राजपथ - जनपथ
कुलपति नियुक्ति में कितनी राजनीति?
करीब 7 साल पहले बिलासपुर यूनिवर्सिटी, जो अब अटल विवि के नाम से जाना जाता है, उसमें बनारस विश्वविद्यालय के प्रो. सदानंद शाही की कुलपति पद पर नियुक्ति की गई थी। उस वक्त भाजपा की सरकार थी और राज्यपाल बलराम दास टंडन भी केंद्र की भाजपा सरकार की ओर से नियुक्त किए गए थे। पर भाजपा से संबद्ध छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने उनकी नियुक्ति के विरोध में प्रदर्शन किया। राजभवन ने उनके पदभार संभालने पर रोक लगा दी। रोक का कारण यह बताया गया था कि प्रोफेसर के रूप में उनका 10 साल का अनुभव नहीं है, न ही उन्होंने रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर 6 साल काम किया है। कुलपति के लिए यह जरूरी मापदंड था। मगर अभाविप ने जो विरोध किया था, वह इस आधार पर नहीं था। उसका कहना था कि प्रो. शाही वामपंथी विचारधारा के हैं। वे कुलपति बन गए तो विश्वविद्यालय में अपने ‘राष्ट्रविरोधी’ एजेंडे को पूरा करेंगे।
सन् 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी उसके बाद कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर लगातार टकराव बना। तत्कालीन राज्यपाल अनुसुईया उइके पर कांग्रेस सरकार ने आरोप लगाया कि वे बाहरी लोगों को कुलपति बनाना चाहती हैं, स्थानीय विद्वानों की उपेक्षा हो रही है। तब राजभवन से सफाई आई कि 14 विश्वविद्यालयों में से 9 में स्थानीय कुलपति काम कर रहे हैं। बचाव में डॉ. रमन सिंह भी सामने आए थे। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस विश्वविद्यालयों में तो स्थानीय कुलपति की मांग करती है, मगर राज्यसभा में केटीएस तुलसी जैसे बाहरी लोगों को छत्तीसगढ़ से भेजती है, जो कभी यहां आते भी नहीं।
कामधेनु विश्वविद्यालय, पं. सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि, संत गहिरा गुरु विवि सरगुजा, सभी में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर टकराव होता रहा। स्थिति यह रही कि कई विश्वविद्यालयों में कुलपति कार्यकाल खत्म होने के बावजूद सेवा विस्तार पाते जा रहे हैं। ऐसे विस्तार के खिलाफ यूजीसी खिलाफ रहता है। इन्हें नीतिगत फैसले लेने के अधिकार कम होते हैं। कामधेनु विश्वविद्यालय और कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय का नामकरण क्रमश: वासुदेव चंद्राकर और चंदूलाल चंद्राकर के नाम से करने की कोशिश भी कांग्रेस सरकार ने की, मगर राजभवन में यह फाइलें रुकी रही।
कुछ दूसरे गैर भाजपा शासित राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस सरकार ने राज्यपाल के अधिकारों में कटौती की कोशिश की थी, पर इन हस्ताक्षर भी राज्यपाल का ही होना था, जो नहीं हो पाया।
यह चर्चा इसलिये क्योंकि हाल ही में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालयों में पात्रता को नहीं, कुछ संगठनों से जुड़े होने की योग्यता को देखकर कुलपतियों की नियुक्ति की जा रही है। इसका विरोध करते हुए करीब 200 विश्वविद्यालयों के कुलपति ने एक पत्र लिखकर राहुल गांधी पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। राहुल गांधी के बचाव में कांग्रेस का बयान आया है कि आरएसएस और उसी तरह के संगठनों से जुड़े कुलपतियों को इंडिया गठबंधन की सरकार आने पर हटा दिया जाएगा। छत्तीसगढ़ में बीते पांच सालों में कुलपतियों और विश्वविद्यालयों पर आधिपत्य के लिए कुलाधिपति ( राज्यपाल) व सरकार के बीच तनातनी चलती रही, जिससे यह साफ है कि कुलपति की नियुक्ति में केवल अकादमिक उपलब्धि नहीं देखी जाती, राजनीतिक झुकाव भी देखा जाता है। इन उच्च शिक्षा संस्थानों में सत्ता चाहे किसी की हो, अपना नियंत्रण चाहती हैं।
भाजपा-कांग्रेस में एक जैसा डर
छत्तीसगढ़ में 11 सीटों पर चुनाव बेहद रोचक मोड़ पर है। भाजपा 11 में 11 सीटें जीतने के लिए लड़ रही है। बोल भी रहे हैं कि इस बार 11 में 11 सीटें आ जाएंगी। डर भी रहे हैं कि आएगी कि नहीं? ऐसा इसलिए क्योंकि राजनांदगांव, कांकेर, महासमुंद, बस्तर, बिलासपुर और जांजगीर जैसी सीटों पर कांग्रेस ने जो प्रत्याशी तय किए हैं, वे भाजपा की एकतरफा जीत की उम्मीद पर पानी फेर रहे हैं। राजनांदगांव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। इससे दुर्ग और रायपुर लोकसभा सीट पर वे चुनाव हार चुके हैं। इस बार ऐसा कोई परिणाम आया तो संदेश जाएगा कि पूर्व सीएम की हार हो गई।
ताम्रध्वज साहू और डॉ. शिव डहरिया हाल ही में विधानसभा चुनाव हारे हैं। तब वे मंत्री थे, लेकिन दोनों ही सीटों महासमुंद और जांजगीर में परिस्थितियां उनकी ओर है। इधर, भाजपा के एक-एक मंत्री और सीनियर नेता भी दबाव में हैं। जब कांग्रेस की 68 सीट थी, तब 9 सीटों पर जीत मिली। इससे कम हुआ तो ऊपर तक संदेश गलत जाएगा।
ऑब्जर्वर बघेल और गहलोत
सन् 2018 की विधानसभा जीत के बाद से कांग्रेस हाईकमान का भरोसा भूपेश बघेल और अशोक गहलोत पर बढ़ता ही गया। इनमें भी भूपेश बघेल का वजन अधिक रहा। गहलोत के साथ थोड़ी खटास तब आ गई थी जब उन्होंने एआईसीसी का अध्यक्ष बनने से मना कर दिया था। मुख्यमंत्री रहते बघेल को कई राज्यों में कांग्रेस के चुनाव अभियानों को संभालने के लिए भेजा गया। इस बार बघेल को रायबरेली का तथा गहलोत को अमेठी का मुख्य पर्यवेक्षक बना दिया गया है। जैसी चर्चा है कि रायबरेली सीट कांग्रेस के लिए कुछ आसान है। इसलिये यदि यहां से राहुल गांधी जीत जाते हैं तो बघेल के खाते में एक कामयाबी जुड़ जाएगी। वहीं अमेठी में स्मृति ईरानी के खिलाफ गांधी परिवार के नजदीकी किशोरी लाल शर्मा को टिकट दी गई है। यदि कांग्रेस अमेठी की सीट पर ईरानी को हराने में सफल होती है तो यह रायबरेली से ज्यादा महत्वपूर्ण जीत होगी। ऐसे में गहलोत का कद बघेल के मुकाबले बढ़ा हुआ दिखेगा। बहरहाल, प्रतिष्ठा तो दोनों की दांव पर लगी है।
पांच नहीं छह का पंजा..
पंजे पर उंगलियों की संख्या वैसे तो पांच ही होती हैं, पर कहीं-कहीं छह उंगलियों वाले लोग भी होते हैं। दक्षिण भारत में एक चुनाव प्रचार के दौरान दीवार पर ऐसी ही छह उंगलियों वाला पंजा दिखा तो किसी ने सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया।
चिंताएं दो तरह की, हल एक
पिछले दिनों बिलासपुर में भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश की मौजूदगी में बैठक हुई। जब कार्यकर्ताओं से सुझाव मांगा जा रहा था, तब एक ने सुझाव दिया कि कांग्रेस से जो लोग आए हैं, उन्हें भी काम करने का मौका दिया जाए। बात सबको जंच गई। बैठक खत्म होने के बाद कुछ नेताओं की चिंता बाहर आई कि इतने सारे लोग पार्टी में आ जाएंगे तो करेंगे क्या? और क्या जिम्मेदारी देंगे। ठीक इसी समय भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों के बीच इस बात की चर्चा होती रही कि भाजपा में आ तो गए हैं। ठीक-ठाक कुछ पद नहीं मिला तो करेंगे क्या? दोनों चर्चाओं का सार ऐसा निकला कि क्या करना है, सरकार है, कुछ न कुछ ठेका-वेका मिलता रहेगा। काम के रहेंगे तो बने रहेंगे, नहीं तो फिर लौट जाएंगे। हम लोगों को भी लगेगा तो गुंजाइश तलाशेंगे।
एक ने एक लाख का दावा किया बाकी...
कल मतदान के बाद मतदाताओं, प्रत्याशियों, समर्थकों को नतीजे के लिए इंतजार करना होगा। 4 जून को गिनती होनी है। तब तक इन 28 दिनों में नेताओं के पास फुल टाइम है। उससे पहले वे एक एक बूथ पर पड़े वोटों का आकलन करेंगे। पोलिंग एजेंट के मतदान शीट से मोटा मोटी हार जीत और अंतर निकाल लिया जाएगा। रायपुर की बात करें तो दावा 8 लाख से ऊपर का है। यहां पश्चिम के नेता को छोड़ शेष सात ने अपने क्षेत्र से लीड का कोई दावा नहीं किया है। क्या ये सभी पांच महीने में ही अपनी स्थिति समझ चुके हैं। सही भी है, सभी अब तक अपनी जीत का ही जश्न मना रहे, स्वागत सत्कार ही करवा रहे हैं। जन समस्या सुलझाने आचार संहिता की मजबूरी जो तैयार है। तो कुछ शराब, और रेत से तेल निकालने में बिजी हो गए हैं। देखना यह है कि इनके इलाकों से वोटों का अंतर कितना निकलता है।
इसको नहीं मिलना चाहिए
पिछले सप्ताह हमने बताया था कि 4 जून को रायपुर दक्षिण विधानसभा खाली होने वाली है। इसे देखते हुए शहर भाजपा के करीब चार दर्जन (45) नेता पूरी तरह से सक्रिय हैं। सभी ने भैया के लिए जी तोड़ मेहनत की। अब किसकी लॉटरी लगती है यह तो दिसंबर में? उप चुनाव के समय ही पता चलेगा। तब ये सभी अपनी अपनी दावेदारी को लेकर एक दूसरे को पटखनी देने हर दांव चलने लगे हैं। कुछ ने तो एक दूसरे का समर्थन करने रिंग बना लिया है। इन सबका एक ही लक्ष्य है कि डबल एस को रोकना है। कहने लगे हैं कि किसी को भी मिल जाए, इसे न मिले। ये अलग बात है कि डबल एस खुद की टिकट पक्की मानकर चल रहे हैं।
कांग्रेस का मापदंड दोहरा?
कांग्रेस की नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर राधिका खेड़ा ने जब एक मई को पहला ट्वीट किया तो संकेत यही था कि प्रदेश कांग्रेस भवन में बैठे ‘दुशील’ और कथित रूप से उनका अपमान कर रहे हैं और उनको संरक्षण ‘कका’ से मिल रहा है। उनकी बात से यह पता चल रहा था कि राजीव भवन के किसी पदाधिकारी या पदाधिकारियों से उनकी खटपट हुई है। मगर, इस्तीफा देने की घोषणा करते हुए उन्होंने इस अपमान की जो वजह बताई है वह बिल्कुल अलग है। उन्होंने साफ किया है कि उन्हें सिर्फ पुरुषवादी मानसिकता के कारण नहीं, बल्कि रामलला का दर्शन करने अयोध्या जाने की वजह से अपमानित किया जा रहा था।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने जांच रिपोर्ट एआईसीसी को भेजी थी। हो सकता है कि खेड़ा से दुर्व्यहार करने वाले पदाधिकारी से एआईसीसी इस्तीफा मांग लेती, या फिर पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा देती। मगर बैज की रिपोर्ट दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में खुल भी नहीं पाई होगी कि राधिका खेड़ा का इस्तीफा आ गया। रामलला के दर्शन के लिए जाने की वजह से अपमानित करने की उनकी बात यदि सच है तो यह मानना पड़ेगा कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने यह बयान दिखावे के लिए दिया कि जिसे दर्शन के लिए अयोध्या जाना है, जाएं उन्हें हम नहीं रोकेंगे। हमारी ओर से कोई मनाही नहीं है।
यह भी सवाल उठता है कि अयोध्या में राम मंदिर का दर्शन करने के लिए गए लोगों में से पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, दीपेंद्र हुड्डा और विक्रमादित्य सिंह जैसे नेताओं को लोकसभा टिकट कैसे मिल गई? वैसे अब तक कांग्रेस के तीन राष्ट्रीय प्रवक्ता पहले ही राम मंदिर उद्घाटन में कांग्रेस के शामिल नहीं होने को सनातन का अपमान बताकर पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें आचार्य प्रमोद कृष्णम्, रोहन गुप्ता और गौरव वल्लभ शामिल हैं। कांग्रेस के पक्ष को वर्षों तक इन्होंने बड़ी गहराई से प्रेस के सामने रखा, अब राधिका खेड़ा भी इनमें शामिल हो गईं। भाजपा ने इनकी क्षमता, प्रतिभा का उपयोग करना अभी शुरू नहीं किया है। वैसे एक और मुखर प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत्र तो मंदिर होकर भी आ चुकी हैं। वे रोजाना सोशल मीडिया और प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस का पक्ष रख रही हैं, उन पर कोई आंच नहीं आई है।
प्रचार अभियान किसका तेज रहा?
सात मई को 7 सीटों में मतदान हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ के सभी 11 सीटों में मतपेटियां करीब एक माह के लिए बंद हो जाएंगी। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही इस दौरान धुआंधार प्रचार किया लेकिन भाजपा के स्टार प्रचारक हर दिन कहीं न कहीं सभा लेते दिखे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक रात भी रुके। अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा ने भाजपा की ओर से लगातार सभाएं लीं लेकिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सभाओं ने रिकॉर्ड तोड़ा। वे सभी 11 लोकसभा सीटों के कार्यकर्ता सम्मेलनों में शामिल हुए। छोटी बड़ी सभाओं को मिलाकर 45 दिन में 106 सभाएं लीं। यानि एक दिन का औसत दो सभाओं से अधिक रहा। इसके मुकाबले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव में मतदान होने के बाद ही दूसरे क्षेत्रों में कुछ ही दिन के लिए बाहर निकल पाए। टीएस सिंहदेव तो चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में सरगुजा में मौजूद ही नहीं थे। आने के बाद भी वे प्रदेश के दूसरे स्थानों पर नहीं निकले। हालांकि राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े, प्रियंका गांधी और कन्हैया कुमार ने कई जनसभाएं लीं। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्यों का छत्तीसगढ़ आना औपचारिक रहा। राजीव शुक्ला पत्रकार वार्ता लेकर दिल्ली वापस लौट गए। पत्रकार वार्ताओं के मामले में भी भाजपा आगे रही। वह न केवल प्रदेश मुख्यालय में बल्कि संभाग और जिला मुख्यालयों में लगातार प्रेस कांफ्रेंस कर प्रचार की धार चमकाने में लगी रही। नतीजा चाहे जो आए लेकिन भाजपा तीनों चरणों में प्रचार में कांग्रेस से आगे दिखती रही। ([email protected])
रेत माफिया में कार्रवाई, विधायक पर ही एफआईआर
राज्य में रेत माफियाओं का आतंक बढ़ते ही जा रहा है। नदियों में अवैध खनन किया जा रहा है। नदियों में जितना पानी नहीं, उससे 100 गुना ज्यादा रेत निकाला जा रहा है। इसमें बड़े माफिया सक्रिय है। उनके पीछे राजनेता है। कुछ माह पहले खनिज का अमला राजधानी के एक रेत घाट में कार्रवाई करने गया था। अमला कार्रवाई कर रही थी, तभी रेत माफियाओं के गुर्गे ने हमला कर दिया।
खनिज विभाग के अमले को दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया। इसमें एक दर्जन लोग घायल हो गए। राजधानी हडक़ंप मच गया। इसकी पुलिस में शिकायत हुई। माफियाओं के गुर्गों के खिलाफ केस दर्ज किया गया। खनन करने वाली मशीन और गाड़ी जब्त की गई। दो पोकलेन का नंबर भी एफआईआर में लिखा गया। जब पोकलेन की जानकारी आरटीओ से आई तो पुलिस भी चौंक गई।
पोकलेन माननीय विधायक के नाम पर था। इधर विधायक कार्रवाई रुकवाने के लिए जोर आजमाइश करने लगे। सीएम हाउस तक गए। हाउस से जानकारी मांगी तो बताया कि विधायक के लोग अवैध रेत खनन कर रहे है। इसमें सीधा उनका भी कनेक्शन हैं। फिर क्या विधायक उल्टे पाँव लौट गए। आज भी विधायक जी खिलाफ केस दर्ज है, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
घर से वोट में दिलचस्पी क्यों नहीं ?
बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं को वोट देने के लिए बूथ आने में होने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने पिछले विधानसभा चुनाव में एक नया कदम उठाया। उन्हें घर बैठे मतदान की सुविधा दी गई। लोकसभा चुनाव में भी यह सुविधा मिली है। सिर्फ यह किया गया कि इस बार बुजुर्गों की उम्र सीमा 80 से बढ़ाकर 85 कर दी गई। पर विकलांगता को 40 प्रतिशत ही रखा गया। तीसरे चरण में जिन 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव हैं, उसमें ऐसे दिव्यांगों और बुजुर्गों की कुल संख्या एक लाख 91 हजार 196 है, जो घर से वोट डालने के पात्र थे। मगर, इसके लिए केवल 2927 आवेदन मिले। तीन मई तक इनके घर जाकर वोट डाले जाने थे, तब तक वोटिंग केवल 2687 लोगों ने की। पहले और दूसरे चरण में भी यही स्थिति थी। पहले चरण में शामिल बस्तर में 16 हजार 190 मतदाता घर से वोट डालने के पात्र थे। पर आवेदन कुल 254 ही मिले और उनमें से 223 ने वोट डाले। दूसरे चरण में जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए उनमें 67 हजार 950 पात्र मतदाता थे, पर आवेदन 1346 मतदाताओं के आए और केवल 1267 लोगों ने वोट दिए। कुल मिलाकर योजना की सफलता एक प्रतिशत भी नहीं है।
सवाल यह है कि क्या बुजुर्गों और दिव्यागों में चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है, या फिर प्रक्रिया में ही कोई खामी है? छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में बिलासपुर की एक बुजुर्ग महिला मतदाता ने कुछ दिन पहले जिला निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ केस लगा दिया था। उनका कहना था कि घुटनों में दर्द के कारण वह मतदान केंद्र नहीं पहुंच सकती। इसे देखते हुए उन्होंने घर से मतदान के लिए आवेदन दिया था लेकिन उस पर विचार नहीं किया गया। हाईकोर्ट में पेशी हुई तो निर्वाचन विभाग की ओर से बताया गया कि आवेदन तो मिला है, लेकिन निर्धारित प्रपत्र में नहीं है। हाईकोर्ट ने महिला के पक्ष में निर्णय दिया। यह एक सजग मतदाता का मामला है, पर अधिकांश अशक्त मतदाताओं को यह सुविधा नहीं है। अस्थायी बूथ उनके घर तक तभी लाया जाएगा, जब वह निर्वाचन दफ्तर में आवेदन दे। कई बुजुर्ग और दिव्यांगों के पास ऐसे सहायक नहीं होंगे जो इस कार्य में मदद करें। यदि सहायक हैं तो फिर वे तो बूथ में वोट देने के लिए ही जाना क्यों पसंद नहीं करेंगे?
घोड़े को नचाकर चुनाव प्रचार...
भीषण गर्मी में मतदाताओं का क्या, कार्यकर्ताओं को भी घर से निकल पाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में प्रचार की नई-नई तरकीब ईजाद की जा रही है। ये हैं बड़वानी मध्यप्रदेश से आने वाले भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री 71 वर्षीय बालकृष्ण पाटीदार। वे खरगोन लोकसभा सीट के पार्टी प्रत्याशी गजेंद्र पटेल के प्रचार में घोड़े पर निकल रहे हैं। छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं लेते हैं, सभाओं के लिए भीड़ जुटने में देर नहीं लगती। वे किसी भी गांव के चौराहे पर घोड़ा लेकर पहुंच जाते हैं और उसे नचाने लगते हैं। भीड़ जुट जाती है और वे वोट मांग लेते हैं।
नगरीय निकायों को सबक
प्रदेश के अधिकांश नगरीय निकायों में बनाए गए सामुदायिक भवनों की स्थिति कभी देखने जाएं तो पता चलता है वहां गंदगी पसरी है। बल्ब, ट्यूबलाइट, पंखे आधे काम कर रहे हैं आधे बंद हैं। शौचालय में पानी नहीं, सफाई नहीं। इनके निर्माण का उद्देश्य होता है वार्ड और शहर के लोगों को कम खर्च पर मांगलिक कार्य करने के लिए जगह मिल जाए। लोग इनकी दुर्दशा के कारण या तो किराये के होटल, गार्डन में जाने के लिए मजबूर होते हैं, या फिर अपने घर के सामने या छत पर टेंट लगा लेते हैं। यदि कोई किराये पर ले भी लेता है तो नगर निगम, पालिकाओं के अधिकारियों की रवैया ऐसा होता है, मानो ये सुविधा मुफ्त दी जा रही हो। मगर, नगर निगम अंबिकापुर के एक जागरूक नागरिक ने रास्ता दिखाया है। उन्होंने शादी के कार्यक्रम के लिए सरगुजा सदन को किराये पर लिया। कई राज्यों से मेहमान आए थे। जगह-जगह गंदगी, टूटी फूटी लाइट, आधे से ज्यादा पंखे बंद..। केयर टेकर और सफाई के लिए मात्र एक महिला कर्मचारी। नगर निगम के प्रभारी ने सूचना देने के बाद भी सुविधा बहाल नहीं की। बाहर से आए मेहमान बेहद परेशान हुए, मेजबानों की फजीहत हुई। नागरिक ने नगर-निगम के खिलाफ स्थायी लोक अदालत में केस कर दिया। नगर निगम आयुक्त, राजस्व अधिकारी और लिपिक के खिलाफ अदालत ने दो लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने, वाद का खर्च देने तथा किराये की रकम लौटाने का आदेश दिया है।
पूरे प्रदेश में जिन लोगों को भी आये दिन ऐसी असुविधा होती है, वे नगर निगम के अधिकारियों को इस खबर के बारे में बता सकते हैं और स्थिति नहीं सुधरती तो हर जिले में मौजूद स्थायी लोक अदालत में परिवाद ला सकते हैं।
रेल के मुद्दे पर पड़ेंगे वोट?
