सामान्य ज्ञान
किसी भी बीमारी का इलाज दवा से किया जाता है, मलेरिया का भी। पर अगर इंसान की जगह मच्छर को ही दवा दे दी जाए तो बीमारी जड़ से ही खत्म हो जाएगी।मलेरिया से बचने के लिए मच्छरों के जीन में बदलाव किए जा रहे हैं।
मलेरिया का खतरा तब बनता है जब अपना पेट भरने के दौरान मादा एनोफिलीज मच्छर डंक के सहारे हमारे शरीर में घातक विषाणु छोड़ देती है। ये विषाणु खून में बहते हुए नसों से गुजरते हैं और हमारे लीवर में जमा होने लगते हैं। 100 विषाणु लगातार फलने फूलने वाला चक्र बनाने के लिए काफी हैं। लीवर में घर कर लेने के बाद ये खून की कोशिकाओं के अंदर पहुंच जाते हैं और फिर पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
विषाणुओं के शरीर में फैलने के बाद अगर कोई मच्छर फिर काट ले तो विषाणु और घातक हो जाता हैन इस तरह मलेरिया जैसी घातक बीमारी की शुरुआत होती है। तेज बुखार, बदन में कंपकपी, पेट में मरोड़ उठना, ये मलेरिया के लक्षण हैं। आम तौर पर ये बीमारी गरीब इलाकों में ज्यादा फैलती है। दुनिया भर में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोग इसकी वजह से जान गंवा रहे हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे होते हैं।
मलेरिया से बचने के लिए आज तक कोई तरीका नहीं निकल सका है. बचाव ही एक विकल्प है। मच्छरों को मारने के लिए डीडीटी छिडक़ा जाता ह, लेकिन यह जहरीली दवा सिर्फ मच्छरों को ही नहीं, इंसानों को भी नुकसान पहुंचाती है। इससे कैंसर का खतरा भी होता है। साथ ही मच्छर भी लगातार डीडीटी के खिलाफ ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर रहे हैं। एक बार दवा से दबने के बाद मलेरिया के विषाणु दवा के खिलाफ ताकत हासिल कर लेते हैं। विषाणुओं के लिए ये बहुत आसान है.
अब वैज्ञानिक प्रयोगशाला में मच्छर के जीन में बदलाव करके विषाणु के मलेरिया चक्र को तोडऩा चाह रहे हैं। विषाणु को नियंत्रित किया जा रहा है, इससे उसका प्रसार धीमा होगा। चूहे पर टेस्ट करने के लिए उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगाया जाता है। चूहा मच्छर के सामने निढाल पड़ जाता है और मच्छर उस पर टूट पड़ते हंैस, लेकिन मच्छरों के भीतर जीन संवर्धित वायरस के कारण चूहे को मलेरिया नहीं होता। हालांकि दुनिया के अरबों मच्छरों तक ऐसा वायरस पहुंचाना मुमकिन नहीं है।