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दो महामारियों के बीच गहरी नींद लेने का आदी हिन्दुस्तान
05-Jan-2025 4:17 PM
दो महामारियों के बीच गहरी नींद लेने का आदी हिन्दुस्तान

आज के बच्चों की याद में भी कोरोना बैठा हुआ है जब महीनों तक उन्हें घर से निकलने नहीं मिला था, और उनके स्कूल-कॉलेज बंद थे, दोस्तों से मिलना-जुलना भी बंद था। बड़े लोगों को तो और अधिक याद होगा क्योंकि नशेडिय़ों को दारू-तम्बाकू मिलना बंद हो गया था, मजदूरों से लेकर कारोबारियों तक की मजदूरी-कमाई बंद हो गई थी, और जिंदगी की शक्ल बदल गई थी। अब ऐसे में चीन में एक नए वायरस, एचएमपीवी फैलने की खबर है जो कि खासकर 14 साल से कम के बच्चों को प्रभावित कर रहा है, सर्दी-जुकाम और कोरोना जैसे लक्षण पैदा कर रहा है, और तेजी से फैल रहा है। दुनिया के बाकी देशों ने भी चीन से इसका खतरा उठने और बाहर निकलने पर विचार शुरू कर दिया है, और भारत में भी केन्द्र सरकार के स्तर पर अभी कल ही इस पर एक बैठक हुई है।

कोविड-19 फैलने के वक्त चीन ने बाकी दुनिया के साथ इसकी शुरूआत की जानकारी साझा नहीं की थी, और अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चीन से समय रहते जानकारी साझा करने की अपील की है। चीन से निकलने वाले कई वीडियो वहां इस वायरस, एचएमपीवी का असर बता रहे हैं, और कुछ जागरूक देश चीन के इस हाल को देखकर अपने देश में लोगों से सफाई बरतने की अपील शुरू कर चुके हैं।

अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी और जानकारी आए, वह तो ठीक है, लेकिन उसके पहले भी किसी भी जिम्मेदार देश और समाज को ऐसे किसी संक्रमण के खतरे के प्रति सावधान रहने की तैयारी शुरू कर देना चाहिए। जो लोग वक्त रहते सावधान हो जाते हैं, उन्हें बाद में दहशत की नौबत कम आती है। हिन्दुस्तान को इस बारे में खासकर सोचना चाहिए क्योंकि कोरोना के दौर में लाखों या दसियों लाख, जितनी भी मौतें हुई हों, उन्होंने यह साबित किया कि भारतीय समाज ऐसे किसी संक्रमण को रोकने लायक नहीं है। सरकारों ने तरह-तरह की कोशिशें की थीं, लेकिन वे भी मौतों को रोक नहीं पाई थीं। और जैसा कि किसी भी संक्रामक रोग के साथ होता है, भारत भी नागरिकों के जागरूक रहने पर लाखों मौतों को टाल सकता था।

हम तो आज चीन से ऐसे नए वायरस के आने के खतरे की आशंका जब देखते हैं, तो यह लगता है कि कोरोना से मिले सबक को ध्यान में रखते हुए हिन्दुस्तानियों को अपनी हाल की तकलीफदेह यादों को ताजा करना चाहिए, और अगला खतरा सिर पर आ जाने के पहले उससे निपटने के लिए एक मिजाज बना लेना चाहिए।

हिन्दुस्तानियों की साफ-सफाई के लिए जो आम हिकारत है, वह संक्रमण से फैलने वाली किसी भी बीमारी को बहुत पसंद आती है। हिन्दुस्तानी लोग हर कुछ मिनटों में सार्वजनिक जगह पर थूककर इस बात की गारंटी कर लेना चाहते हैं कि शासकीय सम्पत्ति, सार्वजनिक सम्पत्ति उनकी अपनी है, और ऐसे नारों वाले पोस्टर झूठे नहीं हैं। यह एक अलग बात है कि ऐसे पोस्टर सार्वजनिक सम्पत्ति और जगहों के जिम्मेदार रख-रखाव के लिए लगाए जाते हैं, लेकिन हिन्दुस्तानी हैं कि वे इनका बेजा इस्तेमाल करके अपना आत्मविश्वास बढ़ाते हैं कि वे ही इसके मालिक हैं।