रेलवे को देश में सर्वाधिक आमदनी देने वाला जोन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में है। इसके बावजूद रेल सुविधाओं के नाम पर यहां की जनता के साथ छलावा हो रहा है। अब तो नई ट्रेन शुरू करने की बात ही नहीं होती। लोग यही मना रहे हैं कि जो ट्रेन निर्धारित हैं वे अचानक निरस्त न हों और घंटों विलंब से न चलें। कोविड काल के बाद सैकड़ों ट्रेनों को रद्द कर दिया गया था। बहुत से छोटे स्टेशनों में ठहराव समाप्त कर दिया गया था। इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई तो स्थिति में कुछ सुधार हुआ, हालांकि अब भी कई स्टेशनों में स्टापेज दोबारा शुरू नहीं हुए हैं। कोविड काल के समय से ही ट्रेनों की लेटलतीफी बढ़ गई है। इस समय चुनाव का मौसम है। जिन शेष 7 सीटों पर चुनाव होने जा रहा है, लगभग सभी में ट्रेनों का परिचालन होता है। दूसरी ओर अभी एक सप्ताह से ज्यादा समय से ट्रेनों के घंटों विलंब से चलने के कारण यात्री त्रस्त हैं। कल पुणे-हावड़ा आजाद हिंद एक्सप्रेस 20 घंटे देर से चल रही थी। शालीमार, उत्कल, गोंदिया-बरौनी जैसी ट्रेन स्थायी रूप से घंटों विलंब से चलती हैं। मगर, शायद रेलवे को लगता है कि मतदाता समय पर ट्रेनों को चलाने में नाकामी को लेकर वोट नहीं करती। विधानसभा चुनाव के समय इस मुद्दे पर कांग्रेस ने रेल रोको आंदोलन भी चलाया था। कई कांग्रेस नेता एफआईआर दर्ज होने के बाद अब कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। रायपुर के कांग्रेस प्रत्याशी विकास उपाध्याय भाटापारा, तिल्दा आदि में संपर्क के दौरान इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं। बिलासपुर में तो हमर राज पार्टी के प्रत्याशी सुदीप श्रीवास्तव ने रेलवे की मनमानी को ही प्रचार अभियान का प्रमुख मुद्दा बना रखा है। पर रेलवे इस बात से निश्चिंत और इस बात से खुश है कि वह लदान में नए कीर्तिमान बना रहा है।
ट्रैफिक का नया प्रयोग भारी पड़ा
बस्तर में पहले चरण में ही मतदान हो चुका है, इसलिये कोई फैसला जनता को नाराज करे तो भी उसका प्रशासन पर असर नहीं होना है। ऐसा ही एक फैसला लेकर 3 मई से शहर के एसबीआई चौक से चांदनी चौक के बीच सडक़ को एकांगी मार्ग घोषित कर दिया गया। पांच साल पहले भी इसी तरह का फैसला लिया गया था, तब यह पता चला था कि समाधान यह नहीं है। यहां होने वाले ट्रैफिक जाम से बचने का रास्ता यह निकाला गया कि ट्रैफिक वन वे कर दिया गया। पहले ही दिन पता चल गया कि इससे तो परेशानी पहले से भी ज्यादा बढ़ गई है। एंबुलेंस भी फंस गई। व्यापारी कह रहे हैं कि क्या अपना व्यापार बंद कराने के लिए हमने भाजपा को जिताया था। दरअसल, जाम की स्थिति से बचने के लिए मुख्य मार्ग पर स्थित शराब दुकान को हटाने की मांग की जा रही है। पर, जैसा कि होता है कि जैसे किसी धार्मिक स्थल को जल्दी नहीं हटाया जाता, शराब की दुकानें भी हटाने से प्रशासन ने तमाम नियमों का हवाला देते हुए मना कर दिया।
ट्रक पर स्लोगन
एक ट्रक पर लिखे इस स्लोगन में हिंदी, अग्रेजी और गणित तीनों ही लिपि का इस्तेमाल किया गया है। उम्मीद है कि क्या लिखा गया है, आप समझ रहे हैं।
पोस्ट मास्टरों में हलचल
जून का महीना केंद्रीय विभागों में तबादलों का महीना कहा जाता है । जुलाई से शिक्षा सत्र के देखते हुए केंद्रीय विभाग समय पर तबादले कर देते हैं। इस बार डाक विभाग के रायपुर डिवीजन में पोस्ट मास्टर्स (पीएम)में हलचल बढ़ गई है। खासकर रायपुर शहर के उपडाकघरों के पीएम्स की नजर कचहरी शाखा पर लगी हुई है। अब तक यह डाकघर एक दबड़े नुमा कमरे में संचालित होता रहा। जहां उसने 50 साल से अधिक बिताए। अब यह उससे बड़े कक्ष में स्थानांतरित कर दिया गया है। कोर्ट परिसर में होने के कारण वकील, जज पुलिस वालों की आवाजाही बनी रहेगी। इससे सबसे परिचय भी बढ़ेगा। कानून वालों के बीच पकड़ बनेगी। सो विभाग के पुरुष पीएम यहां की कुर्सी हासिल करने में जुट गए हैं। अभी यहां मैडम पीएम हैं। शिफ्टिंग की पूरी मशक्कत उन्होंने पूरी शिद्दत से की। अब उसे भोगने पुरुष हाथ पैर मार रहे हैं। अब इस बात को सर्किल की बड़ी मैडम कितनी गंभीरता से लेती हैं यह तो तबादला सूची में ही दिखाई देगा।
वोट से परहेज वाले अफसर
इन दिनों पूरे देश में एक एक वोट को लेकर मशक्कत चल रही है। दिल्ली आयोग से लेकर बीएलओ तक सभी जुटे हुए हैं कि घरों से हरेक वोट निकले। उसके बाद भी 60-70-75 प्रतिशत ही वोटिंग हे रही। शेष 40-25 फीसदी वोट, विभिन्न पारिवारिक कारणों, से नहीं पड़ते। तो कुछ मेरे एक वोट से क्या नफा नुकसान हो जाएगा की सोच में तो कुछ किसी दल, नेता कार्यकर्ता विशेष से नाराजगी से मतदान नहीं करते। इन सबसे हटकर छत्तीसगढ़ में एक ऐसे भी आईएएस हुए हैं जिन्होंने कलेक्टर रहते कई चुनाव कराए लेकिन कभी मतदान नहीं किया। बाद में वे मुख्य सचिव भी बने। इसके पीछे उनकी किसी से कोई नाराजगी नहीं थी। उनके पूरे सेवा काल में मप्र से लेकर छत्तीसगढ़ तक कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस की सरकारें रहीं। वे सबके लिए ब्लू आईड रहे। सभी नेता उनका सम्मान करते। उनके जैसा निष्पक्ष कोई नहीं रहा। हर सरकार में कई नामचीन योजनाएं उन्होंने लागू कराया। छत्तीसगढ़ के कई बड़े शैक्षणिक संस्थान उनकी पहल पर ही स्थापित हुए हैं। बात वोट न करने से शुरू हुई थी। एक बार एक चीफ सेक्रेटरी ने इस पर पूछने पर कहा, वोटिंग कर देने से मन निष्पक्ष नहीं रह जाता। इसलिए मतदान तो रिटायरमेंट के बाद ही करूंगा। अब वो कर रहे या नहीं पता नहीं चल पाया है। उम्मीद है कर रहे होंगे। हमने एक राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को कतार में लगकर वोट डालते देखा था।
नई कोयला खदान चुनाव के बाद
कुछ बड़े फैसलों पर अमल चुनाव आचार संहिता के कारण नहीं हो पा रहा है। इनमें एक है कोल ब्लॉक का आवंटन। कोयला मंत्रालय नौवें दौर की नीलामी की घोषणा कर चुका है। नीलामी प्रक्रिया चुनाव के चलते रोक दी गई है। इनमें कोरबा जिले के करतला ब्लॉक के दो ब्लॉक, नॉर्थ और साउथ भी शामिल हैं। ये दोनों कोल ब्लॉक आठवें दौर की नीलामी सूची में भी शामिल किए गए थे, पर ग्रामीणों ने विरोध जताया था। तब इनकी नीलामी रोक दी गई थी। स्थानीय आदिवासी किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं छोडऩा चाहते। यहां घना जंगल है। हाथी तथा भालुओं का विचरण क्षेत्र भी है। लोकसभा चुनाव के बाद यदि विरोध होता भी है तो इसका बहुत ज्यादा असर सरकार पर पडऩे की उम्मीद कम ही है। इसलिये इन दोनों खदानों को फिर नीलामी सूची में रख लिया गया है।
टी-शर्ट तो काम आएगी...
लोग लाख नसीहत दें कि विवेक से अच्छे से सोच-विचार कर मतदान करें, लेकिन तात्कालिक लाभ का असर तो वोटिंग पर पड़ता ही है। जब चुनाव मैदान में उतरे मुख्य मुकाबले वाले दल पैसे खर्च करते हैं तो कई जरूरतमंदों का भला हो जाता है। यह तस्वीर किसी मजदूर की है जो सोशल मीडिया पर वायरल है। भाजपा को प्रचार मिल रहा है, मजदूर को टी- शर्ट मिल गई। दोनों का भला हो रहा है।
स्वागत को लेकर कहा-सुनी
रायपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली बलौदाबाजार विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा की जीत हुई। राज्य बनने के बाद हुए चुनावों में यह उसकी दूसरी जीत है। भाजपा को सुहेला और तिल्दा से बढ़त मिली थी। इस क्षेत्र के विधायक टंकराम वर्मा तिल्दा से आते हैं और उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। भाजपा यह लीड बनाए रखने की ही नहीं, बल्कि उसमें कुछ जुडऩे की उम्मीद लेकर चल रही है। इसी बीच कार्यकर्ताओं के बीच मनमुटाव सामने आ रहा है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय कल पार्टी प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल के प्रचार के लिए बलौदाबाजार पहुंचे थे। सुहेला और तिल्दा के कार्यकर्ता और समर्थक भी सभा में पहुंचे। पर मुख्यमंत्री के जाने के बाद बखेड़ा खड़ा हो गया। सुहेला से पहुंचे कार्यकर्ताओं ने संगठन के पदाधिकारियों पर जमकर नाराजगी जताई। उनका कहना था कि सीएम के स्वागत के लिए सुहेला इलाके से पहुंचे पार्टी कार्यकर्ताओं को मंच पर नहीं बुलाया गया। बलौदाबाजार से तो लीड मिलती नहीं पर यहीं के लोग पूरे कार्यक्रमों में हावी रहते हैं। उनका यह भी आरोप था कि मंत्री को भी प्रचार अभियान में किनारे लगाने की कोशिश की जा रही है। वैसे तो भाजपा सभी 11 सीटों पर जीत के दावे कर रही है, पर जिन्हें लेकर निश्चिंत है उनमें रायपुर सीट शामिल है। उम्मीद है अनुशासित लोगों की पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर कर लेंगे।
कांग्रेस की गारंटी मालूम नहीं किसानों को
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिलासपुर की जनसभा के बाद चकरभाठा एयरपोर्ट के रास्ते पर सडक़ से गुजर रहे किसानों के पास रुक गए थे। वे उनके परिवार से मिलने घर गए, वहां चाय पी। सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर कल इसे साझा करते हुए राहुल गांधी ने लिखा है कि- एक बार फिर उस हिंदुस्तान से मिला जो नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताओं से बहुत दूर है। यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि कांग्रेस का मेनिफेस्टो किसानों, आदिवासियों, महिलाओं, युवाओं सबके दिलों को छू रहा है। इंडिया गठबंधन की सरकार हिंदुस्तानियों की सरकार होगी।
वह आदिवासी समाज के बुधराम का घर था। राहुल गांधी के आने की खबर मिलने पर कुछ और ग्रामीण वहां पहुंच गए थे। बुधराम ने बताया कि उसकी खेती की जमीन का कागज नहीं है जिसके चलते उसे अपना धान बाजार में औने पौने दाम पर बेचना पड़ता है। राहुल गांधी ने एकत्र लोगों से पूछा कि क्या उन्होंने कांग्रेस का मेनिफेस्टो पढ़ा है? किसानों ने कहा, नहीं पढ़ा। एक ने जरूर कहा कि किसानों के बारे में उसमें कुछ है। तब राहुल गांधी ने उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी और किसानों की कर्ज माफी के बारे में बताया। महिलाओं को उन्होंने महालक्ष्मी योजना की जानकारी दी। मनरेगा में 400 रुपये मजदूरी मिलेगी, यह भी बताया।
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले 4 महीने से उन्हें मनरेगा का पैसा नहीं मिला है। दिन भर में डेढ़ सौ 200 कमाते हैं। हम कहां से एक हजार रुपए में गैस भरवाएंगे। सब चीज महंगी कर दी गई है। महिलाओं ने मांग रखी कि पेयजल के लिए बांध से पानी टंकी और पाइपलाइन दीजिये, पानी खराब आता है। वहां मौजूद कुछ किसानों ने बताया कि उनकी खेती की जमीन रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है इसलिए उन्हें खुले बाजार में धान बेचना पड़ता है और एमएसपी पर बड़े किसान ही बेच पा रहे हैं।
राहुल गांधी ने उनसे पूछा कि बीमार होने पर कहां जाते हो। जब लोगों ने बताया कि प्राइवेट अस्पताल जाते हैं। तब उन्हें हर गरीब के लिए 25 लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा की गारंटी के बारे में राहुल ने बताया। बीकॉम फर्स्ट ईयर की छात्रा को राहुल गांधी ने बताया कि हर ग्रेजुएट को एक साल की अप्रेंटिस नौकरी मिलेगी।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनके साथ थे। उन्होंने बताया कि हमने उनकी सहूलियत के लिए ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर एसटी एससी प्रमाण पत्र बनाने का प्रावधान किया था, जिसे इस सरकार ने बंद कर दिया है। हमारी सारी योजनाएं बंद कर दी गई हैं।
इस पूरी चर्चा से यह बात साफ हुई कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में दी गई गारंटियों की जानकारी जिला मुख्यालय से लगे और एयरपोर्ट के रास्ते पर पडऩे वाले गांव में भी मतदाताओं तक नहीं पहुंची है। राहुल एक गांव में रुके, ग्रामीणों को इस बारे में बताया-पर कांग्रेस के प्रचार अभियान पर सवाल तो खड़ा हो गया है कि उनके जमीनी कार्यकर्ता प्रचार के लिए कहां जा रहे हैं और कांग्रेस की घोषणा के बारे में किसे बता रहे हैं।
गरीब का कोई नहीं...
राजधानी के एक रसूखदार परिवार के यहां सगाई समारोह का आयोजन किया गया। इसमें आए मेहमानों को हुक्का परोसा गया। किसी ने इसका वीडियो बनाकर पुलिस को भेज दिया। पुलिस भी सगाई कार्यक्रम में जा धमकी। पुलिस को देखकर हडक़ंप मच गया। पुलिस भी वर्दी का रौब दिखाने लगी। सबको थाना चलने के लिए कहां गया। आयोजक भी हड़बड़ा गए। उन्होंने धीरे से तीन वेटर आगे कर दिए। बोले इन तीनों पर कार्रवाई कर केस को रफा दफा कर दीजिए। पुलिस भी रहस्यमय वजह से तीनों गऱीबों को उठाकर ले गई और कार्रवाई कर दी। तीनों वेटर मिन्नते करते रहे। हाथ पैर जोड़ते रहे, लेकिन थानेदार को गरीब पर कार्रवाई करते हुए रहम नहीं आई। उन्होंने आयोजक और फार्म हाउस मालिक को पकड़ा ही नहीं। यह कार्रवाई राजधानी में बहुत चर्चा है कि गरीब का कोई नहीं होता। अब इसमें कोई रहस्य तो है नहीं।
दुबारा जगह कैसे बने?
जगदलपुर के पूर्व विधायक संतोष बाफना इन दिनों मायूस हैं। वजह यह है कि पार्टी नेता उन्हें तव्वजो नहीं दे रहे हैं। पिछले दिनों जगदलपुर में चुनाव प्रभारी नितिन नबीन सहित कई नेताओं का प्रवास हुआ लेकिन किसी ने उनकी पूछ परख नहीं की।
दरअसल, विधानसभा टिकट कटने पर खुले तौर तेवर दिखाए थे और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी किरण देव का प्रचार करने से मना कर दिया। और पूरे चुनाव में जगदलपुर से बाहर रहे। अब परिस्थितियां बदल चुकी है। किरण देव, संतोष बाफना के विरोध के बाद भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। और अब वो प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे हैं।
किरण के अध्यक्ष बनने के बाद संतोष बाफना के लिए जगह नहीं बन पा रही है। उन्होंने पिछले दिनों पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के साथ अपना दर्द बयां किया। चंद्राकर ने उन्हें समझाइश दी कि उन्हें किसी से पूछे बिना प्रचार करना चाहिए। पहले पार्टी चाहती थी तो वो प्रचार से दूर हो गए थे अब लोकसभा में पार्टी का काम करना चाहते हैं तो पार्टी को उनकी परवाह नहीं है।
बड़ी नेत्री कहने का मतलब...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चुनाव प्रचार के दौरान किसी-किसी प्रत्याशी के बारे में कह देते हैं- इन्हें जिताएं, बड़ा आदमी बनेगा, भविष्य उज्ज्वल है। विधानसभा चुनाव के दौरान अमित शाह ने प्रत्याशी ओपी चौधरी के बारे में कहा था- इन्हें जिताइये बड़ा आदमी बनेंगे। कोरबा में प्रचार के दौरान प्रत्याशी लखन लाल देवांगन के बारे में कहा था, इन्हें जितायें, इनका भविष्य उज्ज्वल है। सरकार बनने के बाद हालांकि चौधरी को लेकर चर्चा डिप्टी सीएम की थी पर वित्त जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिला। इसी तरह देवांगन के पास भी उद्योग, श्रम, वाणिज्य जैसे बड़े विभाग हैं। अब लोकसभा प्रत्याशी सरोज पांडेय के लिए कटघोरा में सभा लेने के दौरान शाह ने कहा है- लोग विकास के लिए हमारे नेता को बड़ा बनाइये, आपके यहां तो जो उम्मीदवार हैं, वह पहले से ही बड़ी नेत्री हैं। भाजपा कार्यकर्ता कह रहे हैं कि यह इशारा है कि केंद्र में यदि फिर भाजपा की सरकार बनीं और सरोज पांडेय जीत गईं तो उन्हें मंत्रिमंडल में लिया जाएगा। मगर, दूसरी ओर कुछ लोग कह रहे हैं कि पांडेय को बड़ी नेत्री तो पहले ही मान लिया गया है, और बड़ा बनाएंगे यह तो नहीं कहा। ([email protected])
बिना जुर्म काम मुमकिन
छत्तीसगढ़ में एक ताजा गिरफ्तारी भारतीय संचार सेवा के एक बड़े अफसर, मनोज सोनी, की हुई है, जिन्हें ईडी ने 140 करोड़ के कस्टम राईस मिलिंग घोटाले में गिरफ्तार किया है। मनोज सोनी मार्कफेड में एमडी थे, और यह घोटाला उसी समय का बताया जा रहा है। उनके पहले कुछ आईएएस अफसर भी अलग-अलग घोटालों में ईडी के गिरफ्तार किए हुए जेल में हैं। इनमें कोरबा में कलेक्टर रही रानू साहू भी एक हैं। कोरबा में किरण कौशल भी कलेक्टर थीं, और बाद में वे मार्कफेड में एमडी भी रहीं। इन दोनों ही कुर्सियों पर उनके बाद बैठने वाले लोग जेल में हैं, लेकिन किरण कौशल पर आंच नहीं आई है। ये सारी ही नियुक्तियां भूपेश सरकार के समय की है, मतलब यह कि मुख्यमंत्री के नाम पर सौम्या चौरसिया राज चल रहा था। लेकिन न तो कोरबा कलेक्टर रहते, और न ही मार्कफेड एमडी रहते किरण कौशल ने अपने हाथ जलाए। नतीजा यह है कि जब उनके बाद इन कुर्सियों पर आने वाले लोग जेल में हैं, वे ईडी के छापों से मुक्त अपना सामान्य कामकाज कर रही हैं। यह समझने की जरूरत है कि सत्ता के किसी दबाव के बाद भी अफसर बिना जुर्म किए भी काम कर सकते हैं।
मार्कफेड की कुर्सी पर बैठे एमडी की लिस्ट देखें, तो किरण कौशल के बाद के दोनों एमडी अब जेल में हैं।
शादी समारोह में बच्चे की मौत
मार्च के पहले सप्ताह में दिल्ली से सटे गुरुग्राम के एक रेस्टोरेंट में डिनर के बाद माउथ फ्रेशनर खाने से पांच लोगों का मुंह जलने लगा और खून बहने लगा। उन्हें खाने के लिए ड्राई आईस दी गई थी। इस मामले में रेस्टोरेंट के मैनेजर की गिरफ्तारी हुई और दो अन्य लोगों के खिलाफ भी अपराध दर्ज किया गया। दक्षिण भारत के दावणगेरे का एक वीडियो बीते महीने वायरल हुआ था जिसमें एक बच्चे को धुएं वाला पदार्थ परोसा गया। पीने के बाद वह दर्द से चीखने लगा। उसे अस्पताल में इलाज के बाद बचा लिया गया था। एक आनंद मेले में बच्चे को स्मोक बिस्किट के नाम पर इसे खाने के लिए दिया गया था। अब राजनांदगांव के एक शादी समारोह में एक बच्चे ने ड्राई आईस खा ली। उसकी मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत ही हो गई। पता चला है कि दूल्हा-दूल्हन की एंट्री के दौरान वीडियोग्राफी करते समय धुआं निकालने के लिए ड्राई आईस का इस्तेमाल किया गया था, जिसे बाद में खुले में फेंक दिया गया। गुरुग्राम और दावणगेरे के मामलों में कुछ नया और एक्साइटिंग आइटम खिलाने के उद्देश्य से ड्राई आइस का इस्तेमाल किया गया। राजनांदगांव में इंवेट मैनेजरों तथा समारोह की व्यवस्था देख रहे लोगों की लापरवाही सामने आई है। ड्राई आईस खाने की चीज नहीं है। यह पानी से नहीं बनता। बर्फ का तापमान सामान्य तौर पर माइनस 4 डिग्री सेल्सियस होता है तो ड्राई आइस का माइनस 80 डिग्री। बर्फ पिघलती है तो पानी बन जाती है लेकिन यह पिघले तो कार्बन डाय ऑक्साइड। वैसे तो औद्योगिक क्षेत्रों व मेडिकल स्टोर में इसका अधिक उपयोग है, पर शादी समारोहों में जहां फ्रिज नहीं होते, भोजन को ताजा रखने के लिए काम लाया जाता है। फोटोशूट में भी इसका उपयोग होता है जैसा राजनांदगांव में हुआ। शायद यह नई तरह की दुर्घटना अब आयोजकों को जिम्मेदार और मेहमानों को सतर्क रहने की सीख देगी।
एक प्रवेश की तैयारी?
भाजपा ने कल राजधानी में बुद्धिजीवी सम्मेलन आयोजित किया है। इसमें दो दर्जन से अधिक पेशेवर सीए, वकील, डॉक्टर, जैसे प्रोफेशनल्स ग्रुप के लोगों को आमंत्रित किया गया है। इसे संबोधित करने महाराष्ट्र के दिग्गज नेता विनोद तावड़े आ रहे हैं। यह हुई सामान्य सूचनात्मक खबर।
अब यह बता दें कि तावड़े राष्ट्रीय स्तर पर बनी उस समिति के संयोजक हैं जो भाजपा प्रवेश के इच्छुक अन्य दलों के राष्ट्रीय नेताओं की पड़ताल कर भगवा दुपट्टा पहनाती है। रायपुर आते ही उन्हें कांग्रेस की एक नेत्री राधिका खेरा को भगवा दुपट्टा पहनाने का अवसर मिलता दिख रहा है। कल ही अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद पार्टी छोडऩे की घोषणा कर चुकी हैं। और भाजपा ने प्रवक्ता केदार गुप्ता ने भी उन्हें कांग्रेसियों से बचने की सलाह देते हुए मोदी की गारंटी दी है कि छत्तीसगढ़ में उन्हें कुछ नहीं होगा।
एक हाथ दे दूसरे से ले
चुनाव में लाखों खर्च करने वाले नेता अब खर्च निकालने में जुट गए हैं। पिछले दिनों हमने इस जुगाड़ में सक्रिय रायपुर जिले के ही दो नेताओं की बात इसी कॉलम में की थी। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पार्टी सूत्रों ने दुर्ग संभाग के नेताजी की जानकारी दी है। बताया गया है कि चुनाव में नेताजी को घर से तो एक लाख भी खर्च नहीं हुए होंगे। उनकी जीत में तन मन धन तीनों ही पार्टी ने ही लगाया था। लेकिन वे खर्च निकालने कोई चूक नहीं कर रहे। हाल में नेताजी एक सामाजिक कार्यक्रम में गए। समाज के जिला अध्यक्ष ने सामाजिक भवन निर्माण के लिए निधि से अनुदान मांगा। नेताजी मंच पर ही सौदेबाजी में उतर आए। हां, ना के बीच 50 हजार का सप्रेम भेंट मिलने के बाद ही 10 लाख के अनुदान की घोषणा कर मंच से उतरे। नेताजी ये लिए चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले यह अध्यक्ष अब बड़े नेताओं को सब बता रहा है।यह और कोई नहीं विधायक हैं।
भ्रष्टाचार का बीज
बीज निगम ने एक फर्म को हाइब्रिड बीज सप्लाई का काम दिया है, जिसके दस्तावेज ही संदिग्ध बताए जा रहे हैं। फर्म को उसके टर्नओवर से कई गुना अधिक का सप्लाई आर्डर दिया गया । इस फर्म का का तीन साल का टर्नओवर लगभग 31 लाख रुपये है और उसे 14 करोड़ का काम मिला है। इसे बीज निगम के निविदा विभाग में पदस्थ एक अधिकारी का कारनामा बताया जा रहा है। ये वही अधिकारी हैं, जो एक मामले में निलंबित हो चुके हैं।
जिस कंपनी को काम मिला है, उसके पास न ही कोई लाइसेंस है, न ही उसकी गुणवत्ता के लिए जरूरी मार्का का कोई अस्तित्व है इस पूरे मामले में हॉर्टिकल्चर के अंबिकापुर, सूरजपुर, कोरिया, बलरामपुर, कोंडागांव, जगदलपुर, बालोद, गरियाबंद के जिला स्तर के अधिकारियों ने भी सप्लाई में खूब मदद की। मामले की शिकायत उच्च स्तर के अधिकारियों तक पहुंची है गड़बड़ी करने वाले अब इस मामले में बीज की सप्लाई दिखाकर भुगतान की तैयारी में भी जुटे हैं।
भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण...
