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आजकल : हजार रूपए में पड़ोसी मित्र देश से टकराव खड़ा करने की सजा?
19-Jul-2020 12:59 PM
आजकल : हजार रूपए में पड़ोसी मित्र देश  से टकराव खड़ा करने की सजा?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय चुनाव क्षेत्र बनारस से एक खबर आई कि वहां एक हिन्दू उग्रवादी संगठन ने नेपाल के एक नागरिक को पकडक़र जबर्दस्ती उसका मुंडन करवाया, और उससे जयश्रीराम के नारे लगवाए। इस संगठन के लोगों ने उससे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ भी नारे लगवाए जिन्होंने पिछले दिनों यह कहा था कि राम नेपाली थे। 

चूंकि यह खबर इन दिनों हवा में तैर रहे एक बड़े विवाद से जुड़ी हुई थी, तमाम मीडिया पर छा गई, और उसके साथ मूंडे गए सिर पर राम का नाम भी लिखा हुआ था, इसलिए इसका धार्मिक उन्माद के लिए भी खासा महत्व हो गया था। इसका वीडियो भी तैरते रहा। आज के वक्त के इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में कोई खबर अपने तथ्यों से अगर महत्व के दस नंबर पाती है, तो उसकी तस्वीर होने से वह घटना महत्व के चालीस नंबर और पा जाती है। फिर अगर वीडियो भी है, तो सोने पे सुहागा, महत्व के पचास नंबर और मिल जाते हैं, और वह सौ टका खरा टीआरपी-वेबसाईट हिट सामान बन जाती है। 

अब बनारस पुलिस ने जांच के बाद बताया है कि जिसका सिर मूंडकर वीडियो बनाया गया वह कोई नेपाली नहीं था बल्कि बनारस का ही था, मां-बाप दोनों सरकारी नौकरी करते थे, और वह अभी भी मां की जगह नौकरी पाए भाई के सरकारी क्वार्टर में रहता है। उससे तीन हिन्दुओं ने जाकर संपर्क किया था, और कहा था कि एक कार्यक्रम में घाट पर चलकर सिर मुंडवाना है जिसके लिए हजार रूपए मिलेंगे। सिर मुंडाकर नारे लगवाए, वीडियो बनवाया, और दोनों देशों के बीच एक गैरजरूरी तनाव खड़ा करवाकर लोग चले गए। बाकी का काम आपाधापी में रचे गए मीडिया ने कर दिया। विश्व हिन्दू सेना के संस्थापक अरूण पाठक सहित जिन लोगों पर जुर्म कायम हुआ है उनमें राजेश और जयगणेश नाम के लोग भी हैं। 

पुलिस ने अब तक इस सिलसिले में छह लोगों को गिरफ्तार तो कर लिया है, लेकिन ऐसी तथाकथित राष्ट्रवादी सोच को तो पूरे देश में पनपने दिया जा रहा है जिसकी वजह से देश के भीतर लोगों में खाई खुद रही है। यह समझने की जरूरत है कि भारत में नेपाली नागरिक बिना किसी वीजा के आते-जाते रहे हैं, और यहां सरकारी नौकरी भी पाते रहे हैं। ऐसा ही हाल नेपाल में भी हिन्दुस्तानियों का रहा है। लेकिन जब इन दोनों देशों के बीच एक तनातनी चल रही है तो खुद शोहरत पाने के लिए ऐसी नफरती साजिश रचकर ऐसी हरकत करना क्या देश के साथ गद्दारी नहीं है? देश के साथ गद्दारी और भला क्या होती है कि इस देश में आए हुए नेपालियों के खिलाफ नफरत फैलाई जाई, हिंसा फैलाई जाए, इसके लिए एक राह दिखाई जाए। पड़ोस के एक देश से रिश्ते खराब किए जाएं, और बाकी पूरी दुनिया में भी हिन्दुस्तान का नाम बदनाम किया जाए कि यहां दूसरे देश के लोगों से कैसा सुलूक किया जाता है। 

आज जब हिन्दुस्तान में बात-बात पर लोगों को गद्दार होने का सर्टिफिकेट दिया जा रहा है, जब हिन्दू धर्म, और कुछ राजनीतिक संगठनों से जुड़े हुए लोगों के तमाम किस्म के जुर्म, हत्या और बलात्कार कर, दंगा-फसाद तक पर देने के लिए क्लीनचिट छपवाकर ग_ा रखा गया है, और दूसरी तरफ इनसे परे के, असहमत, लेकिन सचमुच के भले और देशभक्त लोगों को देने के लिए गद्दार की पर्ची छपवाकर रखी गई है, तब अगर ऐसी साजिश का हौसला लोगों का हो रहा है, तो वह देशद्रोह से कम कुछ नहीं है। देशद्रोह की परिभाषा में यह भी आता है कि किसी मित्र देश के साथ संबंध खराब करने की कोशिश। 

