मुंबई के अंधेरी में फुटपाथ पर किताबों की एक छोटी सी दुकान चलाने वाला राकेश किताब किराए से भी देता है, और सेकंडहैंड किताबें बेचता भी है। उससे पूछा कि क्या वह पर्याप्त कमा लेता है, तो उसका कहना था- लोग इसलिए कमाते हैं कि वे अपनी कमाई उन चीजों पर खर्च कर सकें, जो उन्हें पसंद हैं। मैं तो इन किताबों को चाहता हूं, और इनसे घिरे ही रहता हूं।
अपने एक हाथ के साथ यह काम करते हुए वह तमाम खाली वक्त पढ़ते भी रहता है, और उसका मन तसल्ली से भरा हुआ भी है। (फेसबुक पर दिव्या गुप्ता ने पोस्ट किया है)