सात मई को छत्तीसगढ़ की शेष सात लोकसभा सीटों पर होने जा रहे मतदान में ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी हो, इसके लिए जागरूकता के कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले जशपुर जिले के प्रवासी मजदूरों को जिला प्रशासन की ओर से पोस्टकार्ड भेजा जा रहा है। इसमें काव्यमय निमंत्रण है। इन श्रमिकों से मतदान के लिए घर लौटने का आग्रह किया गया है। अब पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र और डाक विभाग के लिफाफे चलन में कम रह गए हैं। ऐसे में लगता है कि इसका अलग असर होगा। वरना श्रम विभाग के पास पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों के मोबाइल नंबर भी हैं। इस निमंत्रण पत्र से यह भी पता चल रहा है कि कभी 15 पैसे में मिलने वाले पोस्टकार्ड का दाम अब 50 पैसे हो चुका है।
विधायक का नाम वसूली में !
स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूलों की उत्कृष्टता पर स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते सवाल तो पहले से ही उठने लगे थे लेकिन अभनपुर से जो मामला सामने आया है उसने तो रही-सही कसर पूरी कर दी है। पालकों ने प्राचार्य टी लाल के खिलाफ उच्चाधिकारियों से शिकायत की। नवमीं कक्षा में पूरक आए बच्चों को पास करने के लिए उनसे 15 से 20 हजार रुपये मांगे गए। रुपये नहीं देने पर फेल करने की धमकी दी गई। शिकायत के मुताबिक प्राचार्य ने फोन पे से भी रुपये लेने में कोई झिझक महसूस नहीं की। इसी से लेन-देन की बातें पुख्ता हुई। यह भी पता चल रहा है कि जांच अधिकारियों से प्राचार्य ने कहा कि उन्होंने विधायक के लिए यह वसूली की है। किस विधायक के लिए? अभनपुर विधायक को साफ कर देना चाहिए कि प्राचार्य गलत बोल रहे हैं, क्योंकि सबसे पहले लोगों का ध्यान तो स्थानीय विधायक की तरफ ही जाएगा।
एकला चलने की सलाह
चर्चा है कि पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू चुनाव प्रबंधन में अपनी भागीदारी चाहते हैं। साहू को विधानसभा टिकट नहीं दी गई थी। वो तीन बार विधायक, और एक बार महासमुंद से सांसद रहे हैं। रमन सरकार में मंत्री भी रहे। साथ ही चंद्रशेखर साहू पीएससी के सदस्य भी रहे हैं। संगठन में भी अहम जिम्मेदारी मिलती रही है। साहू प्रदेश किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे। मगर वो कार्यकर्ताओं के पसंदीदा नहीं रहे।
चंद्रशेखर साहू को लेकर पार्टी के भीतर यह कहा जाता है कि जब भी वो पॉवरफुल रहे। उनका व्यवहार एकदम बदल जाता है। यही वजह है कि अभनपुर सीट से उनकी टिकट काटकर नए चेहरे इंद्र कुमार साहू को प्रत्याशी बनाया गया, तो कार्यकर्ताओं में स्वागत किया। इंद्र कुमार साहू कांग्रेस के ताकतवर नेता धनेन्द्र साहू को हराने में सफल रहे।
दूसरी तरफ, चंद्रशेखर साहू को संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है। उन्हें महासमुंद में प्रचार के लिए कहा गया था। महासमुंद का चुनाव निपटने के बाद रायपुर लोकसभा में अपनी भूमिका चाहते हैं। चर्चा है कि पार्टी के कई प्रमुख नेताओं से उनकी चर्चा हुई है। विधानसभा वार जिम्मेदारी बंट चुकी है। अब चंद्रशेखर साहू को सलाह दी गई है कि वो कार लेकर अकेले चुनाव प्रचार में निकल जाए।
उम्मीदवारों के खिलाफ मामले
चुनाव प्रचार के बीच में प्रत्याशियों के खिलाफ कई गड़े मुद्दे सामने आ जाते हैं। सरगुजा में कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के खिलाफ कथित तौर पर जमीन कब्जे का मामला उछला, तो भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज के खिलाफ आत्मानंद स्कूल बनवाने के नाम पर अवैध वसूली का मामला सामने आ गया।
चिंतामणि महाराज लूंड्रा, और सामरी से विधायक रहे हैं। एक पत्र वायरल हुआ है जिसमें पंच-सरपंचों ने आत्मानंद स्कूल खोलने के लिए 51 हजार रूपए लेने का आरोप लगाया था। और इसकी शिकायत सीएम तक की थी। अब चुनाव में इसका कितना असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
इसमें नहीं, उपचुनाव में दिलचस्पी
कहावत है एक अनार सौ बीमार। मगर रायपुर दक्षिण में सौ नहीं 55 कम है। बाकी बचे 45 को 4 जून का इंतजार हैं। इनमें सांसद से लेकर पार्षद तक शामिल हैं।
लग रहा पहली बार विकल्प बनने का अवसर मिल रहा है। क्यों चूकें। सभी भैया को जिताने जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। भैया का बताया हर काम कर रहे। कोई काम छोटा या स्टेटस से कम नहीं मान रहे। गांव-गांव, गली- गली घूम रहे। खासकर दक्षिण क्षेत्र के मोहल्लों का तो कई राउंड का जनसंपर्क कर चुके हैं।
भले ही स्वयं का घर उस क्षेत्र में न आता हो। अब सबको भैया के इस्तीफे और दीपावली के आसपास उप चुनाव का। अब देखना यह है कि इन 45 में कौन भैया की पसंद होता है या सीट घर के लिए सुरक्षित रखते हैं। जो दावेदार नहीं वे भैया के करीबी एक महाराज को उपयुक्त और जिताऊ प्रत्याशी बताने लगे हैं।
हिलते-डोलते विधायक
एक विधायक की दिनचर्या, जनसंपर्क अभियान की खूब चर्चा है। पहली ही बार में चुनाव क्रैक करने वाले ये नए नवेले माननीय स्वयं के राजनीति में रमने की बात भी कहते हैं। इनके जनसंपर्क के तौर तरीके पर पटरी न बैठने से इनका एक सुरक्षाकर्मी पीएसओ ने तबादला ले लिया है। अमूमन ऐसा होता नहीं है।
सशस्त्र बल के जवान तो पीएसओ बनने जोड़ तोड़ करते हैं लेकिन यहां मामला उलट निकला। बताते हैं कि जनसंपर्क के दौरान विधायक जी क्षेत्र के जिस भी नेता, कार्यकर्ता के यहां जाते हैं, हिलते डुलते निकलते हैं। उसके बाद उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है । वाई कैटेगरी के सुरक्षाधारी इन नेताजी के एक एक कर्मी छोडऩे लगें तो सुरक्षा एजेंसी की दिक्कतें बढ़ जाएंगी।
बूथ का हिसाब करोड़ों में !
चुनावी रैलियां, पोस्टर-बैनर, टीवी रेडियो के विज्ञापन पर खर्च तो अपनी जगह हैं मगर असल खर्चीला काम है अपने पक्ष के मतदाताओं को घरों से निकालकर मतदान केंद्र तक पहुंचाना। इसमें जिसे सफलता मिलती है, जीत का सेहरा उसके सिर पर बंधता है। इसीलिये हर गंभीर प्रत्याशी और दलों का लक्ष्य होता है कि बूथ को मजबूत किया जाए।
इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम का नामांकन वापस लेना और फिर भाजपा में शामिल होना इस समय चर्चा में है। कांग्रेस छोडऩे की वजह तो उन्होंने भी दूसरे कांग्रेसियों की तरह सनातन धर्म के प्रति निष्ठा को बताया है, लेकिन छन कर कुछ दूसरे कारण भी सामने आए हैं। इनमें से एक है, मतदान के दिन बूथ पर खर्च कितना किया जाए। अक्षय कांति करोड़पति हैं। पार्टी को शायद उम्मीद थी कि चुनाव का सारा खर्च वे बिना झिझक उठाएंगे। उन्हें वोटिंग के दिन बूथ पर होने वाले खर्च के बारे में भी बता दिया गया। पहले कहा गया कि चार एजेंटों के लिए 6000 रुपये और इतना ही खर्च लगभग 30 कार्यकर्ताओं के भोजन पानी के लिए। यानि एक बूथ पर सिर्फ मतदान के दिन 12 हजार रुपये खर्च। इंदौर में लगभग 2500 बूथ हैं। मतलब करीब 3 करोड़ रुपये। कहा जाता है कि इसके बाद प्रत्याशी को बताया गया कि एजेंट 6000 में नहीं मिल रहे हैं, उनको 10 हजार देना पड़ेगा। प्रत्याशी सोच में पड़ गए। खर्च करीब 4 करोड़ पहुंच रहा था। वह सीट जहां से कांग्रेस पिछले 40 सालों से हारती रही है, शायद प्रत्याशी को इतनी रकम बहा देना सही सौदा नहीं लगा।
बूथ मैनेजमेंट बहुत संवेदनशील मामला होता है। अधिकांश प्रत्याशी अपना बूथ मैनेजमेंट खुद ही देखते हैं। एजेंटों तक पैसे सही तरीके से बांटे जाएं इसके लिए विश्वासपात्र लोगों की ड्यूटी लगाई जाती है। क्योंकि, इसमें कई बार अमानत में खयानत हो जाती है। प्रत्याशी खर्च करने के बावजूद चुनाव नहीं निकाल पाता।
इंदौर के मामले ने एक अंदाजा लगाने का मौका दिया है कि आखिर प्रत्याशियों का खर्च चुनाव आयोग की निर्धारित सीमा से अधिक कैसे पहुंच जाता है। अपने छत्तीसगढ़ में तीसरे चरण में जिन सात सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उनमें भी हर एक सीट पर 22-23 सौ मतदान केंद्र हैं। इंदौर से कुछ कम ज्यादा यहां भी उतना ही खर्च होना है। जब कोई पार्टी किसी प्रत्याशी को मजबूत बताकर मतदान में उतारती है तो मजबूती का मतलब उसकी वित्तीय मजबूती भी होती है।
गुड़ाखू और चेपटी की चिंता
पब्लिक मीटिंग में भीड़ को स्टार प्रचारक के आते तक रोके रखने के लिए कवासी लखमा काफी हैं। 29 अप्रैल को सकरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सभा से पहले उन्होंने मंच संभाला। शुरुआत में प्रधानमंत्री की नकल करते हुए- भाइयों और बहनों...। फिर भाजपा सरकार की महतारी वंदन योजना पर बोलने लगे। कहा- एक हजार रुपये तो महीने का गुड़ाखू और चेपटी ( देसी शराब की छोटी बोतल) भी नहीं मिलती। मोदी की गारंटी पर कहा- एक गारंटी जरूर है, वह है बीवी छोडऩे की। लखमा ने और भी बातें की जिन पर विवाद भी हो सकता है इसलिये इतना ही ठीक है।
लकड़ी का चॉपर...
पेड़ को तराशे गए लकड़ी के हेलीकॉप्टर की इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर डालने वाले कुछ लोगों ने बताया कि यह बस्तर का है। सर्च करने पर पता चलता है कि दुनिया भर में इस तस्वीर और संबंधित वीडियो को ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर शेयर किया जा रहा है। कुछ ने दावा किया है कि ओरिजनल वीडियो नेशनल जियोग्राफिक चैनल ने रिलीज की है। कुछ का कहना है कि यह वास्तविक नहीं है, एआई से तैयार किया गया है। यदि सचमुच एआई से तैयार किया गया हो तो बुरी बात नहीं है। कम से कम इसमें डीपफेक का मामला तो नहीं बनता, जिसने इन दिनों नामी हस्तियों को परेशान कर रखा है। जो भी हो, जहां के भी बच्चे हों-प्रकृति की गोद में वे खुश दिखाई दे रहे हैं और जो लोग तस्वीर को देख रहे हैं, उनका भी मन खिल रहा है। ([email protected])
व्यापारी और छापेमारी
प्रदेश की 7 सीटों पर चुनाव प्रचार रफ्तार से चल रहा है। कांग्रेस, और भाजपा के प्रत्याशी सभा-सम्मेलनों में शिरकत कर रहे हैं। इन सबके बीच सरगुजा में भाजपा ने व्यापारी सम्मेलन रखा था। पिछले कई दिनों से सम्मेलन को सफल बनाने कोशिशें चल भी रही थीं।
सम्मेलन की तैयारियों के बीच अंबिकापुर में आधा दर्जन व्यापारियों के यहां सेंट्रल जीएसटी का छापा डल गया। इससे व्यापारी नाखुश तो थे ही, लेकिन सम्मेलन में शामिल हुए। भीड़ के लिहाज से व्यापारी सम्मेलन काफी सफल रहा। सम्मेलन में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणी महाराज के साथ ही प्रदेश के महामंत्री (संगठन)पवन साय ने शिरकत की।
सम्मेलन में छापेमारी को लेकर व्यापारियों का दर्द छलक ही गया। उन्होंने सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जीएसटी से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने की गुजारिश की। भाजपा के नेता व्यापारियों की उमड़ी भीड़ को देखकर खुश थे, क्योंकि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सम्मेलन में सौ व्यापारी भी नहीं आए थे। अब व्यापारियों का कितना समर्थन मिलता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
यहूदियों की याद !!!
पहले और दूसरे चरण का चुनाव निपटने के बाद भाजपा ने पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को रायपुर लोकसभा का जिम्मा दिया है। चंद्राकर बस्तर क्लस्टर के प्रभारी थे। इसमें कांकेर, बस्तर, और महासमुंद की सीट आती है। तीनों जगह चुनाव हो चुके हैं। ऐसे में पार्टी अजय चंद्राकर का उपयोग रायपुर, और अन्य सीटों पर कर रही है।
चंद्राकर का चुनाव प्रचार की शुरुआत में सिंधी समाज के नेताओं के साथ बड़ी बैठक की। इस बैठक में सिंधी समाज के संघर्ष को याद दिलाया, और सिंधियों की तुलना यहूदियों से की। उन्होंने कहा बताते हैं कि जिस तरह यहूदियों और फरीसियों को अपना वतन छोडक़र दर-दर भटकना पड़ा था। उसी तरह आजादी के बाद नेहरू-लियाकत समझौते के तहत सिंधी समाज को सिंध छोडऩा पड़ा।
उन्होंने हिंदुस्तान में आने के बाद संघर्ष किया, और विशेषकर व्यापारिक जगत में अपना अलग मुकाम हासिल किया। अजय की इतिहास पर अच्छी पकड़ है, और उन्होंने जब सिंधियों को उनके पूर्वजों के संघर्ष को याद दिलाया, तो कार्यक्रम में मौजूद समाज के लोगों ने खूब तालियां बजाई। अजय चंद्राकर ने सिंधी समाज के शत प्रतिशत मतदान पर जोर दिया।
राजधानी से नाखुश पायलट
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट रायपुर लोकसभा में कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रचार से नाखुश हैं। उन्होंने एक बैठक में कह दिया कि रायपुर में तो कांग्रेस का माहौल ही नहीं दिख रहा है। जबकि रायपुर से जोरदार प्रचार होना चाहिए था, ताकि इसका असर आसपास की सीटों पर भी दिखे।
चर्चा है कि रायपुर लोकसभा प्रत्याशी विकास उपाध्याय, और मेयर एजाज ढेबर की बिल्कुल भी नहीं बनती। एक तरह से दोनों के बीच बोलचाल भी बंद है। ढेबर के करीबी पार्षद भी कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
पायलट ने हिदायत दी है कि सभी रायपुर नगर निगम के सभी 10 जोन में कार्यक्रम होना चाहिए। इन कार्यक्रमों में वो खुद भी शामिल होंगे। अब पायलट की फटकार का थोड़ा बहुत असर देखने को मिल रहा है। कुछ जगह पोस्टर लगना शुरू हो गया है। आगे किस तरह का प्रचार होता है, यह तो जल्द फैसला होगा।
बचाव के एवज में प्रस्ताव
पीएससी -21 में हुई अनियमितता के साथ अफसर नेता पुत्र,पुत्रियों और दामादों के चयन की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। सीबीआई अफसर जांच शुरू करने ही वाले हैं। इसे देखते हुए चयनित और उनके परिजन अपने अपने तरीके से बचाव में लग गए हैं। हाल में चयनित पति-पत्नी, अपने पिता को लेकर पूर्व मंत्री और विधायक से मिलने गए। और अपने चयन को साफ सुथरा बताते हुए फंसा दिए जाने की बात कही। और विधायक जी से मदद मांगी । तीनों ने यहां तक कह दिया कि आप चाहो तो हम भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
मॉडल ऑफ द स्टोरी, यह है कि क्या चयन में वाकई में लेनदेन हुआ था। क्या ये लोग अयोग्य रहे और चयन हो गया। या जमकर पेपर लीक या फिर इंटरव्यू बोर्ड में सेटिंग रही आदि आदि। और भाजपा में शामिल होने का ऑफर देकर क्या ये बच जाएंगे। जैसे कि इलेक्टोरोल बॉण्ड, और अन्य घोटाले वाले भाजपा में शामिल या चंदा देकर बच निकले, कहीं वैसा तो नहीं इरादा नहीं था। लेकिन इस जांच की गारंटी मोदी ने दी थी। इसलिए नेताजी ने कोई आश्वासन नहीं दिया।
सहज हैं पार्टी बदलने वाले?
दूसरे दलों, विशेषकर कांग्रेस छोडक़र जाने वालों में कई पूर्व विधायक और पंचायत तथा नगर-निगमों के मौजूदा पदाधिकारी शामिल हैं। अब ये भाजपा में तो आ गए हैं लेकिन उनको कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है। इन दिनों भाजपा के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री शिवप्रकाश प्रदेश के दौरे पर हैं। उन्होंने इस स्थिति को भांप लिया है।
चुनाव संचालकों और जिला अध्यक्षों को वे बैठकों में हिदायत दे रहे हैं कि जो नए लोग शामिल हुए हैं उनको भी सक्रिय किया जाए, काम दिया जाए। संगठन के सामने दुविधा यह है कि यदि नए-नए पार्टी में शामिल लोगों को अधिक वजन दिया गया तो वर्षों से पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं को अपनी उपेक्षा महसूस होगी। कांग्रेस से भाजपा में गए एक नेता का कहना है कि यहां काम करने का तरीका कांग्रेस से अलग है। जरूरी नहीं है कि हर बड़े कद का आदमी मंच पर बैठे, उन्हें सामने लगी कुर्सी में भी बैठना पड़ सकता है। दूसरी बात, पार्टी बदलने से पहले उन्होंने अपने समर्थक कार्यकर्ताओं से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया था। ऐसे बहुत से लोग हैं जो उनके फैसले से असहमत हैं। इनके बीच जाने में अभी संकोच हो रहा है।
राजधानी में चुनाव बहिष्कार
दूरदराज के गांवों में सडक़ पानी बिजली जैसी मूलभूत सुविधा की गुहार लगाते-लगाते लोग थक जाएं और विरोध में चुनाव बहिष्कार करने की चेतावनी दें तो बात वाजिब लगती है लेकिन राजधानी रायपुर में भी ऐसी हालत है। चंगोराभाठा इलाके के सत्यम विहार कॉलोनी के लोगों ने खराब सडक़, बेतरतीब बिजली पोल व जाम नालियों के मुद्दे पर चुनाव बहिष्कार का बैनर टांग दिया है। उनका कहना है कि सात-आठ साल हो गए वे इसी स्थिति में हैं। पार्षद, विधायक, सांसद सबसे फरियाद कर चुके, लेकिन समस्या हल नहीं हुई। सब नेता चुनाव के समय आते हैं-भैया, दीदी, माता, बोलकर हाथ जोड़ते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। अब बहिष्कार के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। रायपुर को राजधानी होने के साथ-साथ स्मार्ट सिटी का दर्जा भी मिला हुआ है। एक तरफ नया रायपुर और रायपुर शहर की वीआईपी सडक़ें चकाचक दिखाई देती हैं तो दूसरी तरफ सडक़, नाली बदहाल हैं।
आ गया है बासी खाने का उत्सव
गर्मी के दिनों में बोरे-बासी खाना छत्तीसगढ़ के लोगों की आदत में शामिल है। इसे भले ही गरीबों का भोजन कहा जाए इसके फायदे से कोई भी तबका अनजान नहीं हैं। राजनीतिक फायदे के लिए ही सही, पिछली कांग्रेस सरकार ने जिन छत्तीसगढ़ी परंपराओं और आदतों को उभारा था, उनमें बोरे-बासी भी एक था। एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर खास तौर पर बोरे-बासी खाने का प्रदेशभर में अभियान चलता था। सोशल मीडिया पर लोग बासी-बोरे खाते हुए फोटो शेयर करते दिखे थे। क्या मंत्री, क्या विधायक, क्या कलेक्टर, क्या एसपी..सबकी सोशल मीडिया पर तस्वीरें आती रही हैं। अब प्रदेश में सरकार बदल चुकी है। लोग बासी-बोरे खाते हुए तस्वीरें भले ही न डालें, मगर पीढिय़ों से खाए जाने वाले बासी-बोरे की गुणवत्ता में सरकार बदलने से कोई बदलाव नहीं आया है। स्वाद और गुण वही है। रात में भिगोये भात का पानी सुबह निकालकर नया पानी डालें, जरूरत के मुताबिक नमक डालें- अचार, मठा या चटनी लें। प्याज खाते हों तो थोड़ा उसे भी डाल लें। फिर देखिये खाकर, स्वाद वही मिलेगा...। गर्मी में फायदेमंद भी है। सुनने में यह जरूर आया है कि कुछ जिलों के गढक़लेवा के मेनू से बासी-बोरे को हटाया जा चुका है। इसलिए इधर-उधर न भटकें। यह घर पर ही आसानी से तैयार हो जाता है।
तबादलों के पहले की खामोशी
राजधानी में कलेक्टोरेट को छोड़ दें तो बाकी प्रशासनिक दफ्तरों में खामोशी है। महानदी भवन से लेकर इंद्रावती भवन तक रूटीन की ही फाइलें दौड़ रही हैं। इसमें भी स्टाफ ज्यादा रुचि नहीं ले रहा है। आचार संहिता का बहाना बनाकर ज्यादा से ज्यादा काम को टालने की कोशिश हो रही है। अफसर भी इसलिए रुचि नहीं ले रहे हैं, क्योंकि दो माह बाद एक बार फिर फील्ड से लेकर मुख्यालयों में बदलाव होना है।
जो फील्ड पर हैं, वे अपनी पोस्टिंग बचाने या बेहतर पाने की आस में हैं और जो लूप लाइन में हैं, वे फील्ड पोस्टिंग की उम्मीद से हैं। इस बार तबादले परफार्मेंस बेस्ड होंगे। यानी 11 सीटों के नतीजों का नफा नुकसान देखा जाएगा। जहां हार होगी वहां के कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, एसपी-एडिशनल एसपी को नवा रायपुर लौटना पड़ सकता है। सभी सीटें आने पर भी जिलेवार समीक्षा होगी, और कमजोर प्रदर्शन होने पर संबंधित जिला प्रशासन पर गाज गिरना तय है।
मे-डे, बदल जाएगी थाली
तीन दिन बाद अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस मे-डे मनेगा। यह दिन छत्तीसगढ़ में पिछले चार वर्षों तक नए अंदाज में मनता रहा है। अघोषित रूप से इसे बोरे बासी दिवस कहा जाने लगा था। यह नाम भी 2018 में सरकार बदलने के बाद कांग्रेस सरकार ने दिया था।
चार वर्ष तक गांव जंगल, महल झोपड़ी तक में अफसर-नेता ने सरकार को दिखाने के लिए बासी की थाली सजाते रहे। इसकी तैयारी महीने भर पहले से करते थे।
यह बासी मानो अफसरों के सीआर का हिस्सा जैसी रही। सबने खाया और सेल्फी सरकार तक पहुंचाया। अब यह बीते दिनों की बात हो गई। सरकार जो बदल गई है। परंपरा के दिखावे के चोचले से नई सरकार दूर है। वह असल में श्रम के सम्मान, कल्याण के लिए नई योजना लाने जा रही है। जिसका खुलासा आचार संहिता खत्म होने के बाद होगा।
दोनों उम्मीद से हैं
प्रदेश में पहले और दूसरे चरण की कुल 4 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। बाकी 7 सीटों पर 7 मई को मतदान होगा। दिल्ली में कांग्रेस के रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं कि प्रदेश में कम से कम 4 सीट पर जीत हासिल होगी।
ये बात अलग है कि राज्य बनने के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन वर्ष-2019 में रहा है। तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, और 11 में से मात्र 2 सीटें जीत पाई थी। वह भी तब जब कांग्रेस सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया था। किसानों को बोनस और 25 सौ रुपए क्विंटल में धान खरीद हुई थी।
दूसरी तरफ, भाजपा के लोग मानकर चल रहे हैं कि प्रदेश में सभी सीटों पर कमल खिलेगा। मगर यह भी सच है कि वर्ष-2014 में मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी, तब भी कांग्रेस एक सीट झटकने में सफल रही थी। इस बार क्या होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
कामचलाऊ हिफाजत
वैसे तो दुपहियों पर बच्चों को किसी भी तरह से लेकर जाना कुछ हद तक खतरनाक होता ही है, लेकिन मध्यम वर्ग या निम्न-मध्यम वर्ग की मजबूरी रहती है कि बच्चों को कहीं साथ ले जाना है, तो या स्कूटर पर सामने खड़ा किया जाए, या मोटरसाइकिल की टंकी पर बिठाया जाए, या पीछे बिठाकर अपना बड़ा सा पेट उनकी छोटी बांहों के घेरे में कुछ हद तक थमा दिया जाए। लोग अपने-अपने हिसाब से तय करते हैं कि कम खतरनाक क्या है। कई मामलों में तो आगे या पीछे बिठाए गए बच्चे हवा लगने से सो भी जाते हैं, और उन पर बहुत बड़ा खतरा रहता है। ऐसे में आज रायपुर के जयस्तंभ चौक पर दिखा यह नजारा थोड़ी सी सावधानी बताने वाला है कि पीछे बिठाए बच्चे को चुन्नी या गमछे सरीखे किसी कपड़े से दुपहिया चला रहे व्यक्ति ने अपने पेट से बांध रखा है। अब यह कानूनी रूप से सबसे महफूज बात तो नहीं है लेकिन कुछ हद तक सुरक्षा तो इससे मिली ही है। तस्वीर/ ‘छत्तीसगढ़’
बस्तर भी कोई छिपने की जगह है?