यह भी याद रखना चाहिए कि जब हिन्दुस्तान में ईसाईयों को जिंदा जलाया जाता है, तो दुनिया के ईसाईबहुल देशों में बसे हुए भारतवंशियों को इस देसी नफरत के दाम चुकाने पड़ते हैं। अमरीका और इंग्लैंड जैसे विकसित देशों में भी भारतवंशियों को निशाना बनाया जाता है, और ऐसी चर्चित हिंसा से परे मामूली भेदभाव की तो अनगिनत बातें उन्हें झेलनी पड़ती हैं। जब हिन्दुस्तान में मुस्लिमों पर हमले होते हैं, तो खाड़ी के देशों में और दूसरे मुस्लिम देशों में काम कर रहे हिन्दुस्तानियों को उसका दाम चुकाना पड़ता है। अभी बनारस में जिस हिन्दुस्तानी को नेपाली बताकर उसका सिर मुंडाकर नेपाल से तनाव खड़ा करने की कोशिश की गई, उसके जवाब में अगर नेपाल में कई हिन्दुस्तानियों को सिर काट दिए जाते, तो क्या बहुत बड़ी हैरानी और शिकायत की बात होती? तो यह सब क्या देश के साथ गद्दारी नहीं है? दूसरे देशों में बसे हिन्दुस्तानियों के साथ गद्दारी नहीं है? 

अगर ऐसी आक्रामक-हिंदुत्ववादी हरकतों और हिंसा की जगह किसी दूसरे धर्म के लोगों ने ऐसा किया होता तो अब तक हिन्दुस्तानी सोशल मीडिया पर कई लाख पेशेवर लोग टूट पड़े होते, और ऐसा करने वाले की मां-बहन के बलात्कार की धमकियां आगे बढ़ाते रहते। अब सवाल यह है कि क्या महान इतिहास वाले, और शर्मनाक वर्तमान वाले इस देश में बहुमत या बहुसंख्यक समाज की जनसंख्या ही लोकतंत्र और इंसानियत के पैमाने तय करेगी? यह बहुत भयानक नौबत है कि किसी मुजरिम के भले साबित होने के लिए, और किसी भले के मुजरिम साबित करने के लिए उनका धर्म काफी माना जाए। हिन्दुस्तान को आखिर कितने पैमानों पर टुकड़े-टुकड़े किया जाएगा? जिस कन्हैया कुमार ने हिन्दुस्तान के खिलाफ नारे नहीं लगाए, उस पर टुकड़े-टुकड़े गिरोह का सरगना होने की तोहमतें आज भी लगाई जाती हैं, और आज भी उन तमाम वीडियो को इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें दिल्ली की बड़ी अदालत फर्जी और गढ़ा हुआ कह चुकी है। 

जिन लोगों को यह लगता है कि बनारस में एक सिर मूंड देने से देश पर कोई खतरा नहीं है, उन्हें दुनिया के दूसरे देशों में बसे हुए हिन्दुस्तानियों से पूछना चाहिए कि ऐसी हरकतों से वहां उन्हें कितनी तकलीफ उठानी पड़ती है, कितना नुकसान उठाना पड़ता है, और उन पर खतरा कितना बढ़ जाता है। 

इन दिनों हिन्दुस्तान में ऐसा लगता है कि जुर्म की परिभाषा बदल गई है। कुछ धर्मों के लोगों के खिलाफ किया गया जुर्म जुर्म नहीं रह गया, कुछ धर्मों के लोगों द्वारा किया गया जुर्म जुर्म नहीं रह गया। यह सिलसिला बढ़ते-बढ़ते अब यहां तक पहुंच गया है कि इस देश के भीतर के उत्तर-पूर्वी राज्यों से निकलकर देश के महानगरों में जाकर कामयाबी से नौकरी करने वाले, बेहतर और अधिक काबिलीयत वाले नौजवानों को कई जगहों पर पकडक़र पीटा जा रहा है, उन्हें चीनी या चिंकी कहा जा रहा है, राजधानी दिल्ली में उन पर थूका जा रहा है, और बेंगलुरू जैसे आधुनिक शहर में भी उन्हें भारी भेदभाव झेलना पड़ रहा है, शहर छोडक़र जाना पड़ रहा है। 

दरअसल जो लोग यह सोचते हैं कि मुस्लिमों और ईसाईयों से नफरत का सिलसिला उनके साथ ही खत्म हो जाएगा, उन्हें याद रखना चाहिए कि जिस तरह जंगली जानवर के एक बार इंसानखोर हो जाने पर उसे इंसानों से ही पेट भरने वाला मान लिया जाता है, ठीक वैसे ही नफरत पर जीने वाले लोग जब निशाना लगाने के लिए दूसरे धर्मों के लोग नहीं रहेंगे, वे अपने धर्म के दूसरी जातियों के लोगों पर निशाना लगाएंगे, जैसा कि उत्तर भारत में कई जगह जातियों की हिंसा में देखने में आता है। हिंसा का मिजाज बनाया जा सकता है, उसे सुधारना बहुत ही मुश्किल रहता है। आज देश में जिस तरह से विज्ञानसम्मत सोच को गद्दारी माना जा रहा है, संविधान और इंसाफ को अवांछित संतान करार दिया जा रहा है, जिस तरह कानून हाथों में लेकर सडक़ों पर भीड़ पैरों से कुचलकर सजा दे रही है, जिसके चलते लोगों का हौसला इतना बढ़ रहा है कि वे एक हिन्दुस्तानी को हजार रूपए देकर नेपाल से तनाव खड़ा करने की हरकत कर रहे हैं। पुलिस तो कुछ मामूली दफाओं  के तहत उन पर कार्रवाई करेगी, लेकिन हिन्दुस्तान के एक पड़ोसी मित्र देश के साथ रिश्ते बिगाडऩे के लिए भी उन पर कोई दफा लगेगी? 

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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