दुर्गा पूजा निपटे कुछ दिन हो गए, लेकिन अब तक न पंडाल-शामियाने हटे हैं, और न ही स्वागतद्वार। रायपुर से लेकर बिलासपुर तक विसर्जन में बड़ा-बड़ा बवाल होते रहा, और इस बार रायपुर से अधिक हिंसा उस बिलासपुर में हुई जहां पर हाईकोर्ट के जज बैठकर अपने ही फैसलों की धज्जियां उड़ते देख रहे थे। आज सुबह से रायपुर में लोगों को जगह-जगह से वापिस लौटना पड़ा क्योंकि मुस्लिमों का कोई धार्मिक जुलूस कई रास्तों पर निकल रहा था, और सडक़ों को बंद कर दिया गया था। एक धर्म का कार्यक्रम पूरा नहीं हुआ, और दूसरे का शुरू हो गया। किसी पर किसी कानून का कोई काबू नहीं है। लेकिन जब अलग-अलग रास्तों से लौटते हुए लोग बूढ़ा तालाब के किनारे के धरनास्थल से गुजर रहे थे, तो वहां एक शामियाना सजा दिखा जिस पर बैनर लगा था- धरनास्थल हटाने धरना। अब कर्मचारियों का धरना हटाने के लिए तो धरना दिया जा रहा है, लेकिन अलग-अलग धर्मों के लोग जब रास्तों को बंद करते हैं, अंधाधुंध लाउडस्पीकर बजाते हैं, तब उन्हें रोकने के लिए कोई सामने नहीं आते। कर्म करने वाले कर्मचारियों का धरना रोकने के लिए धरना, और धर्म के नाम पर रास्ता रोकने, शोरगुल करने वाले लोगों को रोकने कोई धरना नहीं! ऐसा लगता है कि इस देश को कर्म नहीं बस धर्म की जरूरत है। तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’