बस्तर को लेकर बाकी लंबे समय से धारणा रही है कि यह अबूझ इलाका है। पर्यटन के अनेक ठिकाने हैं, पर नक्सलियों का हर तरफ खौफ है। बाकी देश दुनिया से यह कटा हुआ इलाका है। मुंबई के अभिनेता साहिल खान ने जब मुंबई पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए जगदलपुर में छिपने का इरादा बनाया तो शायद उसके दिमाग में यही बात रही होगी। कहा जा रहा है कि मुंबई एसटीएफ टीम ने उसे कथित रूप से महादेव सट्टा ऐप में संलिप्त होने की वजह से गिरफ्तार किया। जिस छत्तीसगढ़ की गली-गली में महादेव सट्टा ऐप जाना पहचाना नाम हो चुका हो, वहां की कोई भी जगह सुरक्षित कैसे रहेगी? छत्तीसगढ़ से तो इससे जुड़े आरोपी फरार हैं। कुछ दिन पहले कोलकाता से छत्तीसगढ़ पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया। छत्तीसगढ़ के लिए वे वहीं से सट्टा ऑपरेट कर रहे थे। एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया के बाद हाल के दिनों में यह मुंबई पुलिस की दूसरी गिरफ्तारी है। हालांकि इसके सरगना बताये जाने वाले मुकेश चंद्राकर की दुबई में हुई शादी में बॉलीवुड के एक से एक नामी सितारों ने परफॉर्मेंस दिया था। इन पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने अपनी फीस हवाला के जरिये भारत में नगदी में हासिल की। इनमें से कई लोगों से पूछताछ हो चुकी है पर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। शायद, जांच एजेंसियां मान रही हो कि सट्टा के कारोबार से उनका सीधा संबंध नहीं है। जबकि तमन्ना भाटिया की तरह साहिल खान पर भी आरोप लगा है कि उन्होंने महादेव बेटिंग ऐप को प्रमोट किया।
कितनी चर्चा चाहिए विधायक को?
विधायक रिकेश सेन सैलून में बाल काटते हुए दिखे थे तब चर्चा हुई। फिर, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत के मोदी के खिलाफ दिए गए बयान पर कंह दिया कि कोई भी उनके परिवार के बाल नहीं काटेगा। (बाद में उनकी इस चेतावनी को समाज के दूसरे नेताओं ने खारिज कर दिया।) इसके बाद वे एक गार्डन में पहुंच गए, जहां युवक-युवतियों को साथ बैठकर समय बिताने पर उन्होंने ऐतराज किया। मगर, ऐसा लगता है कि वे इतनी चर्चा और विवादों से संतुष्ट नहीं हैं। बीते हनुमान जयंती के दिन कथित रूप से उन्होंने धर्मांतरण कराने वालों के बारे में कहा कि उनका सिर काट देना चाहिए। उनके इस बयान की कांग्रेस ने निंदा की है, पर भाजपा में चुप्पी है। बस, इतना ही है कि पहले के बयान और गतिविधि उकसाने वाले नहीं थे। कांग्रेस ने तो चुनाव आयोग से शिकायत करने की बात कही है, पर असल मुद्दा यह है कि उनकी पार्टी इस मामले को किस तरह लेती है।
संतुलन के साथ सफर
तरबूज इन दिनों बाजार में खूब आ रहे हैं। इसे हाथ में पकड़े-पकड़े कैसे ले जाना मुश्किल काम है। पर, ऐसा नहीं सोचेंगे यदि आप सचमुच सिर पर बोझ उठाने के लिए तैयार हो जाएं। पेंड्रा से अमरकंटक की ओर जाते हुए यह तस्वीर प्रिया महाडिक ने ली है। ([email protected])
उम्मीदें बहुत हैं...
वो दिन हवा हो गए, जब रायपुर कलेक्टोरेट में अफसर साढ़े 5 बजे के बाद बस्ता बांध लिया करते थे। मगर हाल के दिनों में उन्हें अलर्ट रहना होता है। पता नहीं कब साब (कलेक्टर) का फोन आ जाए। कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह कलेक्टोरेट की साख को बेहतर करने की कोशिश में जुटे हैं, जहां पिछले बरसों में काफी गिरावट आई है। उनके कुछ पूर्ववर्तियों को लेकर काफी बुरी चर्चाएं होती है।
मध्यप्रदेश के समय में बतौर कलेक्टर रहे अजीत जोगी, सुनिल कुमार, डीआरएस चौधरी, देवराज सिंह विरदी, और फिर राज्य बनने के बाद अमिताभ जैन, विवेक देवांगन, सुबोध सिंह, व ओपी चौधरी ने बेहतर कार्यशैली से लोगों के बीच में अलग ही छवि बनाई थी। दूर-दराज से आए लोग काम न होने पर भी संतुष्ट होकर लौटते थे। मगर पिछले बरसों में कलेक्टरों की कार्यशैली ऐसी रही है कि आम आदमी तो दूर मातहत ही परेशान रहे हैं। ऐसे में डॉ.गौरव कुमार सिंह से काफी उम्मीदें दिख रही है।
गौरव को आए कुछ ही समय हुए हैं, लेकिन उन्होंने थोड़े समय में ही अलग ही कार्यशैली का परिचय दिया है। पदभार संभालने के बाद वो प्रयास विद्यालय जाकर वहां आईआईटी, जेईई, और नीट की तैयारी में जुटे विद्यार्थियों के साथ खाना खाया, और तमाम व्यवस्थाओं की बारीकियों से अवगत हुए। जाति प्रमाणपत्र और राशनकार्ड सहित अन्य के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े, यह सुनिश्चित भी किया है।
उन्होंने मातहतों साफ तौर पर निर्देश दिए हैं कि बेवजह किसी को भटकना न पड़े, इसके लिए हरसंभव कोशिश करें। वो खुद भी ऑफिस के पूरे वक्त काम करते दिख रहे हैं। पिछले दिनों गुढिय़ारी में पॉवर कंपनी के भंडारगृह में आग लगी तो वो जख्मी हो जाने के बावजूद मौके पर डटे रहे, और तडक़े आग बुझने के बाद घर गए। फिर तीन-चार घंटे बाद वापस आकर आगजनी से प्रभावितों को मदद करवाई।
11 में 11, या दो कम बता रहे
आजकल विट्री साइन दिखाने वाले नेताजी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से पोस्ट हो रही हैं। ऐसे ही भाजपा के एक नेताजी की तस्वीर जब सोशल मीडिया पर आई तो उनके समर्थक ने पूछ लिया, भैयाजी 11 में 11 सीटें जीतने का दावा है, ? या फिर से दो कम होने का संकेत दे रहे हैं। नेताजी ने पहले तो 11 में 11 जीतने का दावा किया, फिर धीरे से कहा कि एक-दो सीटें कमजोर हैं। हो सकता है कि पुराना रिजल्ट ही आए।
कामकाज ऐसे ही
तबादले के बाद ही हर पिछले अफसर की वर्कएफिशिएंसी पता चलती है। यह आंकलन और कोई नहीं विभाग के मातहत क्लर्क, सेक्शन इंचार्ज, अंडर सेक्रेटरी जैसे मातहत ही करते हैं। हाल में कुछ मंत्रालयीन मातहत लंच पर अपने साहबों की वर्किंग स्टाइल के चटखारे ले रहे थे। वित्त वाले ने कहा कि अब जाकर फाइलों से भरी आलमारियां खाली हुईं हैं। मैडम तो हर फाइल आलमारी में पैक करवाते जा रहीं थीं। यहां कि उन्होंने डीए देने का औचित्य पूछकर उस फाइल को भी बंद कर दिया था। शिक्षा विभाग वाले ने कहा कि पुराने साहब तो बहुत ही सोफेस्टिकेटेड थे। वे सीएम के भी सचिव रहे हैं । जो सीएम के आदेश होते वही फाइल करते। नए साहब एक एक फाइल पढक़र अपनी नोटिंग के साथ मंत्री की नोटिंग पर भी ओवर राइटिंग करते हैं । हमारे यहां भी फाइल डिस्पोजल तेज हो गया है । यही मैडम रहीं तो हर फाइल आलमारी में होती थी। इस पूरे वाकए का लब्बोलुआब यह निकला कि सरकारी कामकाज ऐसे ही चलता है ।
बालोद में योगी निकले वोट देने..
मतदान के दौरान कई दिलचस्प नजारों में एक दिखा कांकेर लोकसभा क्षेत्र के बालोद में। यहां के एक मतदाता राजेश चोपड़ा की शक्ल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलती-जुलती है। वे कल मतदान के लिए उनकी ही गेटअप में वोट देने के लिए सपत्नीक पोलिंग बूथ पहुंचे। चोपड़ा उन लाखों लोगों में से एक हैं, जो आदित्यनाथ को महान व्यक्तित्व का धनी मानते हैं।
बैंक बैलेंस नहीं, हौसला देखिये
नामांकन फॉर्म के साथ सभी लोकसभा प्रत्याशियों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा भी दिया है। इससे पता चलता है कि ज्यादातर उम्मीदवार करोड़पति, लखपति हैं। पर मैदान में एक निर्दलीय महिला प्रत्याशी ऐसी भी है, जिसका ब्यौरा जानकर कोई भी हैरान हो सकता है। कोरबा सीट से निर्दलीय लड़ रही शांति बाई मरावी ने जो विवरण दिया है, उसके मुताबिक उनके दो बैंक खाते हैं। एक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का, जिसमें सिर्फ दो हजार रुपये जमा है। बैंक ऑफ बड़ौदा की पेंड्रा ब्रांच में भी एक दूसरा खाता है, मगर उसमें एक रुपये भी नहीं है। उसके पास 1.5 एकड़ कृषि भूमि है, 10 ग्राम सोना और 50 ग्राम चांदी है। हाथ में नगदी सिर्फ 20 हजार रुपये है।
यह पता नहीं कि उसका नाम गरीबी रेखा की सूची में शामिल है या नहीं पर करोड़पति उम्मीदवारों के बीच मैदान में उतरने का फैसला किस उद्देश्य से उसने लिया? यह जानने के लिए जब लोगों ने उनके मोबाइल नंबर पर कॉल किया तो फोन बंद मिला। कुछ लोग उनको ढूंढते हुए घर के पते पर पेंड्रा भी पहुंच गए, पर वहां ताला लटका मिला। अब लोग अटकल लगा रहे हैं कि शांति मरावी ने गंभीरता से चुनाव लडऩे के लिए नामांकन भरा है या फिर उम्मीदवारों की सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए। कितने मतदाताओं तक वह पहुंच पाएंगीं, यह बाद की बात है पर अभी उनकी लोगों में खासी चर्चा तो ही रही है।
चुनावी मुद्दा नहीं बना स्टेडियम
अंबिकापुर में 24 अप्रैल को हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी आमसभा से पहले एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। शहर के बीच स्थित महात्मा गांधी स्टेडियम में मोदी को उतारने के लिए हेलीपैड बना दिया गया। नगर निगम के महापौर अजय तिर्की और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने इसका विरोध किया। कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया। बताया गया कि शहर के छात्रों और युवाओं के लिए खेलने की यह एकमात्र जगह है, हेलीपैड बनाकर इसे बर्बाद किया जा रहा है। महापौर का कहना था कि नगर-निगम के पास इतनी राशि नहीं है कि दोबारा इसे ठीक कर सके। प्रशासन पेशोपेश में पड़ गया कि कहीं चुनाव के मौके पर यह कोई मुद्दा न बन जाए। अंतिम समय में हेलीकॉप्टर उतारने की जगह भी नहीं बदली जा सकती थी, क्योंकि एसपीजी ने इसी जगह को क्लीयरेंस दी थी। विरोध के बावजूद हेलीपैड वहीं बनाया गया। यह जरूर हुआ कि मोदी के जाने के तुरंत बाद मैदान की मरम्मत शुरू कर दी गई और शनिवार को इसे पहले जैसा कर दिया। प्रशासन ने मुस्तैदी दिखाई, भाजपा को राहत मिली कि यह उसके खिलाफ मुद्दा नहीं बना।
मतदान पर्व पर छूट के ऑफर
मतदान का प्रतिशत बढऩे से संबंधित जिले के निर्वाचन अधिकारियों को आयोग की शाबाशी मिलती है। सामाजिक संगठनों, युवाओं, महिला समूहों के बीच स्वीप के जरिये छत्तीसगढ़ में लोगों को जागरूक करने का अभियान इन दिनों हर जिले में चल रहा है। इसके लिए कई नारों में एक यह भी है- मतदान का पर्व, देश का गर्व।
दो विधानसभा क्षेत्रों बिलासपुर लोकसभा की कोटा सीट और कोरबा लोकसभा की मरवाही सीट में बंटे जीपीएम (गौरेला-पेंड्रा-मरवाही) में लगेगा कि यहां मतदान सिर्फ नाम का पर्व नहीं है। सचमुच पर्व जैसा मनाएं, ऐसी तैयारी हो रही है। दशहरा दिवाली पर बाजार निकलें तो जगह-जगह छूट के ऑफर दिखाई देते हैं। इस बार यही ऑफर वोट देने पर मिलने वाला है। जिले के चेम्बर ऑफ कामर्स ने बीते दिनों बैठक ली और उसके बाद घोषणा की है, मतदान करने वालों को खरीदारी में 10 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इससे जुडऩे वाले दुकानों की घोषणा भी जल्द कर दी जाएगी। इस जिले में 7 मई को मतदान है। इसके बाद मतदाता पहचान पत्र और उंगली की स्याही दिखाकर सामानों में छूट हासिल कर सकते हैं।
वैसे यह आइडिया अकेला नहीं है। देश की जिन 88 सीटों में 26 अप्रैल को मतदान हुआ है उनमें से एक राजस्थान की जोधपुर लोकसभा सीट भी है। वहां के एक मुख्य बाजार में भी इसी तरह की छूट देने की खबर चल रही है। लेकिन, खास तौर पर जिक्र कर होना चाहिए ‘सोशल’ नाम के एक फूड चेन, रेस्तरां का। यहां वोट डालकर पहुंचने वालों को अगले 24 घंटे तक एक मग बीयर फ्री मिलेगी और उससे ज्यादा जो खायेंगे-पियेंगे तो उसमें 20 प्रतिशत का डिस्काउंट मिलेगा। कुछ मतदाताओं को यह जानकर अफसोस हो सकता है कि इस रेस्तरां की कोई ब्रांच छत्तीसगढ़ में नहीं है। सिर्फ नोएडा, बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, इंदौर, मुंबई, दिल्ली एनसीआर, चंडीगढ़ और कोलकाता के मतदाता इसका फायदा ले सकते हैं।
रुक-रुक कर उभरती आहत भावना
कांग्रेस से जितने भी इस्तीफे हो रहे हैं उनमें कई दूसरे कारणों के अलावा प्राथमिकता के साथ यह जरूर दर्शाया जा रहा है कि पार्टी ने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का निमंत्रण ठुकराकर गलत किया। इस कदम से हिंदुओं की भावनाओं को कुचला गया। छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रामविलास साहू ने कल अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को भेजे गए पत्र में भी उन्होंने पार्टी छोडऩे के कई कारणों में सबसे पहला यही बताया है।
राम मंदिर की स्थापना 22 जनवरी को हुई थी। इस घटना को अब तीन माह से अधिक बीत चुके हैं। इसके पहले ही कांग्रेस नेतृत्व ने उद्घाटन समारोह का निमंत्रण ठुकरा दिया था। पर, ऐसा लगता है कि कांग्रेस छोडऩे वालों की भावनाएं तत्काल आहत नहीं हुई। धीरे-धीरे हो रही है। और यदि भावनाएं आहत उसी वक्त हो गई थीं, उसके बावजूद पार्टी नहीं छोड़ पाए थे, तो यह बहुत बड़ी बात है। पार्टी के फैसले से वे नाराज थे, उसके बावजूद बने रहे। दिलचस्प यही देखना होगा कि मतदान के तीनों चरणों के निपट जाने के बाद कितने लोग कांग्रेस को छोड़ेंगे।
बयानों से समझिए चुनावी रुझान
हाल ही में कांग्रेस-भाजपा के कुछ नेताओं के वीडियो सामने आए हैं, जिसमें उनके तल्ख अंदाज की आलोचना हो रही है। महानदी,इंद्रावती भवन में बैठे कुछ आईएएस अफसर और मीडियाकर्मियों के बीच जब रुझान को लेकर चर्चा हुई तो वहां मौजूद एक अफसर ने कहा कि बयानों से समझिए कि किसकी हालत टाइट है। एक नेताजी ने मीडियाकर्मी से ही दुर्व्यवहार किया तो दूसरे का समाज के लोगों के साथ बातचीत का तल्ख रवैया सामने आया है। इन दोनों ही जगहों पर प्रत्याशियों की हालत मुश्किल बताई जा रही है।
कबाड़ में जुगाड़
एक नए नवेले विधायक महोदय कबाड़ में जुगाड़ खोज रहे है। आमदनी के लिए पुलिस वालों पर दबाव बना रहे है कि उनके इलाके में कबाड़ चलने दिया जाए। अवैध शराब बेचने वालों पर कार्रवाई न करें। यार्ड में छापा न करें। रेत की गाडिय़ों को न रोकें। इससे पुलिस और प्रशासन वाले परेशान हो गए हैं क्योंकि सरकार का दबाव है कोई भी गैर कानूनी काम नहीं होना चाहिए। पिछली सरकार की तरह सिस्टम नहीं चलेगा। लेकिन नए नवेले विधायकों को इससे कोई मतलब नहीं। वे तो सिर्फ अपने जुगाड़ में लगे हुए। इलाके के छोटे छोटे ठेकेदार भी परेशान हैं।
चिंतामणि की चिंता
सरगुजा सीट से भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अजीब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के कई स्थापित नेता उन्हें नापसंद कर रहे हैं। इसका नजारा कई जगह देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री के स्वागत के बैनर-पोस्टर से चिंतामणि महाराज गायब रहे।
दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री, चिंतामणि महाराज के पक्ष में सभा लेने आए थे। दरअसल, कांग्रेस से आए चिंतामणि महाराज को प्रत्याशी बनाना पार्टी के कई नेताओं को नहीं पसंद आ रहा है। चिंतामणि महाराज को इसका अंदाजा भी है। यही वजह है कि वो स्थापित नेताओं के बजाय अपनी खुद की टीम पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। इन सबके बावजूद कांग्रेस बहुत ज्यादा फायदा उठा पाने की स्थिति में नहीं दिख रही है। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव प्रदेश से बाहर हैं। और दूसरे ताकतवर नेता अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में क्या होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
रेणुका से पूछताछ
पीएम नरेंद्र मोदी ने अंबिकापुर में सभा के बाद पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह से कुछ देर अलग से चर्चा की, तो वहां कानाफूसी शुरू हो गई। रेणुका सिंह को भरतपुर-सोनहत विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया था। रेणुका सिंह को जीत के बाद सीएम का दावेदार माना जाने लगा था। मगर सीएम बनना तो दूर मंत्री बनने से भी रह गईं।
सुनते हैं कि पीएम ने रेणुका सिंह से सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा लोकसभा का हाल जाना। चर्चा है कि विधानसभा चुनाव के वक्त भी अंबिकापुर प्रवास के दौरान पीएम ने ग्राम दतिमा हेलीपेड पर रेणुका सिंह से चुनाव की स्थिति को लेकर चर्चा की थी।
रेणुका सिंह ने उन्हें बताया था कि सरगुजा संभाग की 14 में से 12 सीटें भाजपा जीत सकती हैं। चुनाव नतीजे रेणुका के अनुमान से भी बेहतर रहा, और सभी 14 सीटें भाजपा की झोली में चली गई। इस बार भी उन्होंने पीएम को तीनों लोकसभा सीटों को लेकर आश्वस्त किया है। देखना है कि तीनों सीटों के नतीजे रेणुका सिंह के अनुमान के मुताबिक आते हैं, या नहीं।
नड्डा-योगी की सभाओं का हाल !
