सामान्य ज्ञान
27 जुलाई 1921 के दिन टोरंटो यूनिवर्सिटी के दो वैज्ञानिकों फ्रेडरिक बैंटिंग और चाल्र्स बेस्ट ने इंसुलिन नाम के हार्मोन को अलग करने में सफलता पाई थी। बस यहीं से डायबिटीज के रोगियों को इंसुलिन का इंक्जेक्शन देने का रास्ता साफ हो गया। यह 21वीं सदी की सबसे जीवनदायी खोजों में से एक है।
माना जाता है कि इंसान मधुमेह की बीमारी से 3 हजार साल से भी ज्यादा पहले से परेशान है। कई देशों के खोजकर्ताओं को यह तो पता चल गया कि डायबिटीज कहीं न कहीं पाचन से जुड़ी बीमारी है। उन्हें लगता था कि अग्न्याशय में कुछ गड़बड़ी होती है। अग्न्याशय लीवर के ऊपर का एक छोटा सा अंग है। पुराने समय में डायबिटीज का शक होने पर रोगी को कम कार्बोहाइड्रेट और कम शुगर वाला खाना दिया जाता था। इसके बदले खुराक में प्रोटीन और फैट बढ़ा दिया जाता, लेकिन इससे भी बहुत फायदा नहीं मिला। उस वक्त आम तौर पर रोगियों की जल्द मौत हो जाती।
इस गंभीर बीमारी से लडऩे का तरीका आखिरकार 1921 की गर्मियों में दो कनाडाई रिसर्चरों ने खोज ही निकाला। उन्होंने कुत्तों पर डायबिटीज बीमारी पनपाई और फिर उन्हें इंसुलिन के इंक्जेशन दिए। धीरे-धीरे कुत्ते बीमारी से बाहर आ गए। 14 नंवबर 1921 को इस खोज को सार्वजनिक किया गया। दो महीने बाद बैंटिंग ने यूनिवर्सिटी के ही दूसरे वैज्ञानिक जेजेआर मैक्लॉयड के साथ इंसुलिन का इंसान पर सफल परीक्षण किया। डायबिटीज से पीडि़त एक 14 साल का बच्चा चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया। इसके बाद टोरंटो यूनिवर्सिटी ने दवा कंपनियों को इंसुलिन बनाने का लाइसेंस दिया। यूनिवर्सिटी ने दरियादिली दिखाते हुए लाइसेंस के लिए कोई रॉयल्टी नहीं मांगी। उसे मुफ्त में दे दिया गया।
यह खोज आज लाखों लोगों के शरीर में जान फूंक रही हैं। इस महान खोज के लिए बैंटिग और मैक्लॉयड को मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया।