विचार / लेख
चित्र-नेट से साभार
-स्मिता
रायपुर के आउटर में एक पंजाबी ढाबे में मद्धम रोशनी में थोड़ा वाइल्ड, विद्रोही थीम के इंटीरियर में ‘चे ग्वेरा’ की पोस्टर लगी हुई थी।
ऐसे ही कितने टी शर्ट, टैटू, कैप,बाइक और पोस्टर में उनकी तस्वीर चस्पा है । वे सिर्फ फैशन स्टेटमेंट नहीं विचार और जीवनशैली है।
मूलत: युवाओं के प्रतिरोध, उनकी ऊर्जा से भरी क्रांति और दु:साहसके प्रतीक के रूप में ‘चे’ युवाओं के महानायक है।
दक्षिण अमेरिकी देशों का सफर करते हुए ‘चे ग्वेरा’ ने इन देशों की बदहाली देखी और शस्त्र उठा लिया। चे का बचपन बीमारियों से लडऩे में बिता और युवाकाल गुरुल्ला-युद्ध में। चे के पुस्तक पढऩे के प्रेम ने चे को एक पुस्तकालय में नौकरी भी करा दी। इस बेहद जिद्दी और स्वभाव से जोखिमों से खेलने वाले युवा ने क्यूबा को तानाशाही से आजादी दिला दी और लोकतांत्रिक सरकार में मंत्री भी बने।
चे ग्वेरा यही पर नहीं रुक जाते बल्कि अन्य देशों में जहाँ अन्याय हो रहा था, उन देशों के भी युवाओं को गुरुल्ला युद्ध की ट्रेनिग देने लगे। इसी क्रम में बोलविया के सैनिकों और सीआईए ने एक संयुक्त अभियान चलाकर चे को पकड़ा और गोली मार दी (9 अक्टूबर 1967)। इस तरह एक महान क्रांतिकारी शहीद हो गया और तृतीय-विश्वयुद्ध होने से पूर्व ही उसका समापन हो गया।
चे एक जिद्दी, जोशीले, बेहद निडर, ईमानदार और सबसे बढक़र अन्याय के खिलाफ सदैव खड़े रहने वाले योद्धा थे। अपने इसी गुणों से चे ग्वेरा दुनिया भर में आज भी बेहद पसंद किये जाते है, आज भी चे ग्वेरा ‘विद्रोह का महान चेहरा’ हैं और युवाओं की पहली पसंद हैं।
वैसे तो चे ग्वेरा माथे एक दाग भी है, चे ग्वेरा जब क्यूबा के जेल मंत्री थे तब उनने सैकड़ों युद्धबंदियों को बिना मुकदमा फाँसी पर लटकाया दिया था, जिसकी बड़ी आलोचना हुई थी।
बहरहाल आज चे ग्वेरा को उसके जन्मदिन पर याद करते हुए उसके बेटे को उसके द्वारा लिखे ख़त की एक लाइन याद आ रही है जो उसे दुनिया के महानतम क्रन्तिकारियों में शामिल किये जाने को जायज़ ठहराती है। खत में अपने बेटे को चे ग्वेरा ने लिखा था,-‘दुनिया में कहीं भी अन्याय हो रहा हो तो सशत्र क्रांति ही एक मात्र विकल्प है।’
सलाम कामरेड!