सडक़ों पर देखें तो जहां कोई गाड़ी कुछ देर खड़ी दिखती है, वहां उसकी खिड़कियों के बाहर सडक़ पर थूक और पीक के राष्ट्रीय निशान दिखते ही दिखते हैं। और तो और चौराहों पर लालबत्तियों पर जहां गाडिय़ों को रूकना रहता है, वहां भी 25-50 सेकेंड रूकने पर लोग अगले चौराहे तक के लिए फारिग हो जाना चाहते हैं, और तुरंत ही सडक़ पर थूकने लगते हैं। गुटखा-तम्बाकू की मेहरबानी से अब लोगों का थूक बेरंग नहीं रहता, बल्कि इनकी वजह से वह खूब सारा भी रहता है, बार-बार भी बनता है, और सडक़ को रंगते भी चलता है। कोरोना के दौर में लोगों को चाहे-अनचाहे मास्क लगाना पड़ता था, और अब जब किसी बड़े संक्रमण का कोई खतरा नहीं है, तो लोग बिजली की रफ्तार से अपनी पुरानी गौरवशाली भारतीय संस्कृति पर लौट आए हैं, और ताम्बूल की कई किस्म की शक्लों का इस्तेमाल करते हुए सडक़ों को रंगने लगे हैं।

सार्वजनिक जगहों से परे भी लोग अपने घर-दफ्तर में, अपनी गाडिय़ों में, खानपान और व्यवहार में परले दर्जे की गंदगी के साथ सुख से जीते रहते हैं। उन्हें किसी साफ-सफाई की अधिक परवाह नहीं रहती, और जिन हाथों से जूतों के तस्में खोलकर वे किसी के घर घुसते हैं, उसी हाथ से उठाकर नाश्ता भी करने लगते हैं, और बचा हुआ नाश्ता अगले मेहमान का रास्ता भी देखने लगता है। हिन्दुस्तानी बुनियादी रूप से गंदगी की जिंदगी जीने के आदी हैं, यह एक अलग बात है कि सुअर को यहां गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है, और लोग सुअर की तरह गंदा जीने को अपनी आजादी मानते हैं, अपना हक मानते हैं।

सफाई से परे की बातें करें, तो कोविड-19 के वक्त का इस देश का तजुर्बा है कि जिन लोगों ने अपनी सेहत ठीक रखी थी, जो खेलकूद, योग-ध्यान, कसरत और सैर से, सेहतमंद खानपान से फिट रहते थे, उन पर कोरोना का असर कुछ कम भी हुआ था, और उन्हें ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत कम पड़ी थी, या नहीं भी पड़ी थी। लेकिन कोरोना मौतें थमीं, और लोगों का श्मशान वैराग्य खत्म हो गया। उसके बाद सेहतमंद बने रहने के संकल्प फेसमास्क के साथ कचरे की टोकरी में डाल दिए गए, और कसरत-सैर के लिए सुबह का जो वक्त माकूल माना जाता है, उस वक्त लोग लात ताने अखबार पढऩे लगे, और वॉट्सऐप पर नफरत आगे बढ़ाने लगे। नतीजा यह हुआ कि देश में धूमकेतु की तरह जागरूकता की जो चर्चा आई थी, वह धरती पर कहीं गिरते हुए धूमकेतु की तरह खत्म भी हो गई।

दुनिया में किसी वैज्ञानिक साजिश के तहत, या किसी प्राकृतिक उपजे संक्रमण की तरह, जैसे भी कोई बीमारी फैलेगी, एक बार फिर दुनिया के देशों को हड़बड़ी में उससे बचाव की तैयारी करनी पड़ेगी, जो कि जीवनशैली का एक तरीका ही रहना चाहिए। यह सिलसिला ही खतरनाक है कि संक्रमण फैलने पर सावधानी जागे। आज हिन्दुस्तान में गुटखा-तम्बाकू और बीड़ी-सिगरेट से फैलने वाले कैंसर के खिलाफ जनता के बीच जागरूकता के अभियान बहुत कम हैं। कैंसर से खोखला बदन किसी भी किस्म के संक्रमण को कम झेल पाते हैं, इसी तरह डायबिटीज या दूसरी बीमारियां संक्रमण के खतरे को बहुत बढ़ा देती हैं, लेकिन भारत में राष्ट्रीय स्तर पर स्थाई रूप से न तो सफाई की जागरूकता का अभियान चलता, और न ही सेहत की जागरूकता के लिए सालाना जलसों से परे कुछ किया जाता।

आज की हमारी बातचीत खिचड़ी की तरह की कुछ बेस्वाद जरूर लग सकती है, लेकिन बदन के लिए कई बार खिचड़ी ही सबसे बेहतर होती है। आज हमें यह लगता है कि किसी भी संभावित संक्रमण के खिलाफ जागरूकता की सबसे बड़ी तैयारी राष्ट्रीय स्तर पर एक बारहमासी मुहिम की तरह चलना चाहिए, लेकिन उसका कोई ठिकाना नहीं है। अगर पूरा देश एक साथ नहीं जागता है, तो भी कोई प्रदेश इसकी मिसाल कायम कर सकता है, और बीमार पडऩे के बाद, संक्रमित होने के बाद इलाज की नौबत टाली जानी चाहिए। लोगों को साफ-सफाई से लेकर खानपान तक, फिट रहने से लेकर बीमारी के प्रति जागरूकता तक तैयार करने, और तैयार बनाए रखने की जिम्मेदारी हर सरकार को पूरी करनी चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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