विचार / लेख
-बृजेश सिंह
राहुल गांधी चाहते तो 10 साल की यूपीए सरकार में स्वयं प्रधानमंत्री बन सकते थे, कैबिनेट मंत्री बन सकते थे किंतु उन्होंने राज्यमंत्री तक का पद नहीं लिया। मगर जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, सचिन पायलट ये सब वो थे जिनको पहली बार सांसद बनने पर ही मंत्री पद मिला।
किन्तु इन सभी नेताओं में एक बात कॉमन थी वो ये कि इनका बैकग्राउंड बाप-दादाओं की जमीन से था न कि स्वयं संघर्ष का। इन्होंने पार्टी के लिए कोई संघर्ष नहीं किया, बल्कि पैराशूट से लांच किए गए और वो सभी पद और प्रतिष्ठा जिसकी कामना हर एक नेता को जीवन भर रहती है, वो एक झटके में मिल गई। एक जमीनी, कट्टर, और मिट्टी से निकले कार्यकर्ताओं को तरजीह न देकर कांग्रेस ने 10 साल जो शासन किया उसका परिणाम आज भुगत रही है।
अभी भी कांग्रेस में ऐसे हजारों कार्यकर्ता हैं जिन्होंने अपनी जवानी गला दी है पार्टी के लिए, एक उम्र बिता दी है, उनके खून में कांग्रेस बसती है, किंतु उन्हें एक अदद जिम्मेदारी देने के लिए भी पार्टी के लोग तैयार नहीं हैं, यह मेरा मूल्यांकन है कि जिसने अपनी राजनीति जमीन से शुरू की, वह बिना पद के भी आज 32 साल का सूखा झेलने के बाद इस प्रतिकूल समय में भी पार्टी के कार्यकर्ता हैं। आज पार्टी का जो अस्तित्व बचा है वह उनके पसीने के ही कारण है।
इन पैराशूटधारियों के बजाय यदि कांग्रेस अपने इन जमीनी कार्यकर्ताओं पर विश्वास कर ले तो आज कम से कम मुख्य लड़ाई में तो दिखाई ही देने लगेगी। पार्टी की दुर्दशा से कष्ट उन्हें ही होता है जिन्होंने अपना जीवन हवन कर दिया है। पार्टी के लिए, न कि जितिन प्रसाद या ज्योतिरादित्य टाइप के लोगों को।