कुछ दूसरे उष्ण देश है जिनमें कपास की अच्छी खेती की जाती है। दरअसल कपा की खेती के लिए सूर्य की ऊर्जा बहुत जरूरी है। सूर्य के तेज प्रकाश में ही इसका पौधा अच्छी तरह से पनपता है और इसमें अच्छा कपास आता है। सूर्य जितना अधिक गर्म होता है, रुई के रेशे उतने ही अधिक सफेद और मजबूत होते हंै। यही कारण है कि कपास की खेती पृथ्वी के उष्ण प्रदेशों या उनके पास के स्थानों में की जाती है।
रूई के रेशों का प्रयोग कपड़े, कालीन, चादर, दरी, पट्टिïयां और जिल्दसाजी में किया जाता है। बिनौले को कुचलकर और दबाकर तेल निकाला जा सकता है जिसका उपयोग मारगरिन और मैलोरिन में होता है। यह तेल साबुन बनाने में भी काम आता है। तेल निकालने के बाद जो पदार्थ बचा रहता है उसे बिनौले की खल कहते हैं। यह गाय, भैंस आदि घरेलू जानवरों को खिलाने के काम आता है। इस प्रकार कपास का पौधा हर दृष्टिï से उपयोगी होता है।