भाजपा के स्टार प्रचारकों की ताबड़तोड़ सभाएं हो रही है। अब तक पीएम नरेंद्र मोदी की 4 सभाएं हो चुकी है। इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तीन-चार सभाएं हो चुकी है। इनमें से नड्डा, और योगी आदित्यनाथ की एक-एक सभा को छोडक़र बाकियों में अच्छी खासी भीड़ जुटी है।
नड्डा की दुर्ग, रायपुर के चंदखुरी, और बिलासपुर में सभा थी। चंदखुरी, और बिलासपुर तो भीड़ के लिहाज से सफल रही, लेकिन दुर्ग की सभा में डेढ़ हजार लोग भी नहीं थे। 90 फीसदी कुर्सियां खाली रही। इससे नड्डा भी खफा हो गए, और चर्चा है कि प्रदेश संगठन ने स्थानीय नेताओं को तलब भी किया है।
कुछ यही हाल योगी आदित्यनाथ की कोरबा की सभा का भी रहा। भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ के यहां प्रशंसकों की कमी नहीं है। उनकी कवर्धा, और बिलासपुर की सभा में अच्छी खासी भीड़ जुटी। मगर कोरबा में तो हजार लोग भी नहीं पहुंचे। पार्टी संगठन ने भीड़ कम आने पर स्थानीय नेताओं से पूछताछ की है। आने वाले दिनों में जिन इलाकों में सभाएं होनी है, वहां भीड़ सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त संसाधन भेजे जा रहे हैं। फिर भी अब तक प्रचार के मामले में भाजपा, कांग्रेस से बीस नजर आई है।
विधायकों की जरूरत नहीं
रायपुर लोकसभा सीट में भाजपा के तमाम विधायकों को दूसरे क्षेत्रों में प्रचार के लिए भेजा गया है। रायपुर पश्चिम के विधायक राजेश मूणत राजनांदगांव, दुर्ग समेत अन्य लोकसभा क्षेत्र के क्लस्टर प्रभारी हैं, लिहाजा वो अलग-अलग क्षेत्रों में दौरा कर रहे हैं।
रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा की ड्यूटी बसना में लगाई गई है। जबकि मोतीलाल साहू को महासमुंद भेजा गया है। इसी तरह अभनपुर के विधायक इंदरसाव को धमतरी में ध्यान देने के लिए कहा गया है। धरसीवां के विधायक अनुज शर्मा के कार्यक्रम पूरे प्रदेशभर में हो रहे हैं। इस वजह से वो भी अपने क्षेत्र में ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं। ये अलग बात है कि प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल की समानांतर टीम पूरे लोकसभा क्षेत्र में काम कर रही है, और वो प्रचार के मामले में काफी आगे भी चल रहे हैं। उत्साही बृजमोहन समर्थक प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीत का दावा कर रहे हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
पीआरओ के कमरे में आईपीएस
छत्तीसगढ़ गठन के बाद पहली बार ऐसी स्थिति बनी है, जब पुलिस मुख्यालय में कई सीनियर अफसर खाली बैठे हैं। भाजपा की सरकार बनने के बाद जब आईपीएस अफसरों के तबादले हुए, तब सभी को पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया, लेकिन कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। इस वजह से एडीजी से लेकर एसपी तक के पास काम नहीं है। खुफिया विभाग के दो-दो अफसर खाली हैं। एक-दो को ही स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारी दी गई है। अफसरों की इतनी संख्या के कारण बैठने के लिए भी जगह नहीं है। एक आईपीएस को पीआरओ के कमरे में बैठाया गया है। वैसे, कांग्रेस की सरकार में भी दो अफसर कुछ महीनों के लिए खाली थे, लेकिन बाद में उन्हें अच्छी पोस्टिंग भी मिली थी।
अब हर घर योगी-मोदी का भाषण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन का तूफानी दौरा करके लौट गए हैं। इसके पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं हुईं। ये दोनों नेता भाजपा के स्टार प्रचारकों से भी बढक़र हैं। उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ती है। दोनों के भाषणों से यह साफ हो चुका है कि भाजपा की उन मुद्दों पर बड़ी निर्भरता है जिनका मोदी और योगी आदित्यनाथ ने अपने ओजपूर्ण भाषणों में जिक्र किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र के संबंध में, अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण और राम मंदिर निर्माण के संबंध में। इनकी जनसभाओं में भीड़ भी अच्छी उमड़ी, डिजिटल, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में जबरदस्त कवरेज भी हुआ। पर, क्या इतने से माहौल बनेगा? पार्टी के वार रूम में उनके छत्तीसगढ़ में दिए गए भाषणों की छोटी-छोटी क्लिप तैयार की जा रही है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषणों के कुछ क्लिप भी तैयार किए जा रहे हैं। कुछ क्लिप दूसरे चरण के मतदान के पहले तैयार हो चुके और वायरल भी हो गए हैं।
प्रदेशभर में भाजपा और हिंदुत्ववादी संगठनों के हजारों वाट्सएप ग्रुप हैं और उनमें लाखों की संख्या में लोग जुड़े हैं। ये क्लिप लोगों को मोबाइल फोन पर भेजे जा रहे हैं। फिर जिन्हें मिल रहा है इसे वे और आगे फॉरवर्ड कर रहे हैं। मोदी और योगी के भाषणों में कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर कई विवाद थे। कांग्रेस ने कहा है कि जो तथ्य दोनों नेताओं ने रखे वे पूरी तरह झूठ हैं। विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संबंध में किए गए दावे पर कि उन्होंने देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का बताया था। कांग्रेस ने बताया कि मंगलसूत्र छीनने, लोगों की संपत्ति का सर्वे कराने और मुस्लिमों में बांटने वाला बयान सिरे से गलत है। पर, यह बयान कितने लोगों तक पहुंचा? मोदी-योगी का भाषण हर किसी के मोबाइल पर आ रहा है, और कांग्रेस की जवाबी सफाई एक दिन की सुर्खी लेने के बाद मीडिया से गायब !
सेहत बिगाडऩे की मामूली सजा
शहद सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। बहुत से लोगों की सुबह की खुराक में यह शामिल है। पर यदि कोई 100 प्रतिशत शुद्ध बताकर शहद या ऐसी कोई दूसरी खाद्य सामग्री बेचे तो?
सन् 2020 में कोरिया जिले के एक जागरूक ग्राहक ने खाद्य विभाग से शिकायत की थी कि यहां की दुकानों में 100 प्रतिशत शुद्ध बताकर जो शहद बेची जा रही है, वह नकली है। शहद के अलावा भी दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं। शिकायत खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम 2006 के तहत दर्ज की गई। चार साल एसडीएम की कोर्ट में केस चला। अभियुक्त विक्रेता, थोक विक्रेता और निर्माता पर कितना जुर्माना लगा? सिर्फ 5-5 हजार रुपये का।
जितनी कमाई भ्रामक जानकारी देकर शहद बेचने से हुई होगी, उसके मुकाबले इस जुर्माने का उनकी सेहत पर क्या असर होने वाला है? कानून ही ऐसा है। ऐसे मामलों में बहुत अधिक जुर्माना होगा तो 25 हजार रुपये का। गंभीरता को देखते हुए अधिक से अधिक 6 माह की सजा। सजा और जुर्माने के खिलाफ अपील भी हो सकती है।
जब शिकायत की जांच और सजा की प्रक्रिया में चार साल लगें और सिर्फ 5-5 हजार जुर्माने से आरोपी छूट जाते हों तो लोगों को शिकायत करने में रुचि ही कहां से आए? यह तो एक शहद का मामला है, जाने कितनी ही तरह के रोजाना इस्तेमाल में लाई जानी चीजों पर ग्राहकों को संदेह होता है। पर यदि शिकायत करने की ठान भी लें तो मिलने वाली सजा से निराशा हो सकती है।
संतोष के खिलाफ असंतोष...
राजनांदगांव सीट पर भाजपा के स्टार प्रचारकों की कई सफल सभाएं हो चुकीं। पर मौजूदा सांसद के खिलाफ एंटीइंकमबेंसी भी दिखाई दे रही है। कई गांवों की अलग-अलग तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें दिखाया गया है कि गांव पहुंचने के रास्ते पर बैरियर लगा दिए गए हैं और सांसद संतोष पांडेय को निष्क्रिय बताते हुए उन्हें गांव में प्रवेश करने से मना किया गया है।
आला अफ़सरों का कनेक्शन
ये एक संयोग है कि केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए, और एनएसजी के नए चीफ सदानंद दाते व नलिन प्रभात छत्तीसगढ़ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
दाते आईपीएस के 90 बैच के अफसर हैं। उन्हें बेहद काबिल अफसर माना जाता है। दाते मुंबई में आतंकवादी हमले के खिलाफ अभियान में अहम भूमिका निभाई थी। वो लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के आईजी भी रहे। इस दौरान राज्य पुलिस से सीआरपीएफ का तालमेल बेहतर रहा, और सुरक्षा बलों के सहयोग से नक्सल प्रभावित इलाकों में काफी निर्माण कार्य भी हुए।
दूसरी तरफ, नलिन प्रभात आईपीएस के 92 बैच के अफसर हैं वो भी सीआरपीएफ के डीआईजी के रूप में बस्तर में पोस्टेड रहे हैं। सदानंद दाते के उलट नलिन प्रभात के कार्यकाल में राज्य पुलिस के साथ सीआरपीएफ का तालमेल अच्छा नहीं रहा। उनके कार्यकाल में नक्सल विस्फोट में करीब 73 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे। नलिन प्रभात की कार्यप्रणाली पर काफी सवाल भी उठे थे। वो प्रकरण के जांच के घेरे में भी आए लेकिन उन्हें क्लीनचिट मिल गई। अब वो एनएसजी संभाल रहे हैं।
सब फूल छाप
एक जानकारी के अनुसार अब तक तेइस, चौबीस हजार लोग फूल छाप हो चुके हैं। यह सिलसिला जारी है । इस दावे के साथ दो दिन पहले भाजपा कांग्रेस के प्रवक्ता टीवी डिबेट से बाहर निकले। भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेसी से कहा अब राजीव भवन में कोई नहीं बचा तुम भी आ जाओ। और हाथ पकड़ ठाकरे परिसर ले जाने लगे। कांग्रेसी ने कहा जो गए हैं वो कारोबारी नेता थे, डिपार्टमेंट में बिल अटके पड़े हैं। मेरा कोई बिल नहीं दिल है कांग्रेस में। हां दिल से एक भाजपाई, और शरीर से कांग्रेसी नेता को ले जाओ, हमारा काम आसान कर दो। ये कौन हैं- नेता ने पूछा,तो जवाब मिला, राजधानी के एक पूर्व महापौर। सही है दोबारा महापौर बनने का मौका नहीं मिला, विधानसभा की टिकट नहीं मिली, लोकसभा के लिए भी मना कर दिया गया। नाराजगी स्वाभाविक है। बताते हैं भाजपाई डोरे लेकर सक्रिय हो गए हैं। देखना है यह प्रवेश 7 मई से पहले होता है या नहीं।
भाजपा प्रवेश, एक सच्चाई यह भी
भाजपा प्रवेश करने की इन दिनों कांग्रेसियों में होड़ लगी है। इनके प्रवेश के पीछे न तो राम मंदिर, न मजबूत देश, न सनातनी परंपरा और न ही तुष्टिकरण नीति। ये सब आरोप हम अखबार वालों को बयान देने के तत्व हैं।
और प्रवेश करने के बाद पुराने नेताओं को तराजू भर भर उलाहनाएं, लांछन, आरोप लगाने के लिए। इसे वे लेटर बम का नाम दे रहे हैं तो तीर भी बता रहे। यह सब कुछ नए भाजपा को खुश करने के लिए करना पड़ रहा है । बताया जा रहा है कि इनमें से कुछ, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं, पूर्व मंत्रियों को बताकर भाजपा प्रवेश किया है। इसके पीछे विभागों में अटके लाखों के बिल, कारण हैं। एक नेता के तो तीन विभागों नगरीय प्रशासन,महिला बाल विकास और लोनिवि में बिल पेंडिंग हैं। इन्होने पूर्व मंत्री से कहा भैया कांग्रेस में रूमाल सम्हाले रहना, बिल क्लीयर होते ही लौट आऊंगा।
अब दिख रहा भ्रष्टाचार...
बस्तर विधानसभा क्षेत्र में जल जीवन मिशन का काम 20 प्रतिशत भी पूरा नहीं हुआ है। कई जगह टंकियां बन गई हैं, पाइप लाइनें बिछ गई हैं लेकिन अब तक घर घर पानी पहुंच नहीं रहा है। कांग्रेस विधायक लखेश्वर बघेल ग्रामीणों के बीच दौरे में यह मान रहे हैं कि योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। ऐसा कहकर वे अपनी ही पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। विधानसभा के पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने यहां का प्रतिनिधित्व किया था। क्या उन्होंने निगरानी नहीं की, या फिर सरकार अपनी होने की वजह से आवाज नहीं उठाई? अब जब भीषण गर्मी में परेशान लोग शिकायत कर रहे हैं तो उन्हें ध्यान आ रहा है कि योजना में भ्रष्टाचार हुआ, 80 प्रतिशत काम अधूरा है।
इस योजना के पूरे प्रदेश में करोड़ों रुपये के टेंडर रद्द किए गए हैं, करोड़ों का भुगतान भी रोका गया है। शायद डीएमएफ के बाद सबसे ज्यादा मौज जल जीवन मिशन के अफसरों ने ही किया है। अभी हालत यह है कि अधिकांश जिलों में घर घर जल पहुंचाने की योजना में काम आगे बढ़ नहीं रहा है। कुछ भ्रष्टाचार की जांच के चलते तो बाकी चुनाव व्यस्तता के चलते।
सुबह-सुबह के सुंदर पोस्ट...
सुबह-सुबह वाट्सएप पर आने वाले खूबसूरत गुडमॉर्निंग और प्रेरक संदेश से सीख लेते चले तो एक साधारण आदमी असाधारण बन सकता है। जो ऐसे संदेश भेजता है उसके बारे में तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वह खुद उन प्रेरणादायी विचारों को अमल में लाता होगा। तभी तो आपका भला चाहते हुए आपके लिए संदेश भेजने का समय निकालता है। यह अलग बात है कि बना बनाया संदेश देने वाले ऐसे कई ऐप प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं, इन्हें ब्रॉडकास्ट करने के लिए कुछ खास मेहनत नहीं करनी पड़ती। हाल ही में कांग्रेस के एक पूर्व विधायक ने अपनी 40 साल की निष्ठा को रद्दी की टोकरी में डालकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। अगले दिन सुबह वाट्सएप पर रंग बिरंगी आकृतियों से सजा एक संदेश उनके शुभचिंतकों को मिला- सिद्धांतों पर कायम रहना कठिन जरूर है, लेकिन आपका सिद्धांत ही आपके स्वाभिमान का रक्षक है।
मोदी ही एकमात्र गारंटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास पर राजधानी रायपुर में जगह-जगह बड़े बड़े बिलबोर्ड और पोस्टर लगे। मोदी की आदमकद तस्वीर के साथ और कोई नहीं। न पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, न और राज्य का और कोई नेता। सोशल मीडिया पर ऐसे कई पोस्टर्स की तस्वीर खींचकर डाली गई है। तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ का कहना है कि अब भाजपा मतलब मोदी, मोदी मतलब भाजपा। भाजपा जीतेगी तो मोदी की बदौलत। यदि नहीं जीत पाई तब पता चलेगा कि कौन अध्यक्ष था, कौन चुनाव संचालक था। किस पदाधिकारी की कौन सी जिम्मेदारी दी गई थी। ([email protected])
ऐसा पहली बार हुआ है
पीएम नरेंद्र मोदी के एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए बूथ स्तर के दर्जनभर कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया है। आमतौर पर पीएम के स्वागत के लिए बड़े नेताओं में होड़ मची रहती है। छोटे और बूथ स्तर के कार्यकर्ता तो मंच के आसपास भी नहीं फटक पाते हैं। लेकिन अब ऐसे सीधे पीएम को गुलाब भेंट करने का मौका मिल रहा है।
बताते हैं कि मुलाकातियों की सूची प्रदेश संगठन ने केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर तैयार की है, और इसके लिए जिलाध्यक्षों से बूथ स्तर के पदाधिकारियों के नाम मांगे गए थे। यह पहली बार हो रहा है जब छोटे कार्यकर्ता सीधे पीएम से मिल पा रहे हैं।
कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर पहली बार पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के जिलों में आगमन पर स्वागत के लिए स्थानीय नेताओं को बुलाने के निर्देश दिए गए थे। खुद शाह का जहां प्रवास होता है वहां प्रदेश के बड़े नेताओं के बजाए उस संभाग के प्रमुख नेता ही स्वागत के लिए मौजूद रहते हैं। इस पहल का अच्छा निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश गया है।
लापता सांसद
भाजपा ने कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्यों के ‘लापता’ वाले पोस्टर जारी किए, तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई। पार्टी के दो राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और रंजीत रंजन का आनन-फानन में दौरा कार्यक्रम बन गया।
राजीव शुक्ला तो सफाई देते दिखे कि वो विधानसभा चुनाव में भी प्रचार के लिए आए थे। यही नहीं, छत्तीसगढ़ के विषयों को राज्यसभा में प्रमुखता से उठाते हैं जबकि भाजपा के सांसद खामोश रहते हैं। अलबत्ता, तीनों राज्यसभा सदस्यों में रंजीत रंजन का जरूर आती-जाती हंै। उन्होंने सांसद निधि के मद की राशि अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में खर्च भी किए हैं। मगर वो भी विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ नहीं आई। केटीएस तुलसी का तो चुनाव से कोई लेना देना नहीं है।
तुलसी सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं। वो पार्टी के नेताओं को कानूनी सलाह देते हैं। मगर राज्यसभा सदस्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के किसी मुद्दे को प्रमुखता से उठाया हो, और यह चर्चा का विषय बना हो ऐसी कोई बात अब तक सामने नहीं आई है। ऐसे में भाजपा नेताओं के पोस्टर से कांग्रेस बैकफुट में आ गई है।
पायलट का अमित को ऑफर?
छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख राजनीतिक परिवार फिलहाल चुनावी गतिविधियों से दूर है। उनके साथ ही उनकी पार्टी भी चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है। यह है पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का परिवार है। जोगी के निधन के बाद उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी की विधायकी से सदन में मौजूदगी बनी हुई थी। उनके हारने के बाद परिवार में अब दो पूर्व विधायक हैं। हल्ला है कि कॉलेज मेट सचिन पायलट ने अमित जोगी को कांग्रेस में आने का प्रस्ताव दिया था। अमित की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी भेंट हुई है। कुछ करीबियों का कहना है कि डॉ. रेणु कांग्रेस और अमित का रुझान भाजपा की ओर है। लोकसभा चुनाव के दौरान निर्णय हो सकता है।
गुस्सा धनेंद्र कमेटी क्यों झेले
कांग्रेस से भाजपा में जाने मची भगदड़ पर रोक लगाने एक कमेटी बनाई गई। पूर्व अध्यक्ष धनेंद्र साहू इसके कमांडर हैं। जो असंतुष्ट लोगो की नाराजगी दूर कर भाजपा में जाने से रोकेगी। इस कमेटी की अभी तक तो छत्तीसगढ़ में कोई खास उपलब्धि दिखाई नहीं दे रही।
एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने कहा कि कमेटी का नाम पकड़ो मत जाने दो होना चाहिये। जो पार्टी छोड़ स्वहित में जा रहे उनके लिए पकड़ो मत,जाने दो और जो नाराज हैं उनके लिये पकड़ो, मत जाने दो। लेकिन दिक्कत यह है कि अब तक दूसरी श्रेणी के नेताओं से भी कमेटी ने बात नहीं की है। पांच वर्ष तक खीर किन्हीं और लोगों ने खाया और गुस्सा ये क्यों झेले?
किसका घोटाला असरदार?
दूसरे चरण के मतदान के पहले भाजपा ने चुनाव प्रचार में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ में रात रुकने का भी यही संकेत है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा चुनाव घोषित होने के पहले और बाद में कई दौरे कर चुके। योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता लगातार सभाएं ले रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय धुआंधार प्रचार कर ही रहे हैं। भाजपा नेता अपने भाषणों में राम मंदिर, मोदी की गारंटी, 2047 के लिए विकसित भारत के विजन का तो जिक्र कर रहे हैं, पर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के दौरान हुए कथित घोटालों की चर्चा से बिल्कुल नहीं चूक नहीं रहे हैं। प्राय: प्रत्येक भाषण में शराब, कोयला और गोबर खरीदी में हुए घोटालों का जिक्र हो रहा है। इन मामलों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी कई अफसर और व्यवसायी जेल में हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान इन घोटालों को जोर-शोर से उठाने के कारण भाजपा को सत्ता में वापसी में मदद भी मिली थी। पर लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ इलेक्टोरल बॉंड का मुद्दा सामने आ गया। देश के दूसरे राज्यों में इंडिया गठबंधन और कांग्रेस इसे लगातार उठा रही है। इसे वह सत्ता के दम पर की गई इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी चंदा वसूली बता रही है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के स्टार प्रचारकों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और शायद आगे होने वाली सभाओं में भी उठाएं। मगर, दिखाई यह देता है कि कांग्रेस कार्यकाल के घोटालों की वजह से इलेक्टोरेल बांड के मुद्दे को छत्तीसगढ़ में फीका करने का मौका भाजपा को मिल गया है।
इस बीच जेल काट रहे आरोपियों की जमानत अर्जी भी अदालतों से खारिज हो गई। उल्टे वे लोग गिरफ्तार कर लिये गए, जिन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर रहने या बाहर निकल आने का मौका मिल पाया था। भाजपा इसे भी लपक रही है। सौम्या चौरसिया की एक और जमानत अर्जी दो दिन पहले खारिज हो गई। इसके बाद कुछ भाजपा पदाधिकारियों ने बघेल को पत्र लिखकर पूछा है कि गिरफ्तारी होने के बाद वे चौरसिया का बचाव कर रहे थे, कार्रवाई गलत बता रहे थे, अब जमानत नहीं मिलने पर क्या कहना है? क्या वह केवल अपने लिए वसूली
करती थी?
नोटा चुनाव नहीं जीत सकता !
नोटा एक ऐसा काल्पनिक उम्मीदवार है, जिसका नामांकन कभी रद्द नहीं होता, क्योंकि उसे यह भरना ही नहीं पड़ता। सन् 2004 में एक याचिका लगाई गई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि यदि किसी भी प्रत्याशी को कोई मतदाता वोट नहीं देना चाहता, लेकिन मतदान का इच्छुक हो तो उसे अपना असंतोष व्यक्त करने का विकल्प मिलना चाहिए। इस याचिका का उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दल ज्यादा जिम्मेदारी के साथ ऐसे उम्मीदवारों का चयन करें जिसकी अच्छी पृष्ठभूमि हो। यह अलग बात है कि इसके बावजूद भ्रष्टाचार व अन्य आपराधिक मामलों में लिप्त प्रत्याशियों की संख्या कम नहीं हो रही है। सन् 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नोटा के विकल्प का आदेश दिया। सबसे पहले जहां इसका प्रयोग किया गया उनमें छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव भी शामिल था।
इन दिनों गुजरात के सूरत लोकसभा सीट की चर्चा है, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार का पर्चा रद्द हो जाने और बसपा प्रत्याशी सहित बाकी उम्मीदवारों की नाम वापसी के बाद भाजपा के मुकेश दलाल अकेले चुनाव मैदान में रह गए। जिला निर्वाचन अधिकारी ने बिना देर किए उन्हें निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर जीत का प्रमाण पत्र भी सौंप दिया।
इसके बाद सोशल मीडिया पर मुद्दा गर्म है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द हुआ, बाकी उम्मीदवारों ने भी ज्ञात अज्ञात कारणों से मैदान छोड़ दिया, पर नोटा तो मैदान में डटा ही है न? दलाल को एकतरफा निर्वाचित घोषित करने से उन मतदाताओं का हक तो मारा गया, जो नोटा को वोट देना चाहते थे। भले ही भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले नोटा में काफी कम वोट जाते, पर कीमत तो एक-एक वोट की होती है।
यह एक ऐसा सवाल है जो आज सूरत में खड़ा हुआ है, कल देश की किसी दूसरी सीट पर भी हो सकता है। न केवल लोकसभा चुनाव में, बल्कि विधानसभा चुनाव और स्थानीय स्तर पर राज्य के आयोग द्वारा कराये जाने वाले चुनावों में भी।
लगे हाथ याद दिला दें कि हरियाणा में दिसंबर 2018 में पांच नगर निगमों के पार्षद चुनाव के दौरान उन सीटों पर दोबारा चुनाव की प्रक्रिया अपनाई गई थी, जिनमें नोटा को सर्वाधिक वोट मिल गए थे। महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने भी ऐसा ही प्रावधान कर रखा है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति का तो इसके आगे बढक़र एक सुझाव दिया था। वे कहते थे कि यदि हार जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा के हों तो उनमें भी फिर चुनाव कराए जाएं। पर भारत निर्वाचन आयोग का नियम अभी यह है कि नोटा वोटों को रद्द माना जाएगा। जीत हार का फैसला इस काल्पनिक उम्मीदवार के वोटों से नहीं होगा।
भ्रष्टाचार डहरिया की मुसीबत
जांजगीर-चांपा में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया के खिलाफ भाजपा ने भ्रष्टाचार को प्रमुुख मुद्दा बनाया है। भाजपा के नेता अपनी सभाओं में डॉ. डहरिया के नगरीय प्रशासन मंत्री रहते भ्रष्टाचार के मामलों को प्रमुखता से गिना रहे हैं।
सीएम विष्णुदेव साय ने तो डॉ. डहरिया को सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी करार दिया है। भाजपा नेता अपनी सभाओं में डॉ. डहरिया के खिलाफ आरंग में खुद गरीब बनकर सरकारी जमीन का पट्टा लेने के मामले को प्रमुखता से प्रचारित कर रहे हैं।
सीएम तो यह भी कहने से नहीं चूके कि अगर भूल से भी वो जीते तो जांजगीर की जमीनों पर भी कब्जा कर लेंगे। उन्होंने मतदाताओं को सतर्क रहकर डहरिया को सबक सिखाने का आहवान किया। भाजपा का डहरिया के खिलाफ अभियान का कितना फर्क पड़ता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही साफ होगा।
चिल्हर गिनने की मशीन
नोट काउंटिंग मशीन से आप और हम अभ्यस्त हो गए हैं।यह समय की बचत, सुविधा होने के बावजूद कभी कभी लोग नोट गिनते-गिनते,मशीन और जांच अधिकारी भी थक जाते है। जैसे झारखंड के एक सांसद को यहां मिले तीन सौ करोड़ रुपए गिनने पड़े थे।
ऐसा बताया गया था कि पूरे दो दिन लगे थे। इतनी बड़ी रकम गिनने की सफलता के बाद अब नोट मशीन बनाने वाली कंपनी ने चिल्लर (सिक्के) गिनने वाली मशीन लांच कर दिया है। शायद कंपनी को मालूम चल गया है कि कुछ लोग चिल्हर में भी अकूत इक_ा कर रहे हैं। सही है, हाल में दिवंगत हुए मप्र के दौर के एक मंत्री, तबादले के लिए नग स्वरूप 51 रूपए तक ले लेते थे। मशीन चिल्हर में होने वाले ऐसे भ्रष्टाचार के टोटल अमाउंट को भी गिन लेगी। इस मशीन में सभी सिक्कों का ढेर डाल दीजिए और वह चंद मिनटों में 10, 5, 2, 1 रूपए की छंटनी कर न केवल टोटल कर देगी बल्कि उन्हें अलग अलग छांट कर प्रिंट आउट भी दे देगी।
98 फीसदी पोलिंग, नोटा भी नहीं
विधानसभा 2023 के चुनाव में बस्तर की 12 में से 8 सीटों पर नोटा वोट तीसरे नंबर पर थे। यानि कांग्रेस भाजपा के बीच तो मुख्य मुकाबला था, पर इन दोनों की टक्कर नोटा से थी। नोटा का विकल्प चुनने का सामान्य अर्थ यही है कि मतदाता ने किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं किया। इस आधार पर बस्तर के मतदाता बाकी स्थानों के मतदाताओं से ज्यादा जागरूक माने जा सकते हैं। मगर, ऐसा नहीं है। नोटा का एक मतलब यह भी हो सकता है कि मतदाता को अपने पसंद के उम्मीदवार का बटन ही समझ में नहीं आया।
इस लोकसभा चुनाव में दंतेवाड़ा जिले कटेकल्याण ब्लॉक के दूधिरास गांव में 98 प्रतिशत वोट डाले गए। मतगणना के बाद पता चलेगा कि इनमें कितने नोटा को गया लेकिन शत-प्रतिशत मतदान की कोशिश में लगे ग्राम के सरपंच को उम्मीद है कि नोटा वोट शायद ही हो। इस गांव में मतदान के पहले एक नकली बूथ बनाई गई। एक पीठासीन अधिकारी बिठाया गया। इसमें लोगों को बताया गया कि मतदान कैसे करना है। अपनी पसंद के उम्मीदवार को बटन कैसे दबाना है। बीप बजने के बाद पर्ची में देखकर तसल्ली करना है कि जिस चुनाव चिन्ह का बटन दबाया, उसी की पर्ची भी निकली है। जब असल मतदान हुआ तो करीब 300 मतदाताओं वाले इस बूथ में सिर्फ 6 लोग वोट नहीं डाल सके। बाकी सभी ने मतदान किया। यह वाकया सोशल मीडिया पर वायरल है। ग्रामीणों का दावा है कि बस्तर में नोटा वोट बढऩे का कारण वोट डालने के दौरान की गई गलतियां हैं। सुदूर दूधिरास में ग्रामीणों ने खुद से पहल कर सबको वोट डालने और अपनी पसंद से डालने की जो पहल की, वह निर्वाचन आयोग के स्वीप कार्यक्रम से ज्यादा असरदार रहा। भले ही यह किसी एक गांव में सीमित क्यों न रहा हो।
इसी दौरान कई बूथों पर बस्तर की संस्कृति और परंपरा के अनुसार की गई साज-सज्जा भी मतदाताओं को आकर्षित कर रही थी, जिसने मतदाताओं को बूथ तक खींचा।
चुनाव ने रोका मुफ्त इलाज
पिछले साल कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ के कुछ निजी अस्पतालों में आयुष्मान योजना और खूबचंद बघेल योजना के तहत होने वाले मुफ्त इलाज में गड़बड़ी पाई। यह पाया गया कि मरीजों को जिस बीमारी का इलाज मुफ्त ही करना था, उसके एवज में उनसे लाखों रुपयों की अवैध वसूली की गई। ऐसे कुछ अस्पतालों से मरीजों को रकम वापस भी लौटाई गई। इसके बाद नये निजी अस्पतालों के साथ अनुबंध की प्रक्रिया निलंबित कर दी गई। अब खबर यह है कि करीब साल भर होने जा रहा है नए अस्पतालों का पंजीयन रुका हुआ है। इस बीच कई शहरों, कस्बों में नए अस्पताल खुले लेकिन उनमें दोनों मुफ्त योजनाओं से मरीज इलाज नहीं करा पा रहे हैं। कुछ तो ग्रामीण इलाकों के अस्पताल भी हैं। विधानसभा चुनाव के बाद थोड़ा वक्त था, जब नई सरकार कुछ बड़े फैसले ले रही थी। निजी अस्पतालों के संचालकों ने इस दौरान पंजीयन कराने की कोशिश की थी, मगर रोक नहीं हटी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता जब जून के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाएगी, हो सकता है इन अस्पतालों को और इनके पास पहुंचने वाले मरीजों की सुविधा तब मिलने लगे।
बिना हिंसा अधिक मतदान
बस्तर में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मतदान में दो फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में 66.19 फीसदी मतदान हुआ था। मगर इस बार 68.29 फीसदी मतदान हुआ।
बस्तर के सबसे ज्यादा संवेदनशील विधानसभा बीजापुर में भी पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ है। पिछले चुनाव में करीब 42 फीसदी मतदान हुआ था। इस बार 43.42 फीसदी मतदान हुआ है।
बताते हैं कि कई जगहों पर नक्सलियों ने लोगों को धमकाकर रखा था। इसलिए वो वोट डालने नहीं निकले। ऐसे अतिसंवेदनशील करीब 99 मतदान केन्द्रों में 10 से 15 फीसदी ही मतदान हुआ। इससे परे बासागुड़ा इलाके में ग्रामीणों ने प्रशासन को खबर भिजवाई कि उन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है, तो वो वोट डालने आएंगे। फिर क्या था प्रशासन ने वहां सुरक्षा बल भिजवाए, और वहां करीब 30 फीसदी मतदान हुआ।
बीजापुर के भोपालपटनम इलाके के एक-दो मतदान केन्द्रों में तो 90 फीसदी से अधिक मतदान हुआ। खास बात यह रही कि रविवार को दोपहर तक सारे मतदान केन्द्रों से पोलिंग पार्टी सकुशल लौट आई। इससे पहले के चुनावों में पोलिंग पार्टी पर भी नक्सली घात लगाकर हमला कर देते थे। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।
वीआईपी फकीर और फकीर संघ
हिन्दुस्तान में किसी महान व्यक्ति ने कहा था कि साधुओं की कोई जमात नहीं होती, लेकिन बाद में धीरे-धीरे साधुओं के अखाड़े बनने लगे, और उनकी गुटबाजी चलने लगी। छत्तीसगढ़ के एक पुराने फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने एक दिलचस्प तस्वीर आज सुबह फेसबुक पर पोस्ट की है। इसमें तीन चक्कों की गाड़ी में चलते किसी व्यक्ति ने अपने को छत्तीसगढ़ प्रदेश फकीर संघ का अध्यक्ष बताया है, और खुद को वीआईपी फकीर लिखा है।
किसका आईटी सेल मजबूत..
मतदाताओं का रुझान अपनी ओर मोडऩे के लिए सभी दल बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर जोर देते हैं। पर, यह तीसरा लोकसभा चुनाव है जब सोशल मीडिया पर मजबूती भी राजनीतिक दलों को जरूरी लग रहा है। सिंगापुर स्थित ‘चैनल न्यूज एशिया’ की एक डाक्यूमेंट्री उसके यू ट्यूब चैनल ‘सीएनए इनसाइट’ पर ‘फैक्ट वर्सेस फिक्सन’ नाम से आई है। इसमें कहा गया है कि फर्जी खबरों को फैलाना पिछले एक दशक से भारत में उद्योग बन गया है। चुनाव असली दुनिया नहीं, आभासी दुनिया में लड़े जा रहे हैं। इनके जरिये लोगों की केवल राजनीतिक नहीं बल्कि धार्मिक और जातीय गोलबंदी भी की जा रही है। एक विशेषज्ञ ने इसे ‘सूचना महामारी’ का नाम दिया है। आईटी सेल में काम करने वाले लोग बिना फैक्ट चेक की प्रक्रिया से गुजरे कुछ भी अपलोड कर देते हैं। सिर्फ वे यह ध्यान रखते हैं कि कंटेंट से उनकी पार्टी को फायदा पहुंचे। इस डाक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि भारत में संचालित होने वाले 750 फर्जी मीडिया आउटलेट दुनिया भर के 119 देशों में फैले हैं और 550 अलग-अलग डोमेन से फर्जी खबरें फैलाते हैं।
इस डाक्यूमेंट्री में बताया गया है कि कैसे भाजपा की आईटी सेल के जरिये फर्जी सूचनाएं फैलाई जाती है। इसमें काम करने वाले किसी अनिल नाम के युवक की बातचीत भी है जो बता रहा है कि 40 से 50 हजार रुपये के वेतन पर उन्हें रखा गया है। हमारी टीम में एडिटर, स्क्रीन राइटर, स्क्रिप्ट राइटर सब होते हैं। वीडियो के टॉपिक मोदी की घोषणाएं, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व आदि होते हैं। हम कार्टून, मीम सब बनाते हैं। फिलहाल हमारा टारगेट सिर्फ कांग्रेस है। कंटेट को आगे बढ़ाने का काम डेटा एनालिटिक्स करते हैं। सोशल मीडिया प्रबंधन, डिजिटल मार्केटिंग, ई मेल और संदेश मैनेजमेंट सब उनके काम का हिस्सा है।
ऊपर की पूरी पड़ताल एक न्यूज चैनल की है। आप इससे सहमत हों या नहीं हों। पर, ऐसा लगता है कि पुराने अनुभवों ने कांग्रेस को भी काफी कुछ सिखा दिया है और इस ‘ डिजिटल महामारी’ की ओर उसका भी झुकाव बढ़ा है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्रसारित होने का दावा करने वाले दैनिक अखबार के भोपाल संस्करण के फ्रंट पेज की हू-ब-हू नकल पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर वायरल की गई। इसमें उस अखबार का ‘नीलसन’ के साथ मेगा सर्वे लीड खबर थी। बिल्कुल असली सी लगने वाली इस खबर का शीर्षक था-इंडिया गठबंधन एनडीए गठबंधन को चुनौती देने तैयार, बीजेपी शासित राज्यों में पीएम मोदी का प्रभाव फीका पडऩे का अनुमान। जब यह पोस्ट ट्विटर और वाट्सएप पर लाखों लोगों में वायरल हो गई तब किया गया फैक्ट चेक सामने आया। अखबार का पूरा पन्ना असली है। सिर्फ यही खबर, दूसरी खबर को हटाकर फर्जी तरीके से चिपका दी गई। उस अखबार ने और चुनाव आयोग ने इस फर्जी खबर पर क्या एक्शन लिया, अभी यह पता नहीं चला है। कह सकते हैं कि सोशल मीडिया में फर्जी खबरें इस चुनाव में ज्यादा दिख सकती हैं। सूचनाओं की सच्चाई तलाशने में मतदाताओं को ज्यादा माथापच्ची करनी पड़ेगी।
गर्मी में बाकी चरण के मतदान...
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश की ज्यादातर सीटों पर 2019 के मुकाबले मतदान का प्रतिशत कम रहा। बिहार की नवादा सीट ऐसी थी जहां सिर्फ 44 प्रतिशत वोट पड़े, मध्यप्रदेश की सीधी सीट पर 55 प्रतिशत वोट ही डाले गए। लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 83.9 प्रतिशत मतदान हुआ। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ की जिस एकमात्र बस्तर सीट पर पहले चरण में वोटिंग हुई, वहां मतदान का प्रतिशत 68.30 प्रतिशत था, जबकि 2019 में यहां 83.90 प्रतिशत वोट डाले गए थे। बस्तर में सुरक्षा बलों के नए कैंप खोले गए, जिसके चलते अंदरूनी इलाकों में नए मतदान केंद्र खुल सके। विधानसभा चुनाव के दौरान एक दो छुटपुट नक्सल घटनाएं तो हुई थीं, पर लोकसभा में एक भी नहीं हुई। बस्तर में हर बार मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है। देश के दूसरे स्थानों से कम मतदान को लेकर कुछ बातें सामने आई हैं। इसके अनुसार गर्मी एक बड़ा कारण था। अधिकांश बूथों पर इंतजाम नहीं था कि लोग छाया में कतार लगा सकें। अमूमन टेंट लगा दिया जाता है पर कुछ मुख्य मार्ग के मतदान केंद्रों में ही यह देखा गया। पीने की पानी की व्यवस्था भी अधिकांश बूथों में नहीं थी। मतदाता वोटिंग के लिए बूथों तक पहुंचे, इसके लिए सभी जिलों में निर्वाचन अधिकारी स्वीप के अंतर्गत कार्यक्रम कर रहे हैं। सामाजिक संगठनों के बीच खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, दौड़, रंगोली, शपथ जैसे आयोजन हो रहे हैं। पर दूसरे और तीसरे चरण में गर्मी भी अधिक रहेगी। जिन 10 सीटों पर मतदान अभी होना है। प्रशासन का स्वीप कार्यक्रम बेहद प्रचारित है, पर बूथ में सुविधाएं नहीं मिली, तो मतदान का प्रतिशत पहले चरण की तरह अनुमान से कम हो सकता है।
फ्यूज कॉल सेंटर
कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर कंपनी के नये चेयरमैन पी. दयानंद ने बिलासपुर दौरा किया था। लोगों ने शिकायत की थी कि दिन में दस-दस बार बिजली जा रही है। थोड़ी सी हवा चली कि घंटो गुल। ऐसा लगा कि बिजली विभाग के अधिकारी कर्मचारियों पर कुछ तो असर होगा। मगर, हालत और खराब हो गई। अब दस बार बिजली बंद नहीं होती, कई इलाकों में एक बार बंद होती है तो दस घंटे में आ रही है। ऐसे लोग जब सर्वाधिक उपभोक्ता वाले नेहरू नगर के फ्यूज कॉल सेंटर में शिकायत करते हैं तो फोन नहीं लगता। जब सेंटर में जाकर शिकायत करते हैं तो उनको वहां का नजारा ऐसा दिखाई देता है। ([email protected])
जोखिमभरा अतिआत्मविश्वास
प्रदेश में कुछ जगहों पर भाजपा के नेता अतिआत्मविश्वास में हैं। इन सबकी वजह से कई जगहों पर सभाओं-रैलियों में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुट पाई है।
अंबिकापुर में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज की नामांकन रैली भीड़ के लिहाज से फीका रहा। बताते हैं कि नामांकन रैली, और सभा में भीड़ जुटाने के लिए विधायकों व पार्टी के पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी। मगर वो एक-दूसरे पर छोड़ते रहे। रैली में कम से कम 10 हजार से अधिक लोगों के आने की उम्मीद थी, लेकिन डेढ़-दो हजार से ज्यादा नहीं पहुंचे।
भीड़ की एक वजह यह भी रही कि शुक्रवार को तेज गर्मी थी। इस वजह से भी लोग कम संख्या में पहुंचे। लेकिन सरगुजा लोकसभा के प्रभारी अमर अग्रवाल ने इसको गंभीरता से लिया, और उन्होंने जिले के पदाधिकारियों पर जमकर नाराजगी जताई। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज अब भी व्यक्तिगत साख और मोदी की वजह से बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि अतिआत्मविश्वास जोखिमभरा हो सकता है। आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार किस तरह रहता है, इस पर कुछ हद तक नतीजे निर्भर करेंगे। देखना है आगे क्या होता है।
वोट खूब गिरे, मिलेंगे किसे?
बस्तर में सबसे कम मतदान बीजापुर विधानसभा में करीब 43 फीसदी हुआ। धुर नक्सल प्रभावित बीजापुर में मतदान पहले भी कभी 50 फीसदी को नहीं छू पाया था। इस बार पहले की तुलना में सुरक्षा के तगड़े इंतजाम थे। किसी तरह नक्सल घटना होने पर चिकित्सकीय प्रबंध भी किए गए थे। एयर एम्बुलेंस की भी व्यवस्था थी। फिर एक घटना को छोडक़र बीजापुर में चुनाव शांतिपूर्वक निपट गया।
प्रचार का हाल यह रहा कि कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही दल के नेताओं ने बीजापुर में रैली-सभाओं से परहेज किया। और तो और कई बूथों पर दोनों ही दल के एजेंट तक नहीं थे। अंदरुनी इलाकों का हाल तो और भी बुरा था। कुल मिलाकर दोनों ही दलों ने ज्यादातर जगहों पर मतदाताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश भी नहीं की। ऐसे में यहां किस दल को बढ़त मिलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
अब की बार अनुभवी सांसद
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 11 सीटों में अपने उम्मीदवार बदल दिए थे। उसने 9 सीटों पर जीत हासिल की और सभी सांसद नए थे। कांग्रेस की सीट जीतने वाले दीपक बैज और कोरबा जीतने वाली ज्योत्सना महंत भी पहली बार संसद पहुंचीं। इस तरह पिछली लोकसभा में छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व करने वाले सभी सदस्य पहली बार संसद पहुंचे थे। मगर, इस बार हो सकता है कि कुछ अनुभवी सदस्य भी संसद पहुंचें, यदि यह मानकर चला जाए कि सभी सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला है। कोरबा ऐसी एक ही सीट है, जहां से कोई भी जीते वहां के मतदाताओं को अनुभवी सांसद मिलेगा। कांग्रेस की ज्योत्सना महंत मौजूदा सांसद रहते चुनाव लड़ रही हैं, भाजपा की सरोज पांडेय तो दुर्ग लोकसभा के अलावा राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इस बार 7 सीटें ऐसी हैं जिनमें कोई भी जीतें पहली बार लोकसभा में दिखाई देंगे। जैसे, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल और विकास उपाध्याय, सरगुजा में शशि सिंह और चिंतामणि महाराज, रायगढ़ में राधेश्याम राठिया और डॉ. मेनका सिंह, बिलासपुर में देवेंद्र यादव और तोखन साहू, जांजगीर में डॉ. शिव डहरिया और कमलेश जांगड़े, बस्तर में कवासी लखमा और महेश कश्यप तथा कांकेर में भोजराज नाग और वीरेश ठाकुर के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दे रहा है। ये सभी पहली बार लोकसभा पहुंचने के लिए मैदान में हैं। दुर्ग से भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल, महासमुंद से कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू, राजनांदगांव से भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय पहले संसद पहुंच चुके हैं।
जो उम्मीदवार इस बार मैदान में हैं, उनमें तीन सरोज पांडेय, ताम्रध्वज साहू और विजय बघेल ऐसे हैं, जो लोकसभा के अलावा विधानसभा में भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इन तीनों के अलावा चिंतामणि महाराज, देवेंद्र यादव, तोखन साहू, डॉ. शिव डहरिया, बृजमोहन अग्रवाल, विकास उपाध्याय, विजय बघेल, भूपेश बघेल, कवासी लखमा और भोजराज नाग ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके पास विधानसभा में प्रतिनिधित्व का अनुभव है।
आसार यही है कि कांग्रेस भाजपा के बीच सीटों का बंटवारा कुछ भी हो, इस बार जो लोकसभा में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व पिछली बार से अधिक अनुभवी नेताओं का रहेगा।
शॉपिंग मॉल कल्चर
प्रकृति ने भुट्टा या मकई की खुद ही अच्छी पैकिंग कर रखी है लेकिन फिर भी शॉपिंग मॉल या सुपर बाजार यह प्लास्टिक बैग में पैक करके बेचा जा रहा है। केले का छिलका उतारकर उसे भी एयरटाइट प्लास्टिक पाउच में पैक करके बेचने के लिए सजाया जा रहा है। पैकिंग पर बार कोड के साथ छिले हुए भुट्टे, छिले हुए केले नहीं लिखे होंगे बल्कि लिखा होगा- पील्ड कॉर्न कॉब या पील्ड बनाना।
दूजराम कितना बटोर पाते हैं?
बहुजन समाज पार्टी कोरबा सीट से पामगढ़ के पूर्व विधायक दूजराम बौद्ध को प्रत्याशी बनाया है। दूजराम बौद्ध चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं थे, और उन्होंने अपनी कमजोर माली हालत का हवाला भी दिया था। बावजूद इसके केन्द्रीय नेतृत्व में उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया।
बौद्ध को एक ईमानदार नेता माना जाता है। वो न सिर्फ अनुसूचित जाति वर्ग बल्कि दूसरे समाजों में भी लोकप्रिय हैं। बताते हैं कि पार्टी ने उन्हें यह कहकर चुनाव लडऩे के लिए मनाया कि चुनाव का सारा खर्च पार्टी वहन करेगी। जानकारों का मानना है कि यदि दूजराम को कोरबा के बजाए जांजगीर-चांपा से प्रत्याशी बनाया जाता, तो वो पार्टी के परम्परागत वोटों से ज्यादा वोट हासिल कर सकते थे।
कोरबा दूजराम के लिए नया क्षेत्र है, और बसपा का यहां ज्यादा आधार नहीं है। विधानसभा चुनाव में तो बसपा, और गोंगपा मिलकर चुनाव लड़ रही थी। इस बार लोकसभा का चुनाव दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। कोरबा में गोंगपा का अच्छा आधार है। यहां के एक विधानसभा क्षेत्र पाली तानाखार सीट गोंगपा के पास है। ऐसे में दूजराम कितना वोट बटोर पाते हैं, यह देखना है।
खास सीटों का हाल
दूसरे चरण की तीन सीट राजनांदगांव, कांकेर, और महासमुंद में 23 तारीख तक चुनावी माहौल गरम रहेगा। राजनांदगांव से पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और महासमुंद से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू चुनाव मैदान में है। ये दोनों हॉट सीट बन गई है। तीनों सीटों पर 26 तारीख को मतदान होगा।
भाजपा ने दोनों सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए ताकत झोंक दी है। पीएम नरेन्द्र मोदी की महासमुंद के धमतरी, योगी आदित्यनाथ की कवर्धा, जेपी नड्डा की कांकेर, और अमित शाह की भी सभा हो रही है। कांग्रेस ने राजनांदगांव के डोंगरगांव, और बालोद में प्रियंका गांधी की सभा की तैयारी की है। प्रियंका और योगी आदित्यनाथ एक ही दिन यानी 21 तारीख को राजनांदगांव के संसदीय क्षेत्र में प्रचार पर रहेंगे। तापमान बढऩे के साथ-साथ यहां का माहौल गरम रहेगा।
प्रवेश की एक और खेप
कांग्रेस नेताओं की एक और खेप भाजपा में आने की तैयारी कर रही है। ये नेता दूसरे चरण की सीटों से आते हैं। चर्चा है कि इन नेताओं को पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष भाजपा में प्रवेश कराया जा सकता है।
हालांकि कांग्रेस ने पूर्व विधायक धनेंद्र साहू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है, जो नाराज नेताओं से चर्चा कर रही है। इन नेताओं को भाजपा में शामिल होने से रोकने के लिए मान मनौव्वल भी हो रही है। समिति का हाल यह है कि कई नेता पार्टी छोड़ चुके होते हैं, तब उनके पास फोन पहुंचता है। साहू कमेटी को नाराज नेताओं को पार्टी छोडऩे से रोकने में कितनी मिलती है, यह देखना है।
नये सत्र में स्कूलों का हाल कैसा है?
छत्तीसगढ़ में प्राइमरी और मिडिल स्कूल की पढ़ाई का स्तर चिंताजनक है। सन् 2022 में आई ‘असर’ की रिपोर्ट में गुणवत्ता के क्रम में छत्तीसगढ़ में काफी नीचे 27वें नंबर पर था। इधर अभी केरल हाईकोर्ट का एक आदेश चर्चा में है। वहां की एक स्कूल के खेल मैदान में ग्राम पंचायत ने पानी टंकी का निर्माण करने का निर्णय लिया। शाला विकास समिति ने इसका विरोध किया। पंचायत के खिलाफ उसे हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सुनवाई का दायरा बढ़ा दिया। उसने प्रदेश के उन सभी स्कूलों की रिपोर्ट मांगी जहां खेल मैदान नहीं हैं। ऐसे सभी स्कूलों की सूची शिक्षा विभाग ने दी और हाईकोर्ट ने उन्हें बंद करने का आदेश दिया है, जब तक मैदान की सुविधा नहीं हो जाती।
छत्तीसगढ़ में असर की रिपोर्ट में खेल और खेल मैदान की स्थिति में बीते पांच साल के भीतर सुधार आने का ब्यौरा है। जैसे खेल मैदान वाले स्कूलों की संख्या 2018 में 68.8 प्रतिशत थी जो बढक़र 2022 में 71 प्रतिशत हो गई। खेल सामग्री भी इसी अवधि में 49.6 प्रतिशत से बढक़र 90.4 प्रतिशत हो गई। पर शेष अधिकांश मापदंडों में स्थिति खराब है। जैसे लड़कियों के उपयोग करने लायक शौचालयों की संख्या 75.7 प्रतिशत से घट कर 60 प्रतिशत हो चुकी है। जिन स्कूलों में एक भी उपयोग करने लायक शौचालय है, उनकी संख्या भी 85.7 प्रतिशत से गिरकर 71.3 प्रतिशत रह गई।
स्कूलों में बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने में सरकार की विफलता को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले अक्टूबर में कहा था कि जो मजदूर दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाते उनको भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए सरकार मजबूर कर रही है। सरकारी स्कूलों में शौचालय, पेयजल और खेल मैदान की सुविधा नहीं है।
अपने यहां छत्तीसगढ़ में खेल मैदान और शौचालय की स्थिति कैसी है, इस पर बाद में सोचा जाता है। सत्र शुरू होने पर स्कूल भवनों के जर्जर होने की खबर पहले आती है। पिछले साल कई स्कूलों में छज्जा गिरने, छत से पानी रिसने की घटनाएं हुईं। कुछ मामलों में तो छात्र और शिक्षक बाल-बाल बचे। अब नया शिक्षा सत्र फिर शुरू होने वाला है। क्या शाला प्रवेशोत्सव मनाने वाले जनप्रतिनिधि अभी से इन स्कूलों की सुध लेना चाहेंगे?
चिरपोटी टमाटर की छलांग
केंद्र सरकार की इकाई पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ने छत्तीसगढ़ के चिरपोटी टमाटर को हाल ही में धमतरी बंशीलाल सोरी के नाम पर पंजीकृत किया है। वैसे 2021 की एक खबर यह भी है कि इसी प्राधिकरण ने बलरामपुर-रामानुजगंज के किसान रामेश्वर तिवारी के नाम पर इसे पंजीकृत किया था। वह पंजीयन 6 साल का था। दो बार पंजीयन अलग-अलग किसानों के नाम पर क्यों किया गया यह अलग सवाल है, पर इसे संरक्षण देने की ओर जरूरत तो काफी समय से महसूस की जा रही है, जो प्राधिकरण ने किया है। जब से हाईब्रिड टमाटर की खेती बढ़ी, लोगों ने चिरपोटी टमाटर उगाना कम कर दिया। अंगूर जैसे छोटे छोटे आकार के इस टमाटर में जो स्वाद है, वह हाईब्रिड में नहीं मिलता। कुछ वैज्ञानिक शोध कर चुके हैं, जिसमें इसे कैंसर, हृदय और मधुमेह के रोगियों के लिए उपयोगी बताया गया है। चिरपोटी की खेती की जाती है पर बाडिय़ों में अपने आप भी उग जाता है, ज्यादा देखभाल की जरूरत भी नहीं पड़ती। प्राधिकरण में पंजीयन के बाद अब जीआई टैग भी मिलने की बारी है, जिससे यह तय हो पाएगा कि यह सब्जी विशिष्ट रूप से छत्तीसगढ़ की है।
रामविचार का कमाल
आखिरकार पूर्व संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी भाजपा में शामिल हो रहे हैं। सोरी कांकेर सीट से कांग्रेस के विधायक रहे हैं। वो प्रदेश कांग्रेस के अजजा विभाग के चेयरमैन भी रह चुके हैं। सोरी की विधानसभा टिकट काट दी गई थी। इसके बाद वो कांकेर सीट से लोकसभा की टिकट चाहते थे। मगर पार्टी ने उन्हें महत्व नहीं दिया।
चर्चा है कि सोरी को भाजपा में लाने में कृषि मंत्री रामविचार नेताम की अहम भूमिका रही है। सोरी आईएएस अफसर रह चुके हैं, और जब रामविचार नेताम गृहमंत्री थे तब वो गृह विभाग में पदस्थ थे। दोनों के बीच बेहतर रिश्ते रहे हैं।
सोरी ने रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की। वजह यह थी कि रामविचार वर्ष-2013 के विधानसभा का चुनाव हार गए थे। यद्यपि उन्हें बाद में राज्यसभा में भेजा गया था, लेकिन पार्टी के भीतर ज्यादा ताकतवर नहीं रहे। अब प्रदेश में आदिवासी सीएम हैं, और रामविचार नेताम भी मजबूत हैं। ऐसे में उन्होंने भाजपा का दामन थामना उचित समझा। देखना है कि सोरी को भाजपा में क्या कुछ मिलता है।
कोरबा और कोयला
कोरबा का नाम भी कोयले के को से ही पड़ा होगा। सो हाल के वर्षों में दोनों का प्रदेश की राजनीति में गहरा गठजोड़ रहा है। इस चुनाव में भी कोरबा के कोयले की कालिख फिर चर्चा में है। इस बार कोरबा के स्थानीय और बाहरी नेताओं के बीच कोयला बंट गया है। पक्ष विपक्ष दोनों के अंदरखाने इस बंटवारे की चर्चा होने लगी है। और उसी के अनुरूप दोनों ही रोज नई बिसात बिछा रहे हैं। कोरबा वासी, कोयले के छोटे से छोटे काम से लेकर बड़े बड़े ठेके में इन्वॉल्व हैं। ऐसे में उन्हे लगता है कि कहीं आने वाले दिनों में यह काम दुर्ग भिलाई ,हरियाणा के लोगों के हाथ न चले जाए। इन दिनों यहीं लोगों की सक्रियता भी पूरे क्षेत्र में बढ़ गई है। अब देखना यह है कि इसका तोड़ स्थानीय कैसे निकालते हैं।
पेड़ से लिपटने की कीमत
जापान में शिनरिन योकू यानि वन स्नान बहुत पुरानी प्रथा है, जिसमें जंगल के शांत माहौल में सैर किया जाता है और घंटों पेड़ों से लिपटकर मानसिक शांति का अनुभव लिया जाता है और प्रकृति प्रेम को दर्शाया जाता है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु में भी पिछले 10 साल से फरवरी के दूसरे सप्ताह में ट्री फेस्टिवल नेरालू मनाया जाता है। नेरालू उत्सव क्राउड फंडिंग से होता है। इसमें लोगों को क्लाइमेंट चेंज के प्रति जागरूक किया जाता है। इसमें हर साल लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। इस सफलता से कुछ लोगों के दिमाग में बिजनेस का आइडिया आ गया। बेंगलुरु के कब्बन पार्क में पेड़ों से लिपटने का अनुभव लेने के लिए एक विज्ञापन सोशल मीडिया पर जारी किया गया है। विज्ञापन देने वाली कंपनी ट्रोव एक्सपेरियंस ने कहा है कि 2.5 घंटे तक आप पेड़ों से लिपटकर रह सकते हैं, इसके लिए 1500 रुपये चार्ज किए जाएंगे।
इस पेशकश को लाखों लोग देख चुके हैं और बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया है। बहुत से यूजर्स ने इसकी आलोचना और उपहास में प्रतिक्रिया दी है। जैसे एक ने कहा है कि आप कब्बन पार्क जाकर घास से लिपट सकते हैं, क्योंकि अभी वह मुफ्त है। कई लोगों ने इसे नए तरह का स्कैम करार दिया है।
दूसरी तरफ ट्रोव एक्सपेरियंस ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि जैसे-जैसे हमारे शहरों का विस्तार हो रहा है, हम मनोरंजन के लिए दोहराव वाली चीजें करने लगते हैं। ट्रोव के जरिये आपको अपनी एकरसता को तोडऩे और अपने शहर में नई गतिविधियों का पता लगाने में सहायता मिलेगी। हम उन ठिकानों के बारे में बताते हैं, जहां कोई कलाकार, रचनाकार या कहानीकार अपने अनुभव के खजाने को समृद्ध कर सकेगा।
अपने छत्तीसगढ़ में पेड़ों को बचाने का संघर्ष थोड़ा बड़ा है। हसदेव के पेड़ों को बचाने के लिए 300 किलोमीटर की कठिन यात्रा करनी पड़ती है। 6 अप्रैल 2023 को जब भूपेश बघेल की सरकार के दौरान पेड़ों की कटाई शुरू हो गई थी तो चिपको आंदोलन की तर्ज पर महिलाएं पेड़ों से लिपट गई थीं। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में नई सरकार के अस्तित्व में आने के पहले ही हजारों पेड़ काट दिए गए। शेष जंगल को बचाने के लिए अब भी अनिश्चितकालीन आंदोलन चल रहा है।
मांग नहीं सुनेंगे, जेल भेज देंगे
समय रहते समस्या नहीं सुलझने पर यदि नागरिक सडक़ पर उतरकर रोष जताते हैं तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाती है, पर समस्या लटका कर रखने के लिए प्रशासन खुद को जवाबदेह नहीं मानता। पिछले कई सालों से बालकोनगर से कोरबा और दर्री की ओर जाने वाली सडक़ डेंजर जोन बन चुकी है। परसाभाठा चौक से बजरंग चौक के बीच बालको की राखड़ भरी भारी गाडिय़ों का आना जाना होता है और आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं। बीते शनिवार को एक भारी वाहन की चपेट में आने से एक ऑटो चालक की मौत हो गई और उसमें सवार पांच लोग घायल हो गए। नागरिकों और ऑटो चालक संघ ने चक्काजाम कर दिया । पुलिस ने इस मामले में 40 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज किया है। वीडियो फुटेज से लोगों की पहचान की जाएगी।
दूसरी ओर, बालको के लिए वैकल्पिक सडक़ बनाने की मांग कई वर्षों से की जा रही है। मौजूदा मंत्री लखन लाल देवांगन भी मांग करने वालों में शामिल थे। विकल्प मौजूद है, पर इसका सर्वेक्षण भी अब तक नहीं किया गया। चक्काजाम लगातार दुर्घटनाओं के कारण आक्रोशित लोगों ने किया, पर जिनकी लापरवाही से अब तक भारी गाडिय़ां दौड़ रही हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन ने अभी भी भारी गाडिय़ों की आवाजाही इसी घनी आबादी वाले इलाके से चालू रखने का निर्णय लिया है। दुर्घटना के बाद सडक़ चौड़ी करने का प्रस्ताव बनाया जा रहा है। लोग इसका भी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सडक़ चौड़ी करने की जरूरत तो है, पर इसलिये नहीं कि भारी गाडिय़ों को छूट मिले। मंत्री ने आचार संहिता लागू होने के कारण अपने हाथ बंधे होने की बात कही है। कह रहे हैं कि चुनाव खत्म होने के बाद कड़ी कार्रवाई होगी।
चाचा की मेहनत रंग लाई
मौजूदा साल के यूपीएसपी के नतीजों में छत्तीसगढ़ पुलिस के आईजी बीएन मीणा के घर की बेटी ने भी कमाल किया है। बद्रीनारायण की भतीजी नेहा मीणा ने 569वीं रैंक हासिल कर आईपीएस के लिए अपनी जगह पक्की कर ली है। बताते है कि नेहा ने यूपीएसपी की शुरूआत से नतीजे तक की तैयारी अपने चाचा बीएन मीणा की देखरेख में की। हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल आईपीएस ट्रेनिंग सेंटर में पहुंचाने के लिए मीणा ने किताबों के कलेक्शन से लेकर देश-दुनिया की ज्ञानवर्धक विषयों से भतीजी की बौद्धिक क्षमता को मजबूत किया। नेहा के पिता श्रवण मीणा इंडियन रेवन्यू सर्विस के अफसर है।
सुनते है कि बीएन मीणा अपने परिवार के बच्चों के कैरियर को लेकर बेहद गंभीर है। राजधानी रायपुर में वह न सिर्फ नेहा समेत अपने भाईयों और बहनों के बच्चों को यूपीएसपी एक्जाम के लिए अपने अनुभव के जरिए तैयारी पर फोकस कर रहे है। नेहा ने छत्तीसगढ़ के इतिहास को लेकर साक्षात्कार में पूछे गए सवालो का सही जवाब दिया। नेहा के आईपीएस चुने जाने से मीणा परिवार के घर की अन्य बेटियों के लिए आगे बढऩे का द्वार खुल गया।
प्रचार से दूरी के बाद भी...
चर्चा है कि ईडी की रेड के बाद से पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और उनके समर्थक प्रचार में पूरी तरह जुट नहीं पा रहे हैं। भगत सरगुजा से प्रत्याशी शशि सिंह के नामांकन दाखिले के मौके पर मौजूद तो थे, लेकिन कुछ देर बाद वहां से निकल गए। भगत, और उनके तमाम करीबी लोग ईडी की जांच के घेरे में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता अमरजीत से दूरी बनाकर चल रहे हैं।
अमरजीत ने अपने विधानसभा क्षेत्र सीतापुर में विकास के काफी काम कराए हैं, और तो और चुनाव के पहले उन्होंने हर मतदाताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश भी की। साड़ी, टी-शर्ट खूब बटवाए थे, लेकिन वो भाजपा के रामकुमार टोप्पो के आगे नहीं टिक पाए। अब लोकसभा चुनाव प्रचार में भले ही अमरजीत ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, लेकिन वहां कोई भी सभा हो, एक-दो ग्रामीण अमरजीत भगत की गिफ्ट की हुई टी-शर्ट पहने नजर आ जाते हैं। टी-शर्ट पर लिखा होता है-सीतापुर विधायक अमरजीत भगत।
खाली अफसर छाँट रहे डीजीपी
पुलिस मुख्यालय में खाली बैठे अफसर इस बात की चर्चा करने लगे हैं कि कौन खुशनसीब होगा, जिसे सरकार पुलिस का मुखिया बनाएगी। कुछ नाम तो पहले ही तैर रहे हैं, लेकिन कुछ चौंकाने वाला फैसला भी हो सकता है। हालांकि यह भीतर ही भीतर चल रही है, क्योंकि सरकार का फोकस अभी चुनाव कराना है। 4 जून को चुनाव परिणाम आएगा। नई सरकार के गठन की प्रक्रिया में जून महीना निकल जाएगा। अगस्त में डीजीपी अशोक जुनेजा का कार्यकाल खत्म होगा।
वैसे खुशनसीब जुनेजा ही हैं, जो सत्ता परिवर्तन के बाद भी पद पर बने हुए हैं। डीएम अवस्थी जब डीजीपी बने थे, तब यह माना गया था कि जुनेजा को यह सौभाग्य नहीं मिल पाएगा, लेकिन खुशनसीबी देखिए कि पहले करीब दस महीने अस्थाई तौर पर डीजीपी की जिम्मेदारी संभालते रहे और फिर जब गृह विभाग की मंजूरी आई तो दो साल के लिए नियुक्ति मिल गई। रिटायरमेंट के एक साल ज्यादा का मौका मिला। 5 अगस्त -22 को उन्हें दो साल के लिए पूर्णकालिक डीजीपी नियुक्त किया गया था।
स्कूल बैग पर चुनाव भारी..
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किए गए अनेक प्रावधानों में से एक यह भी है कि स्कूली बच्चों के बैग का अधिकतम वजन कितना होना चाहिए। पहली, दूसरी कक्षा के बच्चों का बस्ता अधिकतम 2200 ग्राम हो। तीसरी, चौथी और पांचवी के बच्चों का बैग अधिकतम 2.5 किलोग्राम, छठवीं, सातवीं का 3 किलोग्राम, आठवीं का 4 किलोग्राम और नवमीं, दसवीं का अधिकतम 4.5 किलो होना चाहिए। इस वजन में बैग और स्कूल डायरी का वजन भी शामिल किया गया है। सप्ताह में एक दिन नो बैग डे भी होना चाहिए। कक्षा दूसरी तक के बच्चों को कोई होमवर्क भी नहीं दिया जा सकता। इस पर निगरानी रखने के लिए स्कूलों में वजन मशीन होनी चाहिए, साथ ही नोटिस बोर्ड में चार्ट को दर्शाया जाना चाहिए।
दिल्ली और कर्नाटक दो ऐसे राज्य हैं, जहां इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने कुछ दिन पहले एक सर्कुलर निकालकर स्कूल बैग पॉलिसी का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है। छत्तीसगढ़ के किसी भी स्कूल में न तो ऐसे वजन के चार्ट दिखेंगे, न तौल मशीन। प्रत्येक शिक्षा सत्र के शुरू होने के पहले ही निजी प्रकाशकों और प्राइवेट स्कूलों के बीच साठगांठ हो जाती है। तय किताब दुकानों से भारी मात्रा में महंगी कॉपी किताबें खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। इनमें से आधी किताबें सत्र बीत जाने के बाद भी नहीं खुलतीं। बच्चों पर वजन का बोझ तो अभिभावकों की जेब पर बोझ। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में वहां के कलेक्टर ने दो बुक सेलरों के गोदामों पर छापा मारा था। वहां लाखों रुपयों की ऐसी किताबें मिली, जिन्हें प्राइवेट स्कूल के बच्चों को जबरन थमाया जाना था। पाठ्यक्रम के अनुसार उनकी जरूरत ही नहीं थी। इसके बाद कलेक्टर ने जिले के 300 से अधिक प्राइवेट स्कूलों से उनके यहां पढ़ाई जाने वाली किताबों की सूची मांगी तो अधिकांश ने जमा ही नहीं किए। अब उन पर कार्रवाई की तैयारी हो रही है। मध्यप्रदेश के जबलपुर में ही तो जिला प्रशासन ने एक अनूठी पहल की है। उसने बुक फेयर लगवाई है। इसमें हर क्लास के लिए जरूरी किताबों की सूची अभिभावकों को दी जा रही है। यह सूची प्राइवेट स्कूलों से ही मांगी गई है। कलेक्टर के खौफ में अनावश्यक किताबें शामिल नहीं की गई। इस बुक फेयर में न केवल कॉपी किताब बल्कि जूते, मोजे, टाई, बेल्ट, यूनिफॉर्म सब पर डिस्काउंट मिल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है? मनमानी रोकने की जिम्मेदारी जिले के प्रशासन और शिक्षा अधिकारियों की है, पर उनकी ओर से बैठकें नहीं बुलाई जा रही हैं। कुछ जिलों में डीईओ ने बैठक बुलाई तो स्कूलों के संचालक पहुंचे ही नहीं। पूरा प्रशासन इस समय चुनाव में व्यस्त है जिसका निजी स्कूल और बुक सेलर फायदा उठा रहे हैं।
धान बोनस का साइड इफेक्ट
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर की आरएल रिछारिया प्रयोगशाला में धान की 24 हजार 750 प्रजातियां सुरक्षित हैं। मगर इनमें से कितनी किस्में खेतों तक पहुंच पाई हैं? छत्तीसगढ़ की सामान्य थाली में विष्णुभोग, एचएमटी चावल दिखाई देते हैं। पर इनकी कीमत धीरे-धीरे आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। विष्णुभोग इस समय 80 रुपये पार कर गया है। कुछ साल पहले तक यह 30-35 रुपये में मिल जाता था। एचएमटी की कीमत इस समय 55 से 60 रुपये है, जो 20 से 25 रुपये में उपलब्ध होती थी। इनका मांग के अनुसार उत्पादन ही नहीं हो रहा है। धान के कटोरे छत्तीसगढ़ के लिए विडंबना ही है कि 25 हजार से अधिक किस्मों की धान उगाने की क्षमता रखने वाले इस राज्य में अब आकर्षण सिर्फ मोटे धान की ओर रह गया है। मोटे धान की खेती कम खर्चीली है और प्रति एकड़ वजन भी ज्यादा मिलता है। केंद्र सरकार दोनों का ही समर्थन मूल्य हर साल तय करती है लेकिन उनमें अंतर प्रति क्विंटल 100 रुपये के आसपास ही होता है। इन पर दिया जाने वाला बोनस एक बराबर है। फिलहाल इसके कोई आसार नहीं हैं कि सरकार बारीक धान की फसल लेने के लिए कोई प्रोत्साहन नीति लाएगी, क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए उसके पास पर्याप्त वजनी मोटा धान मिल रहा है। जो लोग पतले चावल के बगैर भोजन अधूरा समझते हैं, वे विष्णु भोग खाते समय सोच सकते हैं कि उनकी थाली में बासमती है, क्योंकि कुछ समय पहले तक बासमती भी 80-85 रुपये में मिल जाता था।
कमजोर जगहों पर मेहनत
वैसे तो भाजपा के रणनीतिकार सभी 11 सीटों पर जीत को लेकर आश्वस्त हैं। मगर दो-तीन सीटों पर अतिरिक्त प्रयास की जरूरत बताई गई है। संगठन के प्रमुख नेता रोजाना फीडबैक ले रहे हैं।
चर्चा है कि पिछले दिनों तो संगठन के एक प्रमुख नेता अपनी कार के बजाए बस से कांकेर गए, और जिले की विधानसभा क्षेत्रों में जाकर पार्टी प्रत्याशी का हाल जाना।
पार्टी के पास खुफिया एजेंसियों के अलावा निजी सर्वे एजेंसियों से फीडबैक आ रहे हैं। बावजूद इसके प्रमुख नेता खुद जाकर जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं। यानी प्रयासों में किसी तरह की कोई कमी नहीं दिख रही है। नतीजे उम्मीद के मुताबिक आते हैं या नहीं, यह देखना है।
कांग्रेस की जीत?
कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि प्रदेश में पार्टी इस बार पांच सीटें जीत सकती है। हालांकि कई लोगों को यह अनुमान ज्यादा लग रहा है। वजह यह है कि राज्य बनने के बाद सबसे बेहतर प्रदर्शन 2019 के लोकसभा चुनाव में रहा है, तब पार्टी की सरकार होने के बाद भी मात्र दो सीट जीत पाई थी।
इस चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में प्रयास कम दिख रहा है। वजह यह है कि प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं है। फिर भी दो-तीन सीटों पर पार्टी प्रत्याशी कांटे की टक्कर देते दिख रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह पार्टी प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि भी है। इन सीटों पर पार्टी प्रत्याशी साधन-संसाधनों में भाजपा प्रत्याशी से पीछे नहीं है। देखना है कि चुनाव नतीजे 2019 से बेहतर रहते हैं अथवा नहीं।
सबसे तजुर्बेकार उम्मीदवार
पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चुनाव की बागडोर खुद ही संभाल रहे हैं। इससे पहले 7 बार रमेश बैस के चुनाव संचालक थे। और फिर सुनील सोनी के चुनाव संचालक रहे।
बृजमोहन ने इस बार मंडलों की बैठक भी खुद ले रहे हैं। इससे पहले तक न तो बैस, और न ही सुनील सोनी मंडलों की बैठक में गए थे। रायपुर लोकसभा में 36 मंडल आते हैं, और पहली बार बृजमोहन ने मंडलों की बैठक में जाकर कार्यकर्ताओं से रूबरू हुए।
यही नहीं, हर गांव में पार्टी के शक्ति केन्द्रों की बैठक में भी वो पहुंच रहे हैं। बृजमोहन और उनके लोगों ने देश में सबसे ज्यादा लीड से जीतने की कोशिश में लगे हैं। खुद सीएम विष्णुदेव साय ने बृजमोहन की नामांकन रैली में सबसे ज्यादा वोटों से जीताने का आव्हान किया है। वाकई रिकॉर्ड बनेगा या नहीं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
न एडवांस वापस, न काम
प्रशासनिक गलियारे में एक दो अफसरों को लेकर यह चर्चा है कि उन्होंने कांग्रेस की सरकार में वापसी की उम्मीद से कुछ ठेकेदारों से एडवांस में पैसे लेकर पार्टी फंड में मदद की थी। अब इन अफसरों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। कांग्रेस की सरकार बनती तो कुछ अच्छी पोस्टिंग मिलती। सरकार तो चली गई और उल्टे ठेकेदार पीछे पड़ गए हैं। काम मिलना तो दूर पैसे भी वापस नहीं मिल रहे। अफसर किसी तरह यह बात छिपाना चाह रहे हैं, ताकि सत्ता पक्ष तक बात न पहुंचे। लेकिन ठेकेदारों ने तो अपना दर्द जगह-जगह बयां कर दिया है। बेचारे अफसर यह नहीं समझ पा रहे कि इसे कैसे मैनेज करेंगे।
अब चुनावी रोजगार पर खतरा..
आर्टिफिशियल इंटिलेंस ( एआई ) को लेकर दुनियाभर में एक तरफ रोमांच है तो दूसरी ओर चिंता है कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी। दूसरे क्षेत्रों के अलावा पांच साल में एक बार आने वाले चुनाव पर भी इसका असर दिख रहा है। पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) ने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने वाली भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी से आगे जाकर एआई एंकर को चुनाव प्रचार में उतार दिया है। एक वीडियो में समता नाम की एंकर संदेशखाली हिंसा और गार्डन रीच में निर्माणाधीन कॉम्पलेक्स के ढह जाने पर 12 लोगों की मौत हो जाने के मुद्दे पर टीएमसी और भाजपा को घेरा है। यू-ट्यूब, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसे लाखों लोगों ने देखा है। टीएमसी और भाजपा दोनों ने ही एआई के जरिये प्रचार करने के फैसले की आलोचना की है। टीएमसी का कहना है कि तीन दशक तक बैंकों और एलआईसी में कम्प्यूटर का विरोध करने वाली सीपीआई (एम) आज कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही है, जिसके चलते उसे एआई की मदद लेनी पड़ रही है। वैसे तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में के चंद्रशेखर राव व तमिलनाडु में करुणानिधि का एआई अवतार पहले उतारा जा चुका है, जिसमें वे वोटों के लिए अपील करते हुए दिखे हैं। पर एआई एंकर के चुनावी भाषण का यह पहला प्रयोग है।
मगर, सोचिये छोटे दल और निर्दलीय जिनके पास सचमुच कार्यकर्ता और फंड नहीं हैं, उनको अपनी बात एआई के जरिये पहुंचाने में कितनी मदद मिल सकती है? दिक्कत तो उन मजदूरों और युवाओं की है, जिनको झंडा उठाने, बैनर लगाने, रैली में भीड़ बढ़ाने के दिनों में बड़े दलों से कुछ दिन रोजगार मिल जाता है। आने वाले सालों में एआई उनसे यह काम कहीं न छीन ले।
प्रवासी की झोपड़ी में आग
मैनपाट के पास बरिमा गांव में तीन बच्चों की जल जाने से हुई मौत के दर्दनाक हादसे ने अंतिम छोर पर योजनाओं का लाभ पहुंचाने के सरकारी दावों की कलई खोल दी है। महिला अपने तीन मासूम बच्चों के साथ घर पर रहती थी और पति कमाने-खाने के लिए बाहर गया था। यह मांझी परिवार है, जिसे अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। पहले आदिवासी परिवार कमाने खाने के लिए प्रवास पर नहीं जाते थे। वे अपनी आजीविका की तलाश वन और गांवों में ही करते थे। घर के मुखिया का प्रवासी होना यह बताता है कि यहां उसे वन विभाग से या मनरेगा से काम नहीं मिल रहा था। मिला भी हो तो इतना कम कि परिवार चलाना मुश्किल रहा हो। आग लगने के बारे में कहा जा रहा है कि अंगीठी जलती छोडक़र महिला अपने सोते हुए बच्चों को छोडक़र पड़ोस में चली गई। छप्पर से अंगीठी में घास फूस गिरा और झोपड़ी में आग लग गई। इसका मतलब यह है कि उसे पक्का मकान बनाने की किसी सरकारी योजना से लाभ नहीं मिला। मां को अनहोनी की आशंका होती तो शायद अंगीठी बुझाकर पड़ोस में जाती। या फिर वहां खाना खाने के लिए नहीं ठहर जाती। तीनों बच्चों की जान तब बच सकती थी। सरगुजा कलेक्टर ने मौके पर जाकर परिवार को ढाढस बंधाया और 12 लाख की मदद करने की घोषणा की है। पर सरकार क्या इस बात को मानेगी कि उनके लोकलुभावन कार्यक्रमों का जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंच रहा है।
रमन सिंह तस्वीर से बाहर
भाजपा सभी सीटों को जीतने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इस बार प्रदेश भाजपा का चेहरा रहे पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। वजह यह है कि वो विधानसभा अध्यक्ष होने के नाते पार्टी की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते हैं। ऐसे में रमन सिंह की जगह सीएम विष्णुदेव साय ने लिया है।
साय प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में सभाएं ले रहे हैं। रोजाना 3-4 क्षेत्रों में सभाएं ले रहे हैं। सीएम साय पार्टी का आदिवासी चेहरा भी है। सीएम के प्रचार से आदिवासी समाज का पार्टी को भरपूर समर्थन मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। साय पूरे प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। वो प्रत्याशियों के नामांकन दाखिले के मौके पर भी साथ रहे हैं। पार्टी ने इस बार सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। देखना है कि पार्टी को इसमें कितनी सफलता मिलती है।
भूपेश का खेल आदिवासी वोटों पर
राजनांदगांव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां भाजपा प्रत्याशी संतोष पाण्डेय से कांटे का मुकाबला है। भूपेश रोज 20-25 गांवों का दौरा कर रहे हैं। पार्टी के आदिवासी इलाके मानपुर-मोहला, खैरागढ़, और कवर्धा के रेंगाखार इलाके में विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि आदिवासी इलाकों में पार्टी को अच्छी बढ़त मिलती है, तो भूपेश की राह आसान हो जाएगी। वैसे भी विधानसभा चुनाव में मानपुर मोहला से कांग्रेस प्रत्याशी इंदरशाह मंडावी अच्छे वोटों से जीते थे। खैरागढ़ में भी कांग्रेस के विधायक हैं। नांदगांव शहर से पिछड़ते भी हैं, तो आदिवासी इलाकों से भरपाई हो सकती है। मगर वाकई ऐसा होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद साफ हो पाएगा।
कांग्रेस समर्थित अफसर
2018 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस 68 सीटें जीती थी, तब आईएएस और आईपीएस अफसरों का एक वर्ग था, जो 2019 के चुनाव में कांग्रेस को 9- 10 और भाजपा को एक दो सीटें मिलने का दावा कर रहा था।
इन अफसरों ने हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दोबारा जीत का दावा किया था। दोनों में फेल हो गए। अब ये सार्वजनिक रूप से कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। डर है, कहीं ऊंच नीच हो गई तो बेवजह पांच साल के लिए सरकार से अदावत हो जाएगी। लूप लाइन की पोस्टिंग से उबरने का मौका नहीं मिलेगा वो अलग।
साइबर ठगों के निशाने पर बोर्ड परीक्षार्थी
छत्तीसगढ़ पुलिस ने बोर्ड परीक्षा देने वाले विद्यार्थी और उनके पालकों को आगाह किया है कि अंक सूची में नंबर बढ़ाने या फेल छात्रों को पास कराने का झांसा देने साइबर ठग सक्रिय हो गए हैं। ये ठग पहले छात्रों को फोन करके बताते हैं कि उसे किस विषय में कितना कम अंक मिला है और कितना बढ़ा देंगे। फिर यह भी झांसा देते हैं कि किस बैंक खाते पर या ऑनलाइन वालेट पर पैसे डालने हैं। फोन करने वाला अपने आपको माध्यमिक शिक्षा मंडल का कर्मचारी या कम्प्यूटर ऑपरेटर बताता है। भरोसा जीतने के लिए वह यह भी कहता है कि पैसे मिलते ही वह अंक सूची को उसके वाट्सएप पर डाल देगा। काम नहीं हुआ तो पूरे पैसे वापस भी कर देगा।
साइबर ठगों के ज्यादातर फोन झारखंड, बिहार और दिल्ली से आ रहे हैं। सवाल उठता है कि ठगों को छात्रों के फोन नंबर और डिटेल कैसे मिल रहे हैं। गूगल पर आप सर्च करें- स्टूडेंट्स डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट। दर्जनों वेबसाइट्स की सूची आपके सामने स्क्रीन पर आ जाएगी। एक वेबसाइट यह दावा करता है कि उसके पास भारत का सबसे बड़ा डेटा कलेक्शन है। करीब 100 करोड़ रिकॉर्ड्स मौजूद हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत प्रामाणिक हैं। हर सप्ताह डेटा अपडेट होता है। हजारों हैप्पी क्लाइंट्स हैं। जानकार बता रहे हैं कि कुछ हजार रुपयों में ये डेटा उपलब्ध करा दिए जाते हैं, जिनमें फोन नंबर ही नहीं बल्कि वे दस्तावेज जो आपकी पहचान और शैक्षणिक योग्यता को दर्शाते हैं- भी शामिल हैं। विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंडलों की वेबसाइट्स पर डेटाबेस में प्रवेश करने के लिए लॉगिन पासवर्ड की जरूरत पड़ती है। साइबर विशेषज्ञ बताते हैं कि या तो इन परीक्षा लेने वाली संस्थाओं की वेबसाइट्स को क्रेक कर लिया जाता है, या फिर वहां काम करने वाले कर्मचारियों से साठगांठ की जाती है। हाल ही में एक टीवी चैनल ने बताया है कि ये ठग महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी सक्रिय हैं। उसने ठगी के शिकार कई विद्यार्थियों से बात भी की। इससे पता चलता है कि कौन सा छात्र किस विषय में कमजोर है, और उसे फेल होने का डर है- यह भी ठगों को मालूम है। वे छात्रों को उनका इनरोलमेंट नंबर भी बताते हैं। कई छात्र 10-20 से लेकर 50 हजार रुपये तक गवां चुके हैं। रकम मिलने के बाद ठग उसका नंबर ब्लॉक कर देता है।
इस समय चुनाव चल रहे हैं। पिछले कई चुनावों में हमने पाया है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों के प्रत्याशी आपको कॉल कर वोट देने की अपील करने कहते हैं, जबकि आप उसके वोटर ही नहीं हैं। ये सब नंबर ऐसे ही डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट्स उपलब्ध कराते हैं।
पुलिस ने सतर्क रहने के लिए तो कह दिया है लेकिन जो वेबसाइट्स खुले आम आपकी निजी जानकारी और फोन नंबर की नीलामी कर रहे हैं, उन पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है।
शाह के जाने के बाद बस्तर बंद
पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले बस्तर प्रवास के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लक्ष्य रखा था कि लोकसभा चुनाव के पहले नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। अब कल खैरागढ़ की आमसभा में उन्होंने इसके लिए तीन साल मांगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद नक्सल हिंसा से निपटने के लिए तेजी से काम हो रहे हैं। सीएम साय और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के चार माह में ही 56 नक्सली मारे गए, 150 को गिरफ्तार किया गया और 250 ने सरेंडर किया।
पिछले एक साल के भीतर बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर में नक्सलियों ने अनेक भाजपा नेताओं की हत्या की है। इसे भाजपा ने टारगेट कीलिंग भी बताया। इस बीच गृह मंत्रालय ने पैरामिलिट्री फोर्स की कई नई बटालियनों को बस्तर में तैनात किया है और नए कैंप भी खोले जा रहे हैं। इससे साफ है कि भाजपा की केंद्र व राज्य की सरकार नक्सलियों की हिंसा का जवाब अधिक आक्रामक तरीके से देना चाहती है। इसी आक्रामकता के विरोध में नक्सलियों ने 15 अप्रैल सोमवार को बंद का आह्वान किया है। यह बंद पांच राज्यों में करने का ऐलान सोशल मीडिया के जरिये किया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा शामिल हैं। बंद की घोषणा 3 अप्रैल को कर दी गई थी। नक्सलियों का विरोध सुरक्षा बलों द्वारा लगातार चलाये जा रहे सर्चिंग अभियान और उनमें अपने साथियों के मारे जाने पर है। वे कथित तौर पर बेकसूर ग्रामीणों पर गोली चलाने के विरोध में भी हैं। बस्तर में 19 अप्रैल को मतदान है। दो दिन बाद यहां चुनाव प्रचार समाप्त हो जाएगा। ऐसे समय में जब बस्तर के विभिन्न जिलों में प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी चुनाव की तैयारी में लगे हैं, बंद की नक्सली अपील ने नई चुनौती खड़ी कर दी है। पुलिस प्रशासन ने व्यापारिक, सामाजिक संगठनों, ट्रांसपोर्टरों के साथ बैठक लेकर बंद को विफल करने की अपील की है। वैसे भी बंद के आह्वान के बगैर भी कई इलाके इतने संवेदनशील हैं कि राजनीतिक कार्यकर्ता प्रचार के अंतिम दौर में भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। नक्सलियों ने वैसे तो जगह-जगह चुनाव बहिष्कार के बैनर लगा रखे हैं। पर बस्तर में वोट का प्रतिशत तो हर बार बढ़ा है। ऐसे में अंदरूनी खबरें आ रही कि नक्सली चाहते हैं कि जो वोट पड़ रहे हैं वे भाजपा के पक्ष में न हों। सच क्या है, इसका अनुमान चुनाव परिणाम आने से लगाया जा सकेगा।
मोदी को गाली
भाजपा और मोदी विरोधी बयानों के लिए कन्हैया कुमार को सुनने और तालियां बजाने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन शनिवार को तो हद हो गई। कन्हैया कुमार जब मीडिया में बाइट दे रहे थे, तब पीछे से किसी ने मोदी को भद्दी गाली दी। उस समय कन्हैया कुमार के साथ विधायक दिलीप लहरिया, जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विजय केशरवानी साथ ही खड़े थे। किसी ने विरोध नहीं किया। यह वीडियो अब वायरल है, लेकिन कांग्रेस गाली देने वाले पर कार्रवाई तो दूर कुछ बोलने से बच रहे है। हालांकि पुलिस कन्हैया के पीछे खड़ी इसी भीड़ में से युवक को तलाश रही है।
किसका रिकॉर्ड टूटेगा, किसका बनेगा?
मप्र के गुना और विदिशा से खबर आ रही है कि श्रीमंत और मामा में कौन रिकार्ड वोट से जीतेगा। वैसे मामा ने 9 लाख वोट के अंतर का टारगेट रखा है । कुछ ऐसी ही चर्चाएं अपने यहां भी रायपुर और दुर्ग को लेकर हो रही हैं। भाजपा के दोनों ही प्रत्याशी लोकल ही हैं और सभी वर्गों में चर्चित स्वीकार्य । वैसे पिछली बार दुर्ग ने रिकॉर्ड बनाया था । क्या दुर्ग अपना ही रिकॉर्ड तोड़ेगा या रायपुर। वैसे पिछली बार रायपुर ने भी अपने संसदीय इतिहास में सर्वाधिक लीड का रिकॉर्ड बनाया था और प्रदेश में दूसरे नंबर पर था। बिलासपुर, महासमुंद में भी दावे किए जा रहे हैं, लेकिन कुछ दिक्कतें हैं। 4 जून को देखना होगा कि पदक तालिका में कौन रिकार्ड बनाता है।
चुनाव और जॉइनिंग
चुनावी आपाधापी के बीच प्रशासनिक हलचल भी जारी है। 1991 बैच के आईएएस सोनमणि बोरा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटकर मंत्रालय में जॉइनिंग दे दी है। तो 2021 बैच के युवराज बरमट ने कैडर बदलकर तेलंगाना ज्वाइन कर लिया है। वहां की आईपीएस से विवाह के बाद कॉमन कैडर के तहत आईएएस पति ने यह च्वाइस किया है। बोरा को आए पखवाड़े भर से अधिक हो गया है, लेकिन चुनावी चक्कर में सरकार पोस्टिंग की जल्दबाजी नहीं करना चाहती। अभी करने पर आयोग से अनुमति लेनी पड़ सकती है। इसलिए बोरा को 4 जून को नतीजों के बाद तक इंतजार करना पड़ेगा। बोरा को पिछली सरकार में भी पहले पोस्टिंग और फिर डेपुटेशन के लिए रिलीविंग को लेकर महीनों लग गए थे। वैसे बता दें कि एक और एसीएस रिचा शर्मा भी दिल्ली से विदा हो गई हैं उनकी ज्वाइनिंग के बाद दोनों को एक साथ पोस्टिंग दी जा सकती है। फिलहाल वह अवकाश पर हैं। अवकाश को बोरा भी इंजॉय कर सकते थे लेकिन ज्वाइनिंग की जल्दबाजी क्यों कर गए समझ से परे है।
पहली बार गिद्धों की गिनती
गिद्ध दृष्टि, गिद्ध भोज जैसे मुहावरों के इस्तेमाल के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण में पोषक तत्वों की रि साइकिलिंग के लिए गिद्धों का होना जरूरी है। गिद्ध मृत जानवरों के शवों को खाते हैं। इससे बीमारियां फैलने से रोकने में मदद मिलती है और पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है। मगर, बीते वर्षों में गिद्धों की आबादी तेजी से घटी है। इसके चलते मृत जानवरों की सड़ चुकी लाश से मनुष्यों और पशुओं में बीमारी, महामारी फैलने का खतरा बढ़ा है। गिद्धों को बचाने के लिए वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएशन ने एक खास अभियान चलाया है। छत्तीसगढ़ में पहली बार बीते सोमवार से शनिवार तक गिद्धों की गिनती हुई है। यह गिनती अचानकमार टाइगर रिजर्व के 500 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 5 जिलों में हुई। इनमें मध्यप्रदेश के भी 10 जिले शामिल थे।
गिद्धों के विलुप्त होने का बड़ा कारण सामने आया था, मवेशियों में सूजन होने पर दी जाने वाली दर्दनिवारक डिक्लोफेनाक दवा। सन् 1990 से इसका प्रयोग बढ़ा। पर यह दवा गिद्धों की किडनी पर असर डालने लगी। जानवरों का मांस खाने के बाद उनकी तेजी से अकाल मौत होने लगी। सन् 2008 में भारत सरकार ने इस दवा पर बैन लगा दिया। इसके विकल्प के रूप में मेलोक्सिकैम दवा सुझाई गई, पर इन 18 सालों में गिद्धों की कई पीढिय़ां और प्रजातियां नष्ट हो गईं।
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में पिछले फरवरी में गिद्धों की गिनती कराई गई थी। वहां इनकी संख्या में वृद्धि पाई गई। छत्तीसगढ़ में कराई गई गणना की रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है।
तमगे के साथ तोहमत भी...
छत्तीसगढ़ के सभी कलेक्टर अपने-अपने जिलों में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए स्वीप अभियान जोरों से चला रहे हैं। कोई दौड़ लगा रहा है, तो कोई जुंबा डांस कर रहा है, कहीं रंगोली बन रही है कहीं शपथ लिए जा रहे हैं। बलौदाबाजार में भी एक अभियान चला। ट्रैक्टर महारैली निकाली गई। इसे गोल्डन (गिनीज नहीं) बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया। कलेक्टर के एल चौहान को सम्मानित किया गया। रैली में एक ट्रैक्टर खुद चौहान ने भी चलाया।
पर, इसका दूसरा पहलू भी है। ट्रैक्टर रैली में यातायात नियमों की जमकर धज्जियां उड़ी। कई गाडिय़ों से नंबर प्लेट गायब थे, लोग लटके और लदे हुए थे। जिस गाड़ी को कलेक्टर चला रहे थे, उसमें भी नंबर नजर नहीं आ रहा था। उनकी निगाह में आना था, इसलिये ट्रैक्टर और ट्राली के बीच अधिकारी ऐसे लटके थे, जैसा ओवरलोड टैक्सी में दिखता है। ट्राली की हालत भी कंडम थी। पीछे जो ट्रैक्टर लगे थे, उनमें से भी कई के नंबर प्लेट गायब थे।
छत्तीसगढ़ में कंडम गाडिय़ों और माल वाहक गाडिय़ों में सवारी ढोने के कारण आये दिन दुर्घटनाएं होती हैं। बलौदाबाजार जिले में भी भीषण दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। हाल ही में इससे लगे जिले दुर्ग में एक खटारा बस के खदान में गिरने से 12 मौतें हो गईं। कलेक्टर ने मतदाताओं को तो जागरूक किया लेकिन उन लोगों को शह भी दे दी, जो नियमों को तोडक़र सडक़ पर मालवाहक डंपर, ट्रैक्टर दौड़ाते और जानलेवा हादसों को अंजाम देते हैं। ([email protected])
नए कष्ट खड़े कर दिए
छत्तीसगढ़ में मां बमलेश्वरी के श्रद्धालुओं के लिए डोंगरगढ़ जाना किसी संजीवनी पहाड़ पर जाने से कम नहीं रह गया है। यह भी सच है कि कई कष्ट झेलने के बाद ही मां दर्शन देती है। लेकिन यहां तो कष्ट प्रशासन ने खड़े किए हैं। वह भी दो दो। पहला यह कि कुम्हारी के पास रोड ओवर ब्रिज को बंद कर रास्ता घुमावदार कर लंबा कर दिया गया है। और पहले डोंगरगढ़ में कई ट्रेनों के स्टापेज देकर उतने ही रद्द भी कर दिए गए । एनएच ने रोड मेंटेनेंस तो रेलवे ने आरओबी में गर्डर लांच करने के लिए । यह सब कुछ अष्टमी नवमी तक। यही वे पवित्र दिन होते हैं जो हवनादि के आयोजन के लिए निर्धारित हैं।
आत्मानंद स्कूल कॉलेजों का क्या होगा?
छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद भाजपा के मंत्रियों ने कहा कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूलों में कई खामियां हैं। इन्हें दूर किया जाएगा और संचालन के लिए नई पॉलिसी बनाई जाएगी। पर बड़ी गारंटियों पर काम कर रही सरकार लोकसभा चुनाव घोषित पहले कोई फैसला नहीं कर पाई। अब प्रदेश के स्कूलों का नया सत्र शुरू होने वाला है। इधर जून के पहले सप्ताह तक आचार संहिता लागू रहेगी। अगले सत्र में इन स्कूलों का स्वरूप क्या होगा, इस पर छात्र और अभिभावक असमंजस में हैं। कुछ प्रतिनियुक्तियां थीं, पर संविदा शिक्षकों का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका रहेगा। इधर दूसरे बाकी स्कूलों में नए सत्र के लिए भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। पिछली कांग्रेस सरकार की यह एक महत्वाकांक्षी योजना थी। इनके प्राइवेट पब्लिक स्कूलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को देखकर दाखिले की होड़ मची रही। हालांकि सरकार के आखिरी साल में निर्माण कार्य, खरीदी और नियुक्ति में भ्रष्टाचार की बात उठने लगी। भाजपा ने सरकार में आने के बाद इनकी जांच की घोषणा की। स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती सत्र के तीन चार माह बाद भी नहीं की गई। इससे छात्रों का मोहभंग होने लगा। इसकी बढ़ती मांग को देखकर उत्साहित पिछली सरकार ने योजना का विस्तार कर दिया और हर जिले में उत्कृष्ट कॉलेज खोलने की घोषणा कर दी। इनका हाल स्कूलों से भी बुरा रहा। स्कूल और कॉलेज की संरचना में बड़ा अंतर है। साइंस क्लास तो शुरू कर दिए गए पर लैब नहीं खुले। दो चार प्राध्यापक ही नियुक्त किए जा सके। साफ दिखाई दे रहा था कि कॉलेजों की घोषणा बिना सर्वे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर की गई है। इसका नतीजा यह निकला कि अधिकांश कॉलेजों में सीट ही नहीं भरे। महासमुंद, रायगढ़ जैसे कई शहरों के आत्मानंद कॉलेजों में दाखिला 100 से ऊपर नहीं पहुंचा जबकि यहां सीटें 270 हैं। इन अतिथि प्राध्यापकों की भी नियुक्ति चालू सत्र में ही समाप्त हो जाने वाली है। चुनाव निपटने के तुरंत बाद कोई फैसला नहीं लिया गया तो इन उत्कृष्ट स्कूल और उत्कृष्ट कॉलेजों के छात्रों का एक सत्र खराब हो सकता है। ऊपर से भाजपा ने सरकार बनते ही घोषणा कर दी है कि प्रदेश के 25 हजार स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम बनाया जाएगा। अभी यही मालूम नहीं है कि पहले से चल रही स्कूलों और कॉलेजों का क्या होगा?
दर्शनार्थी प्लेटफॉर्म पर
इस वर्ष फिर माल परिवहन का रिकार्ड तोडऩे वाली रेलवे ने नवरात्रि पर डोंगरगढ़ में एक्सप्रेस ट्रेनों को रोकने की घोषणा की, तब यह नहीं बताया कि दर्शनार्थियों को वह कितनी देर से पहुंचाएगी और दर्शन करने के बाद अगली ट्रेन के लिए कितना इंतजार कराएगी। स्टेशन के दोनों ओर पटरियों पर मालगाड़ी और बीच में प्लेटफॉर्म पर यात्री ट्रेन के इंतजार में बैठे बमलेश्वरी दर्शन करके लौटे लोग। जिस वक्त यह तस्वीर ली गई, स्टेशन के सूचना पटल पर बताया जा रहा था कि बिलासपुर इतवारी इंटरसिटी 4 घंटे, रायगढ़ गोंडवाना 3 घंटे 10 मिनट और आजाद हिंद एक्सप्रेस 5 घंटे 30 मिनट देरी से चल रही है। ([email protected])