सामान्य ज्ञान

ग्वारफली
19-Jun-2021 12:19 PM
ग्वारफली

ग्वार या ग्वारफली भारत के कई प्रदेशों में होती है। ग्वारफली का उपयोग हरी तरकारी के रूप में होती है। ग्वार विशेषत: गर्मी की ऋतु की फसल है, परंतु सामान्यत: यह वर्षा ऋतु और बसंत ऋतु में इस प्रकार वर्ष में दो बार होती है।

अच्छे निथारवाली वाली बेसर या लाल जमीन इसके लिए ज्यादा अनुकूल रहती है। इसके पौधे दो-तीन हाथ ऊंचे बढ़ते है। ग्वार को बाजरे के साथ मिश्र फसल के रूप में भी बोया जाता है। हरी पडवाश की खाद के लिए भी ग्वार बोई जाती है। एक बीघा जमीन में अनुपात: तीन हजार पौंड ग्वारफलिया उत्पन्न होती है। ग्वार की कई किस्म होती है। इनमें तरडिया या फटकनिया ग्वार को छोड़ अन्य किस्मों की फलियों का साग बनाने में उपयोग होता है। नरम फलियों वाली अच्छी किस्म की ग्वार को मक्खनिया ग्वारा कहते हैं।  इसकी फलियां सुकोमल और चार-पांच इंच लंबी होती है। लोग इसे विदेशी ग्वार भी कहते हैं। साग के अलावा इसकी फलियों का अचार भी बनता है।  ग्वार की कुछ किस्में चौपायों के चारे के लिए भी उगाई जाती हैं।  

ग्वारफली को पोषण मूल्य फनसी (फ्रैंचबीन) जितना ही समृद्ध माना जाता है।  सामान्यत: ग्वार चौपायों का आहार माना जाता है।  यह विशेषकर बैलों को खिलाया जाता है।  इससे बैलों की ताकत बढ़ती है। दुधारू पशुओंं को ग्वार खिलाने से दूध बढ़ता है। गोंद बनाने के लिए भी  ग्वारा की कुछ किस्मों का उपयोग होता है। 

ग्वारफली मधुर, रुक्ष, शीतल, भारी, पौष्टिïक, पित्तहर और कफकारक और वायुकारक होता है। इसका साग पौष्टिïक माना जाता है।  ग्वार के मुलायम पत्ते का साग खाने से रतांैधापन मिटता है। लेकिन अधिक मात्रा में इसका सेवन भी नुकसानदायक है। 

कर्म
गीता दो प्रकार के कर्मों का उल्लेख करती है- सकाम और निष्काम। इसी के अन्य भेद संचित और प्रारब्ध, दैव और पित्र्य और प्रवृत्त तथा निवृत्त हैं। जैन मत में धाति और अधाति को कर्म माना जाता है। इनमें पहला मुक्ति मार्ग की बाधा है। इसके शुभ और अशुभ भेद भी किए जाते हैं। मीमांसा गुणकर्म और अर्थ-कर्म विभेद करती है। अर्थकर्म के भी नित्य, नैमित्यिक और काम्य तीन भेद है। इसके शुभ और अशुभ भेद भी किए जाते हैं। वेदांत ने कायिक, वाचिक , मानसिक, कृत और अकृत ये पांच भेद बताए हैं। तंत्र में जागरण, मारण, उच्चाटन, मोहन स्तंभन और विध्वंशन तथा हठयोग में धौति, वस्ति, नेति, नौलि, कपालभस्ति और त्राटक ये छह-छह भेद वर्णित हैं। पुराणानुसार पुनर्जन्म, स्वर्ग अथवा मोक्ष कर्म के अनुसार ही होता है।

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