विचार / लेख
-गिरीश मालवीय
आज जब क्रिस्टिआनो रोनाल्डो द्वारा कोका कोला की बोतलों को हटाने की खबर वायरल हो रही है तो मुझे भी अपनी एक पुरानी पोस्ट याद आयी, कोका कोला के इतिहास के बारे में।
1886 में जॉन स्टिथ पेम्बर्टन द्वारा स्थापित कोका-कोला कंपनी बहुत लंबे समय से नाम कमा रही है। यह दुनिया की सबसे बड़ी शीतल पेय कंपनियों में से एक है और दुनिया भर में इसकी अधिक पहुंच के कारण यह उपभोक्ता पूंजीवाद के विकास का अभिन्न अंग रही है। कोका कोला सिर्फ एक सॉफ्ट ड्रिंक नहीं है यह नई संस्कृति का प्रतीक है शीत युद्ध के दौरान कोका कोला पूंजीवाद का प्रतीक बन गया।
वेबस्टर का कहना है कि ये पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच भेद करने वाली चीज बन गई कोका कोला को अमरीका के बढ़ते प्रभुत्व के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है,जहां अमेरिका मौजूद था, वहा कोका कोला का होना अवश्यम्भावी था।
दरअसल कोका कोलोनाइजेशन यह फ्रांसीसियों व्दारा ईजाद किया शब्द है जब 1950 मे फ्रांसीसी जनता ने कोका कोला का विरोध किया तो यह शब्द का प्रयोग पूंजीवाद के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में इस्तेमाल हुआ बताते हैं कि फ्रांस मे कोका कोला के ट्रक पलट दिए गए और बोतलें तोड़़ दी गई। विद्वान् बताते हैं कि प्रदर्शनकारी कोका कोला को फ्रांसीसी समाज के लिए खतरा मानने लगे थे लेकिन वर्ष 1989 में जब बर्लिन की दीवार गिरी, तो पूर्वी जर्मनी में रहने वाले कई लोग क्रेट भर-भर कर कोका कोला लेकर आए तब ‘कोका कोला पीना आज़ादी का प्रतीक बन गया।’
अ हिस्ट्री ऑफ द वल्र्ड इन सिक्स ग्लासेज के लेखक टॉम स्टैंडेज का कहना है कि किसी भी देश में कोका कोला की एंट्री एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में देखी जाती है।।...वो कहते हैं, ‘जैसे ही कोका कोला अपना माल भेजना शुरू करती है, आप कह सकते हो कि वहाँ असली बदलाव होने जा रहा है। कोका कोला एक बोतल में पूँजीवाद के बेहद करीब है कोका-कोला को एक समय सबसे बड़े पूंजीवादी समूह के रूप में जाना जाता था और इसकी शोषणकारी प्रकृति के लिए आलोचना भी की गई है।
सोवियत संघ के मार्शल जिओरी ज़ुकोव ने भी सोवियत संघ में कोका कोला जैसे पेय को प्रचलित करवाने में रूचि ली, लेकिन एक रंगहीन और मजेदार सी दिखने वाली बोतल के बिना। कोका कोला ने उनके लिए ऑस्ट्रिया में एक रसायनज्ञ से एक अलग फार्मूला बनवाया , जो वोदका की तरह रंगहीन था पर यह प्रयोग अधिक सफल नहीं हुआ
कोका-कोला ने 1950 के दशक में भारतीय बाजार में प्रवेश किया था, उस समय जब दुनिया भर में पूंजीवाद फैल रहा था। कहा जाता है कि फार्मूला साझा न करने पर इसे भारत से जाना पड़ा भारत में हुए आर्थिक सुधारो के बाद यह कम्पनी दुबारा लौटकर भारत में आई।