सामान्य ज्ञान
सिक्किम राज्य पूर्णत: जैविक राज्य बनने की दिशा में अग्रसर है। यहां की सरकार ने अगस्त 2012 में इस प्रकार का अभियान घोषित करने की घोषणा की थी और इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। कृषि विभाग द्वारा राज्य के 8 हजार हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र को जैविक खेती के लिए निर्धारित किया जा चुका है, जबकि बचे हुए लगभग 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती के क्रियान्वयन के लिए चरणबद्ध प्रयास किए जाएंगे।
इस अभियान के तहत राज्य में किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण देने एवं जैविक उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इससे किसानों को सस्ती दरों पर ग्रीन हाउस बनाने में सहायता होगी। सिक्किम में संगठित रूप से जैविक खेती का आरंभ 2003 में हुआ था जबकि राज्य सरकार ने सिक्किम राज्य जैविक बोर्ड का गठन किया था। इलायची यहां की प्रमुख नगदी फसल है।
राज्य में कृषि विकास के लिए कुल 48 योजनाओं को क्रियान्वित किया जा चुका है। सिक्किम भारत का एक पर्वतीय राज्य है। अंगूठे के आकार का यह राज्य पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। अंग्रेजी, नेपाली, लेप्चा, भूटिया, लिंबू तथा हिन्दी आधिकारिक भाषाएं हैं परन्तु लिखित व्यवहार में अंग्रेजी का ही उपयोग होता है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। गंगटोक राजधानी तथा सबसे बड़ा शहर है।
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ब्रह्म सूत्र
ब्रह्म सूत्र, वेदान्त शास्त्र अथवा उत्तर (ब्रह्म) मीमांसा का आधार ग्रंथ है। इसके रचयिता बादरायण कहे जाते हैं। इनसे पहले भी वेदान्त के आचार्य हो गये हैं, सात आचार्यों के नाम तो इस ग्रन्थ में ही प्राप्त हैं। इसका विषय है ब्रह्म का विचार।
ब्रह्मसूत्र के अध्यायों का वर्णन इस प्रकार है- प्रथम अध्याय का नाम समन्वय है, इसमें अनेक प्रकार की परस्पर विरुद्ध श्रुतियों का समन्वय ब्रह्म में किया गया है। दूसरे अध्याय का साधारण नाम अविरोध है। इसके प्रथम पाद में स्वमतप्रतिष्ठा के लिए स्मृति-तर्कादि विरोधों का परिहार किया गया है। द्वितीय पाद में विरुद्ध मतों के प्रति दोषारोपण किया गया है। तृतीय पाद में ब्रह्म से तत्वों की उत्पत्ति कही गई है। चतुर्थ पाद में भूतविषयक श्रुतियों का विरोधपरिहार किया गया है। तृतीय अध्याय का साधारण नाम साधन है। इसमें जीव और ब्रह्म के लक्षणों का निर्देश करके मुक्ति के बहिरंग और अन्तरंग साधनों का निर्देश किया गया है। चतुर्थ अध्याय का नाम फल है। इसमें जीवन्मुक्ति, जीव की उत्क्रान्ति, सगुण और निर्गुण उपासना के फलतारतम्य पर विचार किया गया है।
ब्रह्मसूत्र पर सभी वेदान्तीय सम्प्रदायों के आचार्यों ने भाष्य, टीका व वृत्तियाँ लिखी हैं। इनमें गम्भीरता, प्रांजलता, सौष्ठव और प्रसाद गुणों की अधिकता के कारण शांकर भाष्य सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता है। इसका नाम शारीरक भाष्य है।