सामान्य ज्ञान
जैनेरिक दवाओं में वही तत्व होते हैं, जो प्रैस्क्रिप्शन दवाओं में होते हैं, लेकिन ये पेटेंट कानून से मुक्त होती हैं, इसलिए सस्ती पड़ती हैं। जैसे कि ऐस्पिरिन जैनरिक दवा है, लेकिन दवा बनाने वाली विभिन्न कंपनियां अलग-अलग नामों से इसे बेचती हैं।
जैनरिक दवाएं भी गुणवत्ता के कड़े पैमानों से होकर गुजरती हैं इसलिए उतनी ही प्रभावी होती हैं और इनके कोई अतिरिक्त साइड इफेक्ट नहीं होते हैं। केन्द्र सरकार भी अब जैनरिक दवाइयों के इस्तेमाल पर जोर दे रही है और इसके लिए प्रचार अभियान चला रही है। छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में आगामी 15 अगस्त (2013) से जैनरिक दवाइयां मरीजों को मुफ्त में मिलनी शुरू हो जाएंगी।
ग्रंथ वर्णाक्षर
ग्रंथ वर्णाक्षर, दक्षिण भारत की लेखन पद्घति है, जिसका विकास पांचवी शताब्दी में हुआ और यह अब भी प्रचलन में है। ग्रंथ में लिखा गया आरंभिक अभिलेख पांचवी-छठी शताब्दी का है और यह पल्लव (आधुनिक चेन्नई के निकट) राज्य के ताम्रपत्रों और प्रस्तर स्मारकों पर उत्कीर्ण है। इन अभिलेखों में वर्णाक्षर के जिस स्वरूप का उपयोग हुआ है। उसे आरंभिक ग्रंथ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
सातवीं शताब्दी के मध्य से आठवी शताब्दी के अंत तक इस्तेमाल की जाने वाली लिपि को मध्यग्रंथ कहते हैं और इसके बारे में भी ताम्र व प्रस्तर अभिलेखों के माध्यम से ही जानकारी मिलती है। नौवीं से चौदहवीं शताब्दी तक इस्तेमाल की गई लिपि को संक्रमण ग्रंथ कहते हैं। लगभग 1300 ई. के बाद से आधुनिक लिपि का उपयोग हो रहा है। वर्तमान काल में इसके दो प्रकारों का उपयोग हो रहा है। ब्राह्मïण या वर्गाकार और जैन या वर्तुलाकार।
मूलत: इस लिपि का उपयोग संस्कृत लिखने के लिए होता था, लेकिन इसके बाद के प्रकारों का इस्तेमाल दक्षिण भारत की स्थानीय द्रविड़ भाषा को लिखने के लिए होने लगा। तुलु मलयालम लिपि ग्रंथ का एक प्रकार है, जो आठवीं या नौंवी शताब्दी से प्रचलित है। संभावना है कि आधुनिक तमिल लिपि भी गं्रथ से ही उत्पन्न हुई होगी, लेकिन यह निश्चित नहीं है। इस लिपि में 35 अक्षर हैं, जिसमें पांच स्वर हैं और यह बाएं से दाईं ओर लिखी जाती